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जम्मू-कश्मीर प्रशासन में घुसे 'आतंकवादियों' के चहरे से नकाब उतरा

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 26 सितम्बर, 2021 01:49 PM
  • 26 सितम्बर, 2021 01:49 PM
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जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कई सरकारी कर्मचारियों को उनकी कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए बर्खास्त किया है. दिलचस्प ये कि पिछले मौकों के उलट इस बार 5 लाख सरकारी कर्मचारियों की बिरादरी खामोश है. कहीं कोई बंद का एलान या उपद्रव नहीं है.

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस साल में पारंपरिक सेवा नियमों में संशोधन करने के बाद करीब दो दर्जन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. बुधवार 22 सितंबर को बर्खास्त किए गए ताजा लॉट में एक फॉरेस्ट रेंज अधिकारी, एक जूनियर असिस्टेंट, दो सरकारी स्कूल शिक्षक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो कांस्टेबल शामिल हैं. सरकारी कर्मचारियों को उनकी कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए बर्खास्त करने के पिछले मौकों के उलट इस बार, 5 लाख सरकारी कर्मचारियों की बिरादरी शांत और खामोश है. किसी विरोध की कोई रिपोर्ट नहीं है, न बंद का आह्वान किया गया है, न ट्रेड यूनियनों ने सरकारी व्यवस्था को पंगु बनाने की धमकी दी है जैसा कि उन्होंने पिछले 32 वर्षों में आतंकवाद के दौरान कई बार किया है. बंदूक की नोक पर या लंबे समय तक अलगाववादियों के राजनीतिक दबदबे के कारण सरकारी नौकरियों को हथियाना जम्मू और कश्मीर में 1990 के बाद के 20 वर्षों में एक न्यू नॉर्मल था. इसलिए आतंकवादी रहकर भी राज्य पुलिस और सुरक्षा बलों से लड़ते हुए या गिरफ्तारी या आत्मसमर्पण के बाद सरकारी नौकरी पाने की प्रथा बरकरार रही. घाटी में यह एक खुला रहस्य था.

मनोज सिन्हा ने सरकारी अमले में घुसे आतं‍कवादियों-अलगाववादियों को उनकी हद से रू-ब-रू करा दिया है

2012 में एक बार, एक शीर्ष अल-जिहाद कमांडर को भी जम्मू-कश्मीर की उच्च न्यायिक सेवा में नौकरी में रखे जाने की असफल कोशिश की गई थी. वह शख्स (सीआईडी रिकॉर्ड के अनुसार) सुरक्षा बलों के साथ कई मुठभेड़ों में शामिल था. न्यायिक सेवा में आने के बाद वह जज बन जाता और क्या पता हाइकोर्ट में भी जज्जी पा लेता. खबरे हैं कि लगातार दो अलग मुख्यमंत्रियों ने उसकी मदद की थी, लेकिन एक पीड़ित ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी और मीडिया ने जब इस...

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस साल में पारंपरिक सेवा नियमों में संशोधन करने के बाद करीब दो दर्जन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. बुधवार 22 सितंबर को बर्खास्त किए गए ताजा लॉट में एक फॉरेस्ट रेंज अधिकारी, एक जूनियर असिस्टेंट, दो सरकारी स्कूल शिक्षक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो कांस्टेबल शामिल हैं. सरकारी कर्मचारियों को उनकी कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए बर्खास्त करने के पिछले मौकों के उलट इस बार, 5 लाख सरकारी कर्मचारियों की बिरादरी शांत और खामोश है. किसी विरोध की कोई रिपोर्ट नहीं है, न बंद का आह्वान किया गया है, न ट्रेड यूनियनों ने सरकारी व्यवस्था को पंगु बनाने की धमकी दी है जैसा कि उन्होंने पिछले 32 वर्षों में आतंकवाद के दौरान कई बार किया है. बंदूक की नोक पर या लंबे समय तक अलगाववादियों के राजनीतिक दबदबे के कारण सरकारी नौकरियों को हथियाना जम्मू और कश्मीर में 1990 के बाद के 20 वर्षों में एक न्यू नॉर्मल था. इसलिए आतंकवादी रहकर भी राज्य पुलिस और सुरक्षा बलों से लड़ते हुए या गिरफ्तारी या आत्मसमर्पण के बाद सरकारी नौकरी पाने की प्रथा बरकरार रही. घाटी में यह एक खुला रहस्य था.

