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'EVM से किसी भी तरह से छेड़छाड़ नहीं हो सकती'

    • आईचौक
    • Updated: 18 मार्च, 2017 10:53 PM
  • 18 मार्च, 2017 10:53 PM
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यूपी चुनाव के बाद ईवीएम को लेकर उठे विवाद पर सबके अपने तर्क हैं, इसी कड़ी में ईवीएम को काफी करीब से समझने वाले एक प्रशासनिक अफसर ने इस मशीन की कुछ अहम बारीकियों पर प्रकाश डाला है.

ईवीएम की साख पर उठे सवालों के बीच बिहार राज्य सेवा के अधिकारी और वर्तमान मे बिहार निर्वाचन सेवा मे अवर निर्वाचन पदाधिकारी के रूप मे कार्यरत कपिल शर्मा ने अपने अनुभव से ईवीएम की कार्यप्रणाली पर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई है. इस पोस्ट को पढञने के बाद आप ईवीएम से जुड़ी अफवाह फैलाती किसी अन्य पोस्ट को शेयर शेयर करने की भेड़चाल से बच सकेंगे.

1. आयोग का कहना है कि ईवीएम इंटरनेट से जुड़ा नहीं होता. इसलिए इसे किसी भी दशा में ऑनलाइन हैक नहीं किया जा सकता.

2. किस बूथ पर कौन सा ईवीएम जायेगा, इसके लिए रैंडमाइजेशन की प्रक्रिया होती है. यानी सभी ईवीएम को पहले लोकसभा वार फिर विधानसभा वार और सबसे अंत में बूथवार निर्धारित किया जाता है और पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चल पाता है कि उसके पास किस सीरिज का ईवीएम आया है. ऐसे में अंतिम समय तक पोलिंग पार्टी को पता नहीं रहता कि उनके हाथ में कौन सा ईवीएम आने वाला है.

3. बेसिक तौर पर ईवीएम में दो मशीन होती है, बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट. वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी जोड़ दिया गया है, जो सात सेकंड के लिए मतदाता को एक पर्ची दिखाता है, जिसमें ये उल्लेखित रहता है कि मतदाता ने अपना वोट किस अभ्यर्थी को दिया है. ऐसे में अभ्यर्थी बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है कि नहीं.

4. वोटिंग के पहले सभी ईवीएम की गोपनीय जांच की जाती है और सभी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही ईवीएम को वोटिंग हेतु प्रयुक्त किया जाता है.

5. सबसे बड़ी बात, वोटिंग के दिन सुबह मतदान शुरू करने से पहले मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी द्वारा सभी उम्मीदवारों के मतदान केन्द्र प्रभारी या...

ईवीएम की साख पर उठे सवालों के बीच बिहार राज्य सेवा के अधिकारी और वर्तमान मे बिहार निर्वाचन सेवा मे अवर निर्वाचन पदाधिकारी के रूप मे कार्यरत कपिल शर्मा ने अपने अनुभव से ईवीएम की कार्यप्रणाली पर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई है. इस पोस्ट को पढञने के बाद आप ईवीएम से जुड़ी अफवाह फैलाती किसी अन्य पोस्ट को शेयर शेयर करने की भेड़चाल से बच सकेंगे.

1. आयोग का कहना है कि ईवीएम इंटरनेट से जुड़ा नहीं होता. इसलिए इसे किसी भी दशा में ऑनलाइन हैक नहीं किया जा सकता.

2. किस बूथ पर कौन सा ईवीएम जायेगा, इसके लिए रैंडमाइजेशन की प्रक्रिया होती है. यानी सभी ईवीएम को पहले लोकसभा वार फिर विधानसभा वार और सबसे अंत में बूथवार निर्धारित किया जाता है और पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चल पाता है कि उसके पास किस सीरिज का ईवीएम आया है. ऐसे में अंतिम समय तक पोलिंग पार्टी को पता नहीं रहता कि उनके हाथ में कौन सा ईवीएम आने वाला है.

3. बेसिक तौर पर ईवीएम में दो मशीन होती है, बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट. वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी जोड़ दिया गया है, जो सात सेकंड के लिए मतदाता को एक पर्ची दिखाता है, जिसमें ये उल्लेखित रहता है कि मतदाता ने अपना वोट किस अभ्यर्थी को दिया है. ऐसे में अभ्यर्थी बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है कि नहीं.

4. वोटिंग के पहले सभी ईवीएम की गोपनीय जांच की जाती है और सभी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही ईवीएम को वोटिंग हेतु प्रयुक्त किया जाता है.

5. सबसे बड़ी बात, वोटिंग के दिन सुबह मतदान शुरू करने से पहले मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी द्वारा सभी उम्मीदवारों के मतदान केन्द्र प्रभारी या पोलिंग एंजेट के सामने मतदान शुरू करने से पहले मॉक पोलिंग की जाती है और सभी पोलिंग एंजेट से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि ये जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं. ऐसे में यदि किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकि गड़बड़ी होगी तो मतदान के शुरू होने के पहले ही पकड़ ली जायेगी.

6. मॉक पोल के बाद सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एंजेट मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का सर्टिफिकेट देते हैं. इस सर्टिफिकेट के मिलने के बाद ही संबंधित मतदान केन्द्र में वोटिंग शुरू की जाती है. ऐसे में जो उम्मीदवार ईवीएम में टैंपरिंग की बात कर रहे हैं वे अपने पोलिंग एंजेट से इस बारे में बात कर आश्वस्त हो सकते हैं.

7. मतदान शुरू होने के बाद मतदान केन्द्र में मशीन के पास मतदाताओं के अलावा मतदान कर्मियों के जाने की मनाही होती है, वे ईवीएम के पास तभी जा सकते है जब मशीन की बैट्री डाउन या कोई अन्य तकनीकि समस्या होने पर मतदाता द्वारा सूचित किया जाता है. हर मतदान केन्द्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है, इस रजिस्टर में मतदान करने वाले मतदाताओं की डिटेल अंकित रहती है और रजिस्टर में जितने मतदाता की डिटेल अंकित होती है, उतने ही मतदाताओं की संख्या ईवीएम में भी होती है. काउंटिंग वाले दिन इनका आपस मे मिलान मतदान केंद्र प्रभारी (presiding officer) की रिपोर्ट के आधार पर होता है.

8. सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम टैंपरिंग से संबंधित जितने भी मामले पहले आये उनमें से किसी भी मामले में ईवीएम में टैंपरिंग सिद्ध नहीं हो पाई है. स्वयं चुनाव आयोग आम लोगों को आंमत्रित करता है कि वे लोग आयोग जाकर ईवीएम की तकनीक को गलत सिद्ध करने हेतु अपने दावे प्रस्तुत करें. लेकिन आज तक कोई भी दावा सही सिद्ध नहीं हुआ है.

(यह जानकारी श्री कपिल शर्मा की फेसबुक वॉल से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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