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समय आ गया मालदीव के चीन-परस्त नेतृत्‍व को 56 इंच की छाती दिखाने का

    • राहुल लाल
    • Updated: 07 फरवरी, 2018 02:06 PM
  • 07 फरवरी, 2018 02:05 PM
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भारत समर्थक मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने राजनीतिक संकट के समाधान के लिए भारत से मदद मांगी है. नई परिस्थिति में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 15 दिनों के आपातकाल की घोषणा की है.

हिंद प्रशांत का छोटा सा द्वीपीय देश मालदीव इस समय गहरे सियासी और संवैधानिक संकट से जूझ रहा है. यह सियासी तूफान इतना प्रबल है कि इसकी हलचल भारत और चीन तक सुनाई दे रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा विपक्षी नेताओं को राजनीतिक मामलों में बरी करने और राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के इस आदेश को मानने से इंकार करने की पृष्ठभूमि में यह संकट उत्पन्न हुआ है. नई परिस्थिति में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 15 दिनों के आपातकाल की घोषणा की है. संसद पहले ही भंग की जा चुकी है. आपातकाल की घोषणा के कुछ देर बाद ही सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तोड़कर चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद और दूसरे जजों के साथ पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को गिरफ्तार किया जा चुका है. गिरफ्तारी पूर्व मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने भारत से विधि का शासन एवं संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मदद मांगी है. भारत समर्थक मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने राजनीतिक संकट के समाधान के लिए भारत से मदद मांगी है. मोहम्मद नसीद ने भी भारत से त्वरित कार्यवाई की मांग की है.

आखिर मामला क्या है?

मालदीव के ताजा राजनीतिक संकट की जड़ें 2012 में तत्कालीन और पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद के तख्तापलट से जुड़ी है. नशीद के तख्तापलट के बाद अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति बने. उन्होंने चुन-चुनकर अपने विरोधियों को निशाना बनाया. नशीद को 2015 में आतंकवाद के आरोपों में 13 साल जेल की सजा हुई, लेकिन वह इलाज के लिए ब्रिटेन चले गए और वहीं राजनीतिक शरण भी ले ली. पिछले सप्ताह मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने नशीद समेत 9 राजनीतिक बंदियों को रिहा करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला यामीन की पार्टी से बगावत करने वाले 12 सांसदों को भी बहाल करने का आदेश दिया. इन 12 सांसदों की बहाली होने से राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन सरकार अल्पमत में आ जाती और भारत समर्थक मुहम्मद नशीद की पार्टी नई अगुवाई वाला संयुक्त विपक्ष बहुमत में आ जाता. लेकिन अब्दुल्ला यामीन ने कोर्ट के आदेश को मानने से इंकार कर दिया और सेना को आदेश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं माने.

हिंद प्रशांत का छोटा सा द्वीपीय देश मालदीव इस समय गहरे सियासी और संवैधानिक संकट से जूझ रहा है. यह सियासी तूफान इतना प्रबल है कि इसकी हलचल भारत और चीन तक सुनाई दे रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा विपक्षी नेताओं को राजनीतिक मामलों में बरी करने और राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के इस आदेश को मानने से इंकार करने की पृष्ठभूमि में यह संकट उत्पन्न हुआ है. नई परिस्थिति में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 15 दिनों के आपातकाल की घोषणा की है. संसद पहले ही भंग की जा चुकी है. आपातकाल की घोषणा के कुछ देर बाद ही सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तोड़कर चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद और दूसरे जजों के साथ पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को गिरफ्तार किया जा चुका है. गिरफ्तारी पूर्व मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने भारत से विधि का शासन एवं संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मदद मांगी है. भारत समर्थक मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने राजनीतिक संकट के समाधान के लिए भारत से मदद मांगी है. मोहम्मद नसीद ने भी भारत से त्वरित कार्यवाई की मांग की है.

आखिर मामला क्या है?

