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महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई में उद्धव-फडणवीस की तो 'पावरी' हो रही है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 25 मार्च, 2021 11:50 AM
  • 25 मार्च, 2021 11:50 AM
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पूर्व मुंबई कमिश्नर परमबीर सिंह (Param Bir Singh) जिस तीर से गृह मंत्री अनिल देशमुख पर निशाना साथ रहे हैं, उसी से उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) दोनों को व्यक्तिगत तौर पर राजनीतिक फायदा भी मिल रहा है - देखिये आगे आगे होता क्या है?

महाराष्ट्र में एंटीलिया केस को लेकर विपक्षी बीजेपी और सत्ताधारी गठबंधन आमने सामने खड़ा हो गया है - चौतरफा घिरे गृह मंत्री अनिल देशमुख को घूम घूम कर सफाई देनी पड़ रही है, लेकिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) सियासी मोर्चे की जगह पूरा ध्यान कोरोना वायरस से दोबारा दो-दो हाथ करने पर दे रहे हैं. ये बात अलग है कि मुंबई से भी दिल्ली जैसी ही बदइंतजामी की खबरें आ रही हैं.

महाराष्ट्र पुलिस के सीनियर आईपीएस अफसर परमबीर सिंह (Param Bir Singh) अपने ही गृह मंत्री के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट के रास्ते में हैं. एंटीलिया केस की जांच मुंबई पुलिस के हाथ से पूरी तरह निकल चुका है और एनआईए को मिल चुका है.

महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) गठबंधन सरकार पर हद से ज्यादा तेज हमले कर रहे हैं, लेकिन जवाब देने के लिए या तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार मोर्चा संभालते हैं या फिर मजबूर खुद अनिल देशमुख सामने आते हैं और सफाई देते फिर रहे हैं. उद्धव ठाकरे के लिए वर्कलोड जैसा भी हो, राजनीतिक तकरार से होने वाले तनाव से तो वो बचे ही हुए हैं.

पहले गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अपने नेता शरद पवार से मुलाकात की थी. अब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी मिल चुके हैं. अनिल देशमुख के लिए राहत की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर की याचिका बैरंग लौटा दी है, लेकिन सबसे बड़ी अदालत ने भी माना है कि जो इल्जाम लगाये गये हैं वे काफी गंभीर किस्म के हैं.

अब अगर अनिल देशमुख के साथ साथ महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार भी राहत महसूस कर रही हो तो ऐसा तभी तक संभव है जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख सामने नहीं आ जाता. परमबीर सिंह की अर्जी में डिमांड तो काफी हैं, लेकिन गठबंधन सरकार के लिहाज से कम से कम दो तो सबसे बड़े सिर दर्द हैं - एक, मुंबई पुलिस कमिश्नर की पोस्ट से परमबीर सिंह के तबादले को रद्द करने और दो,

अनिल देशमुख, परमबीर सिंह, सचिन वाजे या मनसुख हिरेन जैसे नाम अगर पूरे विवाद...

महाराष्ट्र में एंटीलिया केस को लेकर विपक्षी बीजेपी और सत्ताधारी गठबंधन आमने सामने खड़ा हो गया है - चौतरफा घिरे गृह मंत्री अनिल देशमुख को घूम घूम कर सफाई देनी पड़ रही है, लेकिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) सियासी मोर्चे की जगह पूरा ध्यान कोरोना वायरस से दोबारा दो-दो हाथ करने पर दे रहे हैं. ये बात अलग है कि मुंबई से भी दिल्ली जैसी ही बदइंतजामी की खबरें आ रही हैं.

महाराष्ट्र पुलिस के सीनियर आईपीएस अफसर परमबीर सिंह (Param Bir Singh) अपने ही गृह मंत्री के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट के रास्ते में हैं. एंटीलिया केस की जांच मुंबई पुलिस के हाथ से पूरी तरह निकल चुका है और एनआईए को मिल चुका है.

महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) गठबंधन सरकार पर हद से ज्यादा तेज हमले कर रहे हैं, लेकिन जवाब देने के लिए या तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार मोर्चा संभालते हैं या फिर मजबूर खुद अनिल देशमुख सामने आते हैं और सफाई देते फिर रहे हैं. उद्धव ठाकरे के लिए वर्कलोड जैसा भी हो, राजनीतिक तकरार से होने वाले तनाव से तो वो बचे ही हुए हैं.

पहले गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अपने नेता शरद पवार से मुलाकात की थी. अब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी मिल चुके हैं. अनिल देशमुख के लिए राहत की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर की याचिका बैरंग लौटा दी है, लेकिन सबसे बड़ी अदालत ने भी माना है कि जो इल्जाम लगाये गये हैं वे काफी गंभीर किस्म के हैं.

अब अगर अनिल देशमुख के साथ साथ महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार भी राहत महसूस कर रही हो तो ऐसा तभी तक संभव है जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख सामने नहीं आ जाता. परमबीर सिंह की अर्जी में डिमांड तो काफी हैं, लेकिन गठबंधन सरकार के लिहाज से कम से कम दो तो सबसे बड़े सिर दर्द हैं - एक, मुंबई पुलिस कमिश्नर की पोस्ट से परमबीर सिंह के तबादले को रद्द करने और दो,

अनिल देशमुख, परमबीर सिंह, सचिन वाजे या मनसुख हिरेन जैसे नाम अगर पूरे विवाद में लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं तो वे बस किरदार भर हैं, असली लाभार्थी तो महज दो ही नजर आते हैं - उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस.

उद्धव ठाकरे के लिए फायदे की बात ये है कि विपक्ष के हमले के खिलाफ मुकाबले के लिए गठबंधन के सभी साथी एकजुट नजर आ रहे हैं. गठबंधन के सभी दलों के एकजुट होने का मतलब उद्धव ठाकरे के लिए सरकार का पूरी तरह सुरक्षित होने जैसा ही तो है.

देवेंद्र फडणवीस के लिए फायदे की चीज ये है कि वो महाविकास आघाड़ी सरकार को लगातार कठघरे में खड़ा किये हुए हैं. पुलिस महकमे के मुखबिरों की बदौलत बीजेपी नेता ने गृह मंत्री की नाक में दम कर रखा है - पूरे प्रकरण का कुल मिला कर लब्बोलुआब ये है कि उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस दोनों की ही 'पावरी' हो रही है और बाकी किरदार पिसते चले जा रहे हैं, जिनमें से एक महाराष्ट्र की जनता भी है.

एंटीलिया केस में फजीहत किसकी होने वाली है

सत्ता पक्ष और विपक्ष की लड़ाई के हिसाब से देखा जाये तो एंटीलिया केस की जांच का मामला अब महाराष्ट्र सरकार के हाथ से निकल चुका है. देखना होगा, निलंबित पुलिस अफसर सचिन वाजे के जरिये एनआईए की जांच के दायरे में आगे कौन कौन फंसता है.

एंटीलिया केस की जांच दो हिस्सों में चल रही थी. मुकेश अंबानी के बंगले के बाहर रखी गाड़ी में विस्फोटक की जांच एनआईए को मिला हुआ था, जबकि गाड़ी के मालिक मनसुख हिरेन की मौत की जांच महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस कर रही थी.

एटीएस ने मनसुख हिरेन की हत्या के सिलसिले में निलंबित पुलिसकर्मी विनायक शिंदे और सट्टेबाज नरेश गौड़ को गिरफ्तार किया था. अब दोनों की कस्टडी एनआईए को मिल गयी है. एनआईए ने ठाणे कोर्ट में अर्जी दायर की थी कि गृह मंत्रालय के आदेश के बावजूद एटीएस जांच उसके हवाले नहीं कर रही है. ठाणे सेशन कोर्ट ने एटीएस को आदेश दे दिया कि वो मनसुख हिरेन की मौत की जांच रोककर एनआईए को हैंडओवर कर दे. अब एंटीलिया केस का पूरा मामला एनआईए के पास पहुंच गया है. अब ये महाराष्ट्र पुलिस के लिए झटका समझें या राज्य के गृह मंत्रालय के मामले को ठीक से हैंडल न कर पाने की नाकामी - जिम्मेदारी तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर आ ही जाती है.

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अब अगर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे मान कर चल रहे हैं कि मामला तो गृह मंत्रालय से जुड़ा है. गृह मंत्रालय सत्ता में साझीदार एनसीपी के हिस्से में है और अनिल देशमुख पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों से घिरे हुए हैं ही, तो बात और है.

उद्धव ठाकरे की 'पावरी' इसलिए भी हो रही है क्योंकि हमले तो सीधे सीधे अनिल देशमुख झेल रहे हैं और सरकार को बचाने के लिए शिवसेना के साथ एनसीपी और कांग्रेस दोनों ही सपोर्ट में पूरी तरह एकजुट होते हुए मजबूती से पीछे खड़े हो गये हैं. ये भी सही है कि विपक्ष का आक्रामक रुख उद्धव ठाकरे को बार बार सामने आने के लिए ललकार रहा है. देवेंद्र फडणवीस अलग से कांग्रेस से भी पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार के आरोपों पर सफाई मांग रहे हैं.

अभी तक तो सिर्फ सचिन वाजे ही एनआईके की कस्टडी में रहे, अब तो सचिन वाजे का एक सहयोगी पुलिस अफसर रियाज काजी सरकारी गवाह भी बन गया है. खास बात ये है कि रियाज काजी ने ही सचिन वाजे की सोसायटी से सीसीटीवी के फुटेज जब्त किये थे. एनआईए ने स्पेशल कोर्ट को ये बात बता दी है. ऊपर से सचिन वाजे के खिलाफ एनआईए ने आतंकवादी निरोधक कानून APA के तहत भी मुकदमा दर्ज कर लिया है.

एक बात तो पक्की है कि एनआईए की आगे की जांच से अब कइयों की मुश्किल बढ़ने वाली है. सचिन वाजे के रूप में एनआईए के हाथ ऐसी मास्टर की लगी है जो भ्रष्टाचार के कई ताले खोलने में आजमाया जा सकता है - अब अगर कुछ ताले खुलते हैं तो मुश्किलें गृह मंत्रालय तक ही सीमित रहती है या फिर पूरी सरकार के फजीहत का सबब बन सकती है देखना होगा.

परमबीर सिंह की एक्टिविज्म से किसका फायदा

परमबीर सिंह का मुंबई पुलिस कमिश्नर से हटा कर तबादला होम गार्ड्स के डीजी के तौर पर कर दिया गया. देखने में तो यही आया कि वो फोर्स के एक अनुशासित अफसर की तरह चुपचाप नये दफ्तर पहुंचे और कार्यभार संभाल लिया. तबादले को लेकर अगर किसी ने आवाज उठाई तो वो रहे आईपीएस अफसर संजय पांडे जिनका ट्रांसफर कर परमबीर सिंह के लिए जगह बनायी गयी थी. संजय पांडे ने ही पहले मुख्यमंत्री से शिकायत भी की.

परमबीर सिंह की सक्रियता तब देखी गयी जब गृह मंत्री अनिल देशमुख का बयान आया कि उनका तबादला कोई रूटीन का मामला न होकर प्रशासनिक अक्षमता को लेकर राज्य सरकार का एक्शन रहा. तभी परमबीर सिंह की चिट्ठी मुख्यमंत्री कार्यालय को मिली और नये सिरे से बवाल शुरू हो गया.

पहले चिट्ठी और फिर पुलिस महकमे की ट्रांसफर-पोस्टिंग में गड़बड़ी की जांच को लेकर परमबीर सिंह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये. कोर्ट से परमबीर सिंह ने अपने तबादले को भी गैर कानूनी करार देने की गुजारिश की थी. एकबारगी तो ये निजी रार का मामला लगता है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये भी है कि परमबीर सिंह के सक्रिय होने से फायदे में कौन कौन है - और जो फायदे में है वही उसके पीछे की राजनीति है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने माना कि मामला बेहद गंभीर है और परमबीर सिंह को हाई कोर्ट में याचिका लगाने की सलाह दी. परमबीर सिंह ने सलाह मानते हुए याचिका वापस ले ली और कहे कि हाई कोर्ट जाएंगे. जाहिर है, हाई कोर्ट में भी परमबीर सिंह की याचिका में वही बातें होंगी जो सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में शुमार थीं.

अब अगर उन बातों को ध्यान से समझने की कोशिश करें जो परमबीर सिंह की अर्जी में शामिल हैं तो ये भी आसानी से समझ आ जाएगा कि परमबीर सिंह का एक्टिविज्म अगर जाती दुश्मनी भर ही नहीं सिमटा है तो उससे किसे फायदा मिल रहा है - या कहें कि वो किसे फायदा पहुंचाने के लिए सक्रिय हो सकते हैं या फिर वो भी किसी बड़ी राजनीतिक रणनीति का अंदर ही अंदर हिस्सा बने हुए हैं - ये सवाल तो उठेंगे ही. वैसे भी ऐसे सवालों को हवा भी वही दे रहे हैं.

1. परमबीर सिंह की अदालती अर्जी में बताया गया कि 20 मार्च को उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखने से पहले वो मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के साथ साथ कई नेताओं से ब्रीफिंग में बता चुके थे कि अनिल देशमुख की अगुवाई में गृह मंत्रालय में क्या क्या चल रहा है.

2. जैसा कि परमबीर सिंह ने चिट्ठी में लिखा था, अदालती अर्जी में भी आरोप लगाया कि ट्रांसफर-पोस्टिंग में भ्रष्टाचार के साथ साथ सचिन वाजे के जरिये हर महीने 100 करोड़ का टारगेट तय किया गया था.

3. चिट्ठी की ही तरह परमबीर सिंह ने अर्जी में लिखा कि सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या की जांच में भी अनिल देशमुख अलग से दिलचस्पी ले रहे थे और बीजेपी के कुछ नेताओं की भूमिका की जांच करने और उनको फंसाने के लिए पुलिस अफसरों पर दबाव डाल रहे थे.

ये तीनों ही बातें कई चीजें साफ कर दे रही हैं. जो भी गड़बड़ी चल रही है, उसकी जानकारी अगर उद्धव ठाकरे को हुई भी है तो परमबीर सिंह की ब्रीफिंग या चिट्ठी के जरिये ही हुई है - मतलब, पूरा ठीकरा अनिल देशमुख के सिर फोड़ा जा रहा है. ऐसा होना बाहर से बीजेपी के फायदे में है यानी देवेंद्र फडणवीस के फायदे की बात है और अंदर से उद्धव ठाकरे के फायदे की बात है. एनसीपी का बचाव की स्थिति में होना गठबंधन में उद्धव ठाकरे का प्रभाव बढ़ाएगा. अगर प्रभाव नहीं भी बढ़े तो सरकार को लेकर जिस रिमोट कंट्रोल की चर्चा रहती है, उसकी पकड़ और असर तो कम होगा ही.

ये सारी चीजें साफ साफ बता और जता रही हैं कि अकेले परमबीर सिंह का एक ही तीर एक ही साथ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है - कहीं ये भविष्य के किसी राजनीतिक समीकरण की एडवांस 'पावरी' तो नहीं हो रही है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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