• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

'आप' यू हीं अगर सपा से मिलते रहे देखिए एक दिन गठबंधन हो जाएगा...

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 05 जुलाई, 2021 09:46 PM
  • 05 जुलाई, 2021 09:46 PM
offline
अभी बीते दिनों ही आप के संजय सिंह ने समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव से मुलाकात की है. इस मुलाकात ने सियासी गलियारों में एक नयी बहस का आगाज कर दिया है. इंतजार इस बात का है कि सपा 22 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने गठबंधन में आम आदमी पार्टी को कितनी सीटें देती है.

आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी और सांसद संजय सिंह ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर सूबे की सियासत में एक नया रंग भर दिया है. कहा जा रहा है कि भाजपा से लड़ने की रणनीति पर छिप-छिप कर योजना पर काम कर रहे इन दोनों दलों के नेताओं ने आज खुल कर दुनिया के सामने इज़हार-ए-प्यार कर दिया. इंतजार इस बात का है कि सपा विधानसभा चुनाव में अपने गठबंधन में आम आदमी पार्टी को कितनी सीटें देती है. भले ही इसे पांच-सात सीटें मिलें या प्रत्यक्ष गठबंधन ना होकर आप भाजपा का नुकसान पंहुचाने के लिए वोट कटवा की भूमिका निभाए, लेकिन ये तय है कि इन दोनों दलों के बीच दोस्ताना रिश्ते का कोई न कोई राजनीतिक स्वार्थ तो होगा ही. ज्ञात हो कि यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा ने योगी सरकार के खिलाफ साढ़े चार वर्षों में कोई ठोस आक्रामक तेवर नहीं दिखाए. जबकि यूपी में बिना जनाधार और बिना मुकम्मल संगठन के दस्तावेज की दलीलों और आरोपों के साथ आप सांसद संजय सिंह योगी सरकार पर हमलावर रहे और खूब चर्चाओं मे भी बने रहे.

22 में होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव और संजय सिंह की मुलाकात एक बड़ी पहल मानी जा रही है

सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो अखिलेश यादव का मानना है कि बीजेपी अपने विरोधी को विरोध के पिच पर घेरकर ध्रुवीकरण का माहौल पैदा करने की सफल खिलाड़ी है. मसलन अयोध्या जमीन खरीद पर आरोपों के साथ भाजपा को सपा और आप ने एक साथ घेरने की कोशिश की पर भाजपा ने सपा को मंदिर विरोधी बताकर कार्यसेवकों पर गोली चलवाने की घटना याद दिला थी.

और फिर इस मुद्दे पर सपा ने अपने कदम पीछे कर लेने पड़े. अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद इन कारणों से ही अखिलेश यादव ने आप के साथ मिलकर ऐसी रणनीति तैयार की कि सरकार का विरोध करने के लिए वो सामने आए जिसके पास...

आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी और सांसद संजय सिंह ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर सूबे की सियासत में एक नया रंग भर दिया है. कहा जा रहा है कि भाजपा से लड़ने की रणनीति पर छिप-छिप कर योजना पर काम कर रहे इन दोनों दलों के नेताओं ने आज खुल कर दुनिया के सामने इज़हार-ए-प्यार कर दिया. इंतजार इस बात का है कि सपा विधानसभा चुनाव में अपने गठबंधन में आम आदमी पार्टी को कितनी सीटें देती है. भले ही इसे पांच-सात सीटें मिलें या प्रत्यक्ष गठबंधन ना होकर आप भाजपा का नुकसान पंहुचाने के लिए वोट कटवा की भूमिका निभाए, लेकिन ये तय है कि इन दोनों दलों के बीच दोस्ताना रिश्ते का कोई न कोई राजनीतिक स्वार्थ तो होगा ही. ज्ञात हो कि यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा ने योगी सरकार के खिलाफ साढ़े चार वर्षों में कोई ठोस आक्रामक तेवर नहीं दिखाए. जबकि यूपी में बिना जनाधार और बिना मुकम्मल संगठन के दस्तावेज की दलीलों और आरोपों के साथ आप सांसद संजय सिंह योगी सरकार पर हमलावर रहे और खूब चर्चाओं मे भी बने रहे.

22 में होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव और संजय सिंह की मुलाकात एक बड़ी पहल मानी जा रही है

सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो अखिलेश यादव का मानना है कि बीजेपी अपने विरोधी को विरोध के पिच पर घेरकर ध्रुवीकरण का माहौल पैदा करने की सफल खिलाड़ी है. मसलन अयोध्या जमीन खरीद पर आरोपों के साथ भाजपा को सपा और आप ने एक साथ घेरने की कोशिश की पर भाजपा ने सपा को मंदिर विरोधी बताकर कार्यसेवकों पर गोली चलवाने की घटना याद दिला थी.

