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Mamata Banerjee के व्हीलचेयर के अवाला इन 5 बातों ने बंगाल चुनाव में BJP की बढ़ाई टेंशन

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 18 मार्च, 2021 04:59 PM
  • 18 मार्च, 2021 04:59 PM
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पश्चिम बंगाल (West Bengal Assembly Elections 2021) में TMC और BJP के बीच चुनावी घमासान जारी है. एक तरफ बीजेपी लगातार TMC पर हमलावर है वहीं ममता दीदी (mamata banerjee) ने भी बोल दिया है कि खेला होबे.

पश्चिम बंगाल (West Bengal Assembly Elections 2021) में TMC और BJP के बीच चुनावी घमासान जारी है. एक तरफ बीजेपी लगातार TMC पर हमलावर है वहीं ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने भी बोल दिया है कि खेला होबे...खैर राजनीति में ये सब तो चलता ही रहता है. एक तरफ पश्चिम बंगाल के दासपुर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ममता दीदी ने पश्चिम बंगाल के विकास के लिए किया ही क्या है. दूसरी तरफ Cm Yogi Aditya Nath ने भी पुरुलिया में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ममता दीदी जय श्री से डरती हैं लेकिन मंदिर में जाकर चंडी का पाठ करती हैं.

जो भी हो ममता बनर्जी ने बीजेपी को टक्कर तो दे ही है

वहीं ममता दीदी का कहना है कि 27 मार्च को खेला होवे. मैं बीजेपी से कहना चाहती हूं कि खेला होवे. जो हमसे टकराएगा वो चूर-चूर हो जाएगा. हम किसी को बंगाल में मनमानी नहीं करने देंगे. चलिए अब ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि जनता इस बारे में क्या सोचती है. फिलहाल व्हील चेयर से लेकर उन पांच बातों के बारे में आपको बताते हैं, जिसकी वजह से मिथुन दा, राजनाथ सिंह, अमित शाह और पीएम मोदी के बंगाल में जमावड़े के बाद भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं. आखिर विपक्ष क्यों खेला होबे की धमकी दे रहा है, क्या यह बीजेपी की अंदरूनी कमजोरी है?

1- व्हील चेयर पर बैठीं दीदी और भार बढ़ा बीजेपी का

जब ममता बनर्जी चोटिल टांग के साथ व्हील चेयर पर बैठकर लोकतंत्र बचाने के लिए कोलकाता की सड़कों पर उतरीं तो बीजेपी दिग्गज टेंशन में आ गए. टेंशन में आना लाजमी भी है क्योंकि बंगाल में लोग मां, माटी और मानुष की दीवाने हैं. ऐसे में विपक्ष को यह लगा कि बंगाल की जनता की सहानुभूति अगर बेटी के साथ जुड़ गई तो चुनाव एकतरफा हो सकता है. वैसे भी कुछ विपक्षी नेताओं...

पश्चिम बंगाल (West Bengal Assembly Elections 2021) में TMC और BJP के बीच चुनावी घमासान जारी है. एक तरफ बीजेपी लगातार TMC पर हमलावर है वहीं ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने भी बोल दिया है कि खेला होबे...खैर राजनीति में ये सब तो चलता ही रहता है. एक तरफ पश्चिम बंगाल के दासपुर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ममता दीदी ने पश्चिम बंगाल के विकास के लिए किया ही क्या है. दूसरी तरफ Cm Yogi Aditya Nath ने भी पुरुलिया में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ममता दीदी जय श्री से डरती हैं लेकिन मंदिर में जाकर चंडी का पाठ करती हैं.

जो भी हो ममता बनर्जी ने बीजेपी को टक्कर तो दे ही है

वहीं ममता दीदी का कहना है कि 27 मार्च को खेला होवे. मैं बीजेपी से कहना चाहती हूं कि खेला होवे. जो हमसे टकराएगा वो चूर-चूर हो जाएगा. हम किसी को बंगाल में मनमानी नहीं करने देंगे. चलिए अब ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि जनता इस बारे में क्या सोचती है. फिलहाल व्हील चेयर से लेकर उन पांच बातों के बारे में आपको बताते हैं, जिसकी वजह से मिथुन दा, राजनाथ सिंह, अमित शाह और पीएम मोदी के बंगाल में जमावड़े के बाद भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं. आखिर विपक्ष क्यों खेला होबे की धमकी दे रहा है, क्या यह बीजेपी की अंदरूनी कमजोरी है?

