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तालिबान पर विपक्ष की चुप्पी: एक और बड़ा मौका यूं ही हाथ से जाने दिया

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 19 अगस्त, 2021 09:10 PM
  • 19 अगस्त, 2021 09:10 PM
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विपक्ष के हिसाब से देखा जाए, तो उसके पास तालिबान और उसके समर्थन में आए बयानों की आलोचना के रूप में एक बड़ा मौका था. जिसे वह अपनी सेकुलर छवि को और मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकता था. भाजपा पर कट्टर हिंदुत्व का आरोप लगाने वाला विपक्ष तालिबान की आलोचना के सहारे इस मौके को बखूबी भुना सकता था. लेकिन, उसने एक बड़ा मौका यूं ही हाथ से जाने दिया.

अफगानिस्तान पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद भारत में विपक्ष की ओर से लगातार मांग की जा रही है कि केंद्र सरकार इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करे. देश के बुद्धिजीवी वर्ग और लिबरल वर्ग का एक बड़ा हिस्सा भी तालिबान को लेकर भारत सरकार (Indian Government) से अपना स्टैंड साफ करने की मांग कर रहा है. विपक्ष (Opposition) की ओर से तालिबान पर भारत सरकार के रवैये को लेकर जमकर आलोचना की जा रही है. लेकिन, भारत सरकार ने रणनीतिक तौर से इस मामले पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है. दरअसल, दुनियाभर के पाकिस्तान, तुर्की, चीन जैसे कुछ मौकापरस्त देशों को छोड़ दिया जाए, तो तकरीबन हर देश अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान की शासन व्यवस्था को लेकर आश्वस्त होने से पहले किसी निर्णय पर पहुंचने की जल्दबाजी में नजर नही आ रहा है. भारत सरकार भी 'वेट एंड वॉच' की इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है और फिलहाल अफगानिस्तान की स्थिति पर नजर बनाए हुए है.

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए, तो तालिबान को लेकर भारत सरकार यानी मोदी सरकार (Modi Government) की चुप्पी को विपक्ष 'घुटने टेकने' की तरह पेश कर रहा है. विपक्षी दलों के तमाम नेताओं द्वारा ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार तालिबान को आतंकी संगठन नहीं मान रही है. मोदी सरकार पहले भी तालिबान के साथ बातचीत की मेज पर आ चुकी है. इन तमाम बातों के बीच सबसे जरूरी बात ये भी है कि खुद विपक्ष की ओर से भी तालिबान को लेकर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. जबकि, पार्टी स्तर पर भाजपा की ओर से सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर पर भी तालिबान की भरपूर आलोचना हो रही है. भाजपा के तकरीबन हर छोटे से लेकर बड़ा नेता (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य मंत्रियों को छोड़कर) तालिबान को लेकर अपनी राय जाहिर कर चुका है. लेकिन, विपक्ष की ओर से इस मामले पर मोदी सरकार से सवाल पूछने के अलावा तालिबान को लेकर चुप्पी ही साधी गई है.

जबकि विपक्ष के हिसाब से देखा जाए, तो उसके पास तालिबान और उसके समर्थन में आए बयानों की आलोचना के रूप में एक...

अफगानिस्तान पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद भारत में विपक्ष की ओर से लगातार मांग की जा रही है कि केंद्र सरकार इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करे. देश के बुद्धिजीवी वर्ग और लिबरल वर्ग का एक बड़ा हिस्सा भी तालिबान को लेकर भारत सरकार (Indian Government) से अपना स्टैंड साफ करने की मांग कर रहा है. विपक्ष (Opposition) की ओर से तालिबान पर भारत सरकार के रवैये को लेकर जमकर आलोचना की जा रही है. लेकिन, भारत सरकार ने रणनीतिक तौर से इस मामले पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है. दरअसल, दुनियाभर के पाकिस्तान, तुर्की, चीन जैसे कुछ मौकापरस्त देशों को छोड़ दिया जाए, तो तकरीबन हर देश अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान की शासन व्यवस्था को लेकर आश्वस्त होने से पहले किसी निर्णय पर पहुंचने की जल्दबाजी में नजर नही आ रहा है. भारत सरकार भी 'वेट एंड वॉच' की इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है और फिलहाल अफगानिस्तान की स्थिति पर नजर बनाए हुए है.

