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उन्नाव केस में योगी सरकार पर एनकाउंटर का दबाव क्यों बनाया जा रहा है

    • आईचौक
    • Updated: 08 दिसम्बर, 2019 01:02 PM
  • 08 दिसम्बर, 2019 01:02 PM
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हैदराबाद एनकाउंटर (Hyderabad Encounter) के एक दिन बाद यूपी में विपक्षी (Opposition Leaders of UP) नेता जिस कदर एक्टिव दिखे, वो ठीक है. ऐसा क्यों लग रहा है जैसे योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) पर एनकाउंटर का दबाव बनाया जा रहा हो.

उन्नाव रेप (nnao Rape Case) केस को लेकर उत्तर प्रदेश में पूरा विपक्ष (Opposition Leaders of P) सड़कों पर उतर आया. नेताओं की तत्परता से लग तो ऐसा ही रहा था जैसे वो ताक में बैठे हों और बड़े आराम से यूपी की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा हाथ लग पाया हो.

उन्नाव गैंग रेप पीड़ित की मौत रात में हुई और सुबह होते ही विपक्षी नेताओं ने उत्तर प्रदेश में जगह जगह मोर्चा संभाल लिया. अखिलेश यादव धरने पर बैठे, मायावती राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मिलने राजभवन पहुंच गयीं - और प्रियंका गांधी तो पीड़ित परिवार से मिलने सीधे उन्नाव ही जा धमकीं.

विपक्ष की राजनीति तो समझ में आती है, लेकिन इस राजनीति का तात्कालिक मकसद नहीं समझ आया - कहीं ये सभी मिलकर योगी सरकार की पुलिस उन्नाव रेप केस के आरोपियों के एनकाउंटर के लिए दबाव बना रहे हैं?

विपक्ष एनकाउंटर के लिए दबाव क्यों बना रहा है?

अप्रैल 2018 में भी इंडिया गेट पर निकाले गये कैंडल मार्च का मुद्दा उन्नाव गैंग रेप के साथ साथ कठुआ का केस भी रहा. तब प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने उन्नाव के उस मामले पर आवाज उठायी थी जिसमें बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आरोपी थे - और फिलहाल जेल में बंद हैं.

उन्नाव से बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है. न्यूज एजेंसी IANS के अनुसार जनवरी, 2019 से लेकर नवंबर के बीच उन्नाव में बलात्कार के 86 मामले दर्ज किये गये हैं. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 31 लाख की आबादी वाले उन्नाव में इसी दौरान महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के 185 मामले सामने आये हैं.

बीजेपी के साक्षी महाराज उन्नाव से ही सांसद हैं और हाल ही में बलात्कार के आरोपी कुलदीप सेंगर से जेल में मुलाकात को लेकर वो लोगों के निशाने पर हैं. साक्षी महाराज की जेल जाकर सेंगर से ये दूसरी मुलाकात है. अभी अभी तो साक्षी महाराज कुलदीप सेंगर को बधाई देने जेल गये थे, इससे पहले लोक सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी विधायक की तरफ से जेल में रहते हुए चुनावों में सहयोग के लिए...

उन्नाव रेप (nnao Rape Case) केस को लेकर उत्तर प्रदेश में पूरा विपक्ष (Opposition Leaders of P) सड़कों पर उतर आया. नेताओं की तत्परता से लग तो ऐसा ही रहा था जैसे वो ताक में बैठे हों और बड़े आराम से यूपी की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा हाथ लग पाया हो.

उन्नाव गैंग रेप पीड़ित की मौत रात में हुई और सुबह होते ही विपक्षी नेताओं ने उत्तर प्रदेश में जगह जगह मोर्चा संभाल लिया. अखिलेश यादव धरने पर बैठे, मायावती राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मिलने राजभवन पहुंच गयीं - और प्रियंका गांधी तो पीड़ित परिवार से मिलने सीधे उन्नाव ही जा धमकीं.

विपक्ष की राजनीति तो समझ में आती है, लेकिन इस राजनीति का तात्कालिक मकसद नहीं समझ आया - कहीं ये सभी मिलकर योगी सरकार की पुलिस उन्नाव रेप केस के आरोपियों के एनकाउंटर के लिए दबाव बना रहे हैं?

