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कश्मीर फाइल्स या ब्राह्मण फाइल्स? बात तो होनी ही चाहिए...

    • अजीत कुमार मिश्रा
    • Updated: 28 मार्च, 2022 05:26 PM
  • 28 मार्च, 2022 05:14 PM
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अक्सर कश्मीरी ब्राह्मण ये तर्क देते हैं कि इतनी पीड़ा के बाद भी हममें से कोई आतंकी नहीं बना. ठीक है आप आतंकी नहीं बने लेकिन काश आप में से कोई परशुराम ही बन जाता तो आज द कश्मीर फाइल्स देख कर हमारी आंखों में आंसू नहीं होते.

सवा रुपये में सत्यनारायण की कथा कहने वाले और 101 रुपये में विवाह करवाने वाले ब्राह्मणों को मनुवादी और ब्राह्मणवादी शोषक, लुटेरा कहने वाले तो लाखों लोग मिल जाएंगे लेकिन पिछले सौ सालों में ही कम से कम तीन बार ब्राह्मणों के नरसंहार पर बोलने वाला कोई नहीं मिलेगा. जब 1920 में मोपला दंगों के दौरान हज़ारों नंबूदरी ब्राहम्णों का कत्ल किया जा रहा था, उनका जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा था और उनकी औरतों के साथ बलात्कार हो रहे थे उस वक्त हमारे बापू 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' का भजन गाकर तुर्की के पदच्युत खलीफा के समर्थन मेंं देश के मुसलमानों का तुष्टि करण करने के लिए खिलाफत आंदोलन चला रहे थे.जब बापू की हत्या नाथूराम गोडसे ने कर दी तो उसके जवाब में गांधीवादियों ने लगभग 8000 चित्तपावन ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या कर दी थी तो उस वक्त नेहरु जी देश में सेकुलेरिज़म के कीड़े से रेशमी टोपी निकाल कर अबुल कलाम आजाद को पहना रहे थे.

पूर्व में तमाम तरह की यातनाएं थीं जिन्हें कश्मीरी पंडितों के साथ साथ पूरे ब्राह्मण समुदाय ने भोगा है

जब कश्मीर में सूफीवादी, कश्मीरियत और जम्हूरियत के पुरोधा कश्मीरी ब्राह्मणों का कत्लेआम कर उन्हें कश्मीर से भगा रहे थे तो उस वक्त प्रधानमंत्री वीपी सिंह मंडल में कमंडल का तोड़ ढूंढने में व्यस्त थे. शायद दुनिया में यहूदियो के बाद अगर किसी जाति का ऐसे अनेकों बार सामूहिक नरसंहार किया गया तो वो जाति ब्राह्मण ही रही है. इसके उल्लेख पुराणों और महाकाव्यों में भी मिलते हैं.

महाभारत में जब हैहय वंश के राजाओं ने भार्गव ब्राह्मणों का नरसंहार शुरु किया तो आखिरकार ब्राहम्ण परशुराम को अपना फरसा उठाना ही पड़ा और अत्याचारी क्षत्रियों से इस धरती को विहीन करना ही पड़ा था. निर्बल के बल राम भी सीता हरण से बहुत पहले ही राक्षसों...

सवा रुपये में सत्यनारायण की कथा कहने वाले और 101 रुपये में विवाह करवाने वाले ब्राह्मणों को मनुवादी और ब्राह्मणवादी शोषक, लुटेरा कहने वाले तो लाखों लोग मिल जाएंगे लेकिन पिछले सौ सालों में ही कम से कम तीन बार ब्राह्मणों के नरसंहार पर बोलने वाला कोई नहीं मिलेगा. जब 1920 में मोपला दंगों के दौरान हज़ारों नंबूदरी ब्राहम्णों का कत्ल किया जा रहा था, उनका जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा था और उनकी औरतों के साथ बलात्कार हो रहे थे उस वक्त हमारे बापू 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' का भजन गाकर तुर्की के पदच्युत खलीफा के समर्थन मेंं देश के मुसलमानों का तुष्टि करण करने के लिए खिलाफत आंदोलन चला रहे थे.जब बापू की हत्या नाथूराम गोडसे ने कर दी तो उसके जवाब में गांधीवादियों ने लगभग 8000 चित्तपावन ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या कर दी थी तो उस वक्त नेहरु जी देश में सेकुलेरिज़म के कीड़े से रेशमी टोपी निकाल कर अबुल कलाम आजाद को पहना रहे थे.

पूर्व में तमाम तरह की यातनाएं थीं जिन्हें कश्मीरी पंडितों के साथ साथ पूरे ब्राह्मण समुदाय ने भोगा है

जब कश्मीर में सूफीवादी, कश्मीरियत और जम्हूरियत के पुरोधा कश्मीरी ब्राह्मणों का कत्लेआम कर उन्हें कश्मीर से भगा रहे थे तो उस वक्त प्रधानमंत्री वीपी सिंह मंडल में कमंडल का तोड़ ढूंढने में व्यस्त थे. शायद दुनिया में यहूदियो के बाद अगर किसी जाति का ऐसे अनेकों बार सामूहिक नरसंहार किया गया तो वो जाति ब्राह्मण ही रही है. इसके उल्लेख पुराणों और महाकाव्यों में भी मिलते हैं.

