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वजहें जो बताती हैं कि, राजस्थान में सरकार हर बार क्यों बदलती है?

    • अनिल कुमार
    • Updated: 06 फरवरी, 2018 02:35 PM
  • 06 फरवरी, 2018 11:35 AM
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राजस्थान को देखकर यही कहा जा सकता है कि आज राज्य जिस भी स्थिति में है उसके लिए जितनी जिम्मेदार केंद्र सरकार है उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार यहां के स्थानीय नेता हैं. गहलोत से लेकर वसुंधरा तक सभी ने राज्य की ज़रूरतों को हमेशा नकारा है.

राजस्थान में कई दशक से ऐसे मुद्दे हैं जो आज तक सुलझ नहीं पाए. कर्ज में दबे किसानों की हालत बद से बद्तर होती जा रही है. आत्महत्याएं कर रहे हैं. वहीं ज्यादातर परिवार जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं उनकी पीढ़ियों के लिए ज्यादा से ज्यादा अच्छी गुणवत्ता और बेहतर इनफ्रास्ट्रक्चर वाले स्कूलों की कमी. कई स्कूल ग्रामीण क्षेत्र की पहुंच से दूर हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों का इनफ्रास्ट्रक्चर और गुणवत्ता ऐसी नहीं है कि भविष्य में मुंह खोले खड़ी बेरोजगारी से देश के भविष्य को बचाया जा सके. इन मुद्दों पर राजनीति होती है, सत्ता और विपक्षी दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं. जो जनता में अविश्वास को पनपाता है.

ऐसा क्या है कि राजस्थान में हर बार हम नई सरकार देखते हैं

पिछले कुछ वर्षों के विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो ये साफ तौर पर सामने आता है कि हर टर्म के बाद सरकार का बदलना जारी है. राज्य में 200 विधानसभा सीटें हैं. वर्ष 2003 में 120 सीटें भाजपा ने जीतीं तो कांग्रेस के पास 56 सीटें आईं और बाकी पर अन्यों ने जीत दर्ज की. वर्ष 2008 में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा औऱ करीब 96 सीटों पर विजय प्राप्त की तो वहीं भाजपा की झोली में करीब 78 सीटें आईं. वर्ष 2013 में भाजपा ने 162 सीटों के साथ भारी भरकम जीत दर्ज की. वहीं कांग्रेस के पास 21 सीटें ही रह गईं. इन परिणामों में कभी भाजपा सरकार बनाती है तो कभी कांग्रेस. हर पांच साल में कार्यकाल पूरा होने के बाद होने वाले चुनावों में कांग्रेस या भाजपा, दोनों में से एक पार्टी सत्ता पर काबिज हो जाती है.

लेकिन ऐसा क्यों?

राजस्थान में सरकार बदलने का सिलसिला इस तरह क्यों है जैसे कोई मनुष्य अपना वस्त्र धारण कर उसके बाद दूसरा वस्त्र धारण करता है. इस सवाल के...

राजस्थान में कई दशक से ऐसे मुद्दे हैं जो आज तक सुलझ नहीं पाए. कर्ज में दबे किसानों की हालत बद से बद्तर होती जा रही है. आत्महत्याएं कर रहे हैं. वहीं ज्यादातर परिवार जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं उनकी पीढ़ियों के लिए ज्यादा से ज्यादा अच्छी गुणवत्ता और बेहतर इनफ्रास्ट्रक्चर वाले स्कूलों की कमी. कई स्कूल ग्रामीण क्षेत्र की पहुंच से दूर हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों का इनफ्रास्ट्रक्चर और गुणवत्ता ऐसी नहीं है कि भविष्य में मुंह खोले खड़ी बेरोजगारी से देश के भविष्य को बचाया जा सके. इन मुद्दों पर राजनीति होती है, सत्ता और विपक्षी दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं. जो जनता में अविश्वास को पनपाता है.

ऐसा क्या है कि राजस्थान में हर बार हम नई सरकार देखते हैं

पिछले कुछ वर्षों के विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो ये साफ तौर पर सामने आता है कि हर टर्म के बाद सरकार का बदलना जारी है. राज्य में 200 विधानसभा सीटें हैं. वर्ष 2003 में 120 सीटें भाजपा ने जीतीं तो कांग्रेस के पास 56 सीटें आईं और बाकी पर अन्यों ने जीत दर्ज की. वर्ष 2008 में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा औऱ करीब 96 सीटों पर विजय प्राप्त की तो वहीं भाजपा की झोली में करीब 78 सीटें आईं. वर्ष 2013 में भाजपा ने 162 सीटों के साथ भारी भरकम जीत दर्ज की. वहीं कांग्रेस के पास 21 सीटें ही रह गईं. इन परिणामों में कभी भाजपा सरकार बनाती है तो कभी कांग्रेस. हर पांच साल में कार्यकाल पूरा होने के बाद होने वाले चुनावों में कांग्रेस या भाजपा, दोनों में से एक पार्टी सत्ता पर काबिज हो जाती है.

