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टॉम वडक्कन के रूप में नेता नहीं, कांग्रेस का 'राजदार' भाजपा के पाले में गया है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 14 मार्च, 2019 06:43 PM
  • 14 मार्च, 2019 06:43 PM
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कांग्रेस कुछ भी कहे. मगर कांग्रेसी नेताओं का एक एक कर पार्टी छोड़ना और भाजपा के खेमे में जाना ये बता देता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के भीतर गहरा असंतोष है और वो जो भी कर रहे हैं अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए कर रहे हैं.

2019 के आम चुनावों से पहले भाजपा ने बड़ी सेंधमारी करते हुए कांग्रेस के मजबूत स्तंभों में शुमार टॉम वडक्कन को अपने पाले में खींचा है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की उपस्थिति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार और पार्टी प्रवक्ता रह चुके टॉम वडक्कन भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं. माना जा रहा है कि 2019 के आम चुनावों से पहले पार्टी से टॉम वडक्कन का जाना कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए एक बड़ी शिकस्त है. एक लम्बे समय तक केरल में कांग्रेस की कमान थामने वाले टॉम वडक्‍कन के बारे में ये भी बताया जाता है कि वह यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के करीबी हैं और इनका शुमार पार्टी के राजदारों में है.

टॉम वडक्कन के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने को भाजपा की एक बड़ी जीत माना जा रहा है

पूर्व प्रधानमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता राजीव गांधी के सहायक रह चुके टॉम वडक्‍कन के बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि ऐसे कई राज इनके सीने में दफ्न हैं जो अगर खुल गए तो आम जनता के सामने जो कांग्रेस की बची कुची इज्जत है वो भी चली जाएगी और पार्टी शायद वहां पहुंच जाएगा जहां से वापस आने में उसे एक लम्बा वक़्त लगेगा.

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते पार्टी के सबसे वफादार नेता को कांग्रेस का दामन छोड़ना पड़ा ? वजह है देश की आंतरिक सुरक्षा पर कांग्रेस पार्टी का रवैया. वडक्‍कन के अनुसार, 'पाकिस्‍तानी आंतकवादियों ने जब हमारे देश पर हमला किया, तब कांग्रेस पार्टी ने जैसे व्‍यवहार किया, वो मुझे बिल्‍कुल भी पसंद नहीं आया. तब कांग्रेस के बयान ने मुझे बेहद दुखी किया. अगर आतंकी हमले के समय कोई राजनीतिक पार्टी देश के विरुद्ध बयान देती है, तो मेरे पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.' इसके...

2019 के आम चुनावों से पहले भाजपा ने बड़ी सेंधमारी करते हुए कांग्रेस के मजबूत स्तंभों में शुमार टॉम वडक्कन को अपने पाले में खींचा है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की उपस्थिति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार और पार्टी प्रवक्ता रह चुके टॉम वडक्कन भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं. माना जा रहा है कि 2019 के आम चुनावों से पहले पार्टी से टॉम वडक्कन का जाना कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए एक बड़ी शिकस्त है. एक लम्बे समय तक केरल में कांग्रेस की कमान थामने वाले टॉम वडक्‍कन के बारे में ये भी बताया जाता है कि वह यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के करीबी हैं और इनका शुमार पार्टी के राजदारों में है.

टॉम वडक्कन के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने को भाजपा की एक बड़ी जीत माना जा रहा है

पूर्व प्रधानमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता राजीव गांधी के सहायक रह चुके टॉम वडक्‍कन के बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि ऐसे कई राज इनके सीने में दफ्न हैं जो अगर खुल गए तो आम जनता के सामने जो कांग्रेस की बची कुची इज्जत है वो भी चली जाएगी और पार्टी शायद वहां पहुंच जाएगा जहां से वापस आने में उसे एक लम्बा वक़्त लगेगा.

