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Palghar पर दिल्ली की तू-तू मैं-मैं ने उद्धव ठाकरे को जीवनदान दे दिया

    • आईचौक
    • Updated: 24 अप्रिल, 2020 02:56 PM
  • 24 अप्रिल, 2020 02:56 PM
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पालघर को लेकर राजनीति (Palghar lynching debate) दिल्ली पहुंच गयी है - और बवाल में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) भी कूद पड़ी हैं लिहाजा बीजेपी मोर्चे पर आ डटी है. फिलहाल तो ये उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के लिए सबसे बड़ी राहत की बात है.

पालघर मॉब लिंचिंग का मुद्दा (Palghar lynching debate) महाराष्ट्र सरकार के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने की जगह कांग्रेस की ओर शिफ्ट होकर दिल्ली (Political discourse on Palghar) पहुंच गया है. एक टीवी डिबेट में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के नाम पर सवाल पूछे जाने के बाद कांग्रेस नेता एक्टिव हो गये हैं - और जगह जगह टीवी एंकर के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की होड़ मच गयी है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए राहत की एक और बात है कि सोनिया गांधी ने भी बीजेपी पर सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति करने को लेकर हमला बोल दिया है - और मुकाबले में बीजेपी नेताओं ने भी मोर्चा संभाल लिया है.

और ये सब सबसे ज्यादा फायदेमंद फिलहाल उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के लिए ही है - क्योंकि एक के बाद एक वो लगातार महाराष्ट्र की घटनाओं को लेकर विरोधियों के निशाने पर आ गये थे.

ये उद्धव ठाकरे को सोनिया का सपोर्ट है

उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य के तौर पर मनोनीत किये जाने को लेकर अभी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का फैसला नहीं आया है. उससे पहले ही बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर महाराष्ट्र मंत्रिमंडल के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने की सिफारिश की गयी थी - लेकिन हाई कोर्ट ने उसे ये कहते हुए खारिज कर दिया कि राज्यपाल की ओर से सिफारिश की कानूनी वैधता पर विचार किये जाने की उम्मीद है.

अगले महीने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने हो जाएंगे - और तब तक उनका राज्य के किसी भी सदन से सदस्य न चुना जाना उनकी कुर्सी बरकरार रहने में लोचा बना हुआ है. हालांकि, उनके पास इस्तीफा देकर फिर से मुख्यमंत्री बन जाने का विकल्प है, लेकिन इसके लिए गठबंधन दलों का सपोर्ट कायम रहना जरूरी है.

पालघर मॉब लिंचिंग का मुद्दा (Palghar lynching debate) महाराष्ट्र सरकार के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने की जगह कांग्रेस की ओर शिफ्ट होकर दिल्ली (Political discourse on Palghar) पहुंच गया है. एक टीवी डिबेट में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के नाम पर सवाल पूछे जाने के बाद कांग्रेस नेता एक्टिव हो गये हैं - और जगह जगह टीवी एंकर के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की होड़ मच गयी है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए राहत की एक और बात है कि सोनिया गांधी ने भी बीजेपी पर सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति करने को लेकर हमला बोल दिया है - और मुकाबले में बीजेपी नेताओं ने भी मोर्चा संभाल लिया है.

और ये सब सबसे ज्यादा फायदेमंद फिलहाल उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के लिए ही है - क्योंकि एक के बाद एक वो लगातार महाराष्ट्र की घटनाओं को लेकर विरोधियों के निशाने पर आ गये थे.

ये उद्धव ठाकरे को सोनिया का सपोर्ट है

उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य के तौर पर मनोनीत किये जाने को लेकर अभी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का फैसला नहीं आया है. उससे पहले ही बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर महाराष्ट्र मंत्रिमंडल के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने की सिफारिश की गयी थी - लेकिन हाई कोर्ट ने उसे ये कहते हुए खारिज कर दिया कि राज्यपाल की ओर से सिफारिश की कानूनी वैधता पर विचार किये जाने की उम्मीद है.

अगले महीने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने हो जाएंगे - और तब तक उनका राज्य के किसी भी सदन से सदस्य न चुना जाना उनकी कुर्सी बरकरार रहने में लोचा बना हुआ है. हालांकि, उनके पास इस्तीफा देकर फिर से मुख्यमंत्री बन जाने का विकल्प है, लेकिन इसके लिए गठबंधन दलों का सपोर्ट कायम रहना जरूरी है.

ज्यादा न सही सोनिया गांधी के बीजेपी पर ताजा हमले से उद्धव ठाकरे कुछ दिन राहत महसूस कर सकते हैं

उद्धव ठाकरे के सामने हाल फिलहाल लगातार कोई न कोई बड़ी चुनौती आकर खड़ी हो जा रही है - और ऐसी हर चुनौती के खड़े होते ही उद्धव ठाकरे के निकटतम प्रतिद्वंद्वी देवेंद्र फडणवीस आक्रामक हो जाते हैं - वधावन भाइयों के लॉकडाउन तोड़ने और बांद्रा में मजदूरों के इकट्ठा होने से लेकर पालघर में दो साधुओं सहित तीन लोगों की मॉब लिंचिंग तक. एक एक करके उद्धव ठाकरे धीरे धीरे मुश्किलों से निकलते जा रहे हैं, लेकिन लड़ाई तो वो तभी लड़ सकते हैं जब उनके गठबंधन साथी मजबूती से उनके पीछे डटे रहें.