मालदीव के ताजा राजनीतिक संकट की जड़ें 2012 में तत्कालीन और पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद के तख्तापलट से जुड़ी है. नशीद के तख्तापलट के बाद अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति बने. उन्होंने चुन-चुनकर अपने विरोधियों को निशाना बनाया. नशीद को 2015 में आतंकवाद के आरोपों में 13 साल जेल की सजा हुई, लेकिन वह इलाज के लिए ब्रिटेन चले गए और वहीं राजनीतिक शरण भी ले ली. पिछले सप्ताह मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने नशीद समेत 9 राजनीतिक बंदियों को रिहा करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला यामीन की पार्टी से बगावत करने वाले 12 सांसदों को भी बहाल करने का आदेश दिया. इन 12 सांसदों की बहाली होने से राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन सरकार अल्पमत में आ जाती और भारत समर्थक मुहम्मद नशीद की पार्टी नई अगुवाई वाला संयुक्त विपक्ष बहुमत में आ जाता. लेकिन अब्दुल्ला यामीन ने कोर्ट के आदेश को मानने से इंकार कर दिया और सेना को आदेश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं माने.

अगर भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में खुद को एक महाशक्ति तथा सुरक्षा गारंटर के रूप में स्थापित करने का सपना देखता है, तो इसे हर हाल में अपने पड़ोस के मुल्क के लिए ज्यादा सक्रिय नीति अपनानी होगी. ऐसे में मालदीव में भारत सरकार का सैन्य हस्तक्षेप अब अपरिहार्य हो गया है. इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है-

1- इस संपूर्ण संकट के पृष्ठभूमि में ड्रैगन की परछाई स्पष्टतः देखी जा सकती है. चीन जिसका वर्ष 2011 तक माले में दूतावास तक नहीं था, भारत के ठीक पड़ोस में स्थित इस छोटे से देश की घरेलू राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी बन चुका है.

2- भारतीय मुख्य भूभाग से मालदीव की दूरी करीब 1200 किमी है. लक्षद्वीप से तो इसकी दूरी केवल 700 किमी की है. जिस तरह हालत अभी मालदीव में हैं, उसके चलते वहां उग्रवाद, धार्मिक कट्टरपंथ, समुद्री डकैती जैसी समस्याएँ उभर सकती हैं, जो भारत के लिए चिंता की बात है. ऐसे में भारतीय सक्रियता की वहां कितनी आवश्यक है, उसे बखूबी समझा जा सकता है. मालदीव में करीब 22 हजार भारतीय रहते हैं. वहां करीब 400 डॉक्टर हैं, जिसमें से 125 डॉक्टर भारतीय हैं. इसी तरह 25% अध्यापक भी भारतीय हैं.

3- भारत बीते एक दशक से मालदीव के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करने से बच रहा है. इसका सीधा फायदा चीन को मिलता दिख रहा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग की खास तैयारियां यहां साफ देखी जा सकती हैं. राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे, तब वे मालदीव और श्रीलंका होते हुए आए थे. दोनों देशों में मैरी टाइम सिल्क रूट से जुड़े एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए, लेकिन जब जिनपिंग भारत आए तो इस मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी रही.

4- चीन के लिए 40,000 की आबादी वाले देश में आर्थिक संभावनाएं बहुत सीमित हैं. समझा जा सकता है कि बीजिंग की मालदीव में रुचि पूर्णत: रणनीतिक है. चीन पर्दे के पीछे से ऐसे जाल बुन रहा, जिससे मालदीव और नई दिल्ली में दूरी बढ़ जाए. ऐसे में भारत के लिए अब सक्रिय होना अपरिहार्य हो गया है.