मनोज सिन्हा ने सरकारी अमले में घुसे आतं‍कवादियों-अलगाववादियों को उनकी हद से रू-ब-रू करा दिया है

2012 में एक बार, एक शीर्ष अल-जिहाद कमांडर को भी जम्मू-कश्मीर की उच्च न्यायिक सेवा में नौकरी में रखे जाने की असफल कोशिश की गई थी. वह शख्स (सीआईडी रिकॉर्ड के अनुसार) सुरक्षा बलों के साथ कई मुठभेड़ों में शामिल था. न्यायिक सेवा में आने के बाद वह जज बन जाता और क्या पता हाइकोर्ट में भी जज्जी पा लेता. खबरे हैं कि लगातार दो अलग मुख्यमंत्रियों ने उसकी मदद की थी, लेकिन एक पीड़ित ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी और मीडिया ने जब इस मामले की रिपोर्टिंग कर दी तो यह कोशिश नाकाम रही.

एक अन्य मौके पर, कश्मीर विश्वविद्यालय में 128 रिश्तेदारों की नियुक्तियों को लेकर भी शिकायत की गई थी और यह मामला एक राज्यपाल और मुख्य सचिव तक पहुंचा था. शिकायतों के मुताबिक, विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रशासनिक पद पर रहा एक अधिकारी एक खास धार्मिक संगठन का सदस्य था, और उसके आतंकवादियों के साथ गहरे रिश्ते थे. इसकी जांच एक पुलिस एजेंसी ने की और इन शिकायतों की पुष्टि की थी, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया.

और जब कुछ खास मामलों में जब कुछ कर्मचारियों के आतंकवादियों से गहरे रिश्तों के सामने सरकार को बाध्य होकर उन्हें बर्खास्त करने की कोशिश की गई तो राजनीतिक दबावों से ऐसी कार्रवाइयां रोकनी पड़ीं. लोकसेवा में घुसपैठ करने वाले ऐसे लोग शायद ही कभी नौकरी बजाने पर जाते थे, पर सही वक्त पर तनख्वाह जरूर उठाते थे.

यही लोग असल में 2008, 2009, 2010 और 2016 में आतंकवादियों और अलगवादी समूहों द्वारा आयोजित हड़तालों में लोगों को जुटाने में अगुआ रहे थे. एक के बाद एक सरकारों और राज्यपालो ने इस पर कार्रवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. आधिकारिक दस्तावेजों के आधार पर अहमद अली फैयाज की रिपोर्ट है- पुंछ का फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर तारिक महमूद कोहली अवैध हथियारों, गोला-बारूद, नशीली दवाओं और नकली भारतीय नोट के पाकिस्तान से तस्करी में मुब्तिला था.

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने उसे सिम कार्ड्स मुहैया कराए थे जिससे वह सीमापार तस्करी की योजनाएं बनाता था. वह 1990 से 2000 के बीच पुंछ में आतंकवाद को कायम रखने के लिए जिम्मेदार था. लश्कर-ए-तैबा के साथ ही आला कमांडरों मसलन अबू हंजाला के साथ नजदीकी रिश्तों के कारण कोहली को पीएसए के तहत हिरासत में रखा गया था लेकिन उसने एसएसपी और जिला मजिस्ट्रेट को दवाब में लाकर इस जांच प्रक्रिया को बाधित कर दिया.

