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शिवसेना को 'नये रास्तों की तलाश' है, फिर तो उद्धव को भी कुर्सी छोड़नी ही पड़ेगी

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 मार्च, 2021 11:51 AM
  • 22 मार्च, 2021 11:51 AM
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संजय राउत (Sanjay Raut) का एक ट्वीट शिवसेना नेतृत्व के संभावित राजनीतिक इरादे की तरफ साफ साफ इशारा कर रहा है - सवाल है कि क्या उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray), अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) में नीतीश कुमार की तरह तेजस्वी यादव का अक्स देखने लगे हैं?

महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) सरकार भी चलते फिरते उसी मोड़ पर पहुंच गयी है, जहां से एक बार नीतीश कुमार ने पलटी मारी थी. कोई अचरज वाली बात नहीं होगी अगर किसी दिन अचानक उद्धव ठाकरे भी कहने लगें कि काम करना मुश्किल हो गया है. जुलाई, 2017 में महागठबंधन से अलग होकर पाला बदलते हुए फिर से बीजेपी की मदद से बिहार का मुख्यमंत्री बनते वक्त नीतीश कुमार ने ऐसा ही बयान दिया था.

ध्यान देने वाली बात ये है कि अनिल देशमुख पर भी भ्रष्टाचार के ही आरोप लगे हैं, तब तेजस्वी यादव पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे और वो खुद बेकसूर बताने के लिए अपने मूछों की दुहाई दे रहे थे. फर्क बस ये था कि तेजस्वी यादव के खिलाफ शिकायती एफआईआर दर्ज की जा चुकी थी, जबकि अनिल देशमुख पर महाराष्ट्र के डीजी रैंक के सीनियर पुलिस अफसर ने 100 करोड़ रुपये महीने की वसूली कराने का इल्जाम लगाया है. जैसे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम की पोस्ट से इस्तीफा देने को राजी नहीं थे, ठीक वैसे ही महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) भी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं लगते. हां, तब नीतीश कुमार शिद्दत से चाह रहे थे कि तेजस्वी यादव इस्तीफा दे दें, लेकिन उद्धव ठाकरे फिलहाल अनिल देशमुख को लेकर क्या सोच रहे हैं, अभी तक सामने नहीं आ सका है.

ये तो मानना ही पड़ेगा कि उद्धव ठाकरे भी बीजेपी नेतृत्व की तमाम धौंसबाजियों को धता बताते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर ही दम लिये. 2015 में नीतीश कुमार भी डंके की चोट पर मोदी-शाह को चुनावों में शिकस्त देकर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए थे.

उद्धव ठाकर अक्सर ही बीजेपी नेतृत्व को ललकारते भी रहते हैं कि सरकार गिरा कर तो देखो, लेकिन जब कुर्सी पर आफत आ जाती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही फोन करते हैं और वो निराश भी नहीं होने देते. बस ये है कि जैसे नीतीश कुमार मोदी-मोदी या मोदी जैसा कोई नहीं गाते रहते हैं, उद्धव ठाकरे अभी ऐसा कोई भाव प्रकट नहीं करते.

उद्धव ठाकरे को भी शरद पवार जैसा ताकतवर राजनीतिक साथी मिला हुआ है, जैसे कभी...

महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) सरकार भी चलते फिरते उसी मोड़ पर पहुंच गयी है, जहां से एक बार नीतीश कुमार ने पलटी मारी थी. कोई अचरज वाली बात नहीं होगी अगर किसी दिन अचानक उद्धव ठाकरे भी कहने लगें कि काम करना मुश्किल हो गया है. जुलाई, 2017 में महागठबंधन से अलग होकर पाला बदलते हुए फिर से बीजेपी की मदद से बिहार का मुख्यमंत्री बनते वक्त नीतीश कुमार ने ऐसा ही बयान दिया था.

