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Opinion: बंगाल चुनाव पर इतराने वालों, जरा ठहर जाइए!

    • जे सुशील
    • Updated: 04 मई, 2021 01:51 PM
  • 04 मई, 2021 01:39 PM
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पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद नतीजे हमारे सामने हैं. जो ममता की जीत से खुश हैं उनके अपने तर्क हैं. इसी तरह जो लोग भाजपा का मजाक उड़ा रहे हैं उन्हें अपनी राजनीतिक समझ पर विचार करना चाहिए. ऐसे तमाम कारण हैं जिनके मद्देनजर हमें बंगाल में भाजपा के प्रदर्शन की तारीफ करनी चाहिए.

बंगाल के चुनाव में ममता की जीत पर बहुत ज्यादा मत इतराइए. उनके पास पिछले चुनाव में 211 सीटें थीं. इस वाले में बढ़ घटकर उसी नंबर पर है यानी कि उन्होंने मोटा मोटी अपना जनाधार बचा रखा है. जो बीजेपी का मजाक उड़ा रहे हैं उन्हें अपनी राजनीतिक समझ पर विचार करना चाहिए. तीन सीटों से पांच साल में नब्बे सीट पर पहुंच जाना बड़ी बात है. इस उछाल पर तो अटल बिहारी और आडवाणी ने केंद्र में सरकार बना ली थी. इसलिए अभी खेल शुरू हुआ है जो निर्भर करेगा कि अगले साल क्या होगा यूपी में. अगर अगले साल यूपी में बीजेपी हारती है तो बंगाल में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को दौड़ा दौड़ा कर मारा जाएगा. अगर बीजेपी जीत गई दोबारा तब फिर तृणमूल के लिए परेशानी बढ़ेगी.

सबसे अधिक चिंता अगर किसी प्रकार की हो तो कांग्रेस और लेफ्ट के लिए है जो पूरी तरह से बंगाल से साफ हो चुके हैं. कांग्रेस का तो छोड़ दीजिए. कांग्रेस की रणनीति है कि किसी तरह केंद्र में नंबर दो बना रहा जाए. बाद में बाकी वो चाहती है कि बंगाल में ममता, बिहार में नीतीश, महाराष्ट्र में शिव सेना बने रहें उन्हें फर्क नहीं पड़ता. धीरे धीरे केरल, पांडिचेरि और कर्नाटक स्थायी रूप से कांग्रेस के हाथ से निकल जाने वाले हैं.

बंगाल के चुनाव नतीजों में ममता से लेकर भाजपा तक ऐसा बहुत कुछ है जिसे इतिहास याद रखेगा

लेफ्ट के लिए अब रास्ता कठिन है. बस केरल बचा है. यहां से और नीचे नहीं जा सकते. अभी भी समय है पार्टी के पोलित ब्यूरो को पूरी तरह बदल कर नए लोगों के हाथ में नेतृत्व दिया जाए जो नई सोच के साथ आएं. मार्क्स और लेनिन नहीं चलेगा. विचारधारा में नयापन चाहिए. न मिले नयापन तो थॉमस पिकेटी से सीख लीजिए. नई बातें बताने के लिए अमर्त्य सेन, रघुराम राजन हैं. बाज़ार अंतिम है. उसका विरोध आंख बंद कर करते रहने से नहीं होगा....

बंगाल के चुनाव में ममता की जीत पर बहुत ज्यादा मत इतराइए. उनके पास पिछले चुनाव में 211 सीटें थीं. इस वाले में बढ़ घटकर उसी नंबर पर है यानी कि उन्होंने मोटा मोटी अपना जनाधार बचा रखा है. जो बीजेपी का मजाक उड़ा रहे हैं उन्हें अपनी राजनीतिक समझ पर विचार करना चाहिए. तीन सीटों से पांच साल में नब्बे सीट पर पहुंच जाना बड़ी बात है. इस उछाल पर तो अटल बिहारी और आडवाणी ने केंद्र में सरकार बना ली थी. इसलिए अभी खेल शुरू हुआ है जो निर्भर करेगा कि अगले साल क्या होगा यूपी में. अगर अगले साल यूपी में बीजेपी हारती है तो बंगाल में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को दौड़ा दौड़ा कर मारा जाएगा. अगर बीजेपी जीत गई दोबारा तब फिर तृणमूल के लिए परेशानी बढ़ेगी.

सबसे अधिक चिंता अगर किसी प्रकार की हो तो कांग्रेस और लेफ्ट के लिए है जो पूरी तरह से बंगाल से साफ हो चुके हैं. कांग्रेस का तो छोड़ दीजिए. कांग्रेस की रणनीति है कि किसी तरह केंद्र में नंबर दो बना रहा जाए. बाद में बाकी वो चाहती है कि बंगाल में ममता, बिहार में नीतीश, महाराष्ट्र में शिव सेना बने रहें उन्हें फर्क नहीं पड़ता. धीरे धीरे केरल, पांडिचेरि और कर्नाटक स्थायी रूप से कांग्रेस के हाथ से निकल जाने वाले हैं.

बंगाल के चुनाव नतीजों में ममता से लेकर भाजपा तक ऐसा बहुत कुछ है जिसे इतिहास याद रखेगा

लेफ्ट के लिए अब रास्ता कठिन है. बस केरल बचा है. यहां से और नीचे नहीं जा सकते. अभी भी समय है पार्टी के पोलित ब्यूरो को पूरी तरह बदल कर नए लोगों के हाथ में नेतृत्व दिया जाए जो नई सोच के साथ आएं. मार्क्स और लेनिन नहीं चलेगा. विचारधारा में नयापन चाहिए. न मिले नयापन तो थॉमस पिकेटी से सीख लीजिए. नई बातें बताने के लिए अमर्त्य सेन, रघुराम राजन हैं. बाज़ार अंतिम है. उसका विरोध आंख बंद कर करते रहने से नहीं होगा. इनोवेटिव होना पड़ेगा.

बाकी बात प्रशांत किशोर की तारीफ में जमीन पर गिर गिर कर खुश होने वालों. ये आदमी राजनीति को जमीन से उठाकर पैसों की लग्गी बनाकर आसमान में खोंच रहा है. इसके दूरगामी परिणाम होंगे जो आपको अभी समझ में नहीं आ रहा है.

बंगाल में इस आदमी ने कुछ अनोखा नहीं किया है. आधुनिकीकरण (चुनाव प्रचार के) अलावा. ममता की सीटें ढाई सौ होती तो समझते कुछ किया कमाल का. खैर आप मुझे प्रशांत किशोर विरोधी मान कर खारिज कर सकते हैं लेकिन ऐसे लोग लोकतंत्र का जितना नुकसान कर रहे हैं वो हम सभी को कुछ सालों मे समझ में आएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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