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Mamata का हिंदी दिवस वाला ट्वीट लोकसभा चुनाव 2024 के लिए है, भवानीपुर उपचुनाव के लिए नहीं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 14 सितम्बर, 2021 09:27 PM
  • 14 सितम्बर, 2021 09:27 PM
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ममता के हिंदी दिवस ट्वीट को लोग भवानीपुर उप चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं और कहा यही जा रहा है कि कहीं ममता का ये हिंदी प्रेम उन्हें भवानीपुर उपचुनाव में भारी न पड़ जाए. ऐसे में लोगों को ये बताना बहुत जरूरी है कि ममता बनर्जी का हिंदी दिवस वाला ट्वीट लोकसभा चुनाव 2024 के लिए है, भवानीपुर उपचुनाव के लिए नहीं.

सियासत में ज़रूरी है रवादारी, समझता है,

वो रोज़े नहीं रखता पर इफ्तारी समझता है.

झौंके में या फिर मुशायरे के दौरान श्रोताओं की तालियों से गदगद होकर कहा होगा किसी शायर ने ये बेशकीमती शेर. जिसपर अभी बात करने का न मौका है, न दस्तूर. हां लेकिन जिस बारे में बात हो सकती है,वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अचानक उमड़ा उनका हिंदी के प्रति प्रेम है. आगे कई चीजों का वर्णन होगा मगर गुमनाम शायर का ऊपर जो शेर है, उसे अपने दिमाग में रखे रहिएगा. चीजों को समझने में आसानी होगी. जिक्र ममता बनर्जी और उनके हिंदी प्रेम का हुआ है तो बताना जरूरी है कि ममता ने ट्विटर पर हिंदी की सेवा की जिसने उनके समर्थकों को आहत कर दिया है. लोग इसे भवानीपुर उप चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं और कहा यही जा रहा है कि कहीं ममता का ये हिंदी प्रेम उन्हें भवानीपुर उपचुनाव में भारी न पड़ जाए. ऐसे में लोगों को ये बताना बहुत जरूरी है कि ममता बनर्जी का हिंदी दिवस वाला ट्वीट लोकसभा चुनाव 2024 के लिए है, भवानीपुर उपचुनाव के लिए नहीं.

अपने तरकश से हिंदी दिवस का ट्वीट कर ममता ने 2024 आम चुनावों पर निशाना लगाया है

हुआ कुछ यूं है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने फॉलोवर्स को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए एक संदेश भेजा है,जिसने ममता और तृणमूल समर्थकों को काफी नाराज कर दिया है. हिंदी दिवस के संदर्भ में ममता बनर्जी ने भारतीयों और भाषा को समृद्ध बनाने की दिशा में काम करने वालों को शुभकामनाएं दीं.

ध्यान रहे ये शुभकामनाएं ठीक उस वक़्त आई हैं जब भवानीपुर उपचुनाव में अपनी कुर्सी बचाने के उद्देश्य से टीएमसी सुप्रीमो पुनः चुनाव लड़ रही हैं.राजनीतिक विश्लेषकों का एक बड़ा तबका है जो इस बात को लेकर एकमत है...

सियासत में ज़रूरी है रवादारी, समझता है,

वो रोज़े नहीं रखता पर इफ्तारी समझता है.

झौंके में या फिर मुशायरे के दौरान श्रोताओं की तालियों से गदगद होकर कहा होगा किसी शायर ने ये बेशकीमती शेर. जिसपर अभी बात करने का न मौका है, न दस्तूर. हां लेकिन जिस बारे में बात हो सकती है,वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अचानक उमड़ा उनका हिंदी के प्रति प्रेम है. आगे कई चीजों का वर्णन होगा मगर गुमनाम शायर का ऊपर जो शेर है, उसे अपने दिमाग में रखे रहिएगा. चीजों को समझने में आसानी होगी. जिक्र ममता बनर्जी और उनके हिंदी प्रेम का हुआ है तो बताना जरूरी है कि ममता ने ट्विटर पर हिंदी की सेवा की जिसने उनके समर्थकों को आहत कर दिया है. लोग इसे भवानीपुर उप चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं और कहा यही जा रहा है कि कहीं ममता का ये हिंदी प्रेम उन्हें भवानीपुर उपचुनाव में भारी न पड़ जाए. ऐसे में लोगों को ये बताना बहुत जरूरी है कि ममता बनर्जी का हिंदी दिवस वाला ट्वीट लोकसभा चुनाव 2024 के लिए है, भवानीपुर उपचुनाव के लिए नहीं.

अपने तरकश से हिंदी दिवस का ट्वीट कर ममता ने 2024 आम चुनावों पर निशाना लगाया है

हुआ कुछ यूं है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने फॉलोवर्स को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए एक संदेश भेजा है,जिसने ममता और तृणमूल समर्थकों को काफी नाराज कर दिया है. हिंदी दिवस के संदर्भ में ममता बनर्जी ने भारतीयों और भाषा को समृद्ध बनाने की दिशा में काम करने वालों को शुभकामनाएं दीं.