ध्यान देने वाली बात ये है कि अनिल देशमुख पर भी भ्रष्टाचार के ही आरोप लगे हैं, तब तेजस्वी यादव पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे और वो खुद बेकसूर बताने के लिए अपने मूछों की दुहाई दे रहे थे. फर्क बस ये था कि तेजस्वी यादव के खिलाफ शिकायती एफआईआर दर्ज की जा चुकी थी, जबकि अनिल देशमुख पर महाराष्ट्र के डीजी रैंक के सीनियर पुलिस अफसर ने 100 करोड़ रुपये महीने की वसूली कराने का इल्जाम लगाया है. जैसे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम की पोस्ट से इस्तीफा देने को राजी नहीं थे, ठीक वैसे ही महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) भी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं लगते. हां, तब नीतीश कुमार शिद्दत से चाह रहे थे कि तेजस्वी यादव इस्तीफा दे दें, लेकिन उद्धव ठाकरे फिलहाल अनिल देशमुख को लेकर क्या सोच रहे हैं, अभी तक सामने नहीं आ सका है.

ये तो मानना ही पड़ेगा कि उद्धव ठाकरे भी बीजेपी नेतृत्व की तमाम धौंसबाजियों को धता बताते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर ही दम लिये. 2015 में नीतीश कुमार भी डंके की चोट पर मोदी-शाह को चुनावों में शिकस्त देकर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए थे.

उद्धव ठाकर अक्सर ही बीजेपी नेतृत्व को ललकारते भी रहते हैं कि सरकार गिरा कर तो देखो, लेकिन जब कुर्सी पर आफत आ जाती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही फोन करते हैं और वो निराश भी नहीं होने देते. बस ये है कि जैसे नीतीश कुमार मोदी-मोदी या मोदी जैसा कोई नहीं गाते रहते हैं, उद्धव ठाकरे अभी ऐसा कोई भाव प्रकट नहीं करते.

उद्धव ठाकरे को भी शरद पवार जैसा ताकतवर राजनीतिक साथी मिला हुआ है, जैसे कभी 'भाई जैसे दोस्त' नीतीश कुमार के पीछे खंभे की तरह खड़े देखे जाते रहे.

महाराष्ट्र और बिहार के राजनीतिक हालात और समीकरण ऐसे बन पड़े हैं कि दोनों की बरबस ही तुलना करनी पड़ती है, लेकिन ताजा तुलना मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह की उद्धव ठाकरे को लिखी चिट्ठी के बाद शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत (Sanjay Raut) का एक ट्वीट है. ट्विटर पर अपनी पोस्ट में संजय राउत ने जावेद अख्तर के हवाले से एक खास लाइन लिखी है - 'नये रास्ते की तलाश'.

ये ऐसी पावरफुल लाइन है जो महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीति में काफी मौजूं लगती है - क्योंकि उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी सरकार को भी 2015-2017 वाली नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार के रूप में देखा जाता है - क्योंकि दूसरी छोर पर दोनों ही मामलों में झपट्टा मारने की फिराक में बैठी बीजेपी नजर आ जाती है.

कौन से नये रास्ते तलाश रही है शिवसेना

मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र के साथ ही संजय राउत का शायराना मिजाज लौट आया है - मुख्यमंत्री को पुलिस अफसर की चिट्ठी मिलते ही सत्ता के गलियारों में जो अफरातफरी मची उसे हर किसी ने महसूस किया लेकिन मंत्रालय में फैली सनसनी सन्नाटे को भी नहीं चीर पायी.

जब तक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर शरद पवार ने मोर्चा नहीं संभाला, ऐसा लग रहा था जैसे बिल्ली के गले में घंटी बांधने को कोई तैयार ही नहीं है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार राजनीतिक बयान देने के लिए मीडिया के सामने आये थे. बयान दिये भी और उसका लब्बोलुआब अनिल देशमुख को संदेह का लाभ देते हुए बाइज्जत तो बरी नहीं किया लेकिन संदेह लाभ जरूर दिया और सचिन वाजे की फिर से बहाली का दोष परमबीर सिंह पर मढ़ कर उद्धव ठाकरे सरकार को एक प्राविजनल क्लीन चिट तो दे ही दिया. अनिल देशमुख को लेकर फैसले के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अधिकार की बात जरूर की, चाहे तो कुछ लोग कुछ देर के लिए मान कर चल सकते हैं कि महाराष्ट्र सरकार का रिमोट कंट्रोल शरद पवार के पास होने की चर्चाएं महज कोरी अफवाह हैं.

