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Unlock 1 guidelines में सबसे चुनौतीपूर्ण स्कूल-कॉलेज खोलने का मामला

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 01 जून, 2020 12:09 PM
  • 01 जून, 2020 11:41 AM
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कोरोना वायरस (Coronavirus ) के इस दौर में जब लॉक डाउन (Lockdown) का पांचवा चरण हो पूरा देश इसी बात को लेकर चिंतित है कि सरकार स्कूल और कॉलेज कब खोलेगी? जिसे देश की सरकार के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है.

देश का भविष्य अभी तय नहीं हुआ पर वर्तमान दिनचर्या लगभग ढर्रे पर आने के रास्ते खुल गये हैं. बच्चे और युवा जिन्हें देश का भविष्य कहा जाता है, कोरोना काल (Coronavirus) में इनके स्कूल-कॉलेज जाने का सिलसिला और तौर-तरीका तय होना बाकी है. वैसे स्कूलों का ये समय अभी गर्मियों की छुट्टियों का है. इस बीच सब कुछ खुलने का फैसला होने से कोरोना के खतरों के बीच जिन्दगी पटरी पर आ जायेगी. सरकार ने जिन्दगी के नये-तौर तरीकों की गाइड लाइन तो तय कर दी है पर सबसे अहम स्कूली शिक्षा (Education) के मानक तय करना बाकी है, जो सबसे बड़ी चुनौती है. देश के मंहगे और संसाधन प्रधान स्कूल तो कठिन से कठिन गाइड लाइन का पालन करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन गरीब बच्चों के स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का पालन होना बेहद कठिन चुनौती है. ग्रामीण प्रधान भारत के करोड़ों गरीब बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों पर निर्भर है. ये वही सरकारी स्कूल हैं जहां टाट-पट्टी के संसाधन जुटाना भी कठिन हैं. जहां गरीब बच्चों के भोजन की मिड डे मिल योजना का क्रियान्वयन खामियों की दलीलें देता रहा है. जहां मिड डे मिल भोजन में कभी छिपकली, कभी चूहा तो कभी फफूंदी निकलने की खबरें आती रहती हैं. गरीब स्कूली बच्चों को नमक रोटी देने की खबरें भी सबको याद होंगी. यहां कोरोना वायरस से बचाव की एहतियात, सेनेटाइज करना, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे पालन बेहद चुनौती भरे होंगे.

इस कोरोना काल में स्कूल खोलना सरकार के लिए तमाम चुनौतियां लिए हुए हैं

शहरों के लोवर मिडिल क्लास के ज्यादातर बच्चे जो गली-कूचों के सस्ते प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं, एक-एक रिक्शे पर कई-कई बच्चे ढो-ढो के जाते हैं. अस्सी सीटों वाले क्लास में सौ-सौ बच्चे बैठते हैं. ऐसे स्कूल फीस कम लेते हैं इसलिए इनके पास कम संसाधन है. गरीब या...

देश का भविष्य अभी तय नहीं हुआ पर वर्तमान दिनचर्या लगभग ढर्रे पर आने के रास्ते खुल गये हैं. बच्चे और युवा जिन्हें देश का भविष्य कहा जाता है, कोरोना काल (Coronavirus) में इनके स्कूल-कॉलेज जाने का सिलसिला और तौर-तरीका तय होना बाकी है. वैसे स्कूलों का ये समय अभी गर्मियों की छुट्टियों का है. इस बीच सब कुछ खुलने का फैसला होने से कोरोना के खतरों के बीच जिन्दगी पटरी पर आ जायेगी. सरकार ने जिन्दगी के नये-तौर तरीकों की गाइड लाइन तो तय कर दी है पर सबसे अहम स्कूली शिक्षा (Education) के मानक तय करना बाकी है, जो सबसे बड़ी चुनौती है. देश के मंहगे और संसाधन प्रधान स्कूल तो कठिन से कठिन गाइड लाइन का पालन करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन गरीब बच्चों के स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का पालन होना बेहद कठिन चुनौती है. ग्रामीण प्रधान भारत के करोड़ों गरीब बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों पर निर्भर है. ये वही सरकारी स्कूल हैं जहां टाट-पट्टी के संसाधन जुटाना भी कठिन हैं. जहां गरीब बच्चों के भोजन की मिड डे मिल योजना का क्रियान्वयन खामियों की दलीलें देता रहा है. जहां मिड डे मिल भोजन में कभी छिपकली, कभी चूहा तो कभी फफूंदी निकलने की खबरें आती रहती हैं. गरीब स्कूली बच्चों को नमक रोटी देने की खबरें भी सबको याद होंगी. यहां कोरोना वायरस से बचाव की एहतियात, सेनेटाइज करना, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे पालन बेहद चुनौती भरे होंगे.

