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योगी आदित्यनाथ के लिए चुनाव तो नहीं, उपचुनाव जरूर भारी पड़ते हैं

    • आईचौक
    • Updated: 03 नवम्बर, 2020 05:10 PM
  • 03 नवम्बर, 2020 04:14 PM
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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए यूपी में विपक्ष (Opposition) की पैंतरेबाजी काफी दिनों से नये तरीके की चुनौती पेश कर रही है. ऐसे में 7 सीटों पर उपचुनावों (UP Bypolls) के नतीजे 2022 को लेकर नयी राह दिखा सकते हैं.

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) खुद कभी चुनाव नहीं हारे और अगर जिद पर उतर आये तो बीजेपी से पंगा लेकर भी अपने उम्मीदवार को जिता चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद में विपक्षी (Opposition) एकजुटता के चलते गोरखपुर लोक सभा सीट पर ही उपचुनाव में बीजेपी की हार का ठप्पा भी योगी आदित्यनाथ पर ही लगा - और हार का वो ठप्पा अकेला नहीं, फूलपुर और कैराना के कॉम्बो के साथ लगा है.

ऐसा लगता है जैसे सामान्य चुनाव तो नहीं, लेकिन यूपी उपचुनाव (P Bypolls) योगी आदित्यनाथ के लिए मुश्किल साबित होते हैं. वैसे 2019 में योगी आदित्यनाथ ने तीनों लोक सभा सीटों पर हुई हार का हिसाब भी बराबर कर लिया था - लेकिन एक बार फिर यूपी की 7 विधानसभा सीटें फिर चुनौती बन कर खड़ी हो गयी हैं.

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो ये सभी सीटें काफी महत्वपूर्ण लगती हैं - क्योंकि ये ये पूर्वांचल, पश्चिम यूपी, सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

जिन 7 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं उनमें एक बांगरमऊ की सीट भी है जो कुलदीप सिंह सेंगर के बलात्कार के जुर्म में उम्रकैद की सजा मिल जाने के चलते खाली हुई थी. 2017 में बीजेपी ने इन 7 सीटों में से छह पर जीत हासिल की थी जबकि एक सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से रही.

यूपी में उपचुनाव कितने महत्वपूर्ण

यूपी की राजनीति में अभी से सभी की नजरें 2022 के विधानसभा चुनाव पर है. ऐसे में यूपी की सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो गये हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए उपचुनाव खुद का राजनीतिक दबदबा बनाये रखने के लिए चुनौती बन रहे हैं तो प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव और मायावती के सामने ये साबित करने के चैलेंज हैं कि सत्ताधारी बीजेपी को आगे बढ़ कर कौन चैलेंज कर सकता है?

जहां तक चुनाव प्रचार की बात है तो योगी आदित्यनाथ ने ये कमान खुद संभाले रखी, लेकिन तीनों विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने रस्मे निभाने जैसे ही पेश आये हैं.

योगी...

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) खुद कभी चुनाव नहीं हारे और अगर जिद पर उतर आये तो बीजेपी से पंगा लेकर भी अपने उम्मीदवार को जिता चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद में विपक्षी (Opposition) एकजुटता के चलते गोरखपुर लोक सभा सीट पर ही उपचुनाव में बीजेपी की हार का ठप्पा भी योगी आदित्यनाथ पर ही लगा - और हार का वो ठप्पा अकेला नहीं, फूलपुर और कैराना के कॉम्बो के साथ लगा है.

ऐसा लगता है जैसे सामान्य चुनाव तो नहीं, लेकिन यूपी उपचुनाव (P Bypolls) योगी आदित्यनाथ के लिए मुश्किल साबित होते हैं. वैसे 2019 में योगी आदित्यनाथ ने तीनों लोक सभा सीटों पर हुई हार का हिसाब भी बराबर कर लिया था - लेकिन एक बार फिर यूपी की 7 विधानसभा सीटें फिर चुनौती बन कर खड़ी हो गयी हैं.

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो ये सभी सीटें काफी महत्वपूर्ण लगती हैं - क्योंकि ये ये पूर्वांचल, पश्चिम यूपी, सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

जिन 7 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं उनमें एक बांगरमऊ की सीट भी है जो कुलदीप सिंह सेंगर के बलात्कार के जुर्म में उम्रकैद की सजा मिल जाने के चलते खाली हुई थी. 2017 में बीजेपी ने इन 7 सीटों में से छह पर जीत हासिल की थी जबकि एक सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से रही.

यूपी में उपचुनाव कितने महत्वपूर्ण

यूपी की राजनीति में अभी से सभी की नजरें 2022 के विधानसभा चुनाव पर है. ऐसे में यूपी की सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो गये हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए उपचुनाव खुद का राजनीतिक दबदबा बनाये रखने के लिए चुनौती बन रहे हैं तो प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव और मायावती के सामने ये साबित करने के चैलेंज हैं कि सत्ताधारी बीजेपी को आगे बढ़ कर कौन चैलेंज कर सकता है?

जहां तक चुनाव प्रचार की बात है तो योगी आदित्यनाथ ने ये कमान खुद संभाले रखी, लेकिन तीनों विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने रस्मे निभाने जैसे ही पेश आये हैं.

योगी आदित्यनाथ के साथ साथ यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह जहां हर इलाके में पहुंच कर लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश किये, वहीं अखिलेश यादव और मायावती ने घर में बैठे बैठे ही अपील कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है. प्रियंका गांधी वाड्रा जितना एक्टिव हाथरस और यूपी की अन्य घटनाओं को लेकर रहीं, उतना उपचुनावों को लेकर तो नहीं देखी गयीं. पूरी जिम्मेदारी एक तरीके से यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के कंधों पर रही.

