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कश्मीर को आतंकवाद-मुक्‍त करने का यही सबसे सही समय है

    • गौरव चितरंजन सावंत
    • Updated: 12 जुलाई, 2017 09:14 PM
  • 12 जुलाई, 2017 09:14 PM
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देश और दुनिया के लोगों को अब भरोसा हो गया है कि कश्मीर में जो हो रहा है वो आजादी की लड़ाई नहीं बल्कि आतंकवाद है.

अमरनाथ यात्रा से लौटने वाले निहत्थे और निर्दोष तीर्थयात्रियों को निशाना बनाकर आतंकवादियों ने तो इस बार सारी हदें ही पार कर दी है. और तीर्थयात्रियों पर तब हमला करना जब वो श्रीनगर में घूमकर लौट रहे थे आग में घी के जैसा है. इस हमले से साफ संदेश दिया गया है कि कश्मीर में न तो तीर्थयात्री और न ही पर्यटक ही सुरक्षित हैं.

दक्षिण कश्मीर में कई आतंकवादी हमलों का होना साफ संकेत है कि अनंतनाग और आसपास के इलाकों में विदेशी और स्थानीय आतंकवादियों का एक बड़ा ग्रुप सक्रिय है. सुरक्षा बलों का कहना है कि कश्मीर में आतंक का मुख्य केंद्र अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम है.

जहां से आतंकी आते हैं, वहीं पर मार बेहद जरूरी.

बात चाहे अचाबल के एसएचओ फिरोज अहमद दार और उनकी टीम की हत्या की हो या फिर अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाने की, आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर को अपने लिए एक सुरक्षित जगह के लिए इस्तेमाल किया है. अब सुरक्षा बलों को गांव-गांव जाकर फिर से खोजबीन करना चाहिए और इन क्षेत्रों पर अपना कब्जा फिर से पाना चाहिए. साथ ही उन्हें ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आतंकवादी इन क्षेत्रों में वापस न आने पाएं.

26 जून, 2017 से खुफिया सूचनाएं मिल रहीं थीं कि अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया जाएगा. इसके मद्देनजर कड़ी सुरक्षा का इंतजाम किए गए थे. सुरक्षा बलों ने ये सुनिश्चित किया कि राज्य में प्रवेश करने और वापस आने तक सारे यात्री सुरक्षित रहें. हालांकि एक बस के यात्रियों ने सरकार के इन सुरक्षा कायदों (standard operating procedure) को फॉलो नहीं किया और यात्रा खत्म होने के बद श्रीनगर के दर्शनीय स्थलों को देखने चले गए.

इस तरह आतंकवादियों ने न केवल तीर्थयात्रियों को ही निशाना बनाया बल्कि उन्होंने पर्यटकों पर भी वार किया. हमले में सात लोग मारे गए...

अमरनाथ यात्रा से लौटने वाले निहत्थे और निर्दोष तीर्थयात्रियों को निशाना बनाकर आतंकवादियों ने तो इस बार सारी हदें ही पार कर दी है. और तीर्थयात्रियों पर तब हमला करना जब वो श्रीनगर में घूमकर लौट रहे थे आग में घी के जैसा है. इस हमले से साफ संदेश दिया गया है कि कश्मीर में न तो तीर्थयात्री और न ही पर्यटक ही सुरक्षित हैं.

दक्षिण कश्मीर में कई आतंकवादी हमलों का होना साफ संकेत है कि अनंतनाग और आसपास के इलाकों में विदेशी और स्थानीय आतंकवादियों का एक बड़ा ग्रुप सक्रिय है. सुरक्षा बलों का कहना है कि कश्मीर में आतंक का मुख्य केंद्र अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम है.

जहां से आतंकी आते हैं, वहीं पर मार बेहद जरूरी.

बात चाहे अचाबल के एसएचओ फिरोज अहमद दार और उनकी टीम की हत्या की हो या फिर अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाने की, आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर को अपने लिए एक सुरक्षित जगह के लिए इस्तेमाल किया है. अब सुरक्षा बलों को गांव-गांव जाकर फिर से खोजबीन करना चाहिए और इन क्षेत्रों पर अपना कब्जा फिर से पाना चाहिए. साथ ही उन्हें ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आतंकवादी इन क्षेत्रों में वापस न आने पाएं.

26 जून, 2017 से खुफिया सूचनाएं मिल रहीं थीं कि अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया जाएगा. इसके मद्देनजर कड़ी सुरक्षा का इंतजाम किए गए थे. सुरक्षा बलों ने ये सुनिश्चित किया कि राज्य में प्रवेश करने और वापस आने तक सारे यात्री सुरक्षित रहें. हालांकि एक बस के यात्रियों ने सरकार के इन सुरक्षा कायदों (standard operating procedure) को फॉलो नहीं किया और यात्रा खत्म होने के बद श्रीनगर के दर्शनीय स्थलों को देखने चले गए.

