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Tejashwi Yadav का चुनावी चोला धीरे धीरे उतरने लगा है

    • आईचौक
    • Updated: 28 नवम्बर, 2020 01:29 PM
  • 28 नवम्बर, 2020 01:29 PM
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तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की विधानसभा में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को लेकर की गयी टिप्पणी को सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया है. ये बता रहा है कि उसका स्तर क्या रहा - क्या आरजेडी ने फिर से 'जंगलराज' (Jungle-raj) का रुख कर लिया है?

जीत का भरोसा इंसान को काफी बड़ा बना देता है और हार इंसान का कद कुतर देती है. जो भी जीत और हार को खेल भावना से लेता है, फील्ड जो भी हो, लंबी पारी खेलता है - वरना, वही हाल होता है जो हाल फिलहाल तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के हाव-भाव और बात-व्यवहार में देखने को मिल रहा है.

तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जो परिपक्वता प्रदर्शित की थी, अभी तो ठीक उसका उलटा जो हो सकता है वो खुद पेश करने लगे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे वो जो चुनावी चोला ओढ़े हुए थे, उतार कर खूंटी पर टांग चुके हैं और अपने ओरिजिनल फॉर्म में लौटने लगे हैं.

लालू प्रसाद यादव के साये से निकल कर भी अपने वाले जिस खांटी अंदाज में वो चुनाव प्रचार कर रहे थे, लगता है असलियत धीरे धीरे सामने आने लगी है - और अब तो ऐसा लग रहा है जिस साये से निकलने की वो कोशिश करते दिखे उसी पुराने रंग में खुद को फिर से रंगते जा रहे हैं. बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है वो मर्यादा की सारी हदें पार करने वाली ही समझी जाएगी.

जैसे चुनावों के दौरान सस्ती और घटिया भाषा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, बिहार विधानसभा चुनावों में भी देखा गया. सबने सुना कि कैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) रैलियों में समझाते फिर रहे थे कि लालू यादव ने बीवी को मुख्यमंत्री बनाने और बच्चे पैदा करने के अलावा किया क्या? बावजूद इसके तेजस्वी यादव शालीनता से रिएक्ट करते देखे गये, लेकिन अब वही तेजस्वी यादव विधानसभा में कह रहे हैं - 'बेटी के डर से नीतीश कुमार ने दूसरा बच्चा पैदा नहीं होने दिया.'

मीडिया में आयी खबरों में एक हेडलाइन चल रही है - नीतीश कुमार को गुस्सा क्यों आता है? अगर ये सवाल है तो जबाव के लिए बहुत भटकने की जरूरत नहीं लगती. जिस तरीके से तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर निजी हमले किये हैं वो संवैधानिक परंपराओं पर प्रहार है. वैसी भाषा के बाद भी अगर नीतीश कुमार को गुस्सा न आये तो ऐसा लगता जैसे या तो वो सांसारिक चीजों से संन्यास लेकर संत हो चुके हैं या फिर बढ़ती उम्र...

जीत का भरोसा इंसान को काफी बड़ा बना देता है और हार इंसान का कद कुतर देती है. जो भी जीत और हार को खेल भावना से लेता है, फील्ड जो भी हो, लंबी पारी खेलता है - वरना, वही हाल होता है जो हाल फिलहाल तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के हाव-भाव और बात-व्यवहार में देखने को मिल रहा है.

तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जो परिपक्वता प्रदर्शित की थी, अभी तो ठीक उसका उलटा जो हो सकता है वो खुद पेश करने लगे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे वो जो चुनावी चोला ओढ़े हुए थे, उतार कर खूंटी पर टांग चुके हैं और अपने ओरिजिनल फॉर्म में लौटने लगे हैं.

लालू प्रसाद यादव के साये से निकल कर भी अपने वाले जिस खांटी अंदाज में वो चुनाव प्रचार कर रहे थे, लगता है असलियत धीरे धीरे सामने आने लगी है - और अब तो ऐसा लग रहा है जिस साये से निकलने की वो कोशिश करते दिखे उसी पुराने रंग में खुद को फिर से रंगते जा रहे हैं. बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है वो मर्यादा की सारी हदें पार करने वाली ही समझी जाएगी.