विपक्ष एनकाउंटर के लिए दबाव क्यों बना रहा है?

अप्रैल 2018 में भी इंडिया गेट पर निकाले गये कैंडल मार्च का मुद्दा उन्नाव गैंग रेप के साथ साथ कठुआ का केस भी रहा. तब प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने उन्नाव के उस मामले पर आवाज उठायी थी जिसमें बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आरोपी थे - और फिलहाल जेल में बंद हैं.

उन्नाव से बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है. न्यूज एजेंसी IANS के अनुसार जनवरी, 2019 से लेकर नवंबर के बीच उन्नाव में बलात्कार के 86 मामले दर्ज किये गये हैं. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 31 लाख की आबादी वाले उन्नाव में इसी दौरान महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के 185 मामले सामने आये हैं.

बीजेपी के साक्षी महाराज उन्नाव से ही सांसद हैं और हाल ही में बलात्कार के आरोपी कुलदीप सेंगर से जेल में मुलाकात को लेकर वो लोगों के निशाने पर हैं. साक्षी महाराज की जेल जाकर सेंगर से ये दूसरी मुलाकात है. अभी अभी तो साक्षी महाराज कुलदीप सेंगर को बधाई देने जेल गये थे, इससे पहले लोक सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी विधायक की तरफ से जेल में रहते हुए चुनावों में सहयोग के लिए शुक्रिया अदा करने गये थे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो उन्नाव रेप पीड़ित की मौत पर ट्विटर पर ही शोक जताया, लेकिन उनकी बहन प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश पहुंच कर पीड़ितों के पक्ष में आवाज उठायी. मीडिया से मुखातिब होने पर प्रियंका गांधी ने '11 महीने में 90 रेप (रिपोर्ट में 86)' का भी जोर देकर जिक्र किया और यूपी की कानून व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाया.

उन्नाव से ही आज तक की रिपोर्ट है कि जब छेड़छाड़ की शिकायत लेकर एक महिला थाने पहुंची तो पुलिसवाले बोले, "बलात्कार का प्रयास हुआ है, हुआ तो नहीं है, होगा तो देख लेंगे..." ये तो हाल है.

उन्नाव रेप पीड़ित को बचाने की दिल्ली के अस्पताल के डॉक्टरों ने तमाम कोशिशें की लेकिन नाकाम रहे.

बीएसपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी राजभवन जाकर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मुलाकात कर महिला सुरक्षा का मामला उठाया. साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लखनऊ में धरने पर बैठे.

हैदराबाद एनकाउंटर के बाद मायावती और अखिलेश यादव दोनों ने पुलिस एक्शन की तारीफ की थी. मायावती ने तो यूपी और दिल्ली पुलिस को हैदराबाद पुलिस से सीख लेने की भी सलाह दी थी.

यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार की पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगाने वाले ये नेता आखिर चाहते क्या हैं?

विपक्षी नेताओं का पीड़ितों के पक्ष में आवाज उठाना बेशक अच्छी बात है. उन्नाव से महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जो रिपोर्ट आर रही है वो भी बड़े फिक्र की बात है.

कानून-व्यवस्था को लेकर योगी सरकार से सवाल पूछना भी ठीक है और मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना भी विपक्ष का हक है - लेकिन हैदराबाद पुलिस की मिसाल देते हुए शोर मचाना कुछ ज्यादा नहीं लग रहा है?

कुलदीप सेंगर से जुड़ा मामला और अन्य आपराधिक केस अपनी जगह हैं, लेकिन उन्नाव केस को लेकर हैदराबाद जैसे एक्शन की राजनीतिक अपेक्षा तो देश के संविधान और न्यायिक व्यवस्था के ही खिलाफ है.

अगर लोगों के गुस्से के हिसाब से व्यवस्था चलायी जाने लगे फिर तो बहुत ही अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी. जब पुलिस को बंदूक थमाने के साथ उसे देखते ही गोली मारने को बोल दिया जाये तब तो चल चुकी देश की व्यवस्था और न्याय प्रणाली.

