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शुभेंदु अधिकारी का RSS से जुड़ाव राहुल गांधी के जनेऊधारी होने जैसा

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 03 जनवरी, 2021 03:58 PM
  • 03 जनवरी, 2021 03:58 PM
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शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) अच्छी तरह जानते हैं कि बीजेपी में आरएसएस (RSS Shakhas) से जुड़े होने का कितना महत्व है, लेकिन वो अपना जुड़ाव ठीक वैसे ही प्रकट कर रहे हैं जैसे राहुल गांधी (Rahul Gandhi Soft Hindutva) चुनावी मौसम में जनेऊधारी शिवभक्त बन जाते हैं!

शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) को बीजेपी ज्वाइन किये ज्यादा दिन नहीं हुए, लेकिन आरएसएस (RSS Shakhas) से जुड़े होने का क्या महत्व होता है अभी से समझ आने लगा है. हो सकता है ऐसा अनुभव बीजेपी के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय या फिर बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष या फिर राज्यपाल जगदीप धनखड़ के दबदबे को करीब से देखने के बाद हुआ हो - और मुकुल रॉय के बीजेपी में खुद को स्थापित करने के लंबे संघर्ष को देखते हुए भी ऐसा एहसास हुआ हो सकता है.

शुभेंदु अधिकारी अब तो अच्छी तरह जान गये हैं कि बीजेपी में RSS से जुड़े होने के क्या मायने हैं, लेकिन संघ से अपना जुड़ाव वो ठीक वैसे ही प्रकट कर रहे हैं जैसे चुनावी मौसम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी जनेऊधारी शिवभक्त (Rahul Gandhi Soft Hindutva) बन जाते हैं! राहुल गांधी निजी छुट्टियां बिताने अक्सर जाते रहते हैं और ये हक उनको हासिल भी है, लेकिन चुनावों के अलावा कभी राहुल गांधी को किसी मंदिर या मठ या फिर कैलास मानसरोवर जैसी यात्राओं पर जाते नहीं देखा जाता. ऐसा क्यों है? क्या सिर्फ इसीलिए क्योंकि वो ऐसी बातों में भी उतना ही यकीन रखते हैं जितना राजनीति में काम करते हुए देखे जाने में?

जिस तरीके से सदल बल शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में पहुंचे हैं और आगे के लिए भी संभावनाएं बनाये हुए हैं, निश्चित तौर पर अपेक्षा भी तो वैसी ही होगी. मीडिया में जल्द ही शुभेंदु अधिकारी को कैबिनेट मंत्री के दर्जे वाला कोई पद मिलने की भी खबर आयी है, लेकिन ये किसी भी सूरत में उनको कभी बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाये जाने की तरफ इशारा तो नहीं ही करता है.

यूं नहीं कोई बन जाता है संघ का स्वयंसेवक

आज तक को दिये एक इंटरव्यू में बीजेपी के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए शुभेंदु अधिकारी बताते हैं, 'स्कूल के दिनों में मैं RSS की शाखा में जाया करता था.'

लेकिन शुभेंदु अधिकारी को क्या लगता है, ये सुन कर बीजेपी नेतृत्व खुश हो जाएगा? संघ प्रमुख शाबाशी देने लगेंगे? दूर दूर तक ऐसा कुछ हरगिज होने की संभावना नहीं है....

शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) को बीजेपी ज्वाइन किये ज्यादा दिन नहीं हुए, लेकिन आरएसएस (RSS Shakhas) से जुड़े होने का क्या महत्व होता है अभी से समझ आने लगा है. हो सकता है ऐसा अनुभव बीजेपी के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय या फिर बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष या फिर राज्यपाल जगदीप धनखड़ के दबदबे को करीब से देखने के बाद हुआ हो - और मुकुल रॉय के बीजेपी में खुद को स्थापित करने के लंबे संघर्ष को देखते हुए भी ऐसा एहसास हुआ हो सकता है.