जैसे चुनावों के दौरान सस्ती और घटिया भाषा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, बिहार विधानसभा चुनावों में भी देखा गया. सबने सुना कि कैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) रैलियों में समझाते फिर रहे थे कि लालू यादव ने बीवी को मुख्यमंत्री बनाने और बच्चे पैदा करने के अलावा किया क्या? बावजूद इसके तेजस्वी यादव शालीनता से रिएक्ट करते देखे गये, लेकिन अब वही तेजस्वी यादव विधानसभा में कह रहे हैं - 'बेटी के डर से नीतीश कुमार ने दूसरा बच्चा पैदा नहीं होने दिया.'

मीडिया में आयी खबरों में एक हेडलाइन चल रही है - नीतीश कुमार को गुस्सा क्यों आता है? अगर ये सवाल है तो जबाव के लिए बहुत भटकने की जरूरत नहीं लगती. जिस तरीके से तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर निजी हमले किये हैं वो संवैधानिक परंपराओं पर प्रहार है. वैसी भाषा के बाद भी अगर नीतीश कुमार को गुस्सा न आये तो ऐसा लगता जैसे या तो वो सांसारिक चीजों से संन्यास लेकर संत हो चुके हैं या फिर बढ़ती उम्र की वजह से सुध-बुध खो बैठे हैं. तेजस्वी यादव के बयान पर नीतीश कुमार का गुस्सा उनके मानसिक तौर पर स्वस्थ और मजबूत होने की निशानी पेश कर रहा है.

ऐसे में जबकि देश में अनैतिक तौर तरीकों से चुनी हुई सरकारें गिराकर सत्ता हासिल करना सामान्य प्रक्रिया बन चुकी हो, तेजस्वी यादव अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हों तो वो शुद्ध देसी राजनीति का हिस्सा ही समझा जाएगा. जंगलराज की बहस को कुछ देर के लिए किनारे रख कर सोचें तो सबको मालूम होना चाहिये कि तेजस्वी यादव कोई चैरिटी के लिए राजनीति में नहीं हैं. वैसे भी वो क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन किस्मत ने खानदानी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का टास्क उनके लिए तय कर रखा था. वो ये काम बहुत अच्छे से करते भी आये थे, लेकिन लगता है हार को हजम न कर पाने के कारण बेकाबू हालात के आगे बेबस हो चले हैं.

लालू प्रसाद ने जेल में बंद रहते हुए भी नेताओं को फोन कर सरकार गिराने के आरोपों के चलते अलग फजीहत करा ली है. झारखंड सरकार को सारी सुविधायें वापस लेते हुए मामले में जांच के आदेश देने के साथ ही, लालू यादव को वापस रिम्स के प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट करना पड़ा है - और जैसे तैसे सत्ता हासिल करने की कवायद में तेजस्वी यादव लोगों के ये संदेश दे रहे हैं कि अगर किसी ने उनके बारे में कोई नया अवधारणा बनायी है तो वो फिर से विचार कर सकता है. ऐसा क्यों लगता है जैसे आरजेडी ने फिर से 'जंगलराज' (Jungleraj) की तरफ रुख कर लिया हो.

नीतीश कुमार का गुस्सा स्वाभाविक है

तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को जवाब देने के लिए जगह का चुनाव गलत कर लिया था. नीतीश कुमार पर जो टिप्पणी तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा में की, बिलकुल वही सारे शब्द अगर चुनावी सभाओं में बोल दिये होते तो जेडीयू नेता चूं तक नहीं करते. चुनावी रैलियों में नीतीश कुमार ने लालू परिवार पर निजी हमलों के मामले में सारी सीमाएं लांघ डाली थी.

हो सकता है नीतीश कुमार की लालू परिवार पर टिप्पणियों की वजह से भी उनका जगह जगह विरोध हुआ हो या फिर कई रैलियों में 'लालू यादव जिंदाबाद' और 'नीतीश कुमार मुर्दाबाद' के नारे भी लगे हों. अपने नेता के खिलाफ कहीं कि भी जनता निजी हमले तो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करती - और इस थ्योरी के हिसाब से तेजस्वी यादव को भी वैसी ही प्रतिक्रिया के लिए पहले से ही मन बना लेना चाहिये.

चुनावी रैलियों में नीतीश कुमार खुलेआम पूछा करते थे कि तेजस्वी यादव बतायें कि लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में किसके घर रुके थे?

कई रैलियों में तो नीतीश कुमार ये भी कहते सुने गये - 'जो लोग आठ-आठ, नौ-नौ बच्चा पैदा कर रहे हैं वो विकास क्या करेंगे?'