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते पार्टी के सबसे वफादार नेता को कांग्रेस का दामन छोड़ना पड़ा ? वजह है देश की आंतरिक सुरक्षा पर कांग्रेस पार्टी का रवैया. वडक्‍कन के अनुसार, 'पाकिस्‍तानी आंतकवादियों ने जब हमारे देश पर हमला किया, तब कांग्रेस पार्टी ने जैसे व्‍यवहार किया, वो मुझे बिल्‍कुल भी पसंद नहीं आया. तब कांग्रेस के बयान ने मुझे बेहद दुखी किया. अगर आतंकी हमले के समय कोई राजनीतिक पार्टी देश के विरुद्ध बयान देती है, तो मेरे पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.' इसके अलावा  वडक्‍कन  ने ये कहते हुए भी सबको अचरज में डाल दिया कि, मैंने अपने राजनीति जीवन के कई साल कांग्रेस में बिता, लेकिन वहां वंशवाद की राजनीति हावी है.

पार्टी छोड़ते हुए टॉम का कहना है कि सर्जिकल स्ट्राइक 2 पर वो कांग्रेस के रवैये से बहुत आहत हैं

ईसाईयों के रोमन कैथलिक समुदाय से आने वाले वडक्कन का लोकसभा चुनाव आने से पहले कांग्रेस से जाना और पार्टी में वंशवाद की बात करना ये बता देता है कि पार्टी के मौजूदा रवैये से कोई भी खुश नहीं है. पार्टी के अन्दर भीतरघात कैसा है यदि इसे गहराई में जाकर समझना हो तो गुजरात का रुख कर सकते हैं. अभी बीते दिनों ही कांग्रेसी खेमे को उस वक़्त एक बड़ा झटका तब लगा था जब गुजरात में एक ही महीने में कांग्रेस के 4 विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा की क्षरण ली थी. कांग्रेसी नेताओं के भाजपा में आने के बाद माना जा रहा था कि इससे लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा को काफी बल मिलेगा और गुजरात में पार्टी 26 लोकसभा सीटें जीतने के अपने लक्ष्य के और करीब आ जाएगी.

चुनावों से पहले नेताओं का पार्टी छोड़ना कोई नई बात नहीं है. मगर जिस तरह एक एक कर कांग्रेस के विश्वास पात्र तूफान से पहले जहाज छोड़ रहे हैं वो ये साफ बता रहा है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी नेताओं में गहरा असंतोष है. कहावत है कि असंतोष, बगावत का जनक है और बगावत हम गत वर्ष उत्तर प्रदेश के रायबरेली में देख चुके हैं. रायबरेली में भी कांग्रेस के एमएलसी दिनेश सिंह और उनके भाई राकेश सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था.

अब भी वक़्त है राहुल गांधी को पार्टी की नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए

आपको बताते चलें कि पूर्व कांग्रेसी एमएलसी दिनेश सिंह के बारे में मशहूर था कि इनका शुमार राहुल गांधी और सोनिया गांधी के करीबियों में है. साथ ही प्रियंका गांधी से भी इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं. पार्टी छोड़ने से पहले दिनेश सिंह ने कांग्रेस पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए थे और कहा था कि पार्टी उनके साथ भेदभाव कर रही है.

ज्ञात हो कि कई मौके ऐसे आए थे जब दिनेश सिंह ने अपने रुतबे का गलत फायदा उठाते हुए पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों से बदतमीजी की थी. जिसके बाद उन्हें पार्टी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था. बताया जाता है कि पार्टी के इस फैसले से दिनेश सिंह बहुत आहत थे और कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए उन्होंने अपने दल बल के साथ भाजपा में जाने का फैसला लिया.

बहरहाल, भले ही आज कांग्रेस भाजपा पर विधायकों की खरीद फरोख्त का आरोप लगा रही हो. मगर उसे ये समझना होगा कि जैसे एक एक करके उसके सभी विश्वासपात्र भाजपा के खेमे में जा रहे हैं ये एक पार्टी के लिहाज से कांग्रेस के लिए कहीं से भी अच्छा नहीं है. चुनाव नजदीक हैं ऐसे में अगर कांग्रेस को अपने ही नेताओं को मनाने में मेहनत करनी पड़े फिर तो पार्टी और राहुल गांधी दोनों के भाग्य को बस भगवान का ही सहारा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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