शुभेंदु अधिकारी अब तो अच्छी तरह जान गये हैं कि बीजेपी में RSS से जुड़े होने के क्या मायने हैं, लेकिन संघ से अपना जुड़ाव वो ठीक वैसे ही प्रकट कर रहे हैं जैसे चुनावी मौसम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी जनेऊधारी शिवभक्त (Rahul Gandhi Soft Hindutva) बन जाते हैं! राहुल गांधी निजी छुट्टियां बिताने अक्सर जाते रहते हैं और ये हक उनको हासिल भी है, लेकिन चुनावों के अलावा कभी राहुल गांधी को किसी मंदिर या मठ या फिर कैलास मानसरोवर जैसी यात्राओं पर जाते नहीं देखा जाता. ऐसा क्यों है? क्या सिर्फ इसीलिए क्योंकि वो ऐसी बातों में भी उतना ही यकीन रखते हैं जितना राजनीति में काम करते हुए देखे जाने में?

जिस तरीके से सदल बल शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में पहुंचे हैं और आगे के लिए भी संभावनाएं बनाये हुए हैं, निश्चित तौर पर अपेक्षा भी तो वैसी ही होगी. मीडिया में जल्द ही शुभेंदु अधिकारी को कैबिनेट मंत्री के दर्जे वाला कोई पद मिलने की भी खबर आयी है, लेकिन ये किसी भी सूरत में उनको कभी बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाये जाने की तरफ इशारा तो नहीं ही करता है.

यूं नहीं कोई बन जाता है संघ का स्वयंसेवक

आज तक को दिये एक इंटरव्यू में बीजेपी के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए शुभेंदु अधिकारी बताते हैं, 'स्कूल के दिनों में मैं RSS की शाखा में जाया करता था.'

लेकिन शुभेंदु अधिकारी को क्या लगता है, ये सुन कर बीजेपी नेतृत्व खुश हो जाएगा? संघ प्रमुख शाबाशी देने लगेंगे? दूर दूर तक ऐसा कुछ हरगिज होने की संभावना नहीं है. शुभेंदु अधिकारी को ऐसे किसी मुगलते में नहीं रहना चाहिये. अगर ऐसा कोई भ्रम पाल रखे हैं तो जितना जल्दी भूल जायें, उनकी सियासी सेहत के लिए उतना ही मुफीद होगा.

अगर अब तक किसी बीजेपी नेता ने इस बारे में सीधे सीधे कुछ नहीं कहा है तो शुभेंदु को कांग्रेस नेता सचिन पायलट से कही गयी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बातों में ही जवाब खोजने की कोशिश करनी चाहिये - 'हैंडसम दिखने से कुछ नहीं होता... अच्छी अंग्रेजी बोलने से कुछ नहीं होता...' ...और हां, प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच बचाव करने से भी कुछ नहीं होता - होता, दरअसल, वही है जो अशोक गहलोत के समझाने पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी करते हैं. सचिन पायलट भी यही सोच कर अब तक संतोष किये हुए हैं. हालांकि, हाल ही में जयपुर पहुंच कर कमलनाथ ने सचिन पायलट को अपनी ही तरह धैर्य रखने की सलाह दे डाली जरूर है. सचिन पायलट इसलिए भी खुश होंगे कि कमलनाथ ने उनसे तो मुलाकात भी, लेकिन अशोक गहलोत से बात भी नहीं की.

बहरहाल, मुद्दे की बात ये है और शुभेंदु अधिकारी के लिए यही समझना मौजूं भी है कि संघ मेहमान नवाजी में यकीन जरूर रखता है लेकिन दूसरों के यहां जाकर - शाखाओं में आने वाले मेहमानों की तब तक कोई कद्र नहीं होती जब तक कि वे मेजबानों की जमात में शुमार नहीं हो जाते.

ये भी शुभेंदु अधिकारी खुद ही बता रहे हैं कि वो संघ की शाखा में जाया करते थे. मतलब, बाद में जाना छोड़ दिया. मतलब, वो संघ की शाखाओं में बतायी जाने वाली बातों से जरा भी प्रभावित नहीं हुए, तभी तो तृणमूल कांग्रेस की राजनीति रास आ गयी. वरना, उनको तो शुरू से से ही संघ का कार्यकर्ता बन जाना चाहिये था. अगर ऐसा किये होते तो मुख्यमंत्री पद के दावेदार क्या, संभव था चेहरा भी घोषित हो चुके होते. साफ है बंगाल की राजनीति में शुभेंदु अधिकारी को न लेफ्ट पसंद आया और न ही राइट पॉलिटिक्स. जो नेता इतने साल तक टीएमसी के साथ जुड़ा रहा हो वो कैसे समझा सकता है कि भले ही वो ममता के साथ बना रहा लेकिन उसका मन संघ की शाखाओं के इर्द गिर्द ही घूमता रहा. जैसे पब्लिक सब जानती है, वैसे ही बीजेपी नेतृत्व और संघ भी सबकुछ जानता और समझता है.

