• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

Palghar Lynching: उद्धव ठाकरे की कश्ती वहां डूब रही जहां पानी बहुत कम है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 20 अप्रिल, 2020 10:01 PM
  • 20 अप्रिल, 2020 10:01 PM
offline
पालघर में साधुओं की हत्या (Palghar Lynching) के मामले में हर संभव एक्शन लेने के बाद भी उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अगर निशाने पर हैं तो ये किस्मत नहीं राजनीतिक का ही फेर है - वो भी तब जब कोरोना वायरस (Coronavirus) ने पहले से मुश्किल में डाल रखा हो.

उद्धव ठाकरे के लिए हिंदुत्व की राजनीति उसी दिन चुनौती बन गयी थी जब बीजेपी का साथ छोड़ वो कांग्रेस और NCP के साथ हो गये - और तभी से बार बार शिवसेना नेता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है. कोरोना वायरस महामारी के बीच पालघर (Palghar Lynching) में साधुओं की मॉब लिंचिंग ने उद्धव ठाकरे की सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. अब इससे बड़ी मुश्किल क्या होगी कि जिस पार्टी ने शुरू से ही हिंदुत्व की राजनीति की हो उस पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगे - और बीजेपी के साथ साथ शिवसेना को भी अपना हमदर्द मानने वाला साधु समाज महाराष्ट्र पर धावा बोलने की बात करने लगे.

बेशक पालघर का वीडियो (Palghar Video) अंदर तक हिला कर रख देने वाला है, लेकिन ये भी सच है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में उद्धव ठाकरे मिसफिट हो रहे हैं - और यही वजह है कि उनकी कश्ती वहां डूबती हुई नजर आ रही है जहां पानी बहुत कम है.

क्या उद्धव ठाकरे ने अपना काम ठीक से नहीं किया?

शुरू से अब तक हिंदुत्व, बल्कि कट्टर हिंदुत्व, की राजनीति करती आयी शिवसेना के सामने वही मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. जिस शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे कह चुके हों कि अगर शिवसैनिकों ने बाबरी मस्जिद गिरायी है तो हमें इस पर गर्व है - उसी शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज हिंदू विरोधी कहलाने लगे हैं. निश्चित तौर पर ये उद्धव ठाकरे की किस्मत नहीं राजनीति का फेर है.

उद्धव ठाकरे को ये मालूम था कि कैसी चुनौतियां सामने आने वाली हैं - और यही वजह रही कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बावजूद वो सीएए पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ रहे. यहां तक कि अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर जश्न मनाने के लिए भी वो अयोध्या पहुंच गये.

पालघर में एक्शन लेने के बाद भी निशाने पर क्यों आये...

उद्धव ठाकरे के लिए हिंदुत्व की राजनीति उसी दिन चुनौती बन गयी थी जब बीजेपी का साथ छोड़ वो कांग्रेस और NCP के साथ हो गये - और तभी से बार बार शिवसेना नेता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है. कोरोना वायरस महामारी के बीच पालघर (Palghar Lynching) में साधुओं की मॉब लिंचिंग ने उद्धव ठाकरे की सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. अब इससे बड़ी मुश्किल क्या होगी कि जिस पार्टी ने शुरू से ही हिंदुत्व की राजनीति की हो उस पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगे - और बीजेपी के साथ साथ शिवसेना को भी अपना हमदर्द मानने वाला साधु समाज महाराष्ट्र पर धावा बोलने की बात करने लगे.

बेशक पालघर का वीडियो (Palghar Video) अंदर तक हिला कर रख देने वाला है, लेकिन ये भी सच है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में उद्धव ठाकरे मिसफिट हो रहे हैं - और यही वजह है कि उनकी कश्ती वहां डूबती हुई नजर आ रही है जहां पानी बहुत कम है.

क्या उद्धव ठाकरे ने अपना काम ठीक से नहीं किया?

