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राजस्‍थान में खुद से हारीं वसुंधरा, नुकसान में भाजपा फायदे में कांग्रेस

    • शरत कुमार
    • Updated: 01 फरवरी, 2018 08:17 PM
  • 01 फरवरी, 2018 08:17 PM
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वसुंधरा राजे ने गरीबों के लिए और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई तरह की योजनाएं राजस्थान में शुरू की हैं लेकिन इसका कोई असर उपचुनाव में देखने को नहीं मिला. वसुंधरा सरकार में ऐसा कोई अधिकारी नहीं है जो सरकार के कामकाज का प्रचार कर सके.

राजस्थान के दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार ने वसुंधरा राजे के लिए आगे की राह मुश्किल कर दी है. बड़ा सवाल है कि इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और तीन उपचुनाव में हार का इतना ज्यादा अंतर है तो फिर विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे. वसुंधरा राजे की दूसरी पारी में सरकार पर कोई बड़े आरोप नहीं लगे. वसुंधरा राजे ने गरीबों के लिए और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई तरह की योजनाएं राजस्थान में शुरू की हैं लेकिन इसका कोई असर चुनाव में देखने को नहीं मिला. जिस तरह से बीजेपी मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव और अलवर और अजमेर लोकसभा उपचुनाव में हारी है उसे देखकर लगता है कि वसुंधरा सरकार के प्रति जनता में बेहद नाराजगी है. सवाल उठता है कि यह नाराजगी क्यों है. आखिर ऐसा क्यों हुआ कि राजस्थान की सबसे लोकप्रिय नेता वसुंधरा का करिश्मा चुनाव में सिर चढ़कर नहीं बोला.

वसुंधरा राजे ने गरीबों को सीधे खाते में पैसा पहुंचाने के लिए भामाशाह योजना जैसी बड़ी योजना शुरू की. गरीबों का हक ना मारा जाए, इसलिए राशन की दुकान से लेकर हर सरकारी योजना का डिजिटलाइजेशन किया, लेकिन इसका असर उपचुनाव में ग्रामीण इलाकों में देखने को नहीं मिला. जाहिर सी बात है कि सरकार के कामकाज को लेकर जनता में नाराजगी है. दरअसल, अगर आप किसी से पूछें की जनता के लिए वसुंधरा राजे ने कौन सी योजना शुरू की है तो शायद ही कोई बता पाए. लोग छूटते ही कहते हैं कि कोई काम नहीं हुआ है, इससे अच्छी तो कांग्रेस सरकार थी. लोगों का कहना सही भी है. वसुंधरा सरकार में ऐसा कोई अधिकारी नहीं है जो सरकार के कामकाज का प्रचार कर सके. जिन लोगों के ऊपर सरकार की इमेज साफ-सुथरी कर जनता तक पहुंचाने की है, उनका भी गुरूर सिर चढ़कर बोलता है.

वसुंधरा राजे के पास किसी की पहुंच नहीं है और वह किसी से मिलती भी नहीं हैं. ऐसे में उनके आसपास रहने...

राजस्थान के दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार ने वसुंधरा राजे के लिए आगे की राह मुश्किल कर दी है. बड़ा सवाल है कि इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और तीन उपचुनाव में हार का इतना ज्यादा अंतर है तो फिर विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे. वसुंधरा राजे की दूसरी पारी में सरकार पर कोई बड़े आरोप नहीं लगे. वसुंधरा राजे ने गरीबों के लिए और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई तरह की योजनाएं राजस्थान में शुरू की हैं लेकिन इसका कोई असर चुनाव में देखने को नहीं मिला. जिस तरह से बीजेपी मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव और अलवर और अजमेर लोकसभा उपचुनाव में हारी है उसे देखकर लगता है कि वसुंधरा सरकार के प्रति जनता में बेहद नाराजगी है. सवाल उठता है कि यह नाराजगी क्यों है. आखिर ऐसा क्यों हुआ कि राजस्थान की सबसे लोकप्रिय नेता वसुंधरा का करिश्मा चुनाव में सिर चढ़कर नहीं बोला.