लेकिन ऐसा क्यों?

राजस्थान में सरकार बदलने का सिलसिला इस तरह क्यों है जैसे कोई मनुष्य अपना वस्त्र धारण कर उसके बाद दूसरा वस्त्र धारण करता है. इस सवाल के जवाब में हमें थोड़ा मानवीय अर्थशास्त्र को समझना होगा. हर मनुष्य अपनी सूझ-बूझ से चीजों को चुनता है, लेकिन एक ऐसा समय आता है जब वो उससे असंतुष्ट होता प्रतीत होता है. यही असंतुष्ट होने की प्रक्रिया ही राजनीतिक पार्टी के चुनाव में राजस्थान में अहम भूमिका निभाती है. लेकिन इसका तात्पर्य ये नहीं कि सिर्फ यही एक कारण है. दरअसल, मूल कारण तो उस संतुष्टि की वजहों में छिपा है. मूल कारणों को जानने के लिए हमें जनता की असंतुष्ट होने की वजहों को टटोलना होगा.

कई ऐसे कारण हैं जिनके चलते राजस्थान के लोग वसुंधरा और भाजपा से नाराज हैं

पहली वजह

राजस्थान की करीब 7 करोड़ जनसंख्या में से करीब 75 फीसदी हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है. जिसके लिए बेहतर स्कूली शिक्षा नहीं है. ज्यादातर जनसंख्या का जीवन यापन करने का जरिया खेती है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की खेती किसानी ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु के शुष्क होते जाने के कारण लगभग बर्बाद हो चुकी है. अच्छी उत्पादकता के लिए किसानों को इतना रुपया खर्च करने के साथ ही मेहनत लगानी पड़ती है कि उसकी तुलना में फसल की वाजिब कीमत मंडी में उन्हें नहीं मिल पाती.

मिल भी पाती है तो लागत तक वसूल नहीं हो पाती. मजबूरन किसानों को कर्ज में दबना पड़ता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक  वर्ष 2017 के दौरान दो माह के भीतर ही 8 किसानों ने आत्महत्या की. वहीं इस रिपोर्ट रिपोर्ट के मुताबिक  वर्ष 2017 के बजट सत्र के दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बताया था कि 2008 से 2015 तक 2870 किसानों ने आत्महत्या की है. हालांकि वर्ष 2015 में आत्महत्या की संख्या तीन बताई.जो घटता हुआ है. लेकिन इसके विपरीत देखा जाए तो वर्ष 2017 में दो माह के भीतर 8 किसानों ने आत्महत्या कर ली.

दूसरी वजह

नई दुनिया में प्रकाशित रिपोर्ट 2017  कहती है कि राजस्थान राज्य में  50 हजार 993 स्कूलों में 36 लाख 48 हजार 994 छात्र पढ़ते हैं. करीब 36 लाख छात्रों की आबादी पर करीब 50 हजार स्कूल और भी ऐसे राज्य में जो क्षेत्रफल के मामले में सबसे बड़ा है. एक तो स्कूलों की कमी और ग्रामीण इलाकों से स्कूलों का दूर होना और एक ही छत के नीचे खराब इंफ्रास्टक्चर के कारण छात्र प्रोत्साहित नहीं हो पाते. 

हाल फिल्हाल में ऐसे तमाम कारण हैं जो वसुंधरा राजे को भविष्य में परेशानी दे सकते हैं

बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2014 में अकेले राजधानी जयपुर में ही कुल 71 स्कूलों में 9,399 नामांकन थे, जिसमें से 840 बच्चों ने मज़बूरी में स्कूल आना बंद कर दिया था. इससे राजस्थान राज्य में अभिभावकों सहित दूसरे राज्य की ओऱ पलायन करना बदस्तूर जारी है. कुछ अच्छी शिक्षा के लिए तो कुछ रोजगार के लिए. कई किसान खेती को मजबूरन छोड़कर अन्य विकल्प तलाशते हैं. ये उन्हें असंतुष्ट करता है। जिसका परिणाम सरकार में कांग्रेस और भाजपा की रेस में किसी एक की जीत का कारण भी बनता है.

तीसरी वजह

कांग्रेस औऱ भाजपा के अलावा राजस्थान में कोई तीसरी पार्टी का अस्तित्व नहीं है. दशकों से कांग्रेस और भाजपा ही राजस्थान की राजनीतिक जमीन पर योद्धा साबित हुए हैं. कोई तीसरा विकल्प राजस्थान में अभी तक उभरकर सामने नहीं आया है. वहीं इन्हीं दोनों विकल्पों में जनता बेहतर विकल्प तलाशती है. जिससे इन दोनों पार्टियों में से किसी एक का सत्ता में आना तय होता है.

