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कश्‍मीर में इस साल बर्फ पिघलेगी तो खून बहेगा !

    • मिन्हाज मर्चेन्ट
    • Updated: 25 फरवरी, 2017 02:41 PM
  • 25 फरवरी, 2017 02:41 PM
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साल 2017 की गर्मियां कश्मीर के लिए भयावह हो सकती हैं. इस बार पत्थरबाजी करने वाले लोगों ने पाकिस्तान के जिहादियों की मदद के लिए स्पेशल रास्ता पहले ही बना लिया है.

साल 2017 की गर्मियां कश्मीर के लिए भयावह हो सकती हैं. इस बार पत्थरबाजी करने वाले लोगों ने पाकिस्तान के जिहादियों की मदद के लिए स्पेशल रास्ता पहले ही बना लिया है. पिछले ही हफ्ते भारतीय फौज के कई जवान और एक मेजर आतंकी हमले में शहीद हो गए. इसमें आतंकियों की मदद पत्थर फेंकने वाले लोगों ने की. वो एक तरफ आर्मी को परेशान कर रहे थे और दूसरी तरफ से आतंकी गोलीबारी करते हुए बॉर्डर पारकर भागने में सफल रहे.

आतंक

चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बिपिन रावत ने कहा है कि- जो भी कश्मीरी नौजवान आर्मी के आतंक विरोधी मिशन में मुश्किल खड़ा करेगा, पाकिस्तान या ISIS के झंडे फहराता हुआ दिखेगा उसे देश-द्रोही माना जाएगा. उन्होंने कहा कि- 'जो भी आतंकियों की मदद कर रहा है उसे एक मौका हमने दिया कि वो मुख्यधारा में वापस आ जाएं. लेकिन अगर फिर भी वो अपनी इन हरकतों से बाज नहीं आए तो सुरक्षाकर्मी उनपर किसी तरह का रहम अब नहीं करेंगे.'

बदले में विपक्षी दलों ने सेना पर ही निशाना साधना शुरु कर दिया. राज्यसभा में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने पत्थरबाजों को चेतावनी देने के बजाए आर्मी चीफ को ही चेताने लगे. आजाद ने कहा कि- 'कश्मीरी युवकों को डराना अत्याचार है. कश्मीर में जो भी हालात हैं उसके लिए सरकार जिम्मेदार है वो युवक नहीं.'

गर्मियों के आते ही कश्मीर के पत्थरबाज युवकों का ग्रुप बड़ा खतरा बन जाएगा. वो फिर से भारतीय आर्मी के सामने खड़े होंगे. पिछले साल भी पीडीपी-बीजेपी की सरकार पाक प्रायोजित इस भीड़ से निपटने में नाकामयाब रही थी. इस बार भी वही कहानी दोहराए जाएगी. सरकार में दोनों पार्टियां दो ध्रुवों की विचारधारा वाली पार्टी है. एक ओर जहां मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती इन युवकों के साथ नरमी के बरतने की पक्षधर है तो बीजेपी कड़ा रुख अपनाना चाहती है. लेकिन वो ऐसा कर नहीं पा रही.

साल 2017 की गर्मियां कश्मीर के लिए भयावह हो सकती हैं. इस बार पत्थरबाजी करने वाले लोगों ने पाकिस्तान के जिहादियों की मदद के लिए स्पेशल रास्ता पहले ही बना लिया है. पिछले ही हफ्ते भारतीय फौज के कई जवान और एक मेजर आतंकी हमले में शहीद हो गए. इसमें आतंकियों की मदद पत्थर फेंकने वाले लोगों ने की. वो एक तरफ आर्मी को परेशान कर रहे थे और दूसरी तरफ से आतंकी गोलीबारी करते हुए बॉर्डर पारकर भागने में सफल रहे.

आतंक

चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बिपिन रावत ने कहा है कि- जो भी कश्मीरी नौजवान आर्मी के आतंक विरोधी मिशन में मुश्किल खड़ा करेगा, पाकिस्तान या ISIS के झंडे फहराता हुआ दिखेगा उसे देश-द्रोही माना जाएगा. उन्होंने कहा कि- 'जो भी आतंकियों की मदद कर रहा है उसे एक मौका हमने दिया कि वो मुख्यधारा में वापस आ जाएं. लेकिन अगर फिर भी वो अपनी इन हरकतों से बाज नहीं आए तो सुरक्षाकर्मी उनपर किसी तरह का रहम अब नहीं करेंगे.'

बदले में विपक्षी दलों ने सेना पर ही निशाना साधना शुरु कर दिया. राज्यसभा में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने पत्थरबाजों को चेतावनी देने के बजाए आर्मी चीफ को ही चेताने लगे. आजाद ने कहा कि- 'कश्मीरी युवकों को डराना अत्याचार है. कश्मीर में जो भी हालात हैं उसके लिए सरकार जिम्मेदार है वो युवक नहीं.'

गर्मियों के आते ही कश्मीर के पत्थरबाज युवकों का ग्रुप बड़ा खतरा बन जाएगा. वो फिर से भारतीय आर्मी के सामने खड़े होंगे. पिछले साल भी पीडीपी-बीजेपी की सरकार पाक प्रायोजित इस भीड़ से निपटने में नाकामयाब रही थी. इस बार भी वही कहानी दोहराए जाएगी. सरकार में दोनों पार्टियां दो ध्रुवों की विचारधारा वाली पार्टी है. एक ओर जहां मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती इन युवकों के साथ नरमी के बरतने की पक्षधर है तो बीजेपी कड़ा रुख अपनाना चाहती है. लेकिन वो ऐसा कर नहीं पा रही.

