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इन गर्मियों में कश्मीर घाटी के फिर लाल होने की आशंका है

    • माजिद हैदरी
    • Updated: 03 अप्रिल, 2018 03:59 PM
  • 03 अप्रिल, 2018 03:59 PM
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सेना के इस्तेमाल के बाद भी सरकार को वांछित परिणाम नहीं मिल रहे. इसमें इस बात का जिक्र करना बेमानी ही होगा कि स्थानीय आतंकवादियों के खात्‍मे ने और अधिक कश्मीरी युवकों को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया है.

एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन श्रीनगर में है. आम जनता के लिए इस ट्यूलिप गार्डन के खुलने के एक हफ्ते बाद ही 1 अप्रैल को घाटी के जनजीवन को गर्त में ढकेलते हुए कश्मीर में 13 आतंकवादियों के खात्‍मे सहित 20 लोगों की जान गई.

2 साल के तनाव और दहशत के माहौल के बाद इस बार वसंत के इस खुशनुमा मौसम में 13 लाख ट्यूलिप के फूलों से सजा ट्यूलिप गार्डन लोगों के लिए खोला गया था. साथ ही 30 साल के बाद इन्हीं ट्यूलिप के फुलों के साथ ही कन्वेंशन ट्रेवल एजेंट एशोसिएशन ऑफ इंडिया (TAAI) के 64वें वार्षिक के बाद स्थानीय निवासियों को अपने व्यापार और टूरिज्म के बिजनेस के फिर से फलने फूलने की आस जगी थी.

प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तीन दिन तक चलने वाले इस कनक्लेव के 30 मार्च को खत्म होने तक, आतंकवादियों के खिलाफ हो रहे सारे ऑपरेशन रोकने का सुरक्षा बलों को आदेश दिया था. वसंत के इस मौसम में सुरक्षा की इस भावना से खुश होकर TAAI ने 2018 को "विजिट कश्मीर ईयर" के तौर पर प्रोमोट करने का निश्चय किया.

हालांकि, 1 अप्रैल को, जब सारे प्रतिनिधि श्रीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के लिए जा रहे थे, तभी घाटी ने पिछले एक दशक में आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच सबसे खतरनाक मुठभेड़ का सामना किया. कई ज्वाइंट ऑपरेशन के तहत सुरक्षा बलों ने शोपियां में 12 और अनंतनाग में एक आतंकवादी को ढेर कर दिया. इस क्रम में हमारे तीन जवान भी शहीद हो गए.

वहीं दूसरी तरफ, चार नागरिक मारे गए, 200 से अधिक घायल हुए, और लगभग एक दर्जन से अधिक लोग सरकारी बलों की इस कार्रवाई में अंधे हो गए. इस घटना ने घाटी में विरोध प्रदर्शनों का नया दौर शुरु कर दिया जिसने 2016 के विरोध प्रदर्शनों और घाटी के अशांत माहौल की याद ताजा कर दी. वहीं दूसरी तरफ सरकार ने कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाओं के निलंबन और शैक्षिक संस्थानों को बंद करने जैसे अपने पुराने ही ढर्रे उपायों को अपनाया. लेकिन फिर सवाल वहीं का वहीं है कि, मुठभेड़ों पर अस्थायी तौर पर रोक लगाने से आखिर शांति और समृद्धि कैसे आएगी? क्या...

एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन श्रीनगर में है. आम जनता के लिए इस ट्यूलिप गार्डन के खुलने के एक हफ्ते बाद ही 1 अप्रैल को घाटी के जनजीवन को गर्त में ढकेलते हुए कश्मीर में 13 आतंकवादियों के खात्‍मे सहित 20 लोगों की जान गई.

2 साल के तनाव और दहशत के माहौल के बाद इस बार वसंत के इस खुशनुमा मौसम में 13 लाख ट्यूलिप के फूलों से सजा ट्यूलिप गार्डन लोगों के लिए खोला गया था. साथ ही 30 साल के बाद इन्हीं ट्यूलिप के फुलों के साथ ही कन्वेंशन ट्रेवल एजेंट एशोसिएशन ऑफ इंडिया (TAAI) के 64वें वार्षिक के बाद स्थानीय निवासियों को अपने व्यापार और टूरिज्म के बिजनेस के फिर से फलने फूलने की आस जगी थी.

प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तीन दिन तक चलने वाले इस कनक्लेव के 30 मार्च को खत्म होने तक, आतंकवादियों के खिलाफ हो रहे सारे ऑपरेशन रोकने का सुरक्षा बलों को आदेश दिया था. वसंत के इस मौसम में सुरक्षा की इस भावना से खुश होकर TAAI ने 2018 को "विजिट कश्मीर ईयर" के तौर पर प्रोमोट करने का निश्चय किया.