योगी आदित्यनाथ का चुनाव प्रचार के दौरान अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ साथ जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म किये जाने पर जोर तो रहा ही, लेकिन सबसे ज्यादा दिलचस्पी लव जिहाद पर कानून बनाने को लेकर दिखी है. यूपी के मुख्यमंत्री की लव जिहाद को लेकर कानून बनाने के ऐलान के बाद हरियाणा में भी ऐसी चर्चा शुरू हो गयी है. वैसे भी निकिता तोमर मर्डर केस के बाद से वहां स्थिति काफी तनावपूर्ण बनी हुई है.

योगी आदित्यनाथ के राजनीति जीवन की सबसे बड़ी चुनौती उपचुनाव ही रहे हैं!

लव जिहाद और घर वापसी - ये दोनों प्रोग्राम योगी आदित्यनाथ के फेवरेट रहे हैं और उनको एक राजनीतिक कद प्रदान करने में ये दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से पहले योगी आदित्यनाथ की युवा वाहिनी के लिए प्रमुख टास्क तो यही दोनों कार्यक्रम हुआ करते थे. एक रैली में योगी आदित्यनाथ ने कहा, 'इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि शादी-ब्याह के लिए धर्म परिवर्तन आवश्यक नहीं है. धर्म परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिये... इसे मान्यता नहीं मिलनी चाहिये... सरकार ये निर्णय ले रही है कि हम लव जिहाद को सख्ती से रोकने का कार्य करेंगे - एक प्रभावी कानून बनाएंगे.'

यहां तक तो ठीक रहा, लेकिन उसके आगे जो कुछ योगी आदित्यनाथ ने बोला वो उनकी पुरानी पॉलिटिकल स्टाइल का ही नूमना लगा, 'छद्म वेश में... चोरी छुपे... नाम छुपाकर... स्वरूप छुपाकर... जो लोग बहन-बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते हैं उनको पहले से मेरी चेतावनी - अगर वे सुधरे नहीं तो राम नाम सत्य है की यात्रा अब निकलने वाली है.'

समझ में नहीं आ रहा है कि योगी आदित्यनाथ भारतीय संविधान के दायरे में कोई कानून बना रहे हैं या अपनी स्टाइल में एनकाउंटर को एक्सटेंशन दे रहे हैं?

कहीं ऐसा तो नहीं कि ऑपरेशन में मिली नाकामी के बाद फिर से एंटी रोमियो स्क्वॉड को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एनकांटर का स्पेशल लाइसेंस देने की बात कर रहे हैं?

कुलदीप सेंगर की सीट पर उपचुनाव!

यूपी की जिन सात सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें से एक बांगरमऊ विधानसभा भी है. ये सीट बीजेपी के विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर को बलात्कार केस में उम्रकैद की सजा मिल जाने के बाद खाली हो गयी थी.

बांगरमऊ सीट से टिकट देने के मामले में बीजेपी ने कुलदीप सेंगर के परिवार को पूरी तरह दूर रखा और बीजेपी नेता श्रीकांत कटियार को टिकट दिया है. बीजेपी के इस कदम से क्षत्रिय मतदाता खासे नाराज भी बताये जा रहे हैं क्योंकि वो कुलदीप सिंह सेंगर के स्वजातीय उम्मीदवार की उम्मीद कर रहे थे.

महज क्षत्रिय मतदाता ही नहीं, बीजेपी सांसद साक्षी महाराज भी कुलदीप सेंगर को लेकर काफी दुखी हैं - और इसे उनकी बातों से साफ साफ समझ में आता है, कहते हैं, 'मतदाताओं में कुलदीप सिंह सेंगर के प्रति सहानुभूति है और अगर वो जेल से भी चुनाव लड़ते तो जीत जाते. आरोप तो लगते रहते हैं. आरोप उन पर लगे. सजा हुई. मैं कानून व्यवस्था पर टीका टिप्पणी नहीं करना चाहता - कई बार सत्य को भी फांसी हो जाती है.'

मतलब, साक्षी महाराज कानून और न्याय व्यवस्था पर टिप्पणी तो नहीं करना चाहते लेकिन अब भी वो कुलदीप सिंह सेंगर को बेकसूर मानते हैं. तभी तो जेल पहु्ंच कर हैपी बर्थडे बोलते हैं और चुनाव में जीत के लिए शुक्रिया भी कहने के लिए जेल पहुंच जाते हैं. साक्षी महाराज ये भी चाहते हैं कि बीजेपी को कुलदीप सेंगर के इलाके में प्रभाव का चुनाव में फायदा जरूर उठाना चाहिये.

श्रीकांत कटियार पहले बीजेपी के जिलाध्यक्ष हुआ करते थे. 1967 में सबसे पहले ये सीट जनसंघ ने जीती थी और उसके बाद 2017 में ये ही सीट बीजेपी को कुलदीप सेंगर की बदौलत मिल सकी. मुस्लिम बहुल इस विधानसभा सीट पर फिलहाल त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है.

श्रीकांत कटियार को समाजवादी पार्टी की तरफ से सुरेश कुमार पाल और बीएसपी की ओर से महेश प्रसाद चुनौती पेश कर रहे हैं. कांग्रेस ने बांगरमऊ से आरती वाजपेयी को अपना उम्मीदवार बनाया है.

आरती वाजपेयी कोई और नहीं बल्कि यूपी के जाने माने नेता गोपीनाथ दीक्षित की बेटी हैं. गोपीनाथ दीक्षित, दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के ससुर थे. 2012 में आरती वाजपेयी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार बांगरमऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं. आरती वाजपेयी खुद को बांगरमऊ की बेटी के तौर पर पेश कर रही हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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