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Mamata Banerjee के साथ भी प्रधानमंत्री मोदी क्या उद्धव ठाकरे की तरह पेश आएंगे?

    • आईचौक
    • Updated: 15 मई, 2020 10:42 PM
  • 15 मई, 2020 10:42 PM
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) में देखा जाये तो बीजेपी के नजरिये से जरा भी फर्क नहीं है. उद्धव ठाकरे ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को एक फोन कर वो पा लिया जो चाहिये था - क्या ममता बनर्जी के साथ भी संभव है?

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को आखिरकार हरी झंडी दिखा दी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसके लिए ममता बनर्जी को पत्र लिखा था और रेल मंत्री पीयूष गोयल बार बार अपडेट दे रहे थे कि ममता ने जितनी गाड़ियों की अनुमति दी है वो संख्या दहाई भी नहीं पहुंच रही है.

ममता बनर्जी भी जब तक खामोश रहीं, तब तक रहीं. जब एक्टिव हुईं तो दहाई क्या संख्या सीधे सैकड़े में पहुंचा दिया - पूरे 105. ममता बनर्जी ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि पश्चिम बंगाल के जो लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं, उनको वापस लाने के लिए सरकार तैयारी कर रही है. लोगों को लाने के लिए 105 अतिरिक्त स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की गई है.

हाल फिलहाल पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच ये भी तकरार की एक वजह बना हुआ था. मुख्यमंत्रियों की बैठक में तो ममता बनर्जी ने ट्रेन चलाने को लेकर ही विरोध जताया था, लेकिन लगता है अब बर्फ थोड़ी थोड़ी पिघल रही है - क्या ये बर्फ इतना भी पिघल सकती है कि ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) वो सब भी दे डालें जो उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) हासिल कर चुके हैं.

उद्धव ठाकरे का तो काम बन गया

मोदी है तो मुमकिन है - अब तो उद्धव ठाकरे ये लाइन गांठ बांध ही चुके होंगे, लेकिन सवाल ये है कि क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी कभी ऐसा सोचने, समझने और यकीन कर लेने का मौका मिलेगा?

उद्धव ठाकरे की वजह से महाराष्ट्र के 8 अन्य नेताओं को भी विधान परिषद पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं आयी. असल में, उद्धव ठाकरे सहित 9 उम्मीदवार विधान परिषद के लिए निर्विरोध चुन लिये गये हैं. विधान परिषद का चुनाव 21 मई को होना था और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए 28 मई से पहले महाराष्ट्र के दोनों में से किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी था.

उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में राजनीतिक और संवैधानिक संकट की आसन्न स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने...

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को आखिरकार हरी झंडी दिखा दी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसके लिए ममता बनर्जी को पत्र लिखा था और रेल मंत्री पीयूष गोयल बार बार अपडेट दे रहे थे कि ममता ने जितनी गाड़ियों की अनुमति दी है वो संख्या दहाई भी नहीं पहुंच रही है.

ममता बनर्जी भी जब तक खामोश रहीं, तब तक रहीं. जब एक्टिव हुईं तो दहाई क्या संख्या सीधे सैकड़े में पहुंचा दिया - पूरे 105. ममता बनर्जी ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि पश्चिम बंगाल के जो लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं, उनको वापस लाने के लिए सरकार तैयारी कर रही है. लोगों को लाने के लिए 105 अतिरिक्त स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की गई है.

हाल फिलहाल पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच ये भी तकरार की एक वजह बना हुआ था. मुख्यमंत्रियों की बैठक में तो ममता बनर्जी ने ट्रेन चलाने को लेकर ही विरोध जताया था, लेकिन लगता है अब बर्फ थोड़ी थोड़ी पिघल रही है - क्या ये बर्फ इतना भी पिघल सकती है कि ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) वो सब भी दे डालें जो उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) हासिल कर चुके हैं.

उद्धव ठाकरे का तो काम बन गया

मोदी है तो मुमकिन है - अब तो उद्धव ठाकरे ये लाइन गांठ बांध ही चुके होंगे, लेकिन सवाल ये है कि क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी कभी ऐसा सोचने, समझने और यकीन कर लेने का मौका मिलेगा?

उद्धव ठाकरे की वजह से महाराष्ट्र के 8 अन्य नेताओं को भी विधान परिषद पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं आयी. असल में, उद्धव ठाकरे सहित 9 उम्मीदवार विधान परिषद के लिए निर्विरोध चुन लिये गये हैं. विधान परिषद का चुनाव 21 मई को होना था और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए 28 मई से पहले महाराष्ट्र के दोनों में से किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी था.

उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में राजनीतिक और संवैधानिक संकट की आसन्न स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की गुजारिश की थी और उसके बाद ही ये सब मुमकिन हो पाया.

उद्धव ठाकरे के बाद अब ममता बनर्जी की बारी है

ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री मोदी के सामने अपनी शिकायत दर्ज करायी है कि केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल के साथ राजनीति कर रही है. ममता बनर्जी के केस में केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय ही है जो उनकी सरकार को निशाने पर लिये हुए है. ममता बनर्जी ने ये शिकायत प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्रियों की उसी बैठक में की जिसमें उद्धव ठाकरे भी मौजूद थे और जिनकी तरफ तृणमूल कांग्रेस नेता का संकेत रहा - अमित शाह भी.

अब सवाल ये है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल के मामले में भी महाराष्ट्र की तरह दखल देंगे - उद्धव ठाकरे से तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि 'देखते हैं', लेकिन ममता बनर्जी को ऐसा कोई आश्वासन नहीं मिला है.

उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी में फर्क

उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी के अपने अपने मामलों की पैरवी में एक बुनियादी फर्क है. उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन पर अपनी बात कही थी. मतलब जो कुछ भी कहना था अकेले में कहा. सुनने और सुनाने वाले वे दोनों ही रहे. तीसरा कोई नहीं.

ममता बनर्जी ने ऐसा नहीं किया. इस मामले में भी वो अपने पुराने अक्खड़ अंदाज में ही दिखायी दीं. जो भी कहा भरी सभा में कह दिया. सबके सामने. सभा में वे भी थे जिनको इस मामले से कोई मतलब नहीं था - और वो भी जो इस मामले में ममता बनर्जी के निशाने पर रहा. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. ममता बनर्जी यहीं पर चूक गयी लगती हैं.

लेकिन अगर प्रधानमंत्री मोदी को इंसाफ करना है तो क्या उनके लिए ये महत्वपूर्ण होना चाहिये कि शिकायत छुप कर किया या खुलेआम. इंसाफ के लिए तो सही और गलत की पैमाइश करनी होती है और अगर किसी के साथ नाइंसाफी हो रही है तो उसे हर हाल में न्याय दिलाना चाहिये.

राजनीतिक हिसाब से भी देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जैसे उद्धव ठाकरे, बिलकुल वैसी ही ममता बनर्जी. ये दोनों ही ऐसे नेता हैं जो बीजेपी की आंख की किरकिरी बने हुए हैं. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को दरकिनार कर उसके दुश्मनों से हाथ मिला लिया और अब तो उसी कतार में बैठे हुए भी हैं. ममता बनर्जी उस पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी हुई हैं जहां भगवा फहराये जाने का सपना अमित शाह कई साल से देख रहे हैं.

अब तो बीजेपी ने बंगाल में एक तरीके से आधा सफर तय भी कर लिया है लोक सभा चुनाव में संसदीय सीटों पर हिस्सेदारी बढ़ा कर और ममता बनर्जी की पार्टी को बीच में ही रोक कर. बीजेपी की अपनी सरकार की इच्छा तो जितनी पश्चिम बंगाल में होगी उतनी ही महाराष्ट्र में भी होनी चाहिये. फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्धव ठाकरे की आगे बढ़ कर मदद की. अगर प्रधानमंत्री मोदी अपनी नजर घुमा लेते तो क्या कुछ नहीं संभव था.

ममता बनर्जी के सवाल

ममता बनर्जी केंद्र के साथ तो दो-दो हाथ करती ही रही हैं, राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ भी जबर्दस्त तरीके से पत्र-व्यवहार हुआ है. दोनों एक दूसरे पर अब तक कितनी बार हमला बोले होंगे कोई गिनती भी नहीं है - फिर भी ममता बनर्जी के कुछ सवाल ऐसे जरूर हैं जिनके जवाब मिलने बाकी हैं.

1. क्यों सिर्फ पश्चिम बंगाल को ही लॉकडाउन के अनुपालन नहीं करने का आरोप लगाया गया - देश के किसी और राज्य को क्यों नहीं?

2. जिन राज्यों में कोरोना वायरस का संक्रमण ज्यादा रहा वहां दो-दो जगह IMCT की टीमें भेजी गयीं, लेकिन पश्चिम बंगाल में 8 जगह क्यों?

3. लॉकडाउन का मजाक तो महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में भी उड़ाया गया था और दिल्ली की तरह बांद्रा में भी, लेकिन सवाल सिर्फ पश्चिम बंगाल सरकार से ही क्यों?

4. लॉकडाउन को लेकर सवालों के घेरे में तो कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार भी रही है - पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे की शादी के वक्त, लेकिन कोई जवाब-तलब क्यों नहीं हुआ?

5. जो पालघर में मॉब लिंचिंग हुई - क्या लॉकडाउन में उससे भी बड़ी कोई घटना हुई है? उत्तर प्रदेश में भी तो वैसी ही घटना रही, लेकिन निशाने पर पश्चिम बंगाल ही क्यों रहता है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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