हालांकि, 1 अप्रैल को, जब सारे प्रतिनिधि श्रीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के लिए जा रहे थे, तभी घाटी ने पिछले एक दशक में आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच सबसे खतरनाक मुठभेड़ का सामना किया. कई ज्वाइंट ऑपरेशन के तहत सुरक्षा बलों ने शोपियां में 12 और अनंतनाग में एक आतंकवादी को ढेर कर दिया. इस क्रम में हमारे तीन जवान भी शहीद हो गए.

वहीं दूसरी तरफ, चार नागरिक मारे गए, 200 से अधिक घायल हुए, और लगभग एक दर्जन से अधिक लोग सरकारी बलों की इस कार्रवाई में अंधे हो गए. इस घटना ने घाटी में विरोध प्रदर्शनों का नया दौर शुरु कर दिया जिसने 2016 के विरोध प्रदर्शनों और घाटी के अशांत माहौल की याद ताजा कर दी. वहीं दूसरी तरफ सरकार ने कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाओं के निलंबन और शैक्षिक संस्थानों को बंद करने जैसे अपने पुराने ही ढर्रे उपायों को अपनाया. लेकिन फिर सवाल वहीं का वहीं है कि, मुठभेड़ों पर अस्थायी तौर पर रोक लगाने से आखिर शांति और समृद्धि कैसे आएगी? क्या टीएएआई प्रतिनिधियों के सामने शांति का दिखावा करके खुद मुख्यमंत्री ने धोखाधड़ी नहीं की है?

2016 की अशांति फिर याद आ गई

अगर शांति का दिखावा करने के लिए मुठभेड़ों पर रोक लगाने का तरीका अपनाया जाता है तो फिर क्यों न स्थायी शांति के लिए उन्हें स्थायी रूप से ही समाप्त कर दें. इसके अलावा, क्या स्थानीय कश्मीरी आतंकवादियों की हत्या से कश्मीर मुद्दे को हल करने में मदद मिल रही है? अगर ऐसा होता, तो कश्मीर, 8 जुलाई, 2016 को जब बुरहान मुजफ्फर वाणी को मार गिराया गया था उसके बाद से ही घाटी में शांति का माहौल बन गया होता. लेकिन इसके विपरीत सिर्फ 2017 में ही 218 आतंकियों की हत्या के बावजूद भी घाटी में स्थिति जस की तस बनी हुई है.

हालांकि सेना के इस्तेमाल के बाद भी सरकार को वांछित परिणाम नहीं मिल रहे. इसमें इस बात का जिक्र करना बेमानी ही होगा कि स्थानीय आतंकवादियों की हत्या ने और अधिक कश्मीरी युवकों को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया है. इसलिए नई दिल्ली को अपनी कश्मीर नीति पर पुनर्विचार करने की सख्त जरूरत है.

हालांकि पूर्व आईबी प्रमुख दिनेश्वर शर्मा की घाटी में वार्ताकार के तौर पर नियुक्ति के बाद स्थिति सुधरने की उम्मीद थी. लेकिन अनवरत जारी रही हत्याओं ने कश्मीरी लोगों को अलग थलग कर दिया. अगर वार्ताकार को लोगों के साथ बातचीत के माध्यम से समस्या का समाधान निकालने के लिए नियुक्त किया गया था तो फिर युवाओं की आवाज़ को बंद करके (और कई बार तो वार्ता शुरू होने से पहले) आखिर कैसे वो समाधान खोज पाएंगे?

कोई भी सभ्य देश अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ता, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके युवा सरकार से सहमति नहीं रखते और हथियार का सहारा लेने लगते हैं. अभी जरुरत संघर्ष विराम की है ताकि इस मसले का कोई हल खोजा जा सके. ये सिर्फ कश्मीर के लोगों की ही राय नहीं है, बल्कि पूरे देश में कई प्रमुख लोग इसी बात से इत्तेफाक रखते हैं.

पिछले साल, मुंबई के शैलेंद्र मिश्रा जो जम्मू एवं कश्मीर कैडर के आईपीएस हैं ने अपने गृह नगर में एक ब्राह्मण महासम्मेलन समारोह में बोलते हुए कश्मीरी आतंकियों की हत्या को "हमारी सामूहिक विफलता" कहा था. उन्होंने कहा था- "प्लीज, आतंकवादियों की हत्या का जश्म मत मनाइए. ये हत्याएं हमारी हार का प्रतीक हैं. हमारी सामूहिक विफलता हैं. बुरहान वानी की मृत्यु किन हालात में हुई? वसीम माल्ला (वानी का सहयोगी, जिसे पिछले साल मुठभेड़ में मार गिराया गया था) एक भारतीय नागरिक था. वो शोपियां में पैदा हुआ था (दक्षिण कश्मीर में) और बीए के दूसरे वर्ष का छात्र था. तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसने बंदूक उठा ली और अपनी भारतीय पहचान को स्वीकार करने से इनकार करते हुए भारत की हर संस्था से नफरत करना शुरू कर दिया?"

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कश्मीर और उसका ट्यूलिप गार्डन कितना सुंदर है, मनमोहक है. खून से सनी हुई उनकी जमीन लोगों को हमेशा डराती रहेगी.

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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