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यूपी में समाजसेवा को 'सुप्रीम' राहत, योगी सरकार इस झटके से कैसे उबरेगी?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 02 मई, 2021 10:57 PM
  • 02 मई, 2021 10:26 PM
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वैसे लिखी सी बात है कि जिला अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्थाओं की एक आम आदमी ऐसे खुलेआम पोल खोलने लगेगा, तो सीएमएस साहब को गुस्सा आना लाजिमी है. अब योगी सरकार ऑक्सीजन और दवाओं को लेकर जो दावे कर रही है, उसकी कलई खुल जाएगी. इसे किसी न किसी को तो रोकना होगा. वैसे इसे रोकने के लिए पुलिस का मामला दर्ज कर लेना उचित नहीं लगता है. वो भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर को शुरू हुए एक महीना बीत चुका है. इसके बावजूद दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत हो रही है. मरीजों के परिजन जीवनरक्षक दवाओं से लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं. लोगों को वैक्सीन नहीं मिल रही है, लेकिन, सरकारें कह रही हैं कि ऑक्सीजन और वैक्सीन भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं. इससे इतर लोगों के लिए एक सिरदर्द और बढ़ गया है कि अगर उत्तर प्रदेश में आपने गलती से ऑक्सीजन या रेमडेसिविर के लिए सोशल मीडिया पर गुहार लगा दी, तो आपके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाएगा. वैसे अमेठी का मामला सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा था कि इंटरनेट पर ऑक्सीजन, बिस्तर और डॉक्टरों की कमी संबंधी पोस्ट करने वाले लोगों पर अफवाह फैलाने के आरोप में कोई कार्रवाई नहीं करें. अगर ऐसा किया जाता है, तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी उत्तर प्रदेश के 'सिस्टम' के तेवर कमजोर पड़ते नजर नहीं आ रहे हैं.

विपक्ष की अपील योगी सरकार पर पड़ेगी भारी

अमेठी में मदद मांगने वाले लड़के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद उसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने समझाकर छोड़ दिया था. कोरोना महामारी के इस दौर में लोग ऑक्सीजन जैसी महत्वपूर्ण जरूरतों के लिए ट्वीट और पोस्ट करेंगे ही. इस स्थिति में योगी सरकार अपनी छवि को बचाने की कोशिशें कब तक करती रहेगी? समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने देश और खास तौर पर उत्तर प्रदेश के युवाओं से ऑक्सीजन, बेड व दवाइयों की कमी को सोशल मीडिया पर उजागर करने की बात कही है. अब इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस के पास एक काम और बढ़ जाने की संभावना है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने प्रशासन अपनी नाक बचाने के लिए ऐसे हजारों लोगों पर मुकदमे दर्ज कराकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करेगा. इस कार्रवाई का सारा ठीकरा अंततोगत्वा योगी सरकार पर फूटेगा.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर को शुरू हुए एक महीना बीत चुका है. इसके बावजूद दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत हो रही है. मरीजों के परिजन जीवनरक्षक दवाओं से लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं. लोगों को वैक्सीन नहीं मिल रही है, लेकिन, सरकारें कह रही हैं कि ऑक्सीजन और वैक्सीन भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं. इससे इतर लोगों के लिए एक सिरदर्द और बढ़ गया है कि अगर उत्तर प्रदेश में आपने गलती से ऑक्सीजन या रेमडेसिविर के लिए सोशल मीडिया पर गुहार लगा दी, तो आपके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाएगा. वैसे अमेठी का मामला सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा था कि इंटरनेट पर ऑक्सीजन, बिस्तर और डॉक्टरों की कमी संबंधी पोस्ट करने वाले लोगों पर अफवाह फैलाने के आरोप में कोई कार्रवाई नहीं करें. अगर ऐसा किया जाता है, तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी उत्तर प्रदेश के 'सिस्टम' के तेवर कमजोर पड़ते नजर नहीं आ रहे हैं.