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए, तो तालिबान को लेकर भारत सरकार यानी मोदी सरकार (Modi Government) की चुप्पी को विपक्ष 'घुटने टेकने' की तरह पेश कर रहा है. विपक्षी दलों के तमाम नेताओं द्वारा ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार तालिबान को आतंकी संगठन नहीं मान रही है. मोदी सरकार पहले भी तालिबान के साथ बातचीत की मेज पर आ चुकी है. इन तमाम बातों के बीच सबसे जरूरी बात ये भी है कि खुद विपक्ष की ओर से भी तालिबान को लेकर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. जबकि, पार्टी स्तर पर भाजपा की ओर से सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर पर भी तालिबान की भरपूर आलोचना हो रही है. भाजपा के तकरीबन हर छोटे से लेकर बड़ा नेता (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य मंत्रियों को छोड़कर) तालिबान को लेकर अपनी राय जाहिर कर चुका है. लेकिन, विपक्ष की ओर से इस मामले पर मोदी सरकार से सवाल पूछने के अलावा तालिबान को लेकर चुप्पी ही साधी गई है.

जबकि विपक्ष के हिसाब से देखा जाए, तो उसके पास तालिबान और उसके समर्थन में आए बयानों की आलोचना के रूप में एक बड़ा मौका था. जिसे वह अपनी सेकुलर छवि को और मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकता था. भाजपा पर कट्टर हिंदुत्व का आरोप लगाने वाला विपक्ष तालिबान की आलोचना के सहारे इस मौके को बखूबी भुना सकता था. लेकिन, उसने एक बड़ा मौका यूं ही हाथ से जाने दिया.

विपक्ष के कुछ नेता तालिबान के पक्ष में बयान देते जरूर नजर आ चुके हैं.

हिंदी मुसलमान के सलाम से लेकर स्वतंत्रता सेनानी बना तालिबान

स्थिति ये हो गई है कि इस बीच विपक्ष के कुछ नेता तालिबान के पक्ष में बयान देते जरूर नजर आ चुके हैं. इन्ही में से एक सम्भल से समाजवादी पार्टी के सांसद शफीक़ुर्रहमान बर्क (Shafiqur Rahman Barq) भी हैं. जिन्होंने तालिबान और उसके लड़ाकों की तुलना भारत के स्वतंत्रता सेनानियों से कर दी है. वहीं, सपा सांसद बर्क के तालिबान समर्थित बयान के सामने आने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने खामोशी साध रखी है. हालांकि, सपा सांसद बर्क के खिलाफ देशद्रोह समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज हो चुका है. लेकिन, सपा के अनुसार, इस मामले पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कार्रवाई तो दूर की बात अभी तक सांसद से कोई बात भी नहीं की है. रही सही कसर एआईएमपीएलबी (AIMPLB) के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी (Sajjad Nomani) के तालिबान को हिंदी मुसलमानों की ओर से भेजे गए 'सलाम' ने निकाल दी है. तालिबानी आतंकियों के पक्ष में बयान देकर उन्होंने विपक्ष की मुश्किलों में चार चांद लगा दिए.

तालिबान की आलोचना से विपक्ष का क्या फायदा होता?