संजय राउत को जिस नये रास्ते की तलाश है उसमें उद्धव ठाकरे के साथी देवेंद्र फडणवीस भी हैं क्या?

संजय राउत का तो खामोश रहना भी नामुमकिन था, प्रवक्ता जो ठहरे. प्रवक्ता को तो बोलना ही होता है, नेता तो जब मर्जी होती है तो बोलता है वरना चुप रह जाता है. वैसे न बोलने का मतलब ये नहीं होता कि नेता के पास कोई जवाब नहीं है. ये बात भी उद्धव ठाकरे की कही हुई है. ऐसा उद्धव ठाकरे ने कंगना रनौत को लेकर इशारों इशारों में कहा था जब फिल्म एक्टर ने वीडियो बनाकर शिवसेना प्रमुख को खूब तू-तड़ाक किया था.

बोलने के लिए कुछ खास तो रहा नहीं लिहाजा संजय राउत ने शुभ प्रभात लिखते हुए एक तस्वीर शेयर की जिस पर गीतकार जावेद अख्तर की रचना अंकित थी.

संजय राउत की ट्विटर पर ऐसी शेरो शायरी की पुरानी आदत है. विधानसभा चुनावों के बाद जब महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर जोर आजमाइश चल रही थी तब भी संजय राउत ऐसे ही शेर शेयर किया करते रहे.

संजय राउत के ट्वीट का असली मतलब जो भी हो, लेकिन महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक एक अर्थ ये तो हुआ ही कि शिवसेना मौजूदा गठबंधन से इतर किसी नये रास्ते की तलाश में जुट गयी है. ऐसे में जबकि नये रास्ते को लेकर ज्यादा ऑप्शन नजर नहीं आ रहे, यही समझा जाएगा कि नीतीश कुमार की ही तरह उद्धव ठाकरे भी महाविकास आघाड़ी छोड़ कर एनडीए में बीजेपी के साथ लौट सकते है.

सबसे बड़ी मुश्किल तो ये है कि अगर उद्धव ठाकरे एनडीए में लौटने का मन बनाते हैं तो मुख्यमंत्री पद का मोह छोड़ना होगा. हां, अगर बीजेपी ये फैसला कर चुकी है कि पूरा न सही आधी सरकार ही सही तो बात और है.

उद्धव ठाकरे तब भी सिर्फ इतना ही चाहते थे कि शिवसेना के हिस्से में कम से कम ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री का पद रहे, बाकी ढाई साल बीजेपी अपना नेता बिठाये रखे. बीजेपी शिवसैनिक कौ डिप्टी सीएम बनाने को तो तैयार थी, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर उसे कोई भी सलाह या मांग मंजूर नहीं रही.

ऐसे में जबकि उद्धव ठाकरे को भी मुख्यमंत्री बने ढाई साल भी पूरे नहीं हुए हैं, बीजेपी से भी वैसी ही डील करनी होगी, जैसे वो अब तक कांग्रेस और एनसीपी के साथ करते आये हैं - मातोश्री से तो आदित्य ठाकरे की सरकार में एंट्री दिला ही चुके हैं.

अपने शायराना ट्वीट के अलावा संजय राउत ने बस इतना ही कहा है कि महाविकास आघाड़ी सरकार इस मुद्दे पर चर्चा करेगी और सरकार में शामिल लोगों को आत्ममंथन करने की जरूरत है.

ट्विटर पर शायराने अंदाज के बाद संजय राउत ने गठबंधन साथियों को दार्शनिक लहजे में संदेश देने की भी कोशिश की - सभी दलों को ये चेक करना चाहिये कि क्या उनके पांव जमीन पर हैं या नहीं?

संजय राउत का कहना है कि कुछ मामलों में गठबंधन सरकार को भी नजर रखनी चाहिये और कुछ अफसरों की भी निगरानी की जानी चाहिये. उद्धव ठाकरे को लेकर संजय राउत ने दावा किया कि मुख्यमंत्री ने सरकार का सम्मान काफी मजबूती से बचाये रखा है.

अब ये कैसे समझा जाये कि संजय राउत 100 करोड़ महीने की वसूली के टारगेट के आरोप और अनिल देशमुख को उद्धव ठाकरे के दायरे से बाहर बताने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं.