शुरू से अब तक हिंदुत्व, बल्कि कट्टर हिंदुत्व, की राजनीति करती आयी शिवसेना के सामने वही मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. जिस शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे कह चुके हों कि अगर शिवसैनिकों ने बाबरी मस्जिद गिरायी है तो हमें इस पर गर्व है - उसी शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज हिंदू विरोधी कहलाने लगे हैं. निश्चित तौर पर ये उद्धव ठाकरे की किस्मत नहीं राजनीति का फेर है.

उद्धव ठाकरे को ये मालूम था कि कैसी चुनौतियां सामने आने वाली हैं - और यही वजह रही कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बावजूद वो सीएए पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ रहे. यहां तक कि अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर जश्न मनाने के लिए भी वो अयोध्या पहुंच गये.

पालघर में एक्शन लेने के बाद भी निशाने पर क्यों आये उद्धव ठाकरे?

सवाल ये है कि उद्धव ठाकरे का असली कसूर क्या है - सिर्फ यही ना कि वो उस पार्टी के साथ नहीं हैं जिसके साथ देश का बहुमत और जनमत है. अब इससे बड़ी मुश्किल उद्धव ठाकरे के लिए क्या होगी कि बतौर मुख्यमंत्री जो काम उन्हें सुनिश्चित करना चाहिये वो सब करने के बाद सबके निशाने पर हैं.

किसी भी आपराधिक घटना के बाद बवाल इसी बात के लिए मचता है कि अपराधी पकड़ के बाहर क्यों हैं? कब तक पकड़े जाएंगे?

किसी भी आपराधिक घटना के लिए सरकार निशाने पर इसलिए आती है क्योंकि जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई नहीं होती - सवाल उठता है कब तक एक्शन होगा?

किसी भी आपराधिक घटना के बाद उच्च स्तरीय जांच की मांग होती है - और ये पालघर मॉब लिंचिंग के मामले में भी हुई है. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है - 'पालघर में मॉब लिंचिंग घटना का वीडियो हैरान करने वाला और अमानवीय है. ऐसी विपत्ति के समय इस तरह की घटना और भी ज्यादा परेशान करने वाली है. मैं राज्य सरकार से गुजारिश करता हूं कि वो इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाये.'

और उद्धव ठाकरे की सरकार ने तो ये सब काम सुनिश्चित कर ही दिया है - आरोपी पकड़े जा चुके हैं, दो पुलिस अफसर सस्पेंड किये जा चुके हैं - और जांच का भी सीआईडी को सौंपा जा चूका है.

आखिर ऐसा कौन सा काम बचा है जो अब तक उद्धव ठाकरे ने सुनिश्चित न किया हो. अब ज्यादा से ज्यादा सीबीआई को जांच की बात हो सकती है. जिस तरह से उद्धव ठाकरे ने सब काम किया है, लगता नहीं कि ऐसी मांग होने पर सीबीआई जांच कराने से उनको कोई दिक्कत होगी.

सोशल मीडिया पर कई ट्रेंड चल रहे हैं जिनमें ये धारणा बनाने की कोशिश चल रही है कि महाराष्ट्र में साधु खतरे में हैं. क्या वाकई ऐसा ही है?

दो साधुओं और उनके ड्राइवर की हत्या से पहले उसी इलाके में एक डॉक्टर को भी चोर समझ कर लोगों ने घेर लिया था और पुलिस टीम पर भी पथराव किया था. निश्चित तौर पर स्थानीय पुलिस को दोनों ही घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिये था. अगर स्थिति कंट्रोल के बाहर थी तो अतिरिक्त फोर्स के लिए आला अफसरों और गृह मंत्रालय को सूचित करना चाहिये था.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उद्धव ठाकरे से बात की है और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घटना पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है - ये एक संवैधानिक प्रक्रिया है और वैसे ही काम हो रहा है.

योगी आदित्यनाथ ने उद्धव ठाकरे से घटना के लिए जिम्मेदार तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आग्रह किया है.

साधुओं की हत्या के आरोपी गिरफ्तार किये जा चुके हैं और आगे की कार्यवाही अदालत में होगी. महाराष्ट्र पुलिस का काम होगा जांच पड़ताल के बाद अच्छे से चार्जशीट तैयार करना और कोर्ट में मजबूती से केस की पैरवी करना.