कोरोना संकट में लॉकडाउन के बीच सोनिया गांधी ने बीजेपी पर सीधा हमला बोलने के बाद उद्धव ठाकरे काफी राहत महसूस कर रहे होंगे - क्योंकि सोनिया गांधी के खुल कर मोर्चे पर आने का साफ मतलब है कि गठबंधन के साथी मौके की नजाकत को देखते हुए कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहते.

पालघर पर दिल्ली में राजनीति शुरू

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने CWC की बैठक में बीजेपी पर सीधा इल्जाम लगाया कि वो कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के समय भी सांप्रदायिक सौहार्द्र खराब करने और नफरत का वायरस फैलाना जारी रखे हुए है. वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की मीटिंग में सोनिया गांधी ने कोरोना के खिलाफ जंग में मोदी सरकार की रणनीति की भी आलोचना की - और आरोप लगाया कि PPE और कोरोना वायरस को लेकर टेस्टिंग के मामले में भी सरकार ने कांग्रेस के सुझावों पर ध्यान नहीं दिया. हाल ही में एक प्रेस कांफ्रेंस कर राहुल गांधी ने लॉकडाउन को कम असरदार बताते हुए टेस्टिंग कराने की सरकार से मांग की थी.

CWC में कोरोना पर मोदी सरकार की रणनीति की आलोचना तो लाजिमी थी, लेकिन सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति पर सोनिया गांधी का हमला बोलना यूं ही नहीं लगता. पालघर मॉब लिंचिंग और उसके बाद एक टीवी डिबेट में सोनिया गांधी का नाम लेकर टारगेट किया जाना इसकी वजह जरूर लगती है.

महाराष्ट्र के पालघर में साधुओं की हत्या को सोशल मीडिया पर हिंदुत्व पर हमले से जोड़ कर देखा जा रहा था - लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने बार बार इसे खारिज किया. फिर गृह मंत्री अनिल देशमुख ने 109 आरोपियों के नाम ट्विटर पर डालते हुए कहे कि एक भी मुस्लिम नाम नहीं है, तो उद्धव ठाकरे सरकार के विरोधी पक्ष को झटका सा लगा.

उद्धव ठाकरे के लिए राजनीतिक फायदे की बात हो गयी एक टीवी एंकर का सोनिया गांधी का नाम लेकर सवाल पूछना. फिर तो कांग्रेस नेताओं के रिएक्शन आने के साथ ही यूथ कांग्रेस के नेताओं ने महाराष्ट्र के सभी थानों में एंकर के खिलाफ पुलिस में शिकायत ही दर्ज करा दी. यूथ कांग्रेस नेताओं का कहना था कि वो एंकर को पूरे महाराष्ट्र दौड़ा कर सबक सिखाना चाहते हैं. उससे पहले टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी की गाड़ी पर हमला भी हुआ जिसमें से दो सिक्योरिटी वालों ने पकड़ कर पुलिस के हवाले भी कर दिया.

संभव है ये सब नहीं हुआ होता तो सोनिया गांधी फिलहाल सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति के नाम पर बीजेपी को घेरने से परहेज ही करतीं, बाकी तो ये पूरे साल चलता ही रहता है. कोरोना संकट के वक्त कांग्रेस विपक्ष को साथ लेकर लोगों में मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि उसके दबाव के चलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार कोरोना वायरस के खतरे के खिलाफ एक्टिव है. प्रधानमंत्री मोदी के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा और मियाद बढ़ाये जाने के ऐलान के पहले से ही गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की हरकत इस बात का सबूत है.

सोनिया गांधी का बयान आने के बाद बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी आये और जो आरोप कांग्रेस बीजेपी पर लगा रही थी, वही वापस कर करने की कोशिश की - 'कांग्रेस बांटने वाली और सांप्रदायिक राजनीति कर रही है.' नकवी का कहना रहा कि कांग्रेस रचनात्मक राजनीति की बजाये जानबूझकर ये मुद्दे उठा रही है.

एक और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी नकवी वाली ही लाइन ली, 'कांग्रेस जानबूझकर समाज में भेद पैदा कर रही है. ये भेद समाज को कमजोर करता है.'

इस तरह पालघर का मुद्दा अब मुंबई से निकल कर दिल्ली पहुंच चुका है और तू-तू मैं-मैं भी शुरू हो ही चुकी है - साथ ही साथ, कांग्रेस नेताओं में टीवी एंकर के खिलाफ एफआईआर करने की भी होड़ मची हुई है - और उद्धव ठाकरे चाहें तो कुछ देर के लिए निश्चिंत भाव से कुछ देर घर बैठ कर टीवी डिबेट का आनंद उठा सकते हैं.

इन्हें भी पढ़ें :

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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