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Sushant case की गंभीरता समझने में चूक गये उद्धव ठाकरे और सरकार पर आ बनी

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    • Updated: 20 अगस्त, 2020 06:35 PM
  • 20 अगस्त, 2020 06:35 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सरकार से लगता है सुशांत सिंह राजपूत केस (Sushant Singh Rajput case) की गंभीरता का ठीक ठीक आकलन करने में चूक हो गयी - महाराष्ट्र सरकार को अंदाजा भी नहीं रहा कि बिहार सरकार की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट भी सीबीआई जांच (CBI Probe) की मंजूरी दे सकता है.

अभी जुलाई में ही उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ने एक इंटरव्यू दिया था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का ये इंटरव्यू शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित हुआ था. इंटरव्यू में सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत के सवालों का जवाब सामना के पूर्व संपादक उद्धव ठाकरे ने दिये थे. फिलहाल सामना की संपादक उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे हैं.

उद्धव ठाकरे का ये इंटरव्यू उस वक्त प्रकाशित हुआ जब राजस्थान में राजनीतिक उठापटक चरम पर रहा. उद्धव ठाकरे के बोलने का लहजा भी माहौल के मुताबिक और बीजेपी को ललकारने वाला ही रहा.

एक सवाल के जवाब में उद्धव ठाकरे बोल पड़े - 'जिस किसी को मेरी सरकार गिरानी है वो गिराये, मैं अभी देखता हूं... इंतजार किसका है? अब सरकार गिराओ, सरकार तीन पहियों वाली है, लेकिन वह गरीबों का वाहन है... मगर स्टीयरिंग मेरे ही हाथ में है... बुलेट ट्रेन या रिक्शा में चुनाव करना पड़ा तो मैं रिक्शा ही चुनूंगा.'

सवाल ये भी पूछा गया कि महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस सफल होगा या नहीं?

उद्धव ठाकