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ये हमारा आपका नहीं देश का बजट है, आसानी से नफा नुकसान कहां समझ आएगा !

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 03 फरवरी, 2021 07:32 PM
  • 03 फरवरी, 2021 07:32 PM
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Covid-19 के दौर में जहां अर्थव्यवस्था की वाट लगी पड़ी हो और जीडीपी का पहिया आहिस्ता घूम रहा हो, ऊपर से देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाला एक बड़ा वर्ग यानी किसान वर्ग कामकाज छोड़ दिल्ली की दहलीज़ पर बैठा हो. ऐसे समय में देश का बजट पेश हो तो उम्मीदें बहुत ही अधिक हुआ करती हैं.

कोरोना जैसी महामारी हो जहां अर्थव्यवस्था की वाट लगी पड़ी हो और जीडीपी का पहिया आहिस्ता आहिस्ता घूम रहा हो, ऊपर से देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाला एक बड़ा वर्ग यानी किसान वर्ग कामकाज छोड़ दिल्ली की दहलीज़ पर बैठा हो. ऐसे समय में देश का बजट पेश हो तो उम्मीदें बहुत ही अधिक हुआ करती हैं. अपने घरेलू बजट से भी मतलब न रखने वाले लोग देश के बजट पर न सिर्फ दिलचस्पी दिखाते हैं बल्कि उस बजट के नफा नुकसान की भी चर्चा करते हैं, बजट पर खूब माथापच्ची होती है और उस बजट में तलाश होती है कि हमें क्या लाभ मिलेगा या फिर हमारी जेब कहां से कटेगी. कोई भी सरकार जब बजट बनाने कि शुरुआत करती है तो चारों ओर तांकझांक करती है कि किस क्षेत्र में किस चीज़ की ज़रूरत है और अपनी सरकार की प्राथमिकता क्या है, उसके अनुसार ही देश का बजट तैयार होना शुरू होता है. हमेशा बजट बनाते हुए यह ख्याल रखा जाता है कि बजट में हर क्षेत्र के लिए कुछ न कुछ राहत तो हो ही, बजट की आड़ में कोई सरकार पर ऊंगली न उठाने पाए इस बात का भी ख्याल रखा जाता है.

बजट के मद्देनजर पूरा देश वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से बहुत उम्मीद लगाए बैठा था

लेकिन भारत में पेश होने वाले हर बजट का दस्तूर अबतक यही रहा है कि सत्ता पक्ष हमेशा बजट को एतिहासिक बताता है और दूरदर्शी फायदे के सपने दिखाता है जबकि विपक्ष बजट को सिरे से खारिज कर देता है और इसे छलावा बताता है. बहरहाल इसे तो आप भारतीय राजनीति की परंपरा भी कह सकते हैं. साल 2021 का आम बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया है, अभी तक के बजट में ऐसा होता था कि कोई भी सरकार निजिकरण और राजकोषीय घाटे पर बात करने से हिचकिचाया करती थी लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार ने इस बजट में दोनों ही विषयों पर खुलकर बात की है.

वित्तमंत्री ने...

कोरोना जैसी महामारी हो जहां अर्थव्यवस्था की वाट लगी पड़ी हो और जीडीपी का पहिया आहिस्ता आहिस्ता घूम रहा हो, ऊपर से देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाला एक बड़ा वर्ग यानी किसान वर्ग कामकाज छोड़ दिल्ली की दहलीज़ पर बैठा हो. ऐसे समय में देश का बजट पेश हो तो उम्मीदें बहुत ही अधिक हुआ करती हैं. अपने घरेलू बजट से भी मतलब न रखने वाले लोग देश के बजट पर न सिर्फ दिलचस्पी दिखाते हैं बल्कि उस बजट के नफा नुकसान की भी चर्चा करते हैं, बजट पर खूब माथापच्ची होती है और उस बजट में तलाश होती है कि हमें क्या लाभ मिलेगा या फिर हमारी जेब कहां से कटेगी. कोई भी सरकार जब बजट बनाने कि शुरुआत करती है तो चारों ओर तांकझांक करती है कि किस क्षेत्र में किस चीज़ की ज़रूरत है और अपनी सरकार की प्राथमिकता क्या है, उसके अनुसार ही देश का बजट तैयार होना शुरू होता है. हमेशा बजट बनाते हुए यह ख्याल रखा जाता है कि बजट में हर क्षेत्र के लिए कुछ न कुछ राहत तो हो ही, बजट की आड़ में कोई सरकार पर ऊंगली न उठाने पाए इस बात का भी ख्याल रखा जाता है.

बजट के मद्देनजर पूरा देश वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से बहुत उम्मीद लगाए बैठा था

लेकिन भारत में पेश होने वाले हर बजट का दस्तूर अबतक यही रहा है कि सत्ता पक्ष हमेशा बजट को एतिहासिक बताता है और दूरदर्शी फायदे के सपने दिखाता है जबकि विपक्ष बजट को सिरे से खारिज कर देता है और इसे छलावा बताता है. बहरहाल इसे तो आप भारतीय राजनीति की परंपरा भी कह सकते हैं. साल 2021 का आम बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया है, अभी तक के बजट में ऐसा होता था कि कोई भी सरकार निजिकरण और राजकोषीय घाटे पर बात करने से हिचकिचाया करती थी लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार ने इस बजट में दोनों ही विषयों पर खुलकर बात की है.

वित्तमंत्री ने एक दो दफा नहीं बल्कि कई दफा निजिकरण शब्द का न सिर्फ इस्तेमाल किया है बल्कि उसपर जोर भी दिया है.वित्तमंत्री ने बजट में 34 फीसदी तक के खर्च को बढ़ाया है और राजकोषीय घाटे की बात भी कबूली है. सरकार ने बजट में कई ऐसे भी ऐलान किए हैं जिनको शुरू कर पाने में ही कई अड़चनें भी सामने आने वाली हैं, कुछ मुद्दों पर उसे विपक्ष का सहारा भी लेना पड़ेगा. सरकार ने लाइफ इंश्योरेंश कारपोरेशन यानी एलआईसी की कुछ हिस्सेदारी को पब्लिक को बेचने का फैसला किया है लेकिन एलआईसी का शेयर बेचना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होने वाला है.

इस कंपनी के साथ लोगों का इतना जुड़ाव और भरोसा सिर्फ सरकार के दाखिले के चलते है. कंपनी में कार्य कर रहे लोगों का पूरा एक यूनियन है जिसे समझा पाना टेढ़ी खीर सरीखा है, सरकार अगर 8-10 प्रतिशत हिस्सेदारी भी बेचने की कोशिश करेगी तो भी उसे खूब मेहनत करनी पड़ सकती है. इस बार के बजट में अधिकतर लोगों का अनुमान था कि सरकार इस बजट में कोरोना महामारी से निपटने के लिए एक नया टैक्स लगा सकती है, लेकिन सभी की दलील खारिज हुयी सरकार ने न तो कोई नया टैक्स लगाया और न ही पुराने टैक्स स्लैब में कोई बदलाव किया.

सरकार ने 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को टैक्स में राहत दी है. सरकार ने बजट में रोजगार पर डायरेक्टली कोई भी बात नहीं की है उसे इनडायरेक्ट तरीके से बताया और एक-दो जगह ही दलील दी कि यहां पर नए रोजगार पैदा होंगें. बजट में अमूमन रोजगार, किसान और बैंक से लोन लेने वालों का ज़िक्र होता ही है लेकिन यह पहली बार है कि सरकार ने खुलकर इन चीज़ों पर ज़्यादा बात नहीं की है.

साल 1969 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी बैंको का राष्ट्रीयकरण किया था तो उसे एतिहासिक कदम बताया गया था लेकिन वर्तमान सरकार दो और सरकारी बैंको का निजिकरण करने जा रही है. अब सवाल यह उठता है कि बैंको का राष्ट्रीयकरण किया जाना ज़्यादा सही फैसला था या फिर बैंको का निजिकरण करना, तो इसका जवाब यही है कि समय के साथ फैसले बदले जा सकते हैं. तब और अब के समय में फर्क है आज के समय में भारत के खर्च अधिक हो गए हैं. ऐसे में सरकार को अर्थव्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ क्षेत्रों का निजिकरण करना ज़रूरी है ताकि राजकोषीय घाटा और न बढ़ने पाए.

फिलहाल बजट पर चर्चाएं जारी हैं क्या नफा होगा क्या नुकसान होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन यह बजट सरकार के एजेंडे पर बिल्कुल मुफीद साबित हो रहा है. सरकार निजिकरण को बढ़ावा देकर संस्थाओं को बेहतर बनाने की मंशा पर लगातार काम कर रही है जिसको अब उसने अपने बजट के ज़रिए भी ज़ाहिर कर दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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