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सीएम योगी के खिलाफ चुनाव लड़कर चंद्रशेखर आजाद को क्या मिलेगा? 3 प्वाइंट्स में जानिए

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 21 जनवरी, 2022 09:11 PM
  • 21 जनवरी, 2022 09:11 PM
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आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) ने अकेले ही यूपी चुनाव 2022 (UP Election 2022) लड़ने की घोषणा कर दी थी. और, अब चंद्रशेखर आजाद ने सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को उनके ही गढ़ में सियासी चुनौती देने का मन बना लिया है. आइए 3 प्वाइंट्स में जानते हैं कि इससे चंद्रशेखर आजाद रावण को क्या हासिल होगा...

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (P Election 2022) के मद्देनजर भाजपा ने सीएम योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर सदर सीट से उतारने का फैसला लिया है. जिसके बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के भी चुनाव लड़ने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. लेकिन, इन सबके बीच आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद रावण (Chandrashekhar Azad) ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इससे पहले समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की सियासी गुणा-गणित में फेल नजर आए चंद्रशेखर आजाद ने अखिलेश यादव को दलित विरोधी बताया था. दरअसल, अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर रावण को समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के गठबंधन में केवल दो सीटें ऑफर की थीं. जिसके बाद चंद्रशेखर आजाद रावण की आजाद समाज पार्टी ने अकेले ही यूपी चुनाव 2022 लड़ने की घोषणा कर दी थी.

उत्तर प्रदेश के करीब 21 फीसदी दलित वोटबैंक (Dalit Vote Bank) पर अपना हक जताने वाले चंद्रशेखर आजाद का सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ यूपी चुनाव में उतरने का फैसला चौंकाने वाला है. क्योंकि, गोरखपुर सदर सीट पर 1989 से भगवा लहरा रहा है और इसे योगी आदित्यनाथ का गढ़ कहा जा सकता है. इससे इतर यहां के जातीय समीकरण भी चंद्रशेखर रावण के इस दावे को कमजोर करते हैं. माना जाता है कि गोरखपुर सदर सीट पर दलित वोटर हार-जीत के आंकड़े में अंतर डाल सकता है. लेकिन, एकतरफा रूप से जिताने या हराने की स्थिति में नही है. अगर चंद्रशेखर आजाद रावण यहां से यूपी चुनाव 2022 की ताल ठोंकते हैं, तो उनकी जीत की संभावना बहुत कम है. हालांकि, 10 मार्च को आने वाले चुनावी नतीजों के बाद ही पता चलेगा कि चंद्रशेखर बनाम योगी के इस सियासी समर का क्या असर होगा. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि सीएम योगी के खिलाफ चुनाव लड़कर चंद्रशेखर आजाद को क्या मिलेगा? आइए 3 प्वाइंट्स में जानते हैं...

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (P Election 2022) के मद्देनजर भाजपा ने सीएम योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर सदर सीट से उतारने का फैसला लिया है. जिसके बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के भी चुनाव लड़ने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. लेकिन, इन सबके बीच आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद रावण (Chandrashekhar Azad) ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इससे पहले समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की सियासी गुणा-गणित में फेल नजर आए चंद्रशेखर आजाद ने अखिलेश यादव को दलित विरोधी बताया था. दरअसल, अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर रावण को समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के गठबंधन में केवल दो सीटें ऑफर की थीं. जिसके बाद चंद्रशेखर आजाद रावण की आजाद समाज पार्टी ने अकेले ही यूपी चुनाव 2022 लड़ने की घोषणा कर दी थी.

उत्तर प्रदेश के करीब 21 फीसदी दलित वोटबैंक (Dalit Vote Bank) पर अपना हक जताने वाले चंद्रशेखर आजाद का सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ यूपी चुनाव में उतरने का फैसला चौंकाने वाला है. क्योंकि, गोरखपुर सदर सीट पर 1989 से भगवा लहरा रहा है और इसे योगी आदित्यनाथ का गढ़ कहा जा सकता है. इससे इतर यहां के जातीय समीकरण भी चंद्रशेखर रावण के इस दावे को कमजोर करते हैं. माना जाता है कि गोरखपुर सदर सीट पर दलित वोटर हार-जीत के आंकड़े में अंतर डाल सकता है. लेकिन, एकतरफा रूप से जिताने या हराने की स्थिति में नही है. अगर चंद्रशेखर आजाद रावण यहां से यूपी चुनाव 2022 की ताल ठोंकते हैं, तो उनकी जीत की संभावना बहुत कम है. हालांकि, 10 मार्च को आने वाले चुनावी नतीजों के बाद ही पता चलेगा कि चंद्रशेखर बनाम योगी के इस सियासी समर का क्या असर होगा. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि सीएम योगी के खिलाफ चुनाव लड़कर चंद्रशेखर आजाद को क्या मिलेगा? आइए 3 प्वाइंट्स में जानते हैं...

योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़कर चंद्रशेखर आजाद एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं.

योगी को टक्कर दे 'केजरीवाल' बनने की कोशिश

2014 में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. देश को विकल्प की राजनीति का सपना दिखाने वाले अरविंद केजरीवाल को लेकर संभावनाएं जताई जा रही थीं कि उन्हें पीएम मोदी के सामने शिकस्त मिलना तय है. लेकिन, इसके बावजूद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए चुनाव लड़ा था और हार गए. लेकिन, इसी हार ने ही अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में बंपर सीटों के साथ जीत दी. क्योंकि, पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर खुद को एक बड़ा चेहरा बना लिया था. ठीक इसी तर्ज पर चलते हुए चंद्रशेखर आजाद रावण भी अपने लिए भविष्य का सियासी ताना-बाना बुनने में लगे हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ यूपी विधानसभा चुनाव 2022 लड़कर भले ही चंद्रशेखर रावण हार जाएं. लेकिन, इस सियासी घमासान से उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पहचान मिल सकती है. फिलहाल उनके संगठन का प्रभाव बहुत व्यापक नही है, तो सीएम योगी के सामने चुनाव लड़ने के फैसले से चंद्रशेखर आजाद चर्चा का हिस्सा बनकर सुर्खियों में छाए रहेंगे. जो उनके संगठन के लिए संजीवनी का काम कर सकता है.

बसपा सुप्रीमो मायावती के दलित वोटबैंक पर दावेदारी

उत्तर प्रदेश में दलित मतदाताओं का झुकाव हमेशा से बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर रहा है. लेकिन, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में मायावती की सियासी चुप्पी ने बसपा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं. आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण कई बार मायावती से मिलने की कोशिश कर चुके हैं. लेकिन, मायावती ने हर बार उन्हें दरकिनार किया है. दरअसल, चंद्रशेखर को बसपा में शामिल करने का सीधा सा मतलब है कि वह पार्टी में मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश करेंगे. जो बसपा सुप्रीमो मायावती किसी भी हाल में नही होने देंगी. सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनावी ताल ठोंकने से चंद्रशेखर आजाद रावण को उन दलित मतदाताओं के बीच पकड़ बनाने में जगह मिल सकती है, जो अभी तक बसपा के साथ जुड़े हुए हैं. अगर मायावती इस चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाती हैं, तो बसपा का राजनीतिक रूप से हाशिये पर जाना तय है. इस स्थिति में चंद्रशेखर रावण इस मौके का फायदा उठा सकते हैं. और, दलित वोटों पर अपनी दावेदारी जता सकते हैं.

जाटव मतदाताओं का एकमात्र नेता

यूपी में तमाम छोटे दल एक जाति की राजनीति कर सियासी फायदा उठाते रहे हैं. ओमप्रकाश राजभर से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य तक ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है. कहा जा सकता है कि भविष्य में चंद्रशेखर आजाद रावण भी खुद को ऐसे ही नेता के तौर पर स्थापित करने का सपना देख रहे हों. उत्तर प्रदेश के करीब 21 फीसदी दलित मतदाताओं के सहारे चंद्रशेखर रावण का ये सपना पूरा होता भी दिखता है. माना जाता है कि लंबे समय तक मायावती से जुड़ा रहा दलित मतदाता बीते कुछ सालों में भाजपा की ओर गया है. और, इसमें गैर-जाटव मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. दरअसल, मायावती और चंद्रशेखर आजाद रावण दोनों ही जाटव समुदाय से आते हैं. मायावती की निष्क्रियता से जाटव मतदाताओं के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं रह गए हैं. और, लंबे समय तक सत्ता से दूर रहने का असर भी इन मतदाताओं पर पड़ा है. अगर केवल जाटव मतदाताओं के बीच चंद्रशेखर आजाद रावण अपनी ठीक-ठाक पकड़ बना लेते हैं, तो अगले चुनावों में वह इन छोटे दलों की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत तरीके अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं. समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, जो आज चंद्रशेखर को 2 सीटें देने को तैयार हैं, करीब 11 फीसदी मतदाताओं के लिए कितनी सीटें ऑफर करेंगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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