महाभारत में जब हैहय वंश के राजाओं ने भार्गव ब्राह्मणों का नरसंहार शुरु किया तो आखिरकार ब्राहम्ण परशुराम को अपना फरसा उठाना ही पड़ा और अत्याचारी क्षत्रियों से इस धरती को विहीन करना ही पड़ा था. निर्बल के बल राम भी सीता हरण से बहुत पहले ही राक्षसों के संहार की प्रतिज्ञा लेते हैं.

वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड में जब राम ऋषि सुतीक्ष्ण के आश्रम से विदा लेते हैं तो वहां मौजूद ब्राहम्ण ऋषिगण उन्हेंं दंडकारण्य में फैले मृत ब्राहम्णों की अस्थियां दिखाते हैं और बताते हैं कि रावण के नेतृत्व में राक्षसों ने कैसे ब्राहम्णों को अपना निशाना बनाया है और उनका सामूहिक नरसंहार करते हैं.

विचलित राम राक्षसों के पूर्ण संहार की प्रतिज्ञा ले लेते हैं. जब सीता उनसे कहती हैं कि जब आपकी सीधी दुश्मनी राक्षसों से नहीं है तो आपने ये प्रतिज्ञा क्यों ले ली इसका दुष्परिणाम भयावह होगा. तो इस पर राम कहते हैं -

अपि अहम् जीवितम् जह्याम्

त्वाम् वा सीते स लक्ष्मणाम्

न तु प्रतिज्ञाम् संश्रुत्य ब्राह्मणेभ्यो विशेषतः

अर्थः- सीते मैं अपना जीवन त्याग सकता हूं, तुम्हें और लक्ष्मण को भी छोड़ सकता हूं लेकिन पीड़ित ब्राह्मणों को दिए अपने वचन को मैं कभी नहीं छोड़ सकता. हालांकि सीता की भविष्यवाणी सही हुई और राम की इस प्रतिज्ञा का परिणाम रावण द्वारा सीता हरण में दिखा.

तुलसी के राम भी गो, द्विज, धेनु देव हितकारी कहे गए तो कहीं न कहीं समाज में राक्षसी प्रवृत्तियों के उदय की पहचान ब्राहम्णों, गायों पर अत्याचार ही रहे होंगे. तभी श्रीकृ्ष्ण भी महाभारत में भगवान शिव से तपस्या के बाद यही वरदान मांगते हैं कि वो ब्राह्मणों की रक्षा कर सके.

जब राक्षसी प्रवृत्तियों का उदय गजनी के हमले से शुरु होता है तो सोमनाथ में 50 हजार से ज्यादा ब्राहम्णों का सामूहिक नरसंहार होता है. जब औरंगजेब मथुरा और काशी के मंदिरों को तोड़ता है तो हजारों ब्राह्मणों का नरसंहार होता है. कहा जाता है कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ के मंदिर को तोड़ने के विरोध में खड़े ब्राह्मणों की मौत के बाद उनके जनेउ को तौला गया तो वो करीब 60 मन निकला था.

ऐसे सामूुहिक नरसंहारों की पीड़ा को आज तक किसी ने नहीं दिखाया. या तो ब्राह्मण परशुराम बन कर अपनी रक्षा में खुद खड़े हुए या फिर विश्वामित्र, अगत्स्य और भारद्वाज बन कर श्रीराम को अस्त्र शस्त्र देते है, गुरु संदीपनी बन कर श्रीकृष्ण से राक्षसों का वध करवाते हैं, गुरु विद्यारण्य बनकर हरिहर बुक्का से महान विजयनगर साम्राज्य का निर्माण कर हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करवाते हैं, समर्थ गुरु रामदास बन कर क्षत्रपति शिवाजी को हिन्दू हृदय सम्राट बनाते हैं.

अक्सर कश्मीरी ब्राह्मण ये तर्क देते हैं कि इतनी पीड़ा के बाद भी हममें से कोई आतंकी नहीं बना. ठीक है आप आतंकी नहीं बने लेकिन काश आप में से कोई परशुराम ही बन जाता तो आज द कश्मीर फाइल्स देख कर हमारी आंखों में आंसू नहीं होते. दरअसल कि ब्राह्मण यहूदियों की तरह हैं. कभी मंडल के नाम पर तो कभी इस्लामिक आतंक के नाम पर तो कभी बापू की हत्या के नाम पर तो कभी किसी और वजह से इनका नरसंहार होता रहेगा क्योंकि ये वामपंथी इतिहास की पुस्तकों में एक शोषक जाति के रुप में दर्ज किए जा चुके हैं और वर्तमान पीढ़ी भी यही पढ़ रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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