गर्मियों में तापमान चढ़ेगा पिछले साल आर्मी ने भीड़ पर पैलेट गनों का इस्तेमाल किया था. जिसकी वजह से कई प्रदर्शनकारी घायल हुए थे और कई को अपनी आंख से हाथ धोना पड़ा था. विपक्ष खासकर नेशनल कांफ्रेंस ने आर्मी पर कई तरह के आरोप लगाए. इससे आईएसआई को घाटी में हिंसक प्रदर्शनों में खासी सहायता मिली.

आर्मी की रिपोर्ट के अनुसार- पिछले एक साल में कम से कम 25 आतंकवादी भागने में सफल रहे. इन सभी की सहायता पत्थरबाजों की भीड़ ने की थी. 12 फरवरी को फ्रिसाल और 14 फरवरी को हाजन में हुए मुठभेड़ भी इस लिस्ट में शामिल हैं. हालांकि इन दोनों मुठभेड़ों में पांच आतंकियों को मार गिराया गया था पर पत्थरबाजों की वजह से 4 आतंकी भागने में भी सफल हो गए थे. वहीं 6 जवान और एक मेजर को फ्रिसाल, हाजन और हंदवाड़ा के मुठभेड़ों में शहादत मिली थी.

जनरल रावत को जनरल प्रवीण बख्शी की जगह आर्मी चीफ बनाया गया है. इसके पीछे प्रमुख कारण जनरल रावत का कश्मीर और लाइन ऑफ कंट्रोल में आतंकियों से लड़ने का अनुभव है. अपने पहले दो महीनों में जनरल रावत ने प्यार भरा तरीका अपनाया और लोगों को साथ लेकर चलने वाले तरीके अपनाए. लेकिन इस वजह से हमारे जवानों को मौत के मुंह में जाना पड़ रहा है. इसलिए अब जनरल रावत ने भीड़ पर किसी भी तरह के रहम से इंकार करते हुए कड़े फैसले लेने का फैसला किया है.

हिंसा

घाटी में फैली हिंसा से निपटने के पीडीपी और बीजेपी के उपाय बुरी तरह फेल हुए हैं. दोनों पार्टियां विचारधारा में एक-दूसरे की विरोधी हैं. इनदोनों के बीच का गठबंधन जम्मू-कश्मीर जैसे उलझे हुए राज्य के लिए बिल्कुल अतार्किक है. इसमें केंद्र की भी बड़ी भूमिका है.

कश्मीर का कांटा हैं ये पत्थरबाजकेन्द्र ने राज्य में आए भीषण के बाढ़ के बाद जो सहायता राशि देने का वायदा किया था वो आज तक नहीं मिला. 2016 में मुफ्ती मुहम्मद सईद की मौत के बाद पार्टी दिशाहीन हो गई थी. वहीं महबूबा मुफ्ती डबल गेम खेलती रही. अंत में महबूबा मुफ्ती ने एक ऐसी स्कीम की घोषणा की है जो किसी पायलट प्रोजेक्ट से कम नहीं है.

इस्लामीकरण

अगर राज्य में स्कीम लागू भी हो जाती है तो अलगाववादी पार्टियां पूरी कोशिश करेंगी कि इसे फेल कर दें. घाटी में विस्थापित कश्मीरी पंडितों की संख्या 4 लाख के पार हो चुकी है. अगर इनको पुनर्विस्थापित किया जाता है तो ये तारीफ की बात होगी. लेकिन इसके लिए घाटी में फैले इस्लामीकरण पर लगाम लगानी होगी.

पाकिस्तान, अपनी ही धरती पर उभरते आतंकवाद और दक्षिण-मध्य एशिया में फैले आतंकवाद पर ट्रम्प प्रशासन के रुख के बारे में अभी खुद अनिश्चित है. इसलिए ये कोशिश करेगा कि ओबामा और बुश प्रशासन की तरह ट्रम्प प्रशासन को भी जम्मू-कश्मीर का प्रयोग कर गुमराह करके रखे.कश्मीर में दो ध्रुवों की सरकारयूएन में पाकिस्तान की स्थाई प्रतिनिधि मलीहा लोधी पूरे दम खम से कोशिश कर रही हैं कि व्हाइट हाउस के एंटी-पाकिस्तान नजरिए को थोड़ा बदला जाए. कश्मीर में फैली हिंसा के उसने भारत को सीधा-सीधा जिम्मेदार ठहराया है. लोधी जानते हैं कि जबतक पाक अधिकृत कश्मीर में एक भी पाकिस्तानी सैनिक बाकी रहेगा यूएन वहां भारत की तरफ से जनमत संग्रह के प्रोपोजल को स्वीकार नहीं करने वाला. वो ये आशा कर रही हैं कि ट्रम्प सरकार अगस्त 1948 के यूएन रिजॉल्यूशन को इग्नोर कर दे.

अब ये मोदी सरकार की जिम्मेदारी है कि वो ये सुनिश्चित करे कि वाशिंगटन ना सिर्फ अगस्त 1948 के यूएन रिजॉल्यूशन को ध्यान में रखे बल्कि पाकिस्तान प्रायोजित जिहाद पर भी कड़ा रुख अपनाए. अमेरिका पहले ही पाकिस्तान को विश्व का सबसे खतरनाक देश घोषित कर चुका है. यही समय है जब पाकिस्तान पर चोट की जा सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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