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Uddhav Thackeray के लिए राहुल गांधी के बयान से ज्यादा खतरनाक है शरद पवार की गतिविधि

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 27 मई, 2020 06:43 PM
  • 27 मई, 2020 06:43 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सरकार की हालत खतरों के खिलाड़ी जैसी ही है. एक खतरे से बचे तो दूसरा धावा बोल देता है. ताजा मुश्किल शरद पवार (Sharad Pawar) की मुलाकातों और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की बातों से पैदा हुई है - और एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि खतरा कितना करीब है?

महाराष्ट्र में छह महीने पहले गैर राजनीतिक बतायी जाने वाली मुलाकातों में मुद्दा किसान होते थे. अब तो कोरोना वायरस ने उसमें भी जगह बना ली है. एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) हों या जो कोई भी तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिला, बताया यही कि किसानों के मुद्दों को लेकर मिले थे. ऐसी मुलाकात करने वालों में शिवसेना के आदित्य ठाकरे भी थे. शरद पवार तो किसानों के नाम पर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात किये थे.

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ने प्रधानमंत्री की दखल से कुर्सी पर मंडराता संवैधानिक खतरा तो टाल दिया, लेकिन धीरे धीरे नये नये खतरे नजर आने लगे हैं. ऐसे में शरद पवार की मुलाकातें और राहुल गांधी की बातें नये तरीके के तूफान ला दे रही हैं - और फिर सवाल उठ रहा है कि क्या कोई खतरा उद्धव ठाकरे सरकार के करीब आ चुका है? सवाल ये भी है कि क्या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का बयान भी उद्धव ठाकरे पर भारी पड़ने वाला है - और ये भी कि क्या शरद पवार किसी नयी रणनीति पर काम तो नहीं कर रहे हैं?

पवार कुछ तो छुपा ही रहे हैं

सामना में ऐसा कुछ लिखा ही कब जाता है जिस पर हंगामा न हो! अब तो शिवसेना के मुखपत्र सामना की तरफ से ही पूछा जा रहा है कि ये हंगामा क्यों हो रहा है?

सामना के ताजातरीन लेख में कहा गया है कि राजभवन में पिछले कुछ दिनों से लोगो का आना जाना लगा है, ऐसे में राज्यपाल का क्या दोष? साथ ही सवाल भी पूछा है शरद पवार के मातोश्री जाने पर इतना हंगामा क्यों? वो पहली बार तो वहां गये नहीं. अगर कोरोना का संकट ना होता तो 6 महीने सरकार चलाने का जश्न मनाया जा रहा होता. ये नहीं लिखा है कि जश्न अयोध्या में ही मनाया जाता या कहीं और? सरकार के 100 दिन होने का जश्न तो अयोध्या में ही मनाया गया था. अब तो रोज ही महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों में तनाव भरी बातचीत और बयानबाजी होने लगी है.

महाराष्ट्र में एक साथ दो वाकये हुए हैं - एक, एनसीपी नेता शरद पवार मातोश्री पहुंच गये उद्धव ठाकरे से मिलने. करीब डेढ़ घंटे मुलाकात...

महाराष्ट्र में छह महीने पहले गैर राजनीतिक बतायी जाने वाली मुलाकातों में मुद्दा किसान होते थे. अब तो कोरोना वायरस ने उसमें भी जगह बना ली है. एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) हों या जो कोई भी तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिला, बताया यही कि किसानों के मुद्दों को लेकर मिले थे. ऐसी मुलाकात करने वालों में शिवसेना के आदित्य ठाकरे भी थे. शरद पवार तो किसानों के नाम पर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात किये थे.

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ने प्रधानमंत्री की दखल से कुर्सी पर मंडराता संवैधानिक खतरा तो टाल दिया, लेकिन धीरे धीरे नये नये खतरे नजर आने लगे हैं. ऐसे में शरद पवार की मुलाकातें और राहुल गांधी की बातें नये तरीके के तूफान ला दे रही हैं - और फिर सवाल उठ रहा है कि क्या कोई खतरा उद्धव ठाकरे सरकार के करीब आ चुका है? सवाल ये भी है कि क्या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का बयान भी उद्धव ठाकरे पर भारी पड़ने वाला है - और ये भी कि क्या शरद पवार किसी नयी रणनीति पर काम तो नहीं कर रहे हैं?