वसुंधरा राजे ने गरीबों को सीधे खाते में पैसा पहुंचाने के लिए भामाशाह योजना जैसी बड़ी योजना शुरू की. गरीबों का हक ना मारा जाए, इसलिए राशन की दुकान से लेकर हर सरकारी योजना का डिजिटलाइजेशन किया, लेकिन इसका असर उपचुनाव में ग्रामीण इलाकों में देखने को नहीं मिला. जाहिर सी बात है कि सरकार के कामकाज को लेकर जनता में नाराजगी है. दरअसल, अगर आप किसी से पूछें की जनता के लिए वसुंधरा राजे ने कौन सी योजना शुरू की है तो शायद ही कोई बता पाए. लोग छूटते ही कहते हैं कि कोई काम नहीं हुआ है, इससे अच्छी तो कांग्रेस सरकार थी. लोगों का कहना सही भी है. वसुंधरा सरकार में ऐसा कोई अधिकारी नहीं है जो सरकार के कामकाज का प्रचार कर सके. जिन लोगों के ऊपर सरकार की इमेज साफ-सुथरी कर जनता तक पहुंचाने की है, उनका भी गुरूर सिर चढ़कर बोलता है.

वसुंधरा राजे के पास किसी की पहुंच नहीं है और वह किसी से मिलती भी नहीं हैं. ऐसे में उनके आसपास रहने वाले लोग आसानी से उन्हें गुमराह कर देते हैं. जिस तरह से अफसरों ने वसुंधरा राजे को अंधकार में रखकर मीडिया की आजादी पर रोक लगाने वाला बिल विधानसभा में पेश करवा दिया वो इसका जीता जागता उदाहरण था. वसुंधरा राजे के प्रचार-प्रसार का जिम्मा संभालने वाला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय वसुंधरा राजे के अधीन ही है, लेकिन किस तरह से यह मंत्रालय बेकार पड़ा है उसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि चुनाव के समय इस विभाग के अधिकारी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे. भैरों सिंह शेखावत के जमाने से राजपूत BJP के कोर वोटर रहे हैं, लेकिन चाहे आनंदपाल सिंह एनकाउंटर हो या फिर चतुर सिंह एनकाउंटर हो, हर बार सरकार के अधिकारी वसुंधरा राजे को गुमराह कर राजपूतों के खिलाफ खड़े करते रहे और इस चुनाव में राजपूतों ने खुलेआम वसुंधरा राजे को हराने का ऐलान कर दिया था. यहां तक कि पद्मावती फिल्म पर रोक लगाने के मामले में भी वसुंधरा राजे बीजेपी की आखिरी मुख्यमंत्री थी, जिन्होंने बीजेपी शासित सभी मुख्यमंत्रियों के बाद पद्मावती विरोध के बाद एक प्रेस नोट जारी कर करनी सेना की मांग का समर्थन किया था. उस वक्त भी बीजेपी की एकमात्र मुख्यमंत्री थीं, राजपूतों का दिल रखने के लिए भी सामने नही आई.

वसुंधरा राजे शायद देश की पहली मुख्यमंत्री होंगी जो अपनी योजनाओं को बताने के लिए भी कभी मीडिया के सामने नहीं आईं. उनके आसपास रहने वाले लोगों ने उन्हें इस कदर डरा रखा है कि वह अपनी योजनाओं का बखान भी नहीं कर सकती हैं. हर वक्त उन्हें डराए रखते हैं कि मीडिया के सामने कभी मत जाना. एक तरह से कहें तो बोल्ड मानी जाने वाली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने ही कवच के अंदर कहीं दुबक कर रह गई हैं और वह वापस नहीं निकलना चाहती हैं. जयपुर में जिस तरह से राजमहल का प्रकरण हुआ और उसमें यह बात जनता में चर्चा में रही कि जयपुर के पूर्व राजघराने की संपत्ति वसुंधरा राजे हथियाना चाहती हैं उस वक्त भी बीजेपी के एक भी नेता वसुंधरा राजे के लिए खड़ा नहीं हुआ, जबकि सच्चाई यह थी कि वह जमीन उस सरकार के लिए ले रही थीं ना कि खुद के लिए ले रही थीं.

हर मौके पर वसुंधरा राजे राजस्थान में बिल्कुल अकेली दिखती हैं. जिन लोगों को अपने आस पास रखा है उनकी मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह राजनीतिक रूप से रणनीति बना सकें. वसुंधरा राजे के कार्यकाल में सबसे ज्यादा आईएएस और आईपीएस भ्रष्टाचार के मामले में जेल में गए हैं, लेकिन जनता में इसका कोई असर नहीं दिखता. इसकी वजह यह है कि सरकार की तरफ से इसे बताने वाला कोई नहीं है कि वसुंधरा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम उठाए. सरकार में शामिल एक बड़े मंत्री पर इस चुनाव में भी बीजेपी को हराने में लगे होने का आरोप लग रहा था, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी वसुंधरा राजे चुप हैं, क्योंकि वह जानती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उन्हें बहुत पसंद नहीं करते हैं.

