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सियासत

UP election में पलटी मारती बहस के बीच निजी हमले, बदलते जुमले!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 02 दिसम्बर, 2021 02:36 PM
  • 02 दिसम्बर, 2021 02:35 PM
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2022 के यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) को लेकर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के 5 साल पुराने चुनावी स्लोगन एक कॉमन शब्द है - 'काम', लेकिन 'जिन्ना बनाम गन्ना' का तीन साल पुराना नारा पूरी तरह बदल चुका है.

'जय श्रीराम' के नारे पर पहले भारतीय जनता पार्टी का सर्वाधिकार सुरक्षित माना जाता था. ये अधिकार तब और भी प्रभावी लगता रहा जब ममता बनर्जी सुनते ही चिढ़ जातीं और सड़क चलते काफिला रोक कर बीजेपी समर्थकों पर बरस पड़तीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भी नेताजी के कार्यक्रम में जय श्रीराम का नारा लगने पर ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध जताया था.

बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलन में अयोध्या से लेकर लखनऊ तक जब हाथों में त्रिशूल लिए खड़ी मायावती के सामने जय श्रीराम के नारे लगे तो लगा कि राजनीतिक विरोधियों के हिस्सेदारी जताने की वजह से बीजेपी का दावा कमजोर पड़ने लगा है - और तभी दिल्ली में दिवाली मनाने की अपील के साथ टीवी पर चल रहे विज्ञापनों में अरविंद केजरीवाल ने जय श्रीराम बोल कर तो जैसे बीजेपी के कॉपीराइट पर धावा ही बोल दिया.

तभी तो यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को नया नारा देना पड़ा है - 'अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है!' केशव मौर्य ने बीजेपी, वीएचपी और हिंदू संगठनों के पुराने नारे को ही नये तेवर और कलेवर के साथ पेश करने की कोशिश की है, 'अयोध्या तो बस झांकी, काशी मथुरा बाकी है.'

अगले साल होने जा रहे यूपी चुनाव (P Election 2022) में अब्बाजान से लेकर चचाजान तक बदलते जुमलों के बीच 'जिन्ना बनाम गन्ना' की बहस की दिशा और दशा तक बदल चुकी है - और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ तो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) निजी हमले भी...

'जय श्रीराम' के नारे पर पहले भारतीय जनता पार्टी का सर्वाधिकार सुरक्षित माना जाता था. ये अधिकार तब और भी प्रभावी लगता रहा जब ममता बनर्जी सुनते ही चिढ़ जातीं और सड़क चलते काफिला रोक कर बीजेपी समर्थकों पर बरस पड़तीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भी नेताजी के कार्यक्रम में जय श्रीराम का नारा लगने पर ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध जताया था.

बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलन में अयोध्या से लेकर लखनऊ तक जब हाथों में त्रिशूल लिए खड़ी मायावती के सामने जय श्रीराम के नारे लगे तो लगा कि राजनीतिक विरोधियों के हिस्सेदारी जताने की वजह से बीजेपी का दावा कमजोर पड़ने लगा है - और तभी दिल्ली में दिवाली मनाने की अपील के साथ टीवी पर चल रहे विज्ञापनों में अरविंद केजरीवाल ने जय श्रीराम बोल कर तो जैसे बीजेपी के कॉपीराइट पर धावा ही बोल दिया.

तभी तो यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को नया नारा देना पड़ा है - 'अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है!' केशव मौर्य ने बीजेपी, वीएचपी और हिंदू संगठनों के पुराने नारे को ही नये तेवर और कलेवर के साथ पेश करने की कोशिश की है, 'अयोध्या तो बस झांकी, काशी मथुरा बाकी है.'

अगले साल होने जा रहे यूपी चुनाव (P Election 2022) में अब्बाजान से लेकर चचाजान तक बदलते जुमलों के बीच 'जिन्ना बनाम गन्ना' की बहस की दिशा और दशा तक बदल चुकी है - और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ तो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) निजी हमले भी शुरू कर चुके हैं.

योगी की योग्यता पर अखिलेश ने उठाया सवाल

2022 में नये सिरे से जनादेश के लिए प्रयासरत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों के साथ एक स्लोगन जगह जगह देखने को मिल रहा है - 'सोच ईमानदार, काम दमदार'.

पांच साल पुराने 2017 के अखिलेश यादव के चुनावी नारे और योगी आदित्यनाथ के ताजा स्लोगन में एक शब्द कॉमन नजर आ रहा है और वो है - 'काम'

अब अगर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के अयोध्या के बाद मथुरा वाले नारे को थोड़ी देर के लिए अलग रख कर देखें तो योगी आदित्यनाथ भी पांच साल के अपने कामकाज के बूते चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं.

पांच साल पहले अखिलेश यादव भी योगी आदित्यनाथ की तरह ही सत्ता में वापसी की उम्मीद के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे और उनका चुनावी स्लोगन था - 'काम बोलता है.'