इस तरह आतंकवादियों ने न केवल तीर्थयात्रियों को ही निशाना बनाया बल्कि उन्होंने पर्यटकों पर भी वार किया. हमले में सात लोग मारे गए और 19 घायल हो गए. तो क्या कश्मीर पर्यटकों के लिए असुरक्षित जगह है? क्या पर्यटकों को 7 बजे के बाद अपने होटल के कमरों से बाहर नहीं निकलना चाहिए?

लोगों की सुरक्षा के लिए राज्य में कुछ नियम (standard operating procedure) बनाए गए हैं. सुरक्षा बल सुबह ही तैनात हो जाते हैं. सड़कों के ट्रैफिक को संभालने के लिए सुबह से शाम तक लोगों को तैनात रखा जाता है. यात्रियों को सुरक्षाबलों के घेरे में रखा जाता है. यात्रियों का काफिला 4.30 बजे पहुंचा और सड़क की देखभाल करने वाली पार्टी अगले दिन वापस आने के लिए 7.30 बजे चली गई थी. उस बस को 7.30 बजे के बाद क्यों जाने दिया गया? आखिर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उन्हें किसी भी चेकपॉइंट पर क्यों नहीं रोका? सुरक्षा बलों की तरफ से ये एक भारी भूल थी.

आतंकवादियों ने बड़ी ही प्लानिंग और कोऑर्डिनेशन के साथ बस पर हमला किया था. पहले उन्होंने एक पुलिस चौकी पर हमला किया, फिर अमरनाथ यात्रियों को ले जाने वाली बस उसके बाद सुरक्षा बलों के एक शिविर पर भी हमला किया जो आतंकवादियों के हमले के तुरंत जवाब दे सकते थे. उसके बाद आतंकवादी भाग गए.

तीर्थ यात्रियों पर हमला आतंकियों के लिए ही कफन साबित होगा

सेना और सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया है. उनका उद्देश्य लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी इस्माइल को बेअसर करना था. इस्माइल लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी बशीर लश्करी की हत्या के जवाब में घाटी में आतंकवादी हमले का नेतृत्व किया है. आतंकवादियों पर सुर्खियों में रहने के लिए हाई प्रोफाइल हमलों करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है. आतंकवादियों और पत्थर फेंकने वाले युवाओं के पीठ पर कुछ बौद्धिक लोगों का हाथ है. इनमें से कुछ ने तथाकथित आजादी की लड़ाई के नाम पर आतंकवादी हमलों को सही साबित करने की कोशिश की है और कुछ ने पत्थर फेंकने वाले युवकों का साथ विरोध के नाम पर दिया है.

सुरक्षा बलों का मानना ​​है कि पत्थर फेंकने वाले युवकों पर छर्रों के इस्तेमाल पर रोक और मेजर लेतुल गोगोई द्वारा चुनाव आयोग के अधिकारियों की रक्षा करने के मकसद से एक कथित पत्थरबाज को जीप की बोनट बांधने की घटना के बाद हुए हल्ला हंगामें के बाद उनके मनोबल में गिरावट आई है. लेकिन दो नए कामों के साथ चीफ जनरल बिपिन रावत ने नए रास्ते खोल दिए हैं.

स्टोन-पेल्टर यानी पत्थरबाजों को आतंकवादी संगठनों का ही हिस्सेदार माना जाएगा और उनसे उसी तरीके से निपटा भी जाएगा. और दूसरा मेजर गोगोई को उनके काम के लिए सम्मानित करके साफ संदेश दिया गया है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने के मामले में चीफ अपने साथी आर्मी ऑफिसरों और जवानों के साथ खड़े हैं.

हालांकि अब पत्थर फेंकने की घटनाओं में कमी जरुर आई है लेकिन बंद नहीं हुए हैं. पत्थरबाजों की मदद से कई आतंकवादी भागने में सफल हुए है. लेकिन सुरक्षा बलों का कहना है कि अब इस खेल के नियम बदल गए हैं. देश और दुनिया के लोगों को अब भरोसा हो गया है कि कश्मीर में जो हो रहा है वो आजाकी की लड़ाई नहीं बल्कि आतंकवाद है. कश्मीर के मुस्लिम पुलिस अधिकारी मोहम्मद अयूब पंडित और अमरनाथ यात्रियों की हत्या के बाद ये बात साबित भी हो गई है.

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आतंकवादियों पर कड़ा रुख अपनाते हुए दिखता चाहती है. और अब घाटी में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित कट्टरपंथी धार्मिक आतंक को खत्म करने का यही सबसे सही समय है. अभी नहीं तो कभी नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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