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TIME मैगजीन ने पीएम मोदी की टांग खींची, फिर बारी सोशल मीडिया की थी

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 10 मई, 2019 10:20 PM
  • 10 मई, 2019 10:20 PM
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टाइम मैगज़ीन ने अपने मई अंक में भारतीय प्रधानमंत्री को लेकर जो भी बातें कहीं हों. मगर अपनी आलोचना के प्रति जैसा रुख खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा है, साफ है कि वो इससे निजात पाने का कोई रास्ता निकाल ही लेंगे.

अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन विवादों में है. कारण है मैगजीन के कवर पेज पर छपी भारतीय प्रधानमंत्री की तस्वीर और उस तस्वीर के साथ लगा कैप्शन. कैप्शन में पीएम मोदी को 'इंडियाज डिवाइडर इन चीफ' बताया गया है. मैगजीन में पीएम मोदी पर लिखा आतिश तासीर का एक लेख भी है जिसमें लेखक की तरफ से सवाल हुआ है कि, क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से मोदी को पांच साल का मौका देने को तैयार हैं?

ध्यान रहे कि ये कोई पहला मौका नहीं है जब दुनिया की सबसे चर्चित मैगजीन के कवर पर आकर मोदी ने सुर्खियां बटोरी हैं. इससे पहले मैगजीन ने मार्च 2012 और मई 2015 के अपने एडिशन में भारतीय प्रधानमंत्री को अपने कवर पेज पर स्थान दिया था.

टाइम मैगजीन ने अपने कवर पर पीएम मोदी के बारे में आपत्तिजनक बात लिखकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है

यदि सलमान तासीर के इस लेख का अवलोकन किया जाए तो इस लेख में इस बात का जिक्र है कि पिछले 5 सालों में मोदी नाकाम रहे हैं. अपनी नाकामी छुपाने के लिए उन्होंने राष्ट्रवाद का सहारा लिया है. लेख में आतिश ने कहा है कि 2014 में देश के प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को आर्थिक सुधार के बड़े बड़े दिलकश सपने दिखाए जिनके बारे में अब बात करने पर वो गुरेज करते हैं.

साथ ही ये भी लिखा गया है कि मौजूदा वक़्त में पीएम जहां एक तरफ अपनी हर नाकामी के लिए कांग्रेस सको जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का संचार कर रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ वो भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव को भी खूब कैश कर रहे हैं.

बात क्योंकि आतिश के इस लेख पर चल रही है तो हमारे लिए ये भी जान...

अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन विवादों में है. कारण है मैगजीन के कवर पेज पर छपी भारतीय प्रधानमंत्री की तस्वीर और उस तस्वीर के साथ लगा कैप्शन. कैप्शन में पीएम मोदी को 'इंडियाज डिवाइडर इन चीफ' बताया गया है. मैगजीन में पीएम मोदी पर लिखा आतिश तासीर का एक लेख भी है जिसमें लेखक की तरफ से सवाल हुआ है कि, क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से मोदी को पांच साल का मौका देने को तैयार हैं?

ध्यान रहे कि ये कोई पहला मौका नहीं है जब दुनिया की सबसे चर्चित मैगजीन के कवर पर आकर मोदी ने सुर्खियां बटोरी हैं. इससे पहले मैगजीन ने मार्च 2012 और मई 2015 के अपने एडिशन में भारतीय प्रधानमंत्री को अपने कवर पेज पर स्थान दिया था.

टाइम मैगजीन ने अपने कवर पर पीएम मोदी के बारे में आपत्तिजनक बात लिखकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है

यदि सलमान तासीर के इस लेख का अवलोकन किया जाए तो इस लेख में इस बात का जिक्र है कि पिछले 5 सालों में मोदी नाकाम रहे हैं. अपनी नाकामी छुपाने के लिए उन्होंने राष्ट्रवाद का सहारा लिया है. लेख में आतिश ने कहा है कि 2014 में देश के प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को आर्थिक सुधार के बड़े बड़े दिलकश सपने दिखाए जिनके बारे में अब बात करने पर वो गुरेज करते हैं.

साथ ही ये भी लिखा गया है कि मौजूदा वक़्त में पीएम जहां एक तरफ अपनी हर नाकामी के लिए कांग्रेस सको जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का संचार कर रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ वो भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव को भी खूब कैश कर रहे हैं.

