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अगर हनुमान जी दलित हैं तो आदित्यनाथ 'योगी' नहीं हैं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 29 नवम्बर, 2018 07:16 PM
  • 29 नवम्बर, 2018 07:16 PM
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हनुमान जी पर बेतुका बयान देकर अपनी सियासत चमकाने वाले योगी आदित्यनाथ को देखकर ये कहना गलत नहीं है कि राजनीति के चलते हनुमान जी को दलित बताने वाला आदमी एक योगी नहीं हो सकता.

अगर हनुमान जी दलित हैं तो फिर आदित्यनाथ 'योगी' नहीं हैं. कुछ चीजों में भूमिका नहीं बांधी जाती. ये बात भी कुछ वैसी ही है. योगी आदित्यनाथ द्वारा अलवर के मालाखेड़ा में हुई चुनावी सभा के दौरान हनुमानजी को दलित बताना. उनकी मंशा को साफ कर देता है. साथ ही ये कथन इस बात की भी पुष्टि कर देता है कि जब मुद्दा वोट होंगे तो तुष्टिकरण से लेकर बेतुकी बयानबाजी तक तरकश के सभी तीर निकाले जाएंगे और प्रतिद्वंद्वी पर जवाबी हमला किया जाएगा.

चुनाव के दौरान अपने विपक्षी पर हमला करने में कोई बुराई नहीं है. मगर जब व्यक्ति हमला कर रहा हो, उसे इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि, उसके तीर ऐसे न हों, जो किसी की आस्था पर लगें और उसे घायल करें. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमारी आस्थाओं को न सिर्फ घायल किया है. बल्कि हमें ये भी सोचने पर मजबूर किया है कि, जिस आदमी को अब तक हम सनातन धर्म का जानकार. एक पंडित. या फिर एक योगी समझ रहे थे, उसे धर्म के प्रचार/प्रसार में कोई रूचि नहीं है. वो बस एक ऐसी राजनीति को अंजाम दे रहा है जिसका उद्देश लोगों को बांटना और उनमें फूट डालना है.

हनुमान जी पर बयान देकर योगी ने अपने ऊपर सवालिया निशान लगा लिए हैं

ज्ञात हो कि राजस्थान में जनसभा के दौरान हनुमान जी पर दिए बयान के चलते यूपी सीएम चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहे हैं. जिस तरह उन्होंने चंद वोटों के लिए लाखों- करोड़ों लोगों के साथ मजाक किया, उससे हनुमान जी का तो कुछ नहीं बिगड़ा. हां मगर, देश के आम आदमी कि नजरों में, योगी आदित्यनाथ और उनके ज्ञान पर जरूर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं. लोग कह रहे हैं कि एक योगी कदापि ऐसा नहीं कह सकता. हां मगर जब बात अजय सिंह बिष्ट नामक व्यक्ति की आएगी तो उससे ऐसे बयानों की पूरी उम्मीद की जा सकती है.

जिस तरह चुनाव से ठीक पहले...

अगर हनुमान जी दलित हैं तो फिर आदित्यनाथ 'योगी' नहीं हैं. कुछ चीजों में भूमिका नहीं बांधी जाती. ये बात भी कुछ वैसी ही है. योगी आदित्यनाथ द्वारा अलवर के मालाखेड़ा में हुई चुनावी सभा के दौरान हनुमानजी को दलित बताना. उनकी मंशा को साफ कर देता है. साथ ही ये कथन इस बात की भी पुष्टि कर देता है कि जब मुद्दा वोट होंगे तो तुष्टिकरण से लेकर बेतुकी बयानबाजी तक तरकश के सभी तीर निकाले जाएंगे और प्रतिद्वंद्वी पर जवाबी हमला किया जाएगा.

चुनाव के दौरान अपने विपक्षी पर हमला करने में कोई बुराई नहीं है. मगर जब व्यक्ति हमला कर रहा हो, उसे इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि, उसके तीर ऐसे न हों, जो किसी की आस्था पर लगें और उसे घायल करें. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमारी आस्थाओं को न सिर्फ घायल किया है. बल्कि हमें ये भी सोचने पर मजबूर किया है कि, जिस आदमी को अब तक हम सनातन धर्म का जानकार. एक पंडित. या फिर एक योगी समझ रहे थे, उसे धर्म के प्रचार/प्रसार में कोई रूचि नहीं है. वो बस एक ऐसी राजनीति को अंजाम दे रहा है जिसका उद्देश लोगों को बांटना और उनमें फूट डालना है.