1- व्हील चेयर पर बैठीं दीदी और भार बढ़ा बीजेपी का

जब ममता बनर्जी चोटिल टांग के साथ व्हील चेयर पर बैठकर लोकतंत्र बचाने के लिए कोलकाता की सड़कों पर उतरीं तो बीजेपी दिग्गज टेंशन में आ गए. टेंशन में आना लाजमी भी है क्योंकि बंगाल में लोग मां, माटी और मानुष की दीवाने हैं. ऐसे में विपक्ष को यह लगा कि बंगाल की जनता की सहानुभूति अगर बेटी के साथ जुड़ गई तो चुनाव एकतरफा हो सकता है. वैसे भी कुछ विपक्षी नेताओं ने पहले ही दीदी के चोट पर सवाल खड़े करके बंगाली मानुष को नाराज कर दिया था. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ममता बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रही हैं.

2- बंगाली भद्र पुरुष सीएम चेहरे की कमी

बंगाली-बंगाली में भाईचारा बहुत चलता है. देश के किसी कोने में एक बंगाली मानुष को दूसरा बंगाली मिल जाए तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. वैसे भी चुनाव को जाति और धर्म के नाम पर खूब भुनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि एक बंगाली दूसरे बंगाली दादा का सपोर्ट जरूर करता है. वो कहते हैं ना अपनी-अपनी जगह का कनेक्शन, बस कुछ ऐसा ही समझ लीजिए. दरअसल, बंगाल में बीजेपी ने अभी तक सीएम चेहरे की घोषणा नहीं की है. ऐसे में सवाल यह है कि अगर बीजेपी चुनाव जीत भी जाती है तो सीएम कौन होगा. यूपी विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने सीएम का चेहरा नहीं बताया था लेकिन वहां कि बात अलग थी, क्योंकि कुछ चेहरे ऐसे थे जिस पर लोग पहले से कयास लगा रहे थे.

चुनावी जानकार कहते हैं कि अगर जनता को पहले से पता होता कि योगी आदित्यनाथ सीएम बनेंगे तो शायद समीकरण कुछ और ही होता. पं. बंगाल में भी मुकुल रॉय, शुभेंदु अधिकारी, बाबुल सुप्रियो और दिलीप घोष सरीखे बहुत से नाम हैं जो मन ही मन सीएम बनने का ख्वाब देख रहे हैं, लेकिन इनमें से किसी के अंदर वो जनाधार नहीं है जो ममता दीदी को टक्कर दे सके. मिथुन दा बस कोबरा की धमकी ही दे रहे हैं. इसलिए बीजेपी बंगाली सीएम कैंडिडेट की घोषणा ना करके पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है. तो वहीम TMC ममता के नाम पर हुंकार भर रही है.

3- गले का कांटा बना अनेकता में एकता

एक तरह से यह भी सच है कि पिछले दो-तीन सालों में पं. बंगाल में बीजेपी का संगठन मजबूत हुआ है. मुकुल रॉय जब 2017 में शामिल हुए उसके बाद संघ, बीजेपी के पुराने काडर से अलावा बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट दलों के लोग भी बीजेपी में शामिल हुए हैं. अब हुआ यूं है कि अनेकता में एकता टिकट बंटवारे में काम नहीं आ रही है और गले का कांटा बनी हुई है. टिकट बंटवारे को लेकर चुनाव से ठीक पहले नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आने लगी है. जो नेता पार्टी में शामिल हुए थे अब वे ही पार्टी छोड़ रहे हैं.

4- दक्षिण बंगाल में बीजेपी की मौजूदगी न के बराबर

बंगाल विधानसभा की कुल 294 सीटों में से 167 तो दक्षिण बंगाल में ही हैं. जहां बीजेपी की मौजूदगी ना के बराबर है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि बीजेपी अपनी नैया कैसे पार लगाएगी. दरअसल, राज्य का कुल 56.8 फीसदी वोट शेयर इसी इलाके का है. लोकसभा चुनाव में भी इस एरिए में बीजेपी कुछ खास नहीं कर पाई थी. तो अगर बीजेपी चुनाव जीतना चाहती है तो इस इलाके में भी पकड़ मजबूत करनी होगी.

5- महंगाई और राकेश टिकैत का बंगाल पहुंचना

महंगाई अपनी चरम सीमा पर है, जनता महंगाई से त्रस्त है. ऊपर से राकेश टिकैत भी बंगाल पहुंच गए. जिस बंगाल में सस्ता खाना मिलता है. वहां की जनता मंहगाई का गुस्सा चुनाव में ही उतारेगी. क्योंकि महंगाई की मार तो सभी राज्य झेल रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अगर बीजेपी इन चुनौतियों का तोड़ निकाल लेती है तो शायद बंगाल जीतने से कोई रोक नहीं पाएगा. फिलहाल ये पांच बातें तो बीजेपी के लिए मुसीबत बनी हुई हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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