लाइव तो नहीं लेकिन पूरे देश ने आमिर अजमल कसाब की करामात तस्वीरों में देखी थी - और जांच एजेंसियां भी, लेकिन उसे भी फेयर ट्रायल का पूरा मौका देने के बाद ही फांसी दी गयी. हैदराबाद केस में तो ये भी नहीं मालूम कि मारे जाने वाले ही असली अपराधी थे - हैदराबाद पुलिस की हरकत को किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराया जा सकता.

जिस तरीके से उन्नाव केस को लेकर उत्तर प्रदेश में विपक्ष योगी सरकार पर दबाव बना रहा है, ऐसा लगता है विपक्ष उन्नाव केस के आरोपियों का भी पुलिस एनकाउंटर चाहता है और इसी बात के लिए योगी सरकार पर दबाव बना रहा है. अगर वास्तव में ऐसा है तो ये बहुत ही गंभीर बात है.

न्याय बदले की भावना से नहीं होता

हैदराबाद एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी है. सुप्रीम कोर्ट के वकील जीएस मणि और प्रदीप कुमार यादव याचिका में एनकाउंटर को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन बताया है और जांच की मांग की गुजारिश की है. साथ ही, एनकाउंटर में शामिल पुलिस टीम के प्रमुख सहित सभी अफसरों पर FIR दर्ज कर जांच शुरू करने की भी मांग की है.

एनकाउंटर को लेकर तेलंगाना हाई कोर्ट ने भी मारे गये आरोपियों का शव 9 दिसंबर को रात 8 बजे तक सुरक्षित रखने को कहा है. हाई कोर्ट में उसी दिन 10.30 बजे सुनवाई होनी है. पुलिस एक्शन के खिलाफ उठते सवालों के बीच चीफ जस्टिस एसए बोबड़े का भी बयान आया है.

जोधपुर में राजस्थान हाई कोर्ट की नयी इमारत के उद्घाटन के मौके पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि न्याय कभी भी आनन-फानन में नहीं किया जाना चाहिए - क्योंकि अगर न्याय बदले की भावना से किया जाए तो अपना मूल चरित्र खो देता है.

जस्टिस बोबड़े ने कहा, 'मैं नहीं समझता कि न्याय कभी भी जल्दबाजी में किया जाना चाहिए... मैं समझता हूं कि अगर न्याय बदले की भावना से किया जाए तो ये अपना मूल स्वरूप खो देता है.'

चीफ जस्टिस ने जब ये बात कही तो मौके पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद थे. पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी एनकाउंटर पर रिएक्शन में सवाल उठाया था, जबकि समाजवादी पार्टी सांसद जया बच्चन का कहना रहा, 'देर आये, दुरूस्त आये'.

जया बच्चन का इस पूरे मामले पर रूख हैरान करने वाला रहा है. माना जाता है कि फिल्मी हस्तियों की हर बात का आम लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव होता है. जया बच्चन ने जिस तरीके से बलात्कार के आरोपियों के लिए मॉब लिंचिंग की वकालत की है, बेहद चिंताजनक बात है.

अगर जया बच्चन ने ऐसा निर्भया केस में सजा पाये अभियुक्तो के बारे में कहा तो भी गनीमत समझी जाती - जब देश में फांसी की सजा ही बहस के दौर से गुजर रही हो वैसे में बगैर आरोप साबित हुए किसी को भीड़ के हवाले कर देने की सलाह न सिर्फ न्यायपालिका के लिए बल्कि देश की कानून व्यवस्था के लिए भी काफी खतरनाक है.

जो संसद देश के संविधान के हिसाब से नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और उनकी जिंदगी खुशहाल बनाये रखने के लिए कानून बनाती हो, उस संसद के भीतर खड़े होकर एक जिम्मेदार सांसद का ये कहना कि आरोपियों को भीड़ के हवाले कर देना चाहिये कहना अपनेआप में अजीब है.

चीफ जस्टिस का बदले की भावना के साथ इंसाफ वाला बयान इस मसले पर राजनीतिक रूख को भी कठघरे में खड़ा करता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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