और फिर इस मुद्दे पर सपा ने अपने कदम पीछे कर लेने पड़े. अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद इन कारणों से ही अखिलेश यादव ने आप के साथ मिलकर ऐसी रणनीति तैयार की कि सरकार का विरोध करने के लिए वो सामने आए जिसके पास खोने के लिए कुछ भी ना हो और कुछ पाने की संभावना भी हो. साथ ही भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल भी बना रहे.

ये तमाम बातें ही इस बात का यक़ीन दिला रही हैं कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को घेरने के लिए यूपी की स्थापित सपा दिल्ली की स्थापित आप से मदद लेगी. इसी क्रम मे दोनों नेताओं की मुलाकात आज जगजाहिर की गई. अपने पक्ष मे माहौल बनाने के लिए अखिलेश यादव इस तरह तमाम छोटे दलों के नेताओं से मुलाकातों को सार्वजनिक कर अपने गठबंधन की सियासी मार्केट वेल्यू को बढ़ाने के आगे भी कदम उठा सकते हैं .

बीते शनिवार को लखनऊ स्थित जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट कार्यालय में अखिलेश यादव से मुलाकात करने के बाद संजय सिंह ने कहा कि वो सपा अध्यक्ष को उनके जन्मदिन की बधाई देने गए थे, इसे राजनीतिक मुलाकात नही समझा जाए. ये केवल एक शिष्टाचार भेंट थी. हांलाकि इससे पहले भी इन दोनों की मुलाकात होती रही है.लेकिन उसे जगज़ाहिर नहीं किया गया.

गौरतलब है कि आप और समाजवादी पार्टी ने कभी एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी नहीं की. जबकि उत्तर प्रदेश में स्थापित समाजवादी पार्टी यूपी में कदम जमाने का प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी पर हमलावर होती या आप प्रतिद्वंद्वी के तौर पर सपा की आलोचना करती तो ताजुब नहीं होता. क्योंकि एक प्रदेश में स्थापित पार्टी के समान विचारधारा वाले जनाधार को कतरने के लिए जब कोई दल एंट्री लेता है तो एक दूसरे से तकरार स्वाभाविक रूप से होती है.

और यदि एक दूसरे में टकराव के बजाय मधुर रिश्ता नजर आए तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष गठबंधन की संभावना दिखने लगती है. इसलिए आज दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद ये चर्चा तेज हो गई है कि सपा अपने गठबंधन में आप को कुछ सीटें दे सकती है. या फिर अप्रत्यक्ष रूप से गठबंधन हो. यानी ऐसी फ्रेंडली फाइट जिसके तहत पांच-सात सीटें पर सपा आप के जीत की राह आसान कर दे और अन्य बहुत सारी सीटों पर भाजपा के वोट कतरने के लिए आम आदमी पार्टी वोट कटवा बनकर समाजवादी पार्टी को फायदा पंहुचाए.

राजनीति पंडितों का मानना है कि दिल्ली बार्डर से सटे कुछ विधानसभा क्षेत्रों और शहरी सीटों पर भाजपा से नाराज कुछ मतदाता आप को विकल्प चुन सकते हैं. विकास और राष्ट्रभक्ति जैसा भाजपाई एजेंडा आप का भी है. कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे दलों को विरोधियों ने तुष्टिकरण और जातिवाद के आरोपों से बदनाम कर दिया है. आम आदमी पार्टी जातिवाद और तुष्टिकरण की छवि से बची है. इसलिए भाजपा से नाराज एक तबका इसपर विश्वास जता सकता है.

हालांकि यदि दोनों दलों के बीच रिश्तों और रणनीतियों की ये सब अटकलें यदि पूरी तरह खरी उतरती हैं और सपा की मदद के साथ आप यूपी में अपना थोड़ा बहुत जनाधार बनाने व खाता खोलने में कामयाब होती है तो भविष्य में सपा को ही शायद इस दोस्ती पर पछतावा करना पड़े. कहावत है कि समझदार शिकारी अपने एरिया मे किसी बाहरी शिकारी को शिकार के रास्ते नहीं बताता.

ये भी पढ़ें -

2019 में क्रैश हुआ राहुल का राफेल डील मुद्दा P चुनाव में उड़ान भर पाएगा?

सपा से गठबंधन की आस लगाए बैठी आरएलडी का यूपी में कितना प्रभाव है?

ममता बनर्जी के लिए सोनिया गांधी कुछ भी करें तो नुकसान राहुल गांधी का है

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