शुभेंदु अधिकारी के मामले में ऐसा भी तो नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह राजनीति कहीं और की और परिवार में माहौल कुछ और रहा. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पिता भी कांग्रेस में रहे, लेकिन उनकी दादी, दो दो बुआ सभी तो संघ से ही जुड़े रहे और बीजेपी की ही राजनीति किये. शुभेंदु का तो पूरा परिवार ही टीएमसी के साथ रहा है - उनके भाई सौमेंदु अब भले ही भगवा ओढ़े देखे जा रहे हों, लेकिन तब जब टीएमसी ने उनको एक नगरपालिका के प्रशासक बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा दिया है.

शुभेंदु अधिकारी के भाई सौमेंदु अधिकारी बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं, जबकि TMC सांसद उनके पिता शिशिर अधिकारी और भाई दिब्येंदु अधिकारी ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है!

शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी में RSS से जुड़े होने अहमियत बिलकुल समझ में आनी चाहिये. आज देश के ज्यादातर संवैधानिक पदों पर वे लोग ही हैं जो आरएसएस के लिए काम कर चुके हैं - संघ की विचारधारा को सांगोपांग स्वयं में समाहित कर चुके हैं. भला शुभेंदु अधिकारी उनसे मुकाबला कैसे कर सकते हैं?

शुभेंदु अधिकारी का कहना है, 'मैं कभी भी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का हिस्सा नहीं था... मैंने व्यक्तिगत रूप से टीएमसी में भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है.' अच्छी बात है लेकिन वो आवाज कभी सुनायी क्यों नहीं दी. भला वो कैसे भूल जाते हैं कि ममता बनर्जी ने जिन दो-चार करीबियों की मेहनत और ताकत के बूते ममता बनर्जी राइटर्स बिल्डिंग से लेफ्ट का पत्ता साफ कर सत्ता पर काबिज हुईं या अब तक बनी हुई हैं, उनमें अधिकारी परिवार के सदस्यों के नाम सबसे आगे लिये जाते रहे हैं.

शुभेंदु अधिकारी ने अपनी निजी आस्था भी साझा किया है, 'मैं गायत्री मंत्र का जाप करता हूं... ये सच है कि राजनीतिक मंचों पर मैंने जय श्रीराम नहीं कहा, लेकिन अब मैं कर रहा हूं.'

2014 से केंद्र में बीजेपी की सरकार है - शुभेंदु अधिकारी को 2016 में भी बंगाल के लिए बीजेपी की अहमियत का एहसास क्यों नहीं हुआ? शुभेंदु अधिकारी कहते हैं, 'मैं घर से टीका लगाकर नहीं निकलता, लेकिन लोग मेरे माथे पर इसे लगाते हैं... एक कार्यकर्ता होने के नाते मैं बीजेपी की नीतियों का पालन कर रहा हूं.'

भला बीजेपी नेतृत्व - केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैसे मान लें. बीजेपी ज्वाइन करने से पहले तक वो तृणमूल कांग्रेस के उसी नेता के करीबी रहे जिसे सड़क चलते किसी का जय श्रीराम बोलना भी मंजूर नहीं होता - और ये ज्यादा पहले नहीं 2019 में हुए आम चुनाव के वक्त का का ही एक चर्चित वाकया है.

अधिकारी परिवार में तो कमल खिल ही सकता है

शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के दावों का भी काउंटर किया था. असल में अभिषेक बनर्जी ने कहा था कि जब वो अपने घर में कमल नहीं खिला सकते, तो वो बीजेपी के लिए पूरे राज्य में जीत का दावा कैसे कर सकते हैं.

