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दिल्ली के झगड़े का समाधान सिर्फ इसी एक तरीके से निकल सकता है!

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 08 जुलाई, 2018 03:34 PM
  • 08 जुलाई, 2018 03:34 PM
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पिछले तीन, साढ़े तीन साल में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल असंख्य मुद्दों पर आमने सामने आ चुके हैं. केजरीवाल और एलजी के बीच का झगड़ा सुलझाना है तो उसका सिर्फ एक ही रास्ता है.

उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के बाद भी दिल्ली में राज्य सरकार और उपराज्यपाल के बीच में चल रही अधिकारों की लड़ाई ख़त्म होती नज़र नहीं आती है. न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि जमीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस से जुड़े विषय दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं. अब सेवा विभाग पर अधिकार की लड़ाई शुरू हो गई है. उपराज्यपाल ने यह साफ़ कर दिया है कि सेवा विभाग का नियंत्रण, पूर्व की तरह उनके अधिकार क्षेत्र में ही आता है. दूसरी ओर मुख्यमंत्री केजरीवाल का आरोप है कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल को उच्चतम न्यायालय के आदेश न मानने का सुझाव दे रही है.

पिछले तीन, साढ़े तीन साल में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल असंख्य मुद्दों पर आमने सामने आ चुके हैं. जब नजीब जंग दिल्ली के उपराज्यपाल थे, तो उस समय आम आदमी पार्टी को समर्थन करने वाले लोगों को अवश्य लगता था कि जंग साहब दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रहे हैं. नजीब जंग के स्थान पर जब अनिल बैजल उपराज्यपाल बने, तो उन लोगों को यह उम्मीद जगी थी कि अब दिल्ली सरकार बिना किसी झगड़े और कड़वाहट के दिल्ली के लोगों के काम कर पाएगी. अफ़सोस, यह सिर्फ़ उम्मीद भर थी जो कुछ ही दिनों में टूट गई.

दिल्ली सरकार में आम आदमी पार्टी के शासन से पहले भी तो दूसरे राजनीतिक दल सरकार में क़ाबिज़ थे, उनके कार्यकाल में कभी इतने झगड़े नहीं हुए. उस समय भी यही नियम क़ानून लागू थे. यह बात गौरतलब है कि दिल्ली सरकार में आम आदमी पार्टी के आने के बाद राजधानी से जुड़े किसी क़ानून में कोई बदलाव नहीं हुआ है. चाहे शीला दीक्षित हो, मदन लाल खुराना हों, साहिब सिंह वर्मा हों, सभी ने उसी क़ानून व्यवस्था और नियमों में रह कर दिल्ली की सरकार चलाई थी, जिस पर वर्तमान में अरविंद केजरीवाल बैठे हैं. पूर्व में तो दिल्ली के किसी मुख्यमंत्री के उपराज्यपाल के साथ इतने मतभेद नहीं...

उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के बाद भी दिल्ली में राज्य सरकार और उपराज्यपाल के बीच में चल रही अधिकारों की लड़ाई ख़त्म होती नज़र नहीं आती है. न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि जमीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस से जुड़े विषय दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं. अब सेवा विभाग पर अधिकार की लड़ाई शुरू हो गई है. उपराज्यपाल ने यह साफ़ कर दिया है कि सेवा विभाग का नियंत्रण, पूर्व की तरह उनके अधिकार क्षेत्र में ही आता है. दूसरी ओर मुख्यमंत्री केजरीवाल का आरोप है कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल को उच्चतम न्यायालय के आदेश न मानने का सुझाव दे रही है.

पिछले तीन, साढ़े तीन साल में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल असंख्य मुद्दों पर आमने सामने आ चुके हैं. जब नजीब जंग दिल्ली के उपराज्यपाल थे, तो उस समय आम आदमी पार्टी को समर्थन करने वाले लोगों को अवश्य लगता था कि जंग साहब दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रहे हैं. नजीब जंग के स्थान पर जब अनिल बैजल उपराज्यपाल बने, तो उन लोगों को यह उम्मीद जगी थी कि अब दिल्ली सरकार बिना किसी झगड़े और कड़वाहट के दिल्ली के लोगों के काम कर पाएगी. अफ़सोस, यह सिर्फ़ उम्मीद भर थी जो कुछ ही दिनों में टूट गई.

दिल्ली सरकार में आम आदमी पार्टी के शासन से पहले भी तो दूसरे राजनीतिक दल सरकार में क़ाबिज़ थे, उनके कार्यकाल में कभी इतने झगड़े नहीं हुए. उस समय भी यही नियम क़ानून लागू थे. यह बात गौरतलब है कि दिल्ली सरकार में आम आदमी पार्टी के आने के बाद राजधानी से जुड़े किसी क़ानून में कोई बदलाव नहीं हुआ है. चाहे शीला दीक्षित हो, मदन लाल खुराना हों, साहिब सिंह वर्मा हों, सभी ने उसी क़ानून व्यवस्था और नियमों में रह कर दिल्ली की सरकार चलाई थी, जिस पर वर्तमान में अरविंद केजरीवाल बैठे हैं. पूर्व में तो दिल्ली के किसी मुख्यमंत्री के उपराज्यपाल के साथ इतने मतभेद नहीं हुए.

आम आदमी सरकार आने से पहले दिल्ली का सामान्य नागरिक शायद उपराज्यपाल के पद से पूरी तरह अवगत ही नहीं था. केजरीवाल सरकार ने झगड़े कर करके उपराज्यपाल के पद को दिल्ली में घर-घर की बहस का विषय बना दिया है. इस झगड़े का एक ही स्थायी इलाज है - दिल्ली को पुनः केंद्र शासित प्रदेश बना देना. जिस प्रकार की व्यवस्था दिल्ली में विद्यमान है, उसमें अरविंद केजरीवाल जैसे राजनेता कभी काम नहीं कर सकते हैं. इसलिए केंद्र शासित प्रदेश बनाकर ही दिल्ली का विकास संभव है. दिल्ली को मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि एक सशक्त महापौर चाहिए जो नागरिकों की स्थानीय समस्याएं सुलझा सके. दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाना और तीन हिस्सों में बंटी दिल्ली नगर निगम को पुनः एक करना - यह दोनों कदम राजधानी के लिए अति आवश्यक हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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