अखिलेश यादव को ये तो मालूम होगा ही कि चुनावी राजनीति में निजी हमले बहुत जल्दी बैकफायर भी करते हैं.

अखिलेश यादव के चुनावी स्लोगन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खूब मजाक उड़ाया था. रैलियों में पूरे वॉयस-मॉड्युलेशन के साथ मोदी बोला करते थे - 'अरे आपका काम नहीं... कारनामा बोलता है!'

अखिलेश यादव अब अपनी स्टाइल में योगी आदित्यनाथ के कामकाज के प्रचार प्रसार पर कमेंट करते हैं. अखिलेश यादव अपनी चुनावी रैलियों में कहते फिर रहे हैं, 'विकास के नाम पर यह नाम बदलने वाली सरकार है... हमारी सरकार ने 100 नंबर दिया, जिसे अब 112 कर दिया.'

1. योगी की योग्यता पर सवाल: पूरे उत्तर प्रदेश में जगह जगह से विजयरथ यात्रा निकाल रहे अखिलेश यादव बुंदेलखंड की रैली में लोगों से पूछ रहे थे - 'योगी सरकार चाहिये या योग्य सरकार?'

फिर अखिलेश यादव ने दावा किया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कंप्यूटर चलाने ही नहीं आता - और सवाल किया, 'बाबा लैपटाप और स्मार्ट फोन चलाना जानते ही नहीं तो वो नौजवानों को क्या बांटेंगे?'

आपको याद होगा कि मुलायम सिंह यादव शुरू से ही कंप्यूटर के विरोधी रहे हैं. मुलायम सिंह ये कह कर विरोध किया करते थे कि कंप्यूटर का इस्तेमाल होने लगा तो बेरोजगारी बढ़ जाएगी. यहां तक कि 2014 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार का ठीकरा भी मुलायम सिंह ने कंप्यूटर पर ही फोड़ दिया था.

चुनावों के कई महीने बाद समाजवादी महिला सभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में मुलायम सिंह बेटे के कंप्यूटर प्रेम पर ही बरसने लगे. तब अखिलेश यादव ही यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे - और 2014 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ पांच सीटें मिल पायी थीं. खास बात ये रही कि ये पांचों सीटें सिर्फ मुलायय सिंह यादव के परिवार के पास थीं और उनमें भी दो सीटें खुद मुलायम सिंह जीते थे.

तब मुलायम सिंह ने कहा था, 'हम तो पहले ही लैपटॉप बांटने के खिलाफ थे... वही हुआ जिसका डर हुआ... हम लोकसभा चुनाव लैपटॉप की वजह से ही हार गये.'

मुलायम सिंह सवाल जवाब वाले लहजे में समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं को समझा रहे थे कि अखिलेश यादव ने लैपटॉप बांट दिया और उस पर लोग मोदी की तस्वीर देखते रहे. महिला कार्यकर्ता भी जोर शोर से मुलायम सिंह की हां में हां मिला रही थीं.

2. निजी जिंदगी पर टिप्पणी: अखिलेश यादव शिक्षामित्रों, बीएड और टीईटी अभ्यर्थियों को भी अलग अलग तरीके से समाजवादी पार्टी की तरफ खींचने की कोशिश करते हैं - और अभी तो यूपीटीईटी का पेपर लीक मामला अलग ही उफान पर है.

हमदर्दी जताते हुए अखिलेश यादव ने जो बात कही वो तो योगी आदित्यनाथ पर पर्सनल अटैक ही है. अखिलेश यादव ने कहा, 'हम परिवार वाले हैं परिवार का दर्द जानते हैं... जिनका कोई परिवार नहीं है वो क्या जानेंगे आपका दर्द?'

योगी आदित्यनाथ संन्यासी हैं और गोरक्षपीठ के प्रमुख हैं और उसी क्रम में गोरखपुर मंदिर के महंत हैं. पिछले साल अप्रैल में योगी आदित्यनाथ को पिता के निधन की सूचना जब मिली तब वो कोविड 19 की दूसरी लहर के दौरान अपनी टीम के साथ मीटिंग कर रहे थे. एक पल के लिए रुकने के बाद योगी ने मीटिंग जारी रखी और पिता की अंत्येष्टि में भी नहीं गये थे. योगी के इस कदम की काफी तारीफ हुई थी.

कुछ दिनों पहले कैराना को लेकर योगी आदित्यनाथ ने पलायन का जिक्र किया था, तो अखिलेश यादव का कहना रहा - अगर उत्तराखंड से योगी आदित्यनाथ का पलायन नहीं हुआ होता तो उत्तर प्रदेश के लोगों के पांच साल बर्बाद नहीं हुए होते.