क्या उद्धव ठाकरे की पुलिस के पास अब किसी और कठोर कार्रवाई का स्कोप बचा भी है? ज्यादा से ज्यादा पूछताछ के नाम पर थर्ड डिग्री के इस्तेमाल के या फिर सीन रिक्रिएट करने की भी कोशिश बेंगलुरू पुलिस की तरह होनी चाहिये - वैसे भी योगी आदित्यनाथ की तरफ कठोर कार्रवाई में एनकाउंटर की ही ध्वनि सुनायी देती है.

उद्धव ठाकरे से कहां गलती हुई?

पालघर की घटना पर प्रेस कांफ्रेंस बुला कर उद्धव ठाकरे सफाई दे चुके हैं - 'इस घटना के बाद लोग कह रहे है कि साधु की हत्या पर सरकार चुप क्यों है? कोई चुप नहीं है. लोग सवाल उठा रहे हैं कि सरकार क्या कर रही है? जिस तारीख को ये घटना हुई, उसके तत्काल बाद सभी आरोपियों को तलाश की गई. मुख्य पांच आरोपी अभी अंदर हैं. सरकार ने सौ से अधिक लोगों को पकड़कर जेल भेजा है. 9 आरोपी नाबालिग हैं, जिन्हें सुधार गृह भेजा गया है.'

महाराष्ट्र में हाल फिलहाल ये तीसरी घटना है जिसे लेकर उद्धव ठाकरे सबके निशाने पर आ गये हैं - लेकिन एक सच ये भी है कि ये तीनों ही घटनाएं एक ही विभाग के कामकाज पर उंगली उठाती हैं जिसके मुखिया उनके कैबिनेट साथी अनिल देशमुख हैं. एनसीपी कोटे से अनिल देशमुख महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्री हैं.

पाल घर से पहले महाराष्ट्र में दो बड़े मुद्दे रहे - एक बांद्रा में दिहाड़ी मजदूरों का भारी संख्या में जमावड़ा और दूसरा महाबलेश्वरम में वधावन भाइयों का लॉकडाउन का उल्लंघन करना. बांद्रा में भीड़ इसीलिए जुटी क्योंकि पुलिस ने एहतियाती उपाय समय से नहीं किये - और महाबलेश्वर जाने के लिए गृह मंत्रालय के ही एक बड़े अफसर ने चिट्ठी जारी किया था.

देखा जाये तो बांद्रा की घटना भी वैसी ही रही जैसी दिल्ली में आनंद विहार या दूसरे राज्यों की सीमाओं पर मजदूरों की भीड़. ठीक वैसे ही महाबलेश्वरम की घटना को भी कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे की शादी में उड़ायी गयी नियमों की धज्जियों से जोड़ क्यों नहीं देखा जा सकता?

क्या अनिल देशमुख की नाकामियां उद्धव ठाकरे के गले की हड्डी साबित होने लगी हैं - बीजेपी नेता सुनील देवधर ने भी पालघर की घटना को लेकर एनसीपी की भूमिका पर ही सवाल उठाया है.

संबित पात्रा ने सुनील देवधर के ट्वीट पर कहा है, 'पालघर मॉब लिंचिंग केस में ये बहुत बड़ा खुलासा है और ये किसी गहरी साजिश की ओर इशारा कर रहा है. जहां पर ये केस हुआ वहां राजनीतिक दलों के नेता क्या कर रहे थे - और जिन पार्टियों के नेता वहां मौजूद थे वे सभी भगवा से नफरत करने वाले हैं.'

इन्हें भी पढ़ें :

Palghar incident पर अफसोस कीजिए लेकिन Lynching का सच कुछ और है

ddhav Thackeray से हिसाब बराबर करने का अमित शाह को मौका मिलने वाला है

Bandra में एक अफवाह और ओछी राजनीति ने सब कबाड़ा कर दिया!



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