5- हिंद महासागर आस्ट्रेलिया, दक्षिणपूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका के पूर्वी इलाके को छूता है. इस इलाके में 40 से ज्यादा देश आते हैं, जिसमें दुनिया की 40% आबादी रहती है. मालदीव भी इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण देश है. भारत का अधिकतर अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिंद महासागर से होता है. इसलिए यहां से गुजरने वाले समुद्री मार्गों का सुरक्षित होना भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

6- हिंद महासागर में भारत को घेरने की कवायद कर रहा चीन भी मालदीव पर अपनी पकड़ मजबूत करने में लगा हुआ है. मालदीव अपने कुछ द्वीप चीन को पट्टे पर भी दे चुका है.आशंका जताई जा रही है कि चीन इसका इस्तेमाल भारत पर निगरानी संबंधी गतिविधियों में करने के लिए वहां सैन्य बेस बनाने के लिए इच्छुक है.

7- पिछले चार वर्षों में चीन लगभग दो तिहाई दक्षिण चीन महासागर में केवल मनौवैज्ञानिक दबाव बनाकर कब्जा कर चुका है. भारत को ऐसे में हिंद महासागर में स्वतंत्र नौवहन की व्यवस्था करने के लिए, अभी मालदीव में हस्तक्षेप की आवश्यक है.

8- भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. ऐसे में लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप अनिवार्य है. स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र में अपरिहार्य है, ऐसे में मालदीव में जिस तरह पहले तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हुआ, वहीं दुर्भाग्यपूर्ण रहा. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे को तोड़कर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की गिरफ्तारी हुई, वह शर्मसार करने वाला है. गिरफ्तारी से पूर्व सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने भारत एवं विश्व के अन्य लोकतांत्रिक देशों से संविधान एवं न्याय की रक्षा के लिए मदद मांगी है, वह काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे में भारत समेत विश्व समुदाय को वहां आगे आना चाहिए.

9- मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भी भारत से मदद की गुहार की है. वे भारत से इस मामले में शीघ्र सैन्य सहयोग की मांग कर रहे हैं. मोहम्मद नशीद भारत समर्थक हैं, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति का व्यवहार चीन के प्रति पूर्णत: झुका हुआ है.

10- भारत के लिए हिंद महासागर में अपने वर्चस्व को प्रदर्शित करने का यह सबसे महत्वपूर्ण अवसर है, जहां भारत मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप कर पुनः लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर सकता है. वहां सामान्य जनता भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन के बाद सड़कों पर है. भारत की ऐसी किसी भी कार्रवाई को वहां की जनता का पूर्ण समर्थन प्राप्त होगा.

11- भारत इसके पूर्व भी 1988 में तत्कालीन मालदीव के राष्ट्रपति के अनुरोध पर 'ऑपरेशन कैक्टस' को संचालित किया था. इसमें इमरजेंसी मैसेज के केवल 9 घंटे बाद ही भारतीय कमांडो मालदीव पहुंचे. भारतीय सेना ने कुछ ही घंटों में सब कुछ अपने नियंत्रण में ले लिया और मालदीव के तख्तापलट को नाकाम कर दिया. इस बार पुनः अब मालदीव में सुप्रीम कोर्ट को पुनर्स्थापित करने के लिए ऐसे ही ऑपरेशन की आवश्यकता है.

12- भारत 2016 में पाकिस्तान पर सफल सर्जिकल स्ट्राइक कर चुका है. उसके पूर्व म्यांयामार में भी ऐसे ऑपरेशन को अंजाम दे चुका है. ऐसे ही सर्जिकल स्ट्राइक से मालदीव के लोकतंत्र को बचाया जा सकता है. भारत ने पिछले ही वर्ष डोकलाम में अपने हितों की रक्षा के लिए भूटान के जमीन से चीन को चुनौती दी थी. इससे भारत की न केवल वैश्विक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई थी अपितु आसियान देशों में भी चीनी वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष में भारत को प्रभावी राष्ट्र के रुप में स्वीकार किया गया. अगर भारत ऐसा कोई भी कार्रवाई करता है, तो इससे सार्क देशों में भारत को लेकर एक सशक्त संदेश जाएगा, जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफी महत्वपूर्ण है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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