जिन्ना और गन्ना पर बहती उलटी गंगा भी देखिये

अभी बीजेपी अखिलेश यादव के जिन्ना वाले बयान पर काफी हमलावर हैं, लेकिन 2018 में बीजेपी के ही सांसद ने ये बहस शुरू की थी. ये तब की बात है जब योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर संसदीय सीट और केशव मौर्य की फूलपुर सीट पर हुए उपचुनावों में बीजेपी हार गयी थी - और कैराना में भी बिलकुल वैसे ही राजनीतिक समीकरण बन गये थे.

अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर को लेकर सवाल उठाया था, 'किस वजह से देश का बंटवारा करने वाले की तस्वीर AM में लगी हुई है... तस्वीर लगाने की मजबूरी क्या है?'

बीजेपी सांसद का ये कहना भर था कि कैराना में जिन्ना बनाम गन्ना पर बहस शुरू हो गयी. विपक्ष गन्ना किसानो की समस्याएं उठाते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला बोल दिया. कैराना सीट पर भी अखिलेश यादव ने फूलपुर और गोरखपुर जैसा ही प्रयोग किया था. समाजवादी पार्टी ने आरएलडी नेता तबस्सुम हसन को टिकट दिया था और मायावती की बीएसपी ने समर्थन. बीजेपी की लगातार तीसरे संसदीय उपचुनाव में हार हुई थी.

जिन्ना पर ताजा बहस अखिलेश यादव की तरफ से शुरू की गयी है और बीजेपी हमलावर है. एक चुनावी रैली में अखिलेश यादव ने कहा था, 'सरदार पटेल जी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू... जिन्ना एक ही संस्था में पढ़ कर के बैरिस्टर बनकर आये थे... एक ही जगह पर पढ़ाई लिखाई की... वे बैरिस्टर बने... आजादी दिलाई... संघर्ष करना पड़ा हो तो वो पीछे नहीं हटे.'

तीन साल पहले जैसी बातें आरएलडी नेता जयंत चौधरी और दूसरे नेता कैराना में कहा करते थे, अब वैसी ही बातें योगी आदित्यनाथ की तरफ से की जाने लगी हैं - देखते ही देखते उस पार की बहस इस पार और इस बार की बहस उस पार पहुंच गयी है.

अब योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं, 'किसानों ने कभी किसी कालखंड में यहां की गन्ना की मिठास को आगे बढ़ाने का प्रयास किया था, लेकिन गन्ने की मिठास को कुछ लोगों ने कड़वाहट में बदल कर यहां पर दंगों की एक श्रृंखला खड़ी की थी...'

जिन्ना पर बहस यहीं नहीं थमती अखिलेश यादव के नये साथी ओम प्रकाश राजभर भी जिन्ना का जिक्र करते हैं, लेकिन तरीका बिलकुल अलग होता है - 'अगर जिन्ना को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो देश का विभाजन नहीं होता.'

हो सकता है ओम प्रकाश राजभर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने तरीके से उनके बयान की याद दिला रहे हों. एक बार प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, 'अगर नेहरू की जगह सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बने होते तो देश की तस्वीर अलग होती.'

और तभी बागपत के बड़ौत में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर सांसद खेल महाकुंभ में पहुंचते हैं और कहते हैं, 'अगर हम युवाओं को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका दे रहे हैं तो इसमें गलत क्या है... अखिलेश यादव कहते हैं कि सांसदों खेल महाकुंभ कराते हैं... अखिलेश भाई, सुनो... तुम दंगे कराते हो - और हम दंगल कराते हैं...'

अब्बाजान, चचाजान - नक्कालों से सावधान!

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन था और नारा दिया गया था - यूपी को ये साथ पसंद है. तब राहुल गांधी और अखिलेश यादव को साथ खड़ा कर कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी को बाहरी साबित करने के लिए दोनों को 'यूपी के लड़के' के तौर पर पेश कर रही थी.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस के लिए नया नारा गढ़ा है - 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' - और राहुल गांधी को अमेठी में शिकस्त देने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी स्लोगन का मजाक उड़ा रही हैं, 'घर लड़का है, पर लड़ नहीं सकता!'

ऐसे ही ट्विटर पर भी राजनीतिक दल आमने सामने नजर आ रहे हैं. ममता बनर्जी के 'खेला होबे' की तर्ज पर समाजवादी पार्टी ने कैंपेन सॉन्ग बनाया है, 'खदेड़ा होइबे...'

'आएंगे तो योगी ही' के साथ बीजेपी की तरफ से ट्विटर पर जवाब में लिखा गया है - 'झंडा बीजेपी का लहरी, केहू आगे नाही ठहरी. यही यूपी के पुकार, फेर बनी भाजपा सरकार.'

लेकिन ये बहस अंतहीन चली जा रही है - 'अब्बाजान' और 'चचाजान' से होते हुए 'नक्कालों से सावधान' तक!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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