विपक्ष की अपील योगी सरकार पर पड़ेगी भारी

अमेठी में मदद मांगने वाले लड़के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद उसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने समझाकर छोड़ दिया था. कोरोना महामारी के इस दौर में लोग ऑक्सीजन जैसी महत्वपूर्ण जरूरतों के लिए ट्वीट और पोस्ट करेंगे ही. इस स्थिति में योगी सरकार अपनी छवि को बचाने की कोशिशें कब तक करती रहेगी? समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने देश और खास तौर पर उत्तर प्रदेश के युवाओं से ऑक्सीजन, बेड व दवाइयों की कमी को सोशल मीडिया पर उजागर करने की बात कही है. अब इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस के पास एक काम और बढ़ जाने की संभावना है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने प्रशासन अपनी नाक बचाने के लिए ऐसे हजारों लोगों पर मुकदमे दर्ज कराकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करेगा. इस कार्रवाई का सारा ठीकरा अंततोगत्वा योगी सरकार पर फूटेगा.

स्वास्थ्य विभाग की खुल रही है कलई

उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों के साथ ही ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मच गया था. जिसके बाद योगी सरकार ने दवा, अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी पर कथित रूप से अफवाह फैलाने वालों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा करते हुए संपत्ति जब्त करने की घोषणा की हुई है. कोरोना संक्रमण के इस दौर में लोग राजनीतिक प्रतिबद्धताओं और आर्थिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए मरीजों की मदद करने को एकजुट होकर काम कर रहे हैं. लेकिन, योगी सरकार ने समाजसेवा पर पहरा बिठा दिया है. हाल ही में उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक शख्स के खिलाफ सिर्फ इसलिए मुकदमा दर्ज कर लिया गया, क्योंकि उसने जिला अस्पताल के बाहर मरीजों को तड़पता देख ऑक्सीजन मुहैया करा दी थी. जिला अस्पताल के सीएमएस साहब को शख्स की इस 'कारगुजारी' पर गु्स्सा आ गया और उन्होंने यूपी पुलिस से शिकायत कर दी. यूपी पुलिस ने भी पूरी तत्परता दिखाते हुए मामला दर्ज कर लिया.

अगर प्रशासन इसी तरह लोगों पर मुकदमे दर्ज करता रहेगा, तो जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए कोई कैसे हाथ बढ़ा पाएगा.

जरूरतमंदों की मदद के लिए कौन जुटा पाएगा हिम्मत?

वैसे लिखी सी बात है कि जिला अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्थाओं की एक आम आदमी ऐसे खुलेआम पोल खोलने लगेगा, तो सीएमएस साहब को गुस्सा आना लाजिमी है. अब योगी सरकार ऑक्सीजन और दवाओं को लेकर जो दावे कर रही है, उसकी कलई खुल जाएगी. इसे किसी न किसी को तो रोकना होगा. वैसे इसे रोकने के लिए पुलिस का मामला दर्ज कर लेना उचित नहीं लगता है. वो भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद. अगर प्रशासन इसी तरह लोगों पर मुकदमे दर्ज करता रहेगा, तो जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए कोई कैसे हाथ बढ़ा पाएगा. जिन लोगों को मीडिया और सोशल मीडिया पर 'ऑक्सीजन मैन' की उपाधि दी जा रही है, प्रशासन उनके लिए ही सांस लेना दूभर कर दे रहा है. जेल जाने और संपत्ति जब्त होने के डर में शायद ही कोई जियाला होगा (नेताओं को छोड़ ही दिया जाए), जो लोगों की मदद करेगा.

ऐसे समय में जब देशभर से ऑक्सीजन की कमी की खबरें सामने आ रही हों, योगी सरकार का लोगों पर मुकदमा करना कहां तक जायज है? वैसे सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश किसी झटके से कम नहीं है. योगी सरकार अपने फैसलों को लेकर हमेशा से ही स्पष्ट रही है और आगे भी यह दिखता रहेगा. जैसे पंचायत चुनाव और लॉकडाउन के लिए योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी. शायद अवमानना के आदेश को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट चली जाएगी. देखना रोचक होगा कि स्वास्थ्य विभाग की कमियों, अखिलेश यादव की अपील और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद योगी सरकार इस झटके से कैसे उबरेगी?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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