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Vikas Dubey encounter: पुलिस वालों की दोस्ती ही जान की दुश्मन बनी

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 11 जुलाई, 2020 07:31 PM
  • 11 जुलाई, 2020 07:31 PM
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विकास दुबे (Vikas Dubey Encounter) मारा गया यह खबर आम हो गई है, लेकिन क्यों मारा गया इसके अलग अलग जवाब अलग अलग दलील है. लेकिन हकीकत तो यही है कि विकास दुबे के जरिए पुलिस ने अन्य अपराधियों को नसीहत दे डाली है कि आगे कोई भी पुलिस वालों पर हाथ न डाले.

सिंघम मूवी (Singham Movie ) का एक बहुत ही खास डायलाग है 'बड़े बुजुर्ग कह गए हैं, पुलिस वालों की न दोस्ती अच्छी है और न ही दुश्मनी' फिल्म में अपराधी का एक बहुत बड़ा नेटवर्क होता है. पुलिस (Police ) में भी उसकी अच्छी पकड़ होती है. लेकिन फिर आखिर में सभी पुलिस वाले एक होकर अपराधी को उसकी सज़ा दे देते हैं. न्यायपालिका तक मामले को पहुंचने से पहले ही उसका एनकाउंटर कर दिया जाता है. फिल्म खत्म होती है, तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा थियेटर गूंज उठता है. फिल्म देखने वाले लोग भी यह मानने लगते हैं कि अपराधी को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए. कोई भी उस एनकाउंटर (Encounter) का विरोध नहीं करता है. वह एक फिल्म थी. फिल्मों में कुछ भी फिल्माया जा सकता है. लेकिन हकीकत में ऐसा करना टेढ़ी खीर होता है. पुलिस के हरेक एनकाउंटर की जांच की जाती है और फिर पुलिस को जांच के दरमियान साबित भी करना होता है कि अपराधी को मारना बेहद जरूरी हो गया था वरना वह अपराधी भाग सकता था या फिर हमें मार सकता था. जांच पूरी होती है, या तो पुलिस को क्लीन चिट मिल जाती है या फिर एनकाउंटर वाली टीम खुद ही शिकंजे में कस जाती है.

विकास दुबे को मारकर यूपी पुलिस ने तमाम अपराधियों को बड़ा संदेश दिया है

विकास दुबे का एनकाउंटर पहला एनकाउंटर नही है जिसपर कई सवाल खड़े हुए हैं इससे पहले भी कई एनकाउंटर हुए हैं जिसमें सवाल उठे हैं. मौजूदा वक्त की बात करते हैं. उत्तर प्रदेश की ही बात करते हैं. उत्तर प्रदेश में 2017 से लेकर अबतक 119 लोगों का एनकाउंटर हुआ है. इनमें से 74 एनकाउंटर ऐसे हैं जो सही ठहराए जा चुके हैं. इनकी मजिस्ट्रेट स्तर की जांच पूरी हो चुकी है.

बाकी मामले की अभी जांच चल रही है. ज़ाहिर है विकास दुबे के एनकाउंटर की भी जांच होगी जिसमें पुलिस को समझाना होगा कि उसने जो किया उसकी...

सिंघम मूवी (Singham Movie ) का एक बहुत ही खास डायलाग है 'बड़े बुजुर्ग कह गए हैं, पुलिस वालों की न दोस्ती अच्छी है और न ही दुश्मनी' फिल्म में अपराधी का एक बहुत बड़ा नेटवर्क होता है. पुलिस (Police ) में भी उसकी अच्छी पकड़ होती है. लेकिन फिर आखिर में सभी पुलिस वाले एक होकर अपराधी को उसकी सज़ा दे देते हैं. न्यायपालिका तक मामले को पहुंचने से पहले ही उसका एनकाउंटर कर दिया जाता है. फिल्म खत्म होती है, तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा थियेटर गूंज उठता है. फिल्म देखने वाले लोग भी यह मानने लगते हैं कि अपराधी को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए. कोई भी उस एनकाउंटर (Encounter) का विरोध नहीं करता है. वह एक फिल्म थी. फिल्मों में कुछ भी फिल्माया जा सकता है. लेकिन हकीकत में ऐसा करना टेढ़ी खीर होता है. पुलिस के हरेक एनकाउंटर की जांच की जाती है और फिर पुलिस को जांच के दरमियान साबित भी करना होता है कि अपराधी को मारना बेहद जरूरी हो गया था वरना वह अपराधी भाग सकता था या फिर हमें मार सकता था. जांच पूरी होती है, या तो पुलिस को क्लीन चिट मिल जाती है या फिर एनकाउंटर वाली टीम खुद ही शिकंजे में कस जाती है.

विकास दुबे को मारकर यूपी पुलिस ने तमाम अपराधियों को बड़ा संदेश दिया है

विकास दुबे का एनकाउंटर पहला एनकाउंटर नही है जिसपर कई सवाल खड़े हुए हैं इससे पहले भी कई एनकाउंटर हुए हैं जिसमें सवाल उठे हैं. मौजूदा वक्त की बात करते हैं. उत्तर प्रदेश की ही बात करते हैं. उत्तर प्रदेश में 2017 से लेकर अबतक 119 लोगों का एनकाउंटर हुआ है. इनमें से 74 एनकाउंटर ऐसे हैं जो सही ठहराए जा चुके हैं. इनकी मजिस्ट्रेट स्तर की जांच पूरी हो चुकी है.

बाकी मामले की अभी जांच चल रही है. ज़ाहिर है विकास दुबे के एनकाउंटर की भी जांच होगी जिसमें पुलिस को समझाना होगा कि उसने जो किया उसकी ज़रूरत थी. जांच में क्या कुछ होगा यह अलग विषय है लेकिन अभी जो चर्चा चल रही है, उसमें सबसे मजबूत और ठोस चर्चा यही है कि पुलिस वालों को गुस्सा था अपने ही पुलिसकर्मियों के मारे जाने का. पुलिस हर हाल में इस तरह पुलिस पर हमला को आखिरी बार होते देखना चाहती थी.

पुलिस को यकीन भी था कि अगर विकास दुबे अदालत तक पहुंच गया तो अपने नेटवर्क के जरिए वह गवाहों को डरा धमका कर जमानत पा ही जाएगा. फिर पुलिस वालों को ही अपना निशाना बनाएगा और एक माफिया की तरह अपने अपराधों को और बड़े तौर पर अंजाम देगा.

पुलिस किसी भी कीमत पर विकास को अब नहीं पनपने देना चाहती थी. वह विकास का खात्मा चाहती थी तभी तो पुलिस वालों को एनकाउंटर का मौका मिला तो उसे उसने पूरे तौर पर अमल में भी ला दिया. पुलिस से दोस्ती तो विकास ने खूब की लेकिन पुलिस वालों पर ही हमला करके विकास ने दुश्मनी भी मोल ली थी. अब दोस्ती और दुश्मनी एक ही जगह तो हो नहीं सकती.

यह बात विकास दुबे को भी मालूम थी उसे पहले से ही डर था कि वह पकड़ा नहीं जाएगा बल्कि मार गिराया जाएगा. जिसके चलते उसकी गिरफ्तारी भी नाटकीय ढ़ंग से हुयी थी. पुलिस ने विकास के पूरे गैंग का ही सफाया कर दिया और अन्य अपराधियों को सीधे तौर पर संदेश दे दिया है कि पुलिसवालों पर हमला करने वालों की खैर नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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