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UP Elections 2022: राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र और बदहाल कलाकार...

    • संदीप यादव
    • Updated: 11 फरवरी, 2022 06:45 PM
  • 11 फरवरी, 2022 06:43 PM
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लोक कला और लोककलाकारों की आर्थिक सामाजिक स्थिति पर पता नहीं क्या योजनाएं हैं? हैं भी तो कितनी उन तक पहुंच रही है ? कला और कलाकारों का उद्धार ऐसा थोड़े ही होगा? सुदूर गांव में बैठे लोककलाकारों के लिए कोई राजनीतिक पार्टी कुछ नहीं सोच समझ पाती. बड़े बड़े कलाकारों लेखकों के घर बिक गये. समय पर इलाज़ नहीं मिल सका.

राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र में कला और कलाकारों के लिए कोई घोषणा नहीं होती है. वजह क्या है? पता नहीं. और कमाल की बात ये है कि सभी राजनीतिक पार्टियों में बहुत से कलाकार बहुत अहम पदों पर बैठे भी हैं. लेकिन वो भी कभी कलाकारों के हितों के लिए नहीं सोच पाते हैं. वो बस सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं. चाटुकारिता करते हैं और इस फिराक में रहते हैं कि कैसे उन्हें और ज़्यादा सम्मान मिले. कैसे उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा कार्यक्रम करने को मिलें. कैसे वो सरकारों को खुश करने वाले बयान देते रहें. कला और कलाकारों की वास्तविक आर्थिक, पारिवारिक व सामाजिक स्थिती से कभी अधिकारियों मंत्रियों या मुख्यमंत्री तक को अवगत नहीं करा पाते हैं? राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र में गरीब, किसान, बेरोज़गार, विकलांग, महिलाओं के लिए नई नई घोषणाएं कर दी जाएंगी. लेकिन कला और कलाकारों के लिए कोई स्किम नहीं बन पाती हैं. उन्हें लुभाने के लिए कोई वादा नहीं किया जाता है? सरकारी कला संस्थानों में जिन मठाधीशों का होल्ड पहले की सरकारों में था वो ही लोग घुमा फिरा कर फिर से नई सरकारों में भी आ जाते हैं.

बड़ा सवाल ये है कि किसी भी राजनितिक दल ने आखिर आजतक कलाकारों के विषय में क्यों नहीं सोचा

और कई बार तो अयोग्य व्यक्ति किसी संस्थान मेंऊंचे पद पर बिठा दिया जाता है. फिर उसके इर्द गिर्द उसी के चेले चपाडे बैठे होंगे वो सिर्फ़ ऐसे ही कार्यक्रम की प्रस्तावना बनाते रहेंगे जिस में सरकारी गुणगान होते रहें. मुझे नहीं लगता कि आज तक किसी कला संस्थान या कला से संबंधित सरकारी विभाग के पास कोई आंकड़ा होगा कि आपके प्रदेश में किस विधा में कितने कलाकार हैं, जो कि सरकारी संस्थानों से प्रशिक्षित हैं.

कितने कलाकार हैं जो योग्य हैं. खानदानी हैं. कितने कलाकार किस आर्थिक स्थिति से जूझ...

राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र में कला और कलाकारों के लिए कोई घोषणा नहीं होती है. वजह क्या है? पता नहीं. और कमाल की बात ये है कि सभी राजनीतिक पार्टियों में बहुत से कलाकार बहुत अहम पदों पर बैठे भी हैं. लेकिन वो भी कभी कलाकारों के हितों के लिए नहीं सोच पाते हैं. वो बस सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं. चाटुकारिता करते हैं और इस फिराक में रहते हैं कि कैसे उन्हें और ज़्यादा सम्मान मिले. कैसे उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा कार्यक्रम करने को मिलें. कैसे वो सरकारों को खुश करने वाले बयान देते रहें. कला और कलाकारों की वास्तविक आर्थिक, पारिवारिक व सामाजिक स्थिती से कभी अधिकारियों मंत्रियों या मुख्यमंत्री तक को अवगत नहीं करा पाते हैं? राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र में गरीब, किसान, बेरोज़गार, विकलांग, महिलाओं के लिए नई नई घोषणाएं कर दी जाएंगी. लेकिन कला और कलाकारों के लिए कोई स्किम नहीं बन पाती हैं. उन्हें लुभाने के लिए कोई वादा नहीं किया जाता है? सरकारी कला संस्थानों में जिन मठाधीशों का होल्ड पहले की सरकारों में था वो ही लोग घुमा फिरा कर फिर से नई सरकारों में भी आ जाते हैं.

बड़ा सवाल ये है कि किसी भी राजनितिक दल ने आखिर आजतक कलाकारों के विषय में क्यों नहीं सोचा

और कई बार तो अयोग्य व्यक्ति किसी संस्थान मेंऊंचे पद पर बिठा दिया जाता है. फिर उसके इर्द गिर्द उसी के चेले चपाडे बैठे होंगे वो सिर्फ़ ऐसे ही कार्यक्रम की प्रस्तावना बनाते रहेंगे जिस में सरकारी गुणगान होते रहें. मुझे नहीं लगता कि आज तक किसी कला संस्थान या कला से संबंधित सरकारी विभाग के पास कोई आंकड़ा होगा कि आपके प्रदेश में किस विधा में कितने कलाकार हैं, जो कि सरकारी संस्थानों से प्रशिक्षित हैं.