संजय राउत को लेटर बम शब्द से भी आपत्ति लगती है - लोग इसे लेटर बम कह रहे हैं... जो कुछ सच्चाई है उसकी जांच उद्धव ठाकरे और शरद पवार करेंगे. शरद पवार की ही तरह अनिल देशमुख पर लगे आरोपों को काफी गंभीर मानते हुए संजय राउत परमबीर सिंह के पत्र की जांच की मांग कर रहे हैं और ये भी याद दिला रहे हैं कि गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी ऐसी ही बात कही है.

संजय राउत की ही तरह शरद पवार ने भी परमबीर सिंह की चिट्ठी को सच्चाई पर सवाल उठाया है. परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख या शरद पवार की बातों पर तो रिएक्ट नहीं किया है, लेकिन जोर देकर कहा है कि वो चिट्ठी उनकी ही लिखी हुई है और उनके ही ईमेल से भेजी गयी है. गृह मंत्री अनिल देशमुख ने आईपीएस अफसर परमबीर सिंह पर मानहानि का केस दायर करने की बात भी कही है.

विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस भी महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़े कई मुद्दों पर अक्सर मुखर नजर आती हैं - और उनका एक ताजा ट्वीट भी कुछ ऐसे ही इशारे कर रहा है.

अभी तो ढाई साल भी नहीं हुए!

बीजेपी और शिवसेना गठबंधन के टूटने की सबसे बड़ी वजह ये रही कि बीजेपी मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई समझौता करने को राजी नहीं हुई - और शिवसेना की ढाई साल के मुख्यमंत्री की डिमांड भी खारिज कर दी थी.

तमाम उठापटक और देवेंद्र फडणवीस के रातोंरात मुख्यमंत्री बन जाने और फिर इस्तीफा दे देने के बाद रास्ता साफ हुआ - और उद्धव ठाकरे एक दिन अपने पिता बाला साहेब ठाकरे से किये गये वादे को अमली जामा पहनाते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बन गये. तभी उद्धव ठाकरे ने बताया था कि आखिर दौर में बाल ठाकरे से वो किसी शिवसैनिक को ही महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने का वादा किये थे. पिता से किया गया उद्धव ठाकरे का वो वादा पूरा भी हुआ. छह महीने बाद किसी भी सदन का सदस्य न होने की सूरत में कुर्सी पर जो खतरा मंडरा रहा था वो भी प्रधानमंत्री मोदी से मदद मांगने के फौरन बाद ही खत्म भी हो गया.

उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे ज्यादा तो कोरोना वायरस से ही जूझना पड़ा है, बाकी चीजें तो चलती भी रहती हैं. जब से गठबंधन सरकार बनी है तब से अनिल देशमुख के अलावा भी कई मंत्री विवादों में आये हैं और कंगना रनौत को छोड़ दें तो शिवसेना नेतृत्व को आंख दिखाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई है.

लेकिन एंटीलिया केस ने उद्धव ठाकरे को बैकफुट पर ला दिया है. बिहार चुनाव का प्रभार मिलने से पहले भी और उसके बाद भी देवेंद्र फडणवीस ज्यादातर शांत ही नजर आये हैं, लेकिन इस बार हद से ज्यादा आक्रामक लगते हैं. इतने आक्रामक तो सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर भी वो कभी नजर नहीं आये थे.

उसी दौरान देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की एक होटल में हुई मुलाकात भी खासी चर्चित रही. मुलाकात को लेकर लोगों के मन में तरह तरह की बातें आने की वजह भी वाजिब रही. तब बीजेपी नेता नारायण राणे और उनके बेटे नितेश राणे, उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को लेकर काफी हमलावर दिखे - और पेंग्विन-बेबी पेंग्विन जैसे कोड वर्ड के साथ लगातार शिवसेना नेतृत्व को निशाना बनाते रहे.

