• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

Uddhav Thackeray का मोदी से मदद मांगना, BJP के सामने सरेंडर नहीं तो क्या है

    • आईचौक
    • Updated: 29 अप्रिल, 2020 10:11 PM
  • 29 अप्रिल, 2020 10:11 PM
offline
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की राजनीतिक गाड़ी को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) का ग्रीन सिग्नल अब तक नहीं दिखा है. ऐसी स्थिति में उद्धव ठाकरे का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को फोन कर मदद मांगना क्या बीजेपी के सामने सरेंडर नहीं माना जा सकता?

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ने योगी आदित्यनाथ ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ((Narendra Modi)) को भी फोन किया है. वैसे बातचीत का मुद्दा दोनों में मामलों में बिलकुल अलग है. योगी आदित्यनाथ को फोन कर उद्धव ठाकरे ने एक तरीके से आईना दिखाने की कोशिश की है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर मदद मांगी है.

समझने की जरूरत है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को ये फोन कोरोना वायरस से लड़ाई या लॉकडाउन के सिलसिले में नहीं किया है, बल्कि उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की संवैधानिक स्थिति पर पर अपडेट दिया है, जिसमें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से नाराजगी को भी माना जा सकता है.

दरअसल, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किये जाने को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है, इसलिए उद्धव ठाकरे अपने राजनीतिक करियर के उस मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां इस्तीफा देने की नौबत आ पड़ी है.

ऐसी स्थिति में उद्धव ठाकरे का प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर मदद मांगना क्या बीजेपी के सामने सरेंडर नहीं माना जा सकता?

उद्धव ने मोदी को फोन क्यों किया

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 28 अप्रैल की रात में फोन किया था. खबर आयी है कि उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को महाराष्ट्र की संवैधानिक स्थिति को लेकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया है. ये काम वैसे तो राज्यपाल ही करते हैं. बीच बीच में कर भी रहे होंगे और ऐसा तो नहीं लगता कि उद्धव ठाकरे ने ऐसी कोई बात बतायी होगी जिससे प्रधानमंत्री मोदी बेखबर हों.

सवाल ये नहीं है कि कि उद्धव ठाकरे ने मोदी से क्या बात की होगी - सवाल, दरअसल, ये है कि उद्धव ठाकरे ने मोदी को फोन किया ही क्यों?

बताते हैं कि महाराष्ट्र कैबिनेट ने उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को दोबारा प्रस्ताव पारित कर भेजा है. पहले भेजे गये प्रस्ताव के बाद शिवसेना...

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ने योगी आदित्यनाथ ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ((Narendra Modi)) को भी फोन किया है. वैसे बातचीत का मुद्दा दोनों में मामलों में बिलकुल अलग है. योगी आदित्यनाथ को फोन कर उद्धव ठाकरे ने एक तरीके से आईना दिखाने की कोशिश की है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर मदद मांगी है.

समझने की जरूरत है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को ये फोन कोरोना वायरस से लड़ाई या लॉकडाउन के सिलसिले में नहीं किया है, बल्कि उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की संवैधानिक स्थिति पर पर अपडेट दिया है, जिसमें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से नाराजगी को भी माना जा सकता है.

दरअसल, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किये जाने को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है, इसलिए उद्धव ठाकरे अपने राजनीतिक करियर के उस मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां इस्तीफा देने की नौबत आ पड़ी है.

ऐसी स्थिति में उद्धव ठाकरे का प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर मदद मांगना क्या बीजेपी के सामने सरेंडर नहीं माना जा सकता?

उद्धव ने मोदी को फोन क्यों किया

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 28 अप्रैल की रात में फोन किया था. खबर आयी है कि उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को महाराष्ट्र की संवैधानिक स्थिति को लेकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया है. ये काम वैसे तो राज्यपाल ही करते हैं. बीच बीच में कर भी रहे होंगे और ऐसा तो नहीं लगता कि उद्धव ठाकरे ने ऐसी कोई बात बतायी होगी जिससे प्रधानमंत्री मोदी बेखबर हों.

सवाल ये नहीं है कि कि उद्धव ठाकरे ने मोदी से क्या बात की होगी - सवाल, दरअसल, ये है कि उद्धव ठाकरे ने मोदी को फोन किया ही क्यों?

बताते हैं कि महाराष्ट्र कैबिनेट ने उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को दोबारा प्रस्ताव पारित कर भेजा है. पहले भेजे गये प्रस्ताव के बाद शिवसेना प्रवक्ता ने यहां तक कह दिया था कि राज भवन राजनीतिक साजिशें रचे जाने का अड्डा नहीं होना चाहिये. इस बीच महाविकास आघाड़ी का एक प्रतिनिधिमंडल भी इस सिलसिले में राज्यपाल से मुलाकात कर चुका है.

सुनने में ये भी आया है कि महाराष्ट्र कैबिनेट एक प्रस्ताव चुनाव आयोग को भेजने पर विचार कर रहा है कि विधान परिषद का चुनाव जल्दी कराया जाये. असल में कोरोना वायरस की मुश्किलों और लॉकडाउन के चलते चुनाव आयोग ने ये अनिश्चित काल के लिए टाल दिया है.

उद्धव ठाकरे ने मोदी को फोन कर मदद मांगी है - क्या शरद पवार से भरोसा उठने लगा है?

सवाल तो ये भी है कि अगर चुनाव टाला जा सकता है. वित्त वर्ष की अवधि बढ़ायी जा सकती है, काफी सारी डेडलाइनें बढ़ाई जा सकती है - तो क्या ऐसी विशेष परिस्थिति में उद्धव ठाकरे को बगैर किसी सदन का सदस्य होकर भी मुख्यमंत्री नहीं बने रहने दिया जा सकता? अरे जैसे छह महीने वैसे कुछ दिन और - आखिर ये इमरजेंसी हालात के लिए ही तो है.

सवाल का व्यावहारिक जवाब तो हां में ही है, लेकिन राजनीतिक जवाब पूरी तरह ना में है - भला बीजेपी पकी पकायी खीर खाना छोड़ कर नये सिरे से पापड़ बेलने की फजीहत क्यों उठाना चाहेगी?

क्या उद्धव को डर लग रहा है

28 नवंबर, 2019 को उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी - और संविधान की धारा 164 (4) के मुताबिक उद्धव ठाकरे को 6 महीने के भीतर राज्य के किसी भी सदन का सदस्य होना अनिवार्य है. जो हालात हैं, साफ है फिलहाल ये मुमकिन नहीं है.

ऐसा भी नहीं कि उद्धव ठाकरे के लिए सारे रास्ते बंद हो गये हैं - मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर फिर से शपथ लेकर कुर्सी पर बैठने का विकल्प खुला है, लेकिन शर्तें भी लागू हैं. ऐसा तभी सभंव होगा जब उद्धव ठाकरे को कांग्रेस और एनसीपी विधायकों का समर्थन आगे भी कायम रहेगा.

कांग्रेस की तरफ से तो उद्धव ठाकरे को किसी बात का डर तो होना नहीं चाहिये. अभी अभी सोनिया गांधी ने बीजेपी पर सांप्रदायिकता की राजनीति और नफरत का वायरस फैलाने का आरोप लगा कर इसका सबूत भी दे दिया है. बदले में उद्धव ठाकरे की पुलिस ने सोनिया गांधी को लेकर सवाल पूछने वाले पत्रकार से घंटों लंबी पूछताछ कर एहसानों का बदला भी चुका डाला है.

तो क्या उद्धव ठाकरे को अपनी कुर्सी को लेकर ऐसा कोई डर एनसीपी की तरफ से है? वैसे भी, अभी तो सबसे ज्यादा दिक्कतें उद्धव ठाकरे को एनसीपी कोटे के मंत्री अनिल देशमुख के गृह विभाग से ही हुई है. महाबलेश्वर, बांद्रा और पालघर की घटनायें तो यही बताती हैं.

उद्धव ठाकरे को ऐसी कोई भनक लगी है क्या कि एनसीपी ऐन वक्त पर धोखा दे सकती है?

वैसे तो एनसीपी के धोखा देने का कोई मतलब नहीं बनता, लेकिन अगर बीजेपी की तरफ से कोई बहुत ही अच्छा ऑफर हो तो विचार बिलकुल संभव है. आखिर राजनीति में क्या नहीं संभव है.

अब ऐसा तो लगता नहीं कि शरद पवार भतीजे अजीत पवार के लिए सीएम की कुर्सी मांगेंगे. अपने नेताओं के लिए कैबिनेट में कुछ महत्वपूर्ण विभाग और ज्यादा से ज्यादा एक डिप्टी सीएम की कुर्सी उनके लिए काफी है.

या फिर वो शर्त जो पवार और मोदी की मुलाकात के दौरान चर्चाओं को लेकर सुनने को मिली थी - केंद्र में सुप्रिया सुले के लिए कृषि मंत्रालय और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को मुख्यमंत्री! हो सकता है, उद्धव ठाकरे सरकार गिराने के लिए बीजेपी ऐसी संभावनाओं पर फिर से विचार करने लगी हो.

और अगर बीजेपी उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने पर तुल ही जाये तो सुप्रिया सुले को मुख्यमंत्री पद भी तो ऑफर किया जा सकता है - क्योंकि मोदी कैबिनेट तो अभी फुल ही है. बस एक सीट शिवसेना की वजह से खाली हुई है.

वैसे भी उद्धव ठाकरे शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने को लेकर पिता से किये गये वादे को निभा ही चुके हैं. खुद का सपना भी पूरा हो ही चुका है. बेटे के पास तो अभी पूरी जिंदगी पड़ी है.

अगर उद्धव को लगता है कि सत्ता से दूर हो जाने से बेहतर है मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान कर बीजेपी के साथ सत्ता में हिस्सेदारी कर लेना फिर तो कोई बात ही नहीं. हकीकत जो भी हो. इस वक्त ये तो साफ तौर पर लगने ही लगा है कि उद्धव ठाकरे को अपनी कुर्सी डोलती दिखायी दे रही है.

प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर उद्धव ठाकरे ने मदद मांगी है और सूत्रों के हवाले से खबर है कि मोदी ने आश्वासन दिया है कि वो जरूर कुछ करेंगे.

ऐसे तो उद्वव ठाकरे ने एक तरीके से बीजेपी नेतृत्व के सामने सरेंडर ही कर दिया है.

हो सकता है उद्धव ठाकरे को कोरोना वायरस संकट और लॉकडाउन से उपजे हालात में कोई राजनीतिक फायदा नजर आ रहा हो - और अगर कुर्सी छोड़नी भी पड़े तो महाराष्ट्र के लोगों से शिवसेना के पास ये कहने का मौका तो होना चाहिये कि सब ठीक से तो चल ही रहा था लेकिन बीजेपी ने फिर धोखा दे दिया!

इन्हें भी पढ़ें :

ddhav Thackeray को क्या इस्तीफा देना होगा? उनके सामने क्या विकल्प हैं

बुलंदशहर साधु हत्याकांड: योगी आदित्यनाथ को घेरने की नाकाम कोशिश में उद्धव ठाकरे

Palghar पर दिल्ली की तू-तू मैं-मैं ने उद्धव ठाकरे को जीवनदान दे दिया


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