हनुमान जी पर बयान देकर योगी ने अपने ऊपर सवालिया निशान लगा लिए हैं

ज्ञात हो कि राजस्थान में जनसभा के दौरान हनुमान जी पर दिए बयान के चलते यूपी सीएम चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहे हैं. जिस तरह उन्होंने चंद वोटों के लिए लाखों- करोड़ों लोगों के साथ मजाक किया, उससे हनुमान जी का तो कुछ नहीं बिगड़ा. हां मगर, देश के आम आदमी कि नजरों में, योगी आदित्यनाथ और उनके ज्ञान पर जरूर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं. लोग कह रहे हैं कि एक योगी कदापि ऐसा नहीं कह सकता. हां मगर जब बात अजय सिंह बिष्ट नामक व्यक्ति की आएगी तो उससे ऐसे बयानों की पूरी उम्मीद की जा सकती है.

जिस तरह चुनाव से ठीक पहले योगी का हनुमान जी पर बयान आया और जैसे उन्होंने उनका जात, धर्म, पंथ, समुदाय बताने का प्रयास किया. एक बड़ा वर्ग है जो ये मान रहा है कि, आखिर चुनाव से पहले ऐसी क्या मजबूरी थी जिसके चलते योगी आदित्यनाथ को ऐसी बात करनी पड़ी? आखिर क्यों उन्होंने चंद वोटों के लिए लोगों के विश्वास के साथ खिलवाड़ किया? आखिर क्यों बयान देने से पहले उन्होंने एक बार भी ये नहीं सोचा कि इससे उनका पद, उनकी गरिमा बुरी तरह प्रभावित होगी.

गौरतलब है कि, भगवान पर दिए गए बयान के बाद कुछ बातों से पर्दा अपने आप हट गया है. कहीं न कहीं देश की जनता को समझ में आ गया है कि, जो योगी आदित्यनाथ अलग-अलग मंचों पर खड़े होकर कभी हिन्दुत्व, तो कभी गौरक्षा इत्यादि विषयों पर उग्र मुद्रा में बयान देते थे. असल में उन बयानों की सच्चाई क्या थी. अब जबकि हनुमान जी बीच में आ गए हैं और घटिया राजनीति के चलते उन्हें दलित बना दिया गया है. तो ये भी साफ हो गया है कि असल में उन बातों का मतलब बस इतना था कि देश की भोली भाली जनता एक ऐसे जाल में फंसे, जहां पर उनकी भावनाओं को सुलगाकर, उनसे वोट हासिल किये जा सकें.

हनुमान जी पर दिए बयान के चलते योगी लगातार आलोचना का शिकार हो रहे हैं

ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के वक़्त मुस्लिम वोटों के लिए तुष्टिकरण की नीति अपनाने वाली कांग्रेस और उस कांग्रेस के सिपाहसालार कमलनाथ को योगी आदित्यनाथ ने अली और बजरंगबली पर ज्ञान दिया था और सुर्खियां बटोरी थीं. मगर जिस तरह उन्होंने दलित वोटों के लिए बजरंगबली का राजनीतिकरण किया, उसकी कोई भी समझदार इंसान निंदा करेगा.

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को ये समझना होगा कि पार्टी की गुड बुक्स में आने के लिए अगर उन्हें भगवान के नाम, उनकी जाती. उनके पंथ सहारा लेना पड़े. उन्हें दलित बताना पड़े तो इस बात को उस देश की जनता बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि जनता द्वारा देश में धर्म को कोई आडम्बर नहीं बल्कि एक ऐसा माध्यम माना जाता है जिसमें व्यक्ति खुद को अपने आराध्य से जोड़े रखता है.

बयान देने से पहले तक योगी आदित्यनाथ हमारे लिए एक सम्मानित महंत थे. मगर अब जबकि उन्होंने एक बहुत ही वाहियात किस्म की बात कर दी है. हमारे लिए ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि वो अजय सिंह बिष्ट हैं. एक ऐसा शख्स जिसका मकसद बस इतना है कि लोग उसकी बातें में आएं और भावनाओं के सागर में बहकर उस पार्टी को वोट कर दें जिसकी कमान अजय सिंह के हाथ में है. चूंकि ये गलती भाजपा खेमे की तरफ से हुई है और किसी सेल्फ गोल से कम नहीं है. तो हमारे लिए भी ये देखना दिलचस्प रहेगा कि, वो जनता जिसकी नजर में धर्म अपने आप में एक बहुत बड़ी चीज है वो इस पूरे घटनाक्रम को कैसे और किस नजर से देखती हैं.

इस बयान के बाद योगी आदित्यनाथ का भविष्य क्या है इसका जवाब हम वक़्त पर छोड़ देते हैं. मगर इतना तो निश्चित है कि हनुमान जी को दलित बताने वाले योगी आदित्यनाथ का फैसला स्वयं हनुमान जी ही करेंगे. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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