संजय राउत और देवेंद्र फडणवीस की होटल में हुई गोपनीय मुलाकात को लेकर बीजेपी और शिवसेना दोनों ही तरफ से बताया गया कि दोनों सामना के लिए एक इंटरव्यू को लेकर मिले थे. तब ये भी बताया गया था कि इंटरव्यू बिहार चुनाव से देवेंद्र फडणवीस के फ्री हो जाने के बाद होगा. मालूम नहीं क्या हुआ, अभी तक इंटरव्यू तो देखने सुनने को नहीं ही मिला है.

एनसीपी कोटे के मंत्री अनिल देशमुख पर एक पुलिस वाले से 100 करोड़ की वसूली को लेकर जो आरोप लगे हैं वो उद्धव ठाकरे सरकार की अच्छाइयों से जुड़े हर दावे को झकझोर कर रख दिया है. कंगना रनौत के मुंबई पुलिस को लेकर PoK वाली टिप्पणी के बाद तो महाराष्ट्र बीजेपी के नेता भी बगलें झांकने लगे थे, लेकिन ये ऐसा मुद्दा है जिस पर बीजेपी मुंबई से लेकर दिल्ली तक हमलावर है.

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, किरीट सोमैया, राम कदम जैसे नेताओं के बाद दिल्ली में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने परमबीर सिंह की चिट्ठी को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार को घेरा और अनिल देशमुख का इस्तीफा भी मांगा.

कहां 'खेला होबे' का नारा पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल में गूंज रहा था और कहां महाराष्ट्र में ही खेल शुरू हो गया है. एंटीलिया केस की जांच आगे बढ़ने और API सचिन वाजे के NIA की कस्टडी में जाने के बाद कई चीजें ऐसी हुई हैं जो पूरे मामले को लेकर तरह तरह के सवाल पैदा कर रही हैं - और जवाब मिलने की कौन कहे, समझना भी मुश्किल हो रहा है.

पहले खबर आती है कि सचिन वाजे का शिवसेना से मजबूत कनेक्शन रहा है. यहां तक कि 2007-2008 में वो शिवसेना के सदस्य भी बन जाते हैं. देवेंद्र फडणवीस बताते हैं कि जब वो मुख्यमंत्री रहे तो सचिन वाजे की बहाली के लिए शिवसेना नेताओं ने कई बार उनसे सिफारिश की.

सचिन वाजे को मनसुख हिरेन की हत्या का आरोप लगाते हुए देवेंद्र फडणवीस गिरफ्तारी की मांग करते हैं - और फिर एंटीलिया केस की जांच एनआईए को मिलते ही सचिन वाजे को सस्पेंड कर दिया जाता है और वो हिरासत में ले लिये जाते हैं.

अपनी गिरफ्तारी से काफी पहले सचिन वाजे अंदेशा जताते हैं कि इतिहास फिर से खुद को दोहरा सकता है - आशंका जाहिर करते हैं कि उनके साथी अफसर उनको फंसाने की कोशिश में हैं. सचिन वाजे सस्पेंड किये जाने के 16 साल बाद कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दौरान फोर्स की कमी के चलते वापस पुलिस में ज्वाइन कराये गये थे.

ऐसे में जबकि बीजेपी सचिन वाजे के जरिये शिवसेना नेतृत्व को घेरने की कोशिश कर रही होती है तभी एक बड़ा पुलिस अफसर मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर सचिन वाजे के जरिये एनसीपी नेता को कठघरे में खड़ा कर देता है. चिट्ठी में अपने दावों को मजबूत बनाने के लिए वो अफसर अपने मातहत काम कर चुके अफसरों के साथ किये चैट को भी पेश करता है.

ये भी हो सकता है संजय राउत के ट्वीट के जरिये अनुभवी नेता शरद पवार की ये मीडिया मैनेजमेंट की स्टाइल या कोई रणनीति हो. खास मौके पर ऐसी द्विअर्थी बात बोल दी जाये कि उसका मतलब भी खास हो, लेकिन अंदर ऐसा कुछ भी नहीं चल रहा हो - और कोई फायदा हो न हो, कुछ देर के लिए ये चर्चा तो चल ही जाती है कि उद्धव ठाकरे भी नीतीश कुमार की तरह पाला बदल सकते हैं - और इतने में अनिल देशमुख के खिलाफ इस्तीफे की मांग भ्रष्टाचार के आरोप शांत होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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