ध्यान रहे ये शुभकामनाएं ठीक उस वक़्त आई हैं जब भवानीपुर उपचुनाव में अपनी कुर्सी बचाने के उद्देश्य से टीएमसी सुप्रीमो पुनः चुनाव लड़ रही हैं.राजनीतिक विश्लेषकों का एक बड़ा तबका है जो इस बात को लेकर एकमत है कि दक्षिण कोलकाता के सबसे पुराने हिस्सों में से एक भवानीपुर के वोटर्स को रिझाने के लिए ममता द्वारा 'हिंदी दिवस' का ये कार्ड ममता की तरफ से फेंका गया है.

बताते चलें कि मिश्रित जनसांख्यिकी के साथ, इस सीट में बंगालियों के अलावा गुजराती, मारवाड़ी और पंजाबी भाषी मतदाता शामिल हैं. चूंकि गैर बंगाली वोट इस सीट के लिए हमेशा ही निर्णायक सिद्ध हुए हैं. तो कहा ये भी जा रहा है कि ममता यदि उन्हें रिझाने में कामयाब हो गईं तो इसका बड़ा फायदा उन्हें आज तो मिलेगा ही. साथ ही इस तरह का भाषाई तुष्टिकरण उन्हें भविष्य में भी फायदा पहुंचाएगा.

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इस चुनाव के लिए सिर्फ ममता ही गंभीर हैं. इस चुनाव के मद्देनजर भाजपा की भी तैयारी लगभग पूरी है. ध्यान रहे कि पूर्व में यहां से भाजपा ने अभिनेता रुदानिल घोष को मैदान में उतारा था, पार्टी ने अब उपचुनाव के लिए प्रियंका टिबरेवाल को चुना है. वह मारवाड़ी समाज से ताल्लुक रखती हैं.

ममता के समर्थक 'हिंदी' को लेकर क्यों कर रहे हैं उनकी आलोचना?

तो आखिर आज हिंदी भाषा कैसे ममता के गले की हड्डी साबित हुई है गर जो इस बात को समझना हो तो हमें बीते दिनों हुए पश्चिम बंगाल चुनाव का रुख करना पड़ेगा. जिस वक़्त बंगाल में चुनाव हो रहे थे ममता और तृणमूल कांग्रेस की तरफ से बंगाली गौरव को एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया गया था. साथ ही तब भाजपा को 'बाहरी' बताते हुए तृणमूल ने पार्टी के खिलाफ भाषाई आधार पर आक्रामक अभियान भी चलाया था. ऐसे में अब जबकि ममता बनर्जी ने हिंदी दिवस का शुभकामना ट्वीट किया है आलोचना का होना स्वाभाविक था.

इस ट्वीट से 24 लोकसभा चुनाव के लिए ममता ने अपने तरकश से पहला तीर छोड़ दिया है.

जैसा कि हम बता चुके हैं ममता के हिंदी दिवस शुभकामना ट्वीट का भवानीपुर उप चुनाव से कोई लेना देना ही नहीं है. ममता ने जो किया है इसकी एक बड़ी वजह 24 का आम चुनाव है. सवाल होगा कि 24 के आम चुनाव और ममता बनर्जी में क्या समानता? जवाब बहुत आसान है. भाजपा के साम दाम दंड भेद के विपरीत जैसा प्रदर्शन तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी का बंगाल विधानसभा चुनावों में रहा है तब से लेकर अब तक चर्चा इसी बात की रही है कि यदि पीएम मोदी और भाजपा को कोई टक्कर दे सकता है तो केवल और केवल ममता बनर्जी हैं.

कयास इसी बात के लग रहे हैं कि आने वाले वक्त में ममता बनर्जी महागठबंधन का बड़ा चेहरा होंगी जो भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी टक्कर देंगी. गौरतलब है कि कांग्रेस और राहुल गांधी से लोग खिन्न हैं. साथ ही पूरे विपक्ष में कोई ऐसा चेहरा भी नहीं है जिसे हम भाजपा से लोहा लेते देख लें ऐसे में सिर्फ ममता बनर्जी ही हैं जो तमाम मोदी विरोधियों के लिए उम्मीद की आखिरी किरण हैं.

अब चूंकि बात ममता के अचानक उमड़े हिंदी प्रेम की हुई है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि ये यूं ही रैंडम नहीं है एक वोटर के रूप में हमें इसके पीछे छिपी राजनीति को समझना और उसका अवलोकन करना होगा. बाकी जिस तरह ममता समर्थक उनके इस हिंदी प्रेम को देखकर नाराज हुए हैं. कहा गया है कि हिंदी भाषा को उनपर थोपा जा रहा है तो जाते जाते उन्हें हम इतना जरूर कहेंगे कि उनकी दीदी भविष्य में बड़ी पारी खेलने जा रही हैं और ये सब उसी पारी के लिए नेट प्रेक्टिस का हिस्सा है. इसलिए उन्हें घबराना तो बिलकुल भी नहीं चाहिए आज भी ममता के लिए बंगाली अस्मिता ही सर्वोपरि है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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