विधानसभा के भीतर चुनावी आरोप-प्रत्यारोप की एंट्री, खुदा खैर करे!

चाहे जिस किसी की भी सलाहियत हो, तेजस्वी यादव ने बड़ी ही संजीदगी के साथ या तो नजरअंदाज कर दिया या फिर ऐसी बातें बोली जैसे कोई बहुत ही समझदार और परिपक्व नेता बोलता है.

नीतीश कुमार की टिप्पणी पर तेजस्वी यादव से रिएक्शन मांगे जाने पर सिर्फ इतना ही बोले, 'मैं तो पहले भी कह चुका हूं कि नीतीश जी जो भी कहते हैं मैं उनकी बातों को आशीर्वचन की तरह लेता हूं.'

हालांकि, उसके ठीक बाद जो बोला वो काफी गंभीर बात होती थी. बहुत बड़ा कटाक्ष सुनने को मिलता था, लेकिन मर्यादा कभी टूटती नहीं देखी. तेजस्वी ने कहा, 'नीतीश कुमार के इस बयान से महिलाओं की मर्यादा को ठेस पहुंची है.'

तब तो नीतीश कुमार की लालू परिवार पर टिप्पणी और तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया सुन कर ऐसा लगा जैसे नीतीश कुमार कितना घटिया सोचते और बोलते हैं, जबकि तेजस्वी यादव की सोच कितनी शानदार है और वो कितने समझदार हो गये हैं, लेकिन चुनावी समझदारी एक हार के चलते कैसे काफूर हो गयी, लगता है तेजस्वी यादव को भी इसकी भनक तक नहीं लगी है.

अब जरा वो भी जान लीजिये जो कुछ तेजस्वी यादव ने सदन में कहा - 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बेटे हैं... है या नहीं - ये तो वही बताएंगे. किसी मुख्यमंत्री को कितना शोभा देता है किसी के बच्चे गिनने में...'

तेजस्वी यादव के इतना कहते ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों में कहासुनी होने लगी और तेजस्वी की तरफ से तेज प्रताप भी बोलने लगे. तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के ऊपर हत्या के एक पुराने केस की याद दिलायी और उस पर स्पीकर ने वस्तुस्थिति सामने रखी. तेजस्वी यादव ने कहा कि नीतीश कुमार ने इस बार भी जनादेश की चोरी की है और चोर दरवाजे से सत्ता में आये हैं.

तेजस्वी यादव ने कहा कि चुनाव में नीतीश कुमार बच्चे गिन रहे थे, 'हमारे मां-बाप के बारे में कहा कि बेटा की चाह में बेटी पैदा करते रहे, जबकि हकीकत ये भी है कि दो भाइयों के बाद एक बहन भी पैदा हुई है... मुख्यमंत्री को एक बेटा है. आगे कोई बेटी पैदा न हो जाये - क्या इसी डर से उन्होंने दूसरी संतान को जन्म नहीं दिया?'

बाकी बातें तो जो रहीं वो रहीं ही, तेजस्वी यादव का ये कहना कि 'एक बेटे हैं... है या नहीं - ये तो वही बताएंगे' सुन कर नीतीश कुमार ही नहीं किसी के लिए भी बर्दाश्त करना मुश्किल होता.

नीतीश कुमार भी आपा खो बैठे और बोलते चले गये - तुम चार्जशीटेड हो... मेरे मित्र के पुत्र हो... जिनको मैंने नेता बनाया था. तब जाकर वो मुख्यमंत्री बने थे.

गुस्से में तमतमाये नीतीश कुमार ने स्पीकर की तरफ देखते हुए कहा, 'इसकी जांच करवाइये और इसके खिलाफ कार्रवाई होगी - 'ये झूठ बोल रहा है. मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है, इसलिए सुनते रहते हैं.'

जंगलराज की ओर लौटती आरजेडी की राजनीति

चुनावों में तो तेजस्वी यादव हरेक रैली में कहा करते थे कि उनके बर्थडे 9 नवंबर को लालू यादव जेल से छूट कर पटना पहुंचेंगे और 10 नवंबर को नतीजे आने के साथ ही नीतीश कुमार की विदायी हो जाएगी. चुनावों में तो 'काले धन के 15-15 लाख...' वाले जुमले भी चल जाते हैं, लेकिन चुनाव बाद ज्यादातर चीजें काफी हद तक बदल जाती हैं. लालू यादव की जमानत पर हुई सुनवाई के बाद मामला एक बार फिर टल गया है और अगली तारीख 11 दिसंबर मुकर्रर हुई है.