शुभेंदु अधिकारी का कहना है, 'अभी बहुत समय है... अभी रामनवमी नहीं मनाई गई है और मेरे परिवार में कमल खिलेगा... मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि मैं यह देखूंगा कि 30, हरीश चटर्जी स्ट्रीट में आपके परिवार में कमल खिलेगा.'

शुभेंदु अधिकारी के भाई सौमेंदु अधिकारी भी अब टीएमसी से पाला बदल कर बीजेपी में पहुंच चुके हैं. सौमेंदु अधिकारी भी शुभेंदु अधिकारी की तरह तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक कार्यक्रमों से परहेज करने लगे थे. तभी टीएमसी नेतृत्व के पास मैसेज गया और ऐसी सूचनाएं भी कि वो शुभेंदु अधिकारी के जनसंपर्क कार्यक्रमों में शामिल होने लगे हैं. फिर क्या था - सौमेंदु अधिकारी को टीएमसी ने पूर्व मेदिनीपुर जिले में कांठी नगरपालिका के प्रशासक बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा दिया था. फिर तो बीजेपी ज्वाइन करने के अलावा कोई चारा भी न बचा था. वैसे सौमेंदु अधिकारी ने अध्यक्ष पद से हटाये जाने के एक्शन को कलकत्ता हाई कोर्ट में चैलेंज भी कर रखा है.

अपने भाई शुभेंदु अधिकारी की ही तरह सौमेंदु अधिकारी ने भी दावा किया है - 'याद रखिएगा, हम 108 कमल के साथ मां दुर्गा की पूजा करेंगे.' सौमेंदु अधिकारी से पहले ही, शुभेंदु अधिकारी 19 दिसंबर, 2020 को मेदिनीपुर में आयोजित एक सार्वजनिक सभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने नौ विधायकों और एक सांसद के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे.

शुभेंदु अधिकारी के बाद बीजेपी में अभी सिर्फ एक भाई सौमेंदु शामिल हुए हैं, लेकिन उनके पिता शिशिर अधिकारी और भाई दिब्येंदु अधिकारी ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिये हैं - ये दोनों ही तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं. वैसे शुभेंदु अधिकारी एक रैली में दावा कर चुके हैं, 'मेरे परिवार में कमल खिलेगा.'

शुभेंदु अधिकारी के ये बयान पूरे अधिकारी परिवार के भगवा धारण कर लेने का संकेत और बीजेपी नेतृत्व को भरोसा दिलाने की कोशिश के साथ साथ, तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी के लिए मैसेज भी हो सकता है.

एबीपी न्यूज की खबर के मुताबिक, शुभेंदु अधिकारी को JCI का चेयरमैन बनाया जा सकता है. जेसीआई यानी जूट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन की पोस्ट कैबिनेट मंत्री के रैंक के बराबर मानी जाती है. जेड सिक्योरिटी हासिल कर चुके शुभेंदु अधिकारी के लिए बीजेपी नेतृत्व अगर ऐसा सोच रहा है तो इसमें पश्चिम बंगाल में किसान आंदोलन के असर को न्यूट्रलाइज करने की कवायद भी समझा जा सकता है.

और अगर ऐसा वास्तव में हो जाता है तो शुभेंदु अधिकारी को ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी बड़ा किस्मत वाला मान लिया जाएगा. हालांकि, शुभेंदु अधिकारी लाख कोशिश करें. गायत्री मंत्र की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की माला ही क्यों न जपने लगें. राधे-राधे और गुड मॉर्निंग, गुडनाइट की तरह भले ही दिन रात जय श्रीराम बोलते रहें, लेकिन बीजेपी तब तक मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम पर विचार नहीं करने वाली जब तक उसके पास कोई रास्ता बचा हो. राजनीतिक संदेश के लिए तो राजस्थान में बीजेपी नेताओं ने सचिन पायलट को भी मुख्यमंत्री पद के लिए विचार करने की चर्चा चला दी थी, लेकिन जब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कोई स्कोप नहीं बन पाता है, शुभेंदु अधिकारी को तो सपने देखना छोड़ ही देना चाहिये. ये बात अलग है कि ऐसी तरकीबों से वो मुकुल रॉय के मुकाबले बीजेपी में अपनी हैसियत थोड़ी बेहतर जरूर कर सकते हैं - और ये भी भला कम है क्या?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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