किश्तवाड़ का कॉन्स्टेबल जफर हुसैन जिला मजिस्ट्रेट की एस्कॉर्ट दलीप सिंह से एके-47 लूटने का जिम्मेदार था. यह लूट 8 मार्च, 2019 को हुई थी और भाजपा नेता अनिल परिहार और उनके भाई अजीत परिहार की हत्या के ठीक बाद की गई थी. भट ने अपनी मारुति अल्टो कार जेके 17-5025 कार हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ओसामा बिन जावेद. हारून अब्बास वानी और जाहिद हुसैन को अपराधों के लिए मुहैया कराई थी.

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, अर्थ, नरबल, बडगाम का सेलेक्शन ग्रेड कांस्टेबल शौकत अहमद खान, लश्कर का "कट्टर हमदर्द और ओवर ग्राउंड वर्कर" (ओजीडब्ल्यू) है, जिसने अलगाववादी एजेंडे को वैधता देने के लिए एक पुलिसकर्मी के रूप में अपने पद का इस्तेमाल किया. वह गुप्त रूप से 'राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक गतिविधियों' में शामिल था.

सड़क और निर्माण विभाग में एक जूनियर असिस्टेंट, किश्तवाड़ के पोछल के मोहम्मद रफी भट का नाम अपने सहयोगी तारिक हुसैन गिरि को गिरफ्तार किए जाने और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा पूछताछ के बाद सामने आया, जो आरएसएस नेता चंद्रकांत की हत्या की जांच कर रही थी. चंद्रकांत और उनके पीएसओ राजिंदर कुमार 9 अप्रैल, 2019 को जिला अस्पताल किश्तवाड़ के अंदर एक आतंकवादी हमले में मारे गए थे.

जांच से पता चला कि भट ने तीन आतंकवादियों-ओसामा बिन जावेद, हारून अब्बास वानी और जाहिद हुसैन को लॉजिस्टिक सहायता प्रदान की थी, जिन्होंने योजना बनाई थी और आरएसएस नेता की हत्या को अंजाम दिया. नम्बला, उरी, बारामूला के शिक्षक लियाकत अली काकरू को दिसंबर 2001 में श्रीनगर के छन मोहल्ला, चट्टाबल से दो हथगोले और 20 विस्फोटक छड़ों के साथ गिरफ्तार किया गया और तब जाकर पता चला कि वह एक प्रशिक्षित आतंकवादी है.

उसे बेशक जमानत मिल गई लेकिन फिर भी उसने अपनी आतंकी गतिविधियां जारी रखी थी. जून 2002 में, उसे एक चीनी पिस्तौल और एक हथगोले सहित हथियारों और गोला-बारूद के साथ फिर से गिरफ्तार किया गया. वह एक हिजबुल मुजाहिदीन ओजीडब्ल्यू पाया गया, जो मुख्य रूप से उसके कैडरों और हथियारों के परिवहन में शामिल था. जमानत पर रिहा होने के बाद, उसे अप्रैल 2021 में एक चीनी ग्रेनेड के साथ फिर से गिरफ्तार किया गया था.

दुपत्यार बिजबेहरा, अनंतनाग के शिक्षक अब्दुल हमीद वानी का नाम गैरकानूनी जमात-ए-इस्लामी के साथ अपने जुड़ाव के कारण सामने आया और बाद में पता चला कि वह अल्लाह टाइगर्स का 'जिला कमांडर' है. वानी और उसके साथियों ने बंदूक की नोंक पर स्थानीय लोगों से रंगदारी वसूल की. यह समूह सिनेमाघरों को बंद करने के अपने अभियान के लिए जाना जाता था.

इसने कथित तौर पर बिना किसी चयन प्रक्रिया के खुद को गन पॉइंट पर शिक्षक के रूप में नियुक्त करवा लिया. वानी ने स्थानीय मस्जिदों में जुमे की नमाज़ में जिहाद का उपदेश देते हुए आतंकवाद और अलगाववाद की अपनी विचारधारा को बढ़ावा दिया. पर अब जब जम्मू-कश्मीर में प्रशासन चौकसी बरत रहा है, लगता है आतंकवादियों की ऐसी दुकानें बंद हो रही हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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