अभी तो लालू यादव के बीजेपी विधायक ललन पासवान को फोन किये जाने की जांच चल रही है, लेकिन ललन पासवान की तरफ से जो एफआईआर दर्ज करायी गयी है उससे कुछ न कुछ राजनीति तो समझ में आ ही रही है. ललन पासवान का कहना है कि लालू यादव ने ललन पासवान को स्पीकर के चुनाव के दौरान ऐबसेंट रहने को कहा था. ललन पासवान की तरह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और वीआईपी नेता मुकेश साहनी ने भी लालू यादव के संपर्क करने की कोशिश की बात कंफर्म की है.

ये तो ऐसा लगता है कि स्पीकर चुनाव में एनडीए की जगह महागठबंधन के प्रत्याशी को जीत हासिल हो जाती तो आगे के लिए रास्ता आसान हो जाता है. वैसे बी ललन पासवान के मुताबिक, उनको महागठबंधन की सरकार बनने पर मंत्री बनाये जाने का ऑफर मिला ही था.

हाल फिलहाल कई राज्यों में सरकारों की तख्तापलट की कोशिश में स्पीकर की काफी अहम भूमिका देखी गयी है - कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभाओं के स्पीकर कितने एक्टिव देखे गये एक बार गौर फरमाइएगा. मतलब, महागठबंधन की सरकार बनाने का रास्ता स्पीकर के जरिये तय करने की कोशिश चल रही थी.

तेजस्वी यादव के महागठबंधन की सरकार बनाने का दावा सुन कर पहले तो ऐसा लगता था जैसे विधायकों को निराश न होने के लिए कोई नसीहत दी जा रही हो. ये डर तो है ही कि आरजेडी के राजनीतिक विरोधी तो बस मौके की ताक में बैठे हैं - मौका मिला नहीं कि 'ऑपरेशन लोटस' या फिर 'ऑपरेशन ऐरो' चल पड़ेगा और तेजस्वी यादव के साथ साथ राहुल गांधी भी हाथ मलते रह जाएंगे.

लेकिन लालू यादव के बिहार के नेताओं से संपर्क साधे जाने के आरोपों से तो ऐसा लगता है कि येन केन प्रकारेण महागठबंधन की सरकार बनाने की कवायद युद्ध स्तर पर ही चल रही है - और इसके लिए लालू यादव के जेल से बाहर आने का इंतजार है. अगर ऐसा संभव हो पाया तो ये कवायद फुल स्पीड पकड़ लेगी. हालांकि, जिस तरह के आरोप लालू यादव पर लगे हैं, अदालत में बहस तो इस बात पर होगी ही कि जब जेल से ये हाल है तो बाहर जाकर क्या करेंगे - और अगर ये दलील अदालत को भी दमदार लगी तो लालू यादव के लिए नुकसानदेह भी साबित हो सकता है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि तेजस्वी यादव ने महागठबंधन की सरकार बनवाने के लिए एक टास्क फोर्स भी बना डाली है. ये जिम्मेदारी जेल में बंद बाहुबली नेता अनंत सिंह, आपराधिक पृष्ठभूमि से आये और अब दानापुर से विधायक रीतलाल यादव, एमएलसी सुनील सिंह और सांसद अमरेंद्र धारी सिंह को मिली है. नेताओं की पहुंच, पैसा और ताकत के हिसाब से अलग अलग काम सौंपा गया है - और किसी भी तरह की बाधा आने पर हालात संभालने की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव ने अपने करीबी और भरोसेमंद मनोज झा को सौंपी है.

फर्ज कीजिये जब अनंत सिंह और रीतलाल यादव जैसे नेता महागठबंधन की सरकार बनवाएंगे तो सत्ता का सुख भोगना चाहेंगे या नहीं? और जब वे ऐसा इरादा कर लेंगे तो मजाल किसी की होगी जो उनकी बातों को नजरअंदाज कर सके - अगर ये सब वास्तव में मुमकिन हुआ तो क्या वो जंगलराज से किसी मायने में कम या अलग होगा? फिर क्या समझा जाये कि तेजस्वी यादव चुनाव के दौरान देखी गयी सारी समझदारी को छोड़ कर आरजेडी को फिर से जंगलराज की तरफ यू-टर्न करा दिये हैं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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