बीते कुछ समय में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष काफी तेजी से मजबूत होता दिखाई दे रहा है. ममता बनर्जी के सियासी हमलों, शरद पवार की एकजुट करने की रणनीति और राहुल गांधी का संसद से लेकर सड़क तक विपक्षी दलों का नेतृत्व करना तो फिलहाल यही दर्शाता है. अगर मोदी सरकार से नाराज लोगों को विपक्ष अपने पाले में लाने की कोशिश में तालिबान की आलोचना का कार्ड और जोड़ देता तो, उसे कई फायदे होना तय था. ऐसे तमाम बयान जो तालिबान की हिमायत करने वाले नेताओं और संस्थाओं की ओर से दिए गए हैं, उनकी मजम्मत के सहारे विपक्ष अपनी उस छवि को तोड़ सकता था, जो भाजपा ने उस पर लादी है. भाजपा की ओर से विपक्ष के तमाम राजनीतिक दलों पर मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे आरोप लगाए जाते रहे हैं. तालिबान की आलोचना के रूप में विपक्ष के पास एक ऐसा मौका था, जिसके सहारे वह सीधे तौर पर भाजपा के इन आरोपों को काउंटर कर सकता था. तालिबान के मामले पर पूरे विपक्ष पर मोदी सरकार की तरह किसी तरह का कोई अंतरराष्ट्रीय रिश्तों या कूटनीतिक सामंजस्य बनाने का दबाव भी नहीं था. लेकिन, विपक्ष की ओर से तालिबान को निशाने पर न रखने की बजाय मोदी सरकार को ही निशाना बनाया गया. अगर विपक्ष की ओर से तालिबान की हरकतों की निंदा करने और भारत में उसका समर्थन करने वाले लोगों की भर्त्सना करने जैसे बयान सामने आते, तो निश्चित तौर पर उसे राजनीतिक फायदा मिलना तय था.

तालिबान की निंदा न करने से विपक्ष का क्या नुकसान हुआ?

जिस मुस्लिम वोट बैंक के छिटकने के डर से विपक्ष ने तालिबान को लेकर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नही दी है. वो किसी भी हाल में भाजपा के साथ तो नहीं ही जाने वाला है, ये बात तो तय मानी जा सकती है. तीन तलाक जैसे मामले पर कानून बनाकर भाजपा ने सीधे तौर पर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं को चुनौती दे ही दी थी. भाजपा के इस दांव से काफी हद तक मुस्लिम समाज में रोष पैदा हुआ, जिससे वो भाजपा के खिलाफ और मजबूती से विपक्ष के पाले में खड़ा हो गया. मुस्लिम वोट बैंक का विपक्ष के पाले से खिसकना तकरीबन नामुमकिन है. दरअसल, राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस के अलावा और कोई राजनीतिक दल है नही. इस स्थिति में लिखी सी बात है कि जिस साझा विपक्ष को तैयार करने की कोशिशें की जा रही हैं, उसे मुस्लिम समाज का वोट मिलना ही है. लेकिन, विपक्ष की ओर से तालिबान के मुद्दे पर अपनाई गई खामोशी उसी के खिलाफ जाती दिख रही है.

मोदी सरकार से नाराज लोगों के सामने एक विकल्प के तौर पर साझा विपक्ष बड़ी तेजी से उभरा है. लेकिन, विपक्ष ने ये मौका गंवा दिया है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने पूरी उग्रता के साथ हिंदुत्व के नाम पर लोगों को एक करने की कोशिश की थी. लेकिन, भाजपा इसमें कामयाब नहीं हो सकी. लेकिन, पश्चिम बंगाल और हिंदी पट्टी के प्रदेशों में एक बुनियादी अंतर है. भाजपा आज भी हिंदी पट्टी के राज्यों में राम मंदिर, धारा 370, जनसंख्या नियंत्रण, लव जिहाद जैसे मुद्दे के सहारे चुनाव की दिशा और दशा बदलने की कुव्वत रखती है. विपक्ष की ऐसे बयानों पर चुप्पी से जिन हिंदू मतदाताओं का मोदी सरकार और भाजपा से मोहभंग हुआ होगा, वे फिर से भगवा दल के साथ ही खड़े हो जाएंगे. बात बहुत सीधी सी है कि हर बहुसंख्यक कट्टर नहीं है, लेकिन तालिबान समर्थित ऐसे बयानों पर विपक्ष की चुप्पी उसे कहीं न कहीं कट्टर बनने की ओर ढकेल रही है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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