पवार कुछ तो छुपा ही रहे हैं

सामना में ऐसा कुछ लिखा ही कब जाता है जिस पर हंगामा न हो! अब तो शिवसेना के मुखपत्र सामना की तरफ से ही पूछा जा रहा है कि ये हंगामा क्यों हो रहा है?

सामना के ताजातरीन लेख में कहा गया है कि राजभवन में पिछले कुछ दिनों से लोगो का आना जाना लगा है, ऐसे में राज्यपाल का क्या दोष? साथ ही सवाल भी पूछा है शरद पवार के मातोश्री जाने पर इतना हंगामा क्यों? वो पहली बार तो वहां गये नहीं. अगर कोरोना का संकट ना होता तो 6 महीने सरकार चलाने का जश्न मनाया जा रहा होता. ये नहीं लिखा है कि जश्न अयोध्या में ही मनाया जाता या कहीं और? सरकार के 100 दिन होने का जश्न तो अयोध्या में ही मनाया गया था. अब तो रोज ही महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों में तनाव भरी बातचीत और बयानबाजी होने लगी है.

महाराष्ट्र में एक साथ दो वाकये हुए हैं - एक, एनसीपी नेता शरद पवार मातोश्री पहुंच गये उद्धव ठाकरे से मिलने. करीब डेढ़ घंटे मुलाकात चली भी. ये तो कोई दिक्कत वाली बात हुई नहीं. दिक्कत वाली बात ये रही कि मातोश्री पहुंचने से पहले शरद पवार ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की थी. दो, राहुल गांधी ने पत्रकारों के सवाल जवाब के बीच ये शिकायत दर्ज करा दी कि महाराष्ट्र सरकार में हमारी तो कोई भूमिका है नहीं. थोड़ा और सोचें तो, हमारी तो कोई सुनता नहीं.

बाद में जब सवाल उठा तो शरद पवार के पास जवाब पहले से तैयार थे. संकट में सब साथ हैं. हमारी सरकार 5 साल पूरे करेगी. हम सभी मुद्दों पर चर्चा करते हैं. हमारे बीच कोई अंतर नहीं है. राज्यपाल से मुलाकात पर बोले हम उनको तब से जानते हैं जब वो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. ये भी कोई बात नहीं हुई. जितना लंबा शरद पवार का राजनीतिक सफर है, कौन ऐसा होगा जिसके बारे शरद पवार की ऐसी लाइन फिट नहीं होगी. चाहे वो मुलायम सिंह यादव हों या लालू प्रसाद.

उद्धव ठाकरे आखिर शरद पवार और राहुल गांधी के निशाने पर क्यों आ गये हैं?

शरद पवार ने एक बात और कही - 'मेरी मुलाकात का मुख्य उद्देश्य कोरोना के खिलाफ लड़ाई को लेकर कुछ सुझाव देना था' - और ये भी, 'उद्धव सरकार के उपर कोई संकट नहीं है.' कोरोना का नाम लेकर तो शरद पवार ने जैसे छह महीने पुरानी मुलाकातों की तरफ ही ध्यान खींच लिया. चुनाव नतीजे आने से लेकर अचानक देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेने तक - हर मुलाकात के बीच में नाम तो किसानों का ही लिया जाता रहा. असल बात तो ये रही कि सरकार बनाने को लेकर जितनी भी मुलाकातें हुईं नाम किसानों का ही दे दिया गया. शरद पवार ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद भी किसानों का ही नाम लिया था. बाद में मालूम हुआ मुलाकात में तो देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने और सुप्रिया सुले के लिए कृषि मंत्रालय की डिमांड पर चर्चा हो रही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये सारी बातें नामंजूर कर दीं और फिर 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे महाविकास आघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री बन गये.

हैरानी भरी बातें ये सब नहीं हैं, वो तो कुछ और ही है. एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कहा, 'हमारी हर दूसरे दिन बातचीत होती है. इसमें कुछ नया नहीं है.' बिलकुल सही बात है, बताने की जरूरत भी नहीं कि इसमें नया है. बल्कि रोज बात होती है ऐसा भी कहते तो भी कोई नयी बात नहीं समझता, लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो सच के छुपाये जाने की कोशिशों की तरफ साफ इशारे करती हैं.

शरद पवार ने उसी इंटरव्यू में कहा, 'बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद से मैं उनके घर नहीं गया था, इसलिए मैं वहां गया.'