बात क्योंकि आतिश के इस लेख पर चल रही है तो हमारे लिए ये भी जान लेना जरूरी है कि इसमें 1947 का जिक्र किया गया है. लेख में कहा गया है कि ब्रिटिश इंडिया दो भागों में विभाजित हुआ जिसमें एक भाग भारत बना और दूसरा पाकिस्तान हुआ और विभाजन के बाद तीन करोड़ से ज्यादा मुस्लिम भारत में रह गए. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सेकुलरिज्म का रास्ता अपनाया. हिंदुओं के लिए कानून की पालना जहां अनिवार्य की गई, वहीं मुस्लिमों के मामले में शरियत को सब चीजों से ऊपर रखा गया.

लेख में इस बात का भी जिक्र है कि मोदी के कार्यकाल से पहले तक यह व्यवस्था कायम रही, लेकिन 2014 में गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी ने लोगों के अंदर के इस गुस्से को पहचाना और 282 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया.   देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस केवल 44 सीटों तक सिमट गई.

मैगजीन में लिखा है कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मोदी दोबारा चुनाव जीतकर सरकार बनाएंगे मगर अब उनमें वो करिश्मा नहीं है जो 2014 में दिखाई देता था. अपने लेख में आतिश ने ये भी लिखा है कि 2014 में मोदी देश की जनता के लिए किसी मसीहा की तरह थे जो 2019 आते-आते एक आम राजनेता हो गए हैं जो विकास की बातें तो कर रहा है मगर उसे करने में वो बुरी तरह नाकामयाब है और उसके लिए वो गुजरी हुई सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है.

एक अमेरीकी मैगजीन के लिए लिखे गए अपने इस लेख में लेखक ने इस बात को भी बड़ी ही प्रमुखता से बल दिया है कि मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर खूब बढ़ा है. मैगजीन का कहना है कि यह जरूर है कि लोगों को एक बेहतर भारत की उम्मीद थी, लेकिन मोदी के कार्यकाल में अविश्वास के दौर का आरंभ हुआ परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम के बीच दूरियां बढ़ी और सौहार्द कम हुआ. गाय के नाम पर एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया गया और लोगों को मौत के घाट उतारा गया और कोई ठोस कदम उठाने के बजाए मुद्दे पर चुप्पी साध ली.

मैगजीन का कहना है कि अपनी नाकामियों के लिए अक्सर कांग्रेस के पुरोधाओं को निशाना बनाने वाले मोदी जनता की नब्ज को बेहतर तरीके से समझते हैं और शायद यही कारण है कि जब मोदी फंस जाते हैं तो खुद को गरीब का बेटा बताने लग जाते हैं.

आतिश के इस लेख की सबसे खास बात ये है कि इसमें बेरोजगारी, गाय, लिंचिंग, नोटबंदी, जीएसटी जैसे हर उस मुद्दे को छुआ गया है जो बीते 5 सालों में सरकार की कार्यप्रणाली से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं. बहरहाल जैसा कि लाजमी था कि लोग इस लेख पर प्रतिक्रया देंगे. लेख को लोगों की खूब प्रतिक्रिया मिली है और ऐसे तमाम यूजर हैं जिनका मानना है कि लेख एक प्रोपेगेंडा के तहत लिखा गया है और इसका उद्देश्य भारत के प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करना है.

बहरहाल, आतिश तासीर के इस लेख से पीएम मोदी की जितनी भी आलोचना हो मगर इतना तो तय माना जा रहा है कि पीएम इस आलोचना का भी कोई न कोई समाधान निकाल लेंगे. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि क्योंकि बात जब आलोचना की आती है तो देश के प्रधानमंत्री को उससे बचना और उसी आलोचना को ब्रह्मास्त्र बनाकर अपने दुश्मन को चित करना खूब आता है.

यदि इस बात को समझना हो तो हमें बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है हम प्रधानमंत्री का चौकीदार अवतार देख सकते हैं. ध्यान रहे कि बीते कुछ वक़्त से कांग्रेस ने देश के प्रधानमंत्री के लिए 'चौकीदार चोर है' जैसी बात को प्रमोट किया और बाद में पीएम मोदी ने एक अभियान चलाया और चौकीदारकैसे लोकप्रिय हो रहा है वो हमारे सामने हैं.

आइये कुछ और बात करने से पहले एक नाहर डाल ली जाए उन प्रतिक्रियाओं पर जो सोशल मीडिया पर लगातार सुर्खियां बटोर रही हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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