इस कोरोना काल में स्कूल खोलना सरकार के लिए तमाम चुनौतियां लिए हुए हैं

शहरों के लोवर मिडिल क्लास के ज्यादातर बच्चे जो गली-कूचों के सस्ते प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं, एक-एक रिक्शे पर कई-कई बच्चे ढो-ढो के जाते हैं. अस्सी सीटों वाले क्लास में सौ-सौ बच्चे बैठते हैं. ऐसे स्कूल फीस कम लेते हैं इसलिए इनके पास कम संसाधन है. गरीब या लोवर मिडिल क्लास के अभिवावकों को ऐसे कम फीस वाले स्कूलों में बच्चों को पढ़वाना मजबूरी है. और पूरा अनुशासन या समुचित संसाधन ना उपलब्ध करवा पाना स्कूलों की आर्थिक मजबूरी है.

ऐसे में अंदाजा लगाइयेगा कि शैक्षणिक संस्थाओं के मानकों की गाइड लाइन तैयार कर पाने और उसका पालन करवाने में सरकार के लिए कितना कठिन होगा. इस बात पर भी गौर कीजिए कि गरीब परिवारों के वो करोड़ों ग्रामीण बच्चे जो टाट-पट्टी वाले सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं उन्होंने पिछले दो महीने घरों में बैठ कर किस तरह ऑनलाइन पढ़ाई की होगी?

अगर घुमा फिरा कर नहीं, सीधी-सीधी बात कीजिए तो सबकुछ खुल गया है. लॉकडाउन को कुछ शर्तों और एहतियातों की हिदायतों के साथ अनलॉक कर दिया गया है. रही बात सिनेमाघरों की तो वैसे भी ज्यादातर लोगों ने घरों पर सिनेमा देखने की आदत डाल ली है. व्यायाम के लिए व्यायामशाला जाने की भी अब कुछ ख़ास जरुरत नहीं है. लोग ऑनलाइन टिप्स पाकर व्यायाम/योगा करने में दक्ष हो रहे हैं.

राजनीतिक दलों की प्रेस कांफ्रेंस से लेकर बयानबाजी और आन्दोलन तक ऑनलाइन हो रहे हैं. सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और मनोरंजन के कार्यक्रम भी ऑनलाइन ही हो रहे हैं. आयोजन का खर्च भी बच रहा है. कोई भी किसी को ऑनलाइन सम्मान पत्र भेजकर सम्मान दे सकता है. इस तरह इधर करीब एक महीने में हज़ारों सम्मान देने के सिलसिले में लाखों लोगों को कोरोना योद्धा के ख़िताब से नवाज़ दिया गया.

कुछ लोग सम्मान पत्र का शीटकार्ड घरों-घरों बांट कर फोटो खिचवा आये. जिन्होंने सम्मान शीटकार्ड हासिल किया उन लोगो ने ये तस्वीर सोशल मीडिया पर लगाई. सम्मान पाने वाले लोगों के परिचितों ने सोशल मीडिया पर ही बधाई दी और उनकी तस्वीरों को लाइक किया. किसी हॉल में आयोजन होता तो हजारों या लाखों रुपए खर्च होते.

पर बमुश्किल सौ दो सौ लोग ही सम्मान समारोह में शामिल होते, किंतु इस तरह के सम्मान वितरण की तस्वीरों से हजारों लोग जुड़े. गुमनाम आयोजक व आयोजन संस्थाओं का भी फ्री में प्रचार हो गया. 31 मई को खत्म हुए लॉकडाउन फोर के बाद सरकार ने अगले चरण को आठ जून से तीस जून तक लागू किया है और इसे अनलॉक वन नाम दिया है.

इसमें एहतियातों के साथ लगभग सब कुछ खोलने की अनुमति मिल गयी है. सिनेमा, जिम और आयोजनों पर अभी भी रोक है. अब बस स्कूल कॉलेजों के खुलने और उसकी गाइड लाइन तैयार होने का इंतजार है. रात नौ बजे से सुबह पांच बजे तक कर्फ्यू रहेगा. इस फैसले का लोग सोशल मीडिया पर खूब मजाक उड़ा रहे हैं. कहा जा रहा है कि क्या रात नौ बजे के बाद कोरोना सो कर उठता है और सुबह पांच बजे फिर सो जाता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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