गजब. बाला साहेब ठाकरे के निधन के इतने दिन बाद. कुछ ज्यादा देर नहीं हो गयी. ये सुन कर भी ऐसा ही लग रहा है जैसे सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद प्रधानमंत्री के तत्कालीन प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र ने सफाई दी थी. 11 जनवरी, 2018 को जजों की प्रेस कांफ्रेंस हुई थी और 13 जनवरी, 2018 को नृपेंद्र मिश्र ने सफाई दी कि वो तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को नये साल की बधाई देने गये थे. नृपेंद्र मिश्र फिलहाल राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष हैं.

शरद पवार की सारी बातों पर आंख मूंद कर यकीन किया जा सकता है, लेकिन बाला साहेब के निधन के इतने दिन बाद मातोश्री जाना - और वो भी अभी जब कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पिता अंतिम संस्कार में नहीं जाते हैं - और शरद पवार, उद्धव ठाकरे से मिलने पहुंच जाते हैं जबकि हर दूसरे दिन बात होती है. शरद पवार की यही बात ये इशारा कर रही है कि असलियत कुछ और है जिसे छुपाने की कोशिश हो रही है.

उद्धव ठाकरे की ताजा मुश्किलों की आग में घी डालने वाले राहुल गांधी हैं. राहुल गांधी ने कोरोना संकट में महाराष्ट्र संकट के कामकाज पर पूछे गये सवाल पर बोला था कि कांग्रेस वहां हिस्सेदार जरूर है, लेकिन फैसलों में पार्टी की कोई भूमिका नहीं होती. फिर तो यही बात झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पर भी लागू होगी, ऐसा पहले से ही मान कर चलना चाहिये.

राहुल गांधी नाराज तो नहीं हैं

राहुल गांधी का अपने बयान सफाई देने का अंदाज भी सवालों के घेरे में आ जा रहा है. राहुल गांधी ने फोन कर आदित्य ठाकरे से बात की. आदित्य ठाकरे भी उद्धव सरकार में मंत्री हैं. राहुल गांधी एक लेवल मेंटेन करते हैं. वो योगी आदित्यनाथ को लेकर विरले ही कोई बात कहते हैं, ये काम कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा करती हैं. राहुल गांधी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हैं और न डरने की बातें भी उसी स्तर पर करते हैं. राहुल गांधी बस एक ही मामले में अपवाद पेश करते हैं और वो तेजस्वी यादव के साथ बात और मुलाकातों में. ऐसा करने की वजह भी साफ है - राहुल गांधी और लालू प्रसाद एक दूसरों को पसंद नहीं करते.

आदित्य ठाकरे से फोन पर बात करना और सफाई देना भी इसी वजह से थोड़ा अजीब लगता है. आदित्य ठाकरे से बातचीत में राहुल गांधी ने कहा कि वो महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार के हर फैसले में शामिल हैं.

बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने राहुल गांधी के बयान पर आश्चर्य जताते हुए कहा है, राहुल गांधी कोरोना संकट में महाराष्ट्र सरकार की नाकामी का ठीकरा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर फोड़ना चाहते हैं... कांग्रेस महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार में साझेदार है, इसलिए राहुल गांधी राज्य सरकार की नाकामी से पल्ला नहीं झाड़ सकते.

वैसे उद्धव सरकार पर सवाल खड़े करने वालों में राहुल गांधी अकेले नहीं हैं. ऐसे सवाल और आरोप पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और कांग्रेस नेता संजय निरूपम भी पूछ और लगा चुके हैं.

दरअसल, पृथ्वीराज चव्हाण का एक ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो कह रहे हैं कि ये कांग्रेस की सरकार नहीं शिवसेना की सरकार है. वही बात राहुल गांधी भी कह रहे हैं - महाराष्ट्र की सरकार में कांग्रेस शामिल जरूर है लेकिन निर्णय प्रक्रिया में नहीं... हम केवल सरकार की मदद कर रहे हैं... प्रमुख भूमिका में नहीं हैं.

क्या राहुल गांधी ने ये बात किसी तरह की नाराजगी की वजह से कही होगी? एक बात शरद पवार ने ही बतायी थी कि महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार के गठन में राहुल गांधी का कोई रोल नहीं था - क्योंकि सारी डील सोनिया गांधी के लेवल पर ही हो रही थी. अब सफाई देने के लिए फोन भी किया तो आदित्य ठाकरे को उद्धव ठाकरे को नहीं!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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