ऐसे में पार्टियों के भीतर ही गुटबाजी शुरू हो जाती है. ये गुटबाजी मुख्यमंत्री बनने की रेस के लिए होती है. कांग्रेस में सीपी जोशी बनाम अशोक गहलोत और सचिन पायलट होता है तो भाजपा में वसुंधरा राजे सिंधिया बनाम गुलाब चंद कटारिया और अशोक परनामी. इन गुटबाजियों के चलते लोगों में अलग-अलग विचार बनते हैं, जिसका नतीजा वोट प्रतिशत के विभाजन के तौर पर नजर आता है.

राजस्थान में अशोक गहलोत भी एक असफल मुख्यमंत्री माने गए हैं

चौथी वजह

राजस्थान में जातिवाद भी एक अहम मुद्दा है. जिसको अभी हाल ही में अशोक गहलोत ने भी हवा देदी है. एक वीडियो में अशोक गहलोत ने भाजपा की वरिष्ठ लीडर और वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर आरोप लगाया है कि वे जातियों के हिसाब से लोगों से बात कर रही हैं और जातिवाद को भड़का रही हैं. राजस्थान में आरक्षण भी एक मुद्दा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार देश में कुल आरक्षण अधिकतम 50 फीसदी तक ही दिया जा सकता है.

जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग शामिल है. गुर्जर, बंजारा, लुहार, रायका और गड़रिया से आने वाले नेता लगातार अपने-अपने समाज के लिए आरक्षण की मांग करते आए हैं. लेकिन सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट का 50 फीसदी वाला नियम मुश्किल का सबब बना हुआ है.

इससे पहले राजस्थान सरकार ने आरक्षण से जुड़ा एक विधेयक पास कर अन्य पिछड़ा वर्ग को 21 फीसदी आरक्षण को 26 फीसदी कर दिया था. लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से रोक लग गई. इसे लागू नहीं किया जा सका. इस आरक्षण के मुद्दे को लेकर हर विधानसभा चुनावों में राजनीति गर्मा जाती है. इससे उस समय की सरकार चला रही पार्टी के प्रति नकारात्मक विचार बन जाता है. जिसका नतीजा चुनाव परिणामों में दिखता है.

पांचवी वजह

धार्मिक हिंसा भी मत विभाजन और हर टर्म में विकल्पों के आभाव के बावजूद अदला-बदली सरकार का कारण बन रही है. मुस्लिम समुदाय और हिंदू समुदाय अलग-अलग राजनीतिक विचार रखते हैं. ऐसे में कोई तीसरी मजबूत पार्टी नहीं उभर पाने की वजह से जनता के सामने कांग्रेस औऱ भाजपा के रूप में ही दो विकल्प बचते हैं. राजस्थान में मोहम्मद अफराजुल की हत्या धर्म विशेष के नाम पर हिंसा का ताजा मामला है.

कहा जा सकता है कि अपने राजनेताओं के कारण ही राजस्थान की स्थिति बद से बदतर है

तो वहीं प्रवासी मजदूर अफराजुल की हत्या में शामिल शंभूलाल रैगर ने इसे लव जिहाद कहकर धार्मिक नफरत फैलाने की कोशिश की. इसी कड़ी में पशुपालक पहलू खान की हत्या भी कर दी गई थी. ये हत्या गोररक्षकों ने पहलू खान पर गाय हत्या के शक में की थी. बताया जाता है कि पहलू खान ने मरने से पहले पुलिस को हत्यारों के नाम बताए थे.आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद जमानत पर छोड़ दिया गया.पशुपालक पहलू खान और प्रवासी मजदूर अफराजुल की हत्या पर राजनीतिक पार्टियों ने रोटियां सेकीं.

कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाए तो वहीं भाजपा के नेताओं का रुख इन हत्याओं के विरोध में सख्त नहीं दिखाई दिया. जब ये मामला राजनीतिक स्तर पर नहीं सुधरा तो सुप्रीम कोर्ट ने गाय हत्या पर हिंसा को रोकने के लिए राजस्थान सहित कई राज्यों को आदेश देकर स्थिति को काबू में रखने को कहा. वर्तमान में राजस्थान सहित भाजपा शासित राज्यों को गाय रक्षा के नाम पर हिंसा को न रोक पाने पर अवमानना का नोटिस भी दिया है.

ये वजह ही राजस्थान में जनता में असंतुष्टि का कारण है और इसी का नतीजा है कि हर पांच साल बाद सरकार की कमान कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के पास चली जाती है. रहा-सहा सरकार के पास सरकारी स्वास्थ सेवाओं को सस्ता उपलब्ध कराने का का मुद्दा भुनाने के लिए बचता है तो उसकी कसर चिकित्सकों की हड़तालें पूरा कर देती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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