कितने कलाकार हैं जो योग्य हैं. खानदानी हैं. कितने कलाकार किस आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं. लखनऊ स्थित भारतेंदु नाट्य अकादमी से थिएटर की पढ़ाई करने वाले छात्रों के मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री चले जाने पर रोना रोने वाले लोग कभी सरकारों को ये प्रस्ताव नहीं दे पाते हैं कि कैसे रंगमंच के क्षेत्र में राज्य में ही रोज़गार उपलब्ध हो? ताकि कलाकारों का पलायन रुक सके.

ललित कला अकादमी, भातखंडे संगीत महाविद्यालय, संस्कृत संस्थान या अन्य कला विद्यालयों से पासआउट विद्यार्थियों के लिए सरकार क्या रोज़गार उपलब्ध करा सकती है, ये किसी सरकार को बताने वाला कोई नहीं है? ना सरकारों के पास अपनी सोच समझ है कि वो इस विषय पर सोच सकें. बस तमाम त्योहारों, आयोजनों, सरकारी उदघाटनों पर कलाकारों को बुला लीजिये वो गा बजा देंगे, नाच देंगे नाटक कर देंगे बस हो गया कला संस्कृति और कलाकारों का कल्याण.

लोक कला और लोककलाकारों की आर्थिक सामाजिक स्थिति पर पता नहीं क्या योजनाएं हैं? हैं भी तो कितनी उन तक पहुंच रही है ? कला और कलाकारों का उद्धार ऐसा थोड़े ही होगा? सुदूर गॉव में बैठे लोककलाकारों के लिए कोई राजनीतिक पार्टी कुछ नहीं सोच समझ पाती. बड़े बड़े कलाकारों लेखकों के घर बिक गये. समय पर इलाज़ नहीं मिल सका. बीमार होने पर उनके लिए जनता ने पैसे जुटाए.

क्या सरकारों को इस दिशा में नहीं सोचना चाहिए कि कलाकार भी आपके प्रदेश के नागरिक हैं. उनके लिए भी योजनाएं बनाइये ताकि वो भी आर्थिक रूप से सामाजिक रूप से सक्षम हो सकें. लखनऊ बनारस रामपुर समेत तमाम घरानों को सुविधाएं दीजिये. वरिष्ठ कलाकारों के लिए इलाज़ में छूट हो, पेंशन हो, उनकी कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने हेतु योजनाओं का गठन हो.

वरिष्ठ साहित्यकारों को सरकारी सुविधाओं मिलें. युवाओं को प्रोत्साहित कीजिये उन्हें लिखने पढ़ने हेतु पुस्तकालय बनवाइये. अच्छी फिल्म, सिनेमा के निर्देशकों को सरकार ख़ुद से फंड दें, उनसे तमाम विषयों पर सिनेमा बनवाइये, ख़ुद खरीदिये उसे,ख़ुद प्रदर्शन करवाइए उसका. हर विधा के कलाकारों को सरकारी विभागों में उनकी कला के अनुरूप रोज़गार मिले.

यक़ीन मानिए तब संभव होगा कला और कलाकारों का विकास. वरना आयतित करके मुम्बई वालों को बुलाते रहिए वही आपकी स्कीम्स अपने हिसाब से बनाते रहेंगे. आपको कहानी समझाते रहेंगे और आप उनके मकड़जाल में उलझ कर अपने प्रदेश के मूल कलाकारों का औसत मूल्यांकन करते रहेंगे.

कला के क्षेत्र में रोजग़ार के अवसर उपलब्ध कराइये तब माता पिता अपने बच्चों को सरकारी कला संस्थानों में पढ़ने के लिए भेजेंगे क्योंकि उन्हें ये पता होगा कि उनका बेटा बेटी फला कला सीखने के बाद भूखों नहीं मरेगा. सोचिए भारतेंदु नाट्य अकादमी, भातखंडे संगीत महाविद्यालय, ललित कला अकादमी, कथक संस्थान से पढ़ाई करके निकलने वालों के लिए क्या रोज़गार सरकार दे पाती हैं?

आदरणीय राजनीतिक पार्टियों के मुखियाओं, समर्थकों, मंत्रियों, संतरियों, अधिकारीयों से निवेदन है कि चुनावीं घोषणा पत्रों में इस ओर भी ध्यान दिलवाइये ताकि कला, संस्कृति के क्षेत्रों में भी कलाकारों को रोज़गार मिल सकें.

आप चाहें तो मुझसे मिल लीजिये मुझे लेकर किसी राजनीतिक दल के पास चलिये मैंने कुछ योजनाएं पेपर पर लिख रखी हैं. आप उसे घोषणा पत्र में शामिल करवा दीजिये. मैं प्रदेश भर के कलाकारों से आपकी पार्टी को वोट देने के लिए अपील भी करूंगा. चुनाव तक अपने सभी काम तक पर रखकर आपके साथ चुनावी रैलियों में भी चलने को तैयार हूं. उम्मीद है आप लोग मेरी व्यथा मेरे कंसर्न को समझेंगें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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