कुल मिलाकर वसुंधरा राजे कभी भी घुटी हुई और घाघ राजनेता नहीं रही. वसुंधरा दिल में कुछ और रखकर जुबान पर कुछ रखने वाली नहीं हैं. लेकिन समस्या ये है कि उनकी दूसरी पारी में कोई भी मंझा हुआ राजनेता उनका करीबी नहीं है जो उनके लिए काम कर सके. ऐसे में कांग्रेस के लिए पूरा मैदान खाली है. सचिन पायलट भले ही जीत का जश्न मना रहे हों, लेकिन दिल के अंदर हर कांग्रेसी जानता है कि वसुंधरा सरकार तो खुद से हारी है कांग्रेस तो निमित्त मात्र रहा है.

वसुंधरा राजे की हार की एक वजह यह भी थी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल से उनकी तुलना होने लगी थी. अशोक गहलोत ने वृद्धावस्था पेंशन, मुफ्त दवाई और जांच, गरीबों को मुफ्त घर जैसी योजनाओं के साथ हिंदुत्व के कई एजेंडे जैसे गायों के लिए अलग से फंड, पशुओं के लिए मुफ्त जांच और चारा समेत शहरों में मेट्रो ट्रेन चलाने जैसी बड़ी योजना भी शुरू की थीं. लेकिन पढ़ी-लिखी वसुंधरा राजे खुले हाथ से खजाना लुटाने के बजाए राज्य के खजाने को धरने पर ज्यादा जोर देती रही, जिसका परिणाम हुआ कि ये सभी योजनाएं ढीली पड़ती गईं. राजस्थान में पहलू खान, जफर खान, उमर खान जैसे अल्पसंख्यक हत्याकांड हुए और आरोपी बरी हो गए. उससे भी वसुंधरा राजे की इमेज पर असर पड़ा. राजसमंद में अफराजुल हत्याकांड तो सरकार पर कई सवाल खड़े किए थे. मगर वसुंधरा कभी इन मुद्दों पर मुंह नहीं खोलीं. जबकि सच्चाई ये है कि राजस्थान कभी से धर्म के आधार पर विभाजित मानसिकता का राज्य वही रहा.

वसुंधरा राजे की इमेज उनके गुस्से ने भी खराब की. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के एक घंटे के भीतर ही वसुंधरा राजे ने गुजरात के राज्यपाल रही कमला की जमीनों पर कब्जा लिया. कोठारी ग्रुप हो या अशोक गहलोत से जुड़े लोग इन सबको परेशान करने के आरोप लगते रहे. कइयों के जेल भेजने के आरोप लगे. जयपुर में अपने करीबी रहे अधिकारियों पर ऐसा गुस्सा निकाला कि चार साल से जैसलमेर भेज रखा है. जबकि वो जानती हैं कि जब अशोक गहलोत ने उनके खिलाफ कालीन चोरी की जांच करवाई थी तो पूरे राजस्थान में अशोक गहलोत की निंदा हुई थी कि बेचारी को परेशान कर रहा है. राजस्थान के लोग बदले को ठीक नहीं मानते और परेशान लोगों से उनकी सहानुभूति हो जाती है.

इस चुनाव के नतीजों को लेकर लोगों में इस बात की चर्चा है कि क्या वसुंधरा राजे कोई सबक सीखेंगी. क्योंकि मनोविज्ञान कहता है कि हवालात के अंदर बंद अपराधी को देखकर बाहर खड़ा व्यक्ति ये सोचता है कि मुंह लटकाए हवालात में बंद अपराधी सोच रहा होगा कि मैंने ये काम क्यों किया, लेकिन सच्चाई ये है कि वो गुमसुम इस बात में डूबा रहता है कि हमारी योजना में कहां कमी रह गई थी जो हम पकड़े गए. जरा सा ऐसे कर लेते तो बच जाते. उम्मीद है कि वसुंधरा राजे हवालात के बाहर खड़ी जनता की तरह ही सोच रही होंगी. अच्छा होता आज ही इसकी शुरुआत करतीं और जनता के सामने आकर जनता के फैसले को सिर माथे पर लगाकर वापस से सेवा का संकल्प करतीं. मगर ऐसा नहीं हुआ.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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