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कश्मीर में युद्ध शुरू हो गया है, सिर्फ एलान बाकी है

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 03 नवम्बर, 2016 04:22 PM
  • 03 नवम्बर, 2016 04:22 PM
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बीते 3 माह में 42 जवानों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. ये किसी युद्ध से कम तो नहीं हो सकता. तो क्या ऐसे ही ये युद्ध चलता रहेगा...

कश्मीर की हालत एक युद्ध जैसी ही है. 100 दिनों से ज्यादा का कर्फ्यू. लगातार फायरिंग, स्कूल बंद, जवानों की शहादत और लोगों की मौत. पलायन की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

ठंड आने वाली है. यानी कि कश्मीर की असली सुंदरता तो अब दिखाई देती है. अगर कश्मीर को जन्नत कहा जाता है तो इसी मौसम के कारण. मगर इस बार आसमान से तो सफेद बर्फ गिरेगी मगर ज़मीन पर लाल दिखाई देगी. लाल इसलिए क्योंकि कश्मीर में हर जगह खून ही खून है. इसलिये इस बार ठंड के मौसम में कश्मीर का रंग सफेद चादर में नहीं बल्कि लाल चादर में ढका हुआ नज़र आएगा.

इसे भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में बीजेपी सरकार ही महबूबा के लिए कारगर

बीते 3 माह में 42 जवानों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. ये किसी युद्द से कम तो नहीं हो सकता. तो क्या ऐसे ही ये युद्ध चलता रहेगा. अगर इस आंकड़े पर आप ध्यान दें तो पिछले तीन माह में हर दुसरे दिन हमारे देश के एक जवान ने अपनी शहादत दी है. यानी हर दुसरे दिन सरहद पर हमारा एक जवान शहीद होता है. ये बहुत ही खतरनाक है. आए दिन देश के अलग-अलग राज्यों में एक जवान का पार्थिव शरीर पहुंच रहा है. हम भी अपना एक ट्वीट या एक कमेंट कर आगे बढ़ जाते हैं. मगर ये कोई इलाज नहीं हो सकता.

 इसे युद्ध नहीं तो और क्या कहेंगे!

उरी हमला हो गया. हमारे 19 जवान शहीद हो गए. जवाब में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया और 40 आतंकियों को मार गिराया. इसमें 2 पाकिस्तान के जवान भी मारे गए. मगर...

कश्मीर की हालत एक युद्ध जैसी ही है. 100 दिनों से ज्यादा का कर्फ्यू. लगातार फायरिंग, स्कूल बंद, जवानों की शहादत और लोगों की मौत. पलायन की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

ठंड आने वाली है. यानी कि कश्मीर की असली सुंदरता तो अब दिखाई देती है. अगर कश्मीर को जन्नत कहा जाता है तो इसी मौसम के कारण. मगर इस बार आसमान से तो सफेद बर्फ गिरेगी मगर ज़मीन पर लाल दिखाई देगी. लाल इसलिए क्योंकि कश्मीर में हर जगह खून ही खून है. इसलिये इस बार ठंड के मौसम में कश्मीर का रंग सफेद चादर में नहीं बल्कि लाल चादर में ढका हुआ नज़र आएगा.

इसे भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में बीजेपी सरकार ही महबूबा के लिए कारगर

बीते 3 माह में 42 जवानों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. ये किसी युद्द से कम तो नहीं हो सकता. तो क्या ऐसे ही ये युद्ध चलता रहेगा. अगर इस आंकड़े पर आप ध्यान दें तो पिछले तीन माह में हर दुसरे दिन हमारे देश के एक जवान ने अपनी शहादत दी है. यानी हर दुसरे दिन सरहद पर हमारा एक जवान शहीद होता है. ये बहुत ही खतरनाक है. आए दिन देश के अलग-अलग राज्यों में एक जवान का पार्थिव शरीर पहुंच रहा है. हम भी अपना एक ट्वीट या एक कमेंट कर आगे बढ़ जाते हैं. मगर ये कोई इलाज नहीं हो सकता.

 इसे युद्ध नहीं तो और क्या कहेंगे!

उरी हमला हो गया. हमारे 19 जवान शहीद हो गए. जवाब में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया और 40 आतंकियों को मार गिराया. इसमें 2 पाकिस्तान के जवान भी मारे गए. मगर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद क्या हालात हो गए. इस पर तो कोई ध्यान ही नहीं देता. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमारे 8 जवान शहीद हो चुके हैं. 13 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. लगभग 50 लोग घायल हैं. पाकिस्तान ने भारत पर सर्जिकल स्ट्राइक तो नहीं किया मगर इन 34 दिन में 65 बार सीजफायर का उल्लंघन किया है. यानी की एक दिन में 2 बार फायरिंग. यानी की दिन-रात कश्मीर में गोलियों की आवाज़ गुंजती रहती है. लोग दिन को अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाते हैं और रात को सो नहीं पाते हैं. बस दिल में एक खौफ लिये जीये जा रहे हैं.

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कश्मीर में स्कूलों के जो हालत हैं. ऐसी हालत तो कभी नहीं हुई. 26 स्कूलों में आग लगा दी गई. 175 से ज्यादा स्कूलों को बंद कर दिया गया है. आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि क्या हालात हैं . अगर आपने कभी अपने जीवन में गोली की आवाज़ सुनी है या कभी अपने शहर में कोई दंगा देखा है. तो ये उससे कई गुना ज्यादा भयंकर है . कश्मीर समस्या का इलाज दोनों सरकारों को खोजने की जरूरत है. वरना भारत और पाकिस्तान के जवान बस ऐसे ही शहीद होते रहेंगे. सियासत जवानों की शहादत पर भारी पड़ रही है. देश बस इसी में खुश है कि भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया. मगर ये भी देखिये कि महज़ 3 महिने के भीतर ही हमारे 42 जवान शहीद हो गए. इसे महज़ एक आंकड़े के रुप में मत देखिये. आज 42 परिवार पुरी तरह टूट चुके है. किसी ने अपना बेटा खो दिया तो किसी ने बाप तो किसी भाई तो किसी ने अपनी पति. एक बार किसी शहीद के घर जाइये. उसके परिवार से मिलिये. दर्द क्या होता है उसका एहसास तब होगा आपको. जो चले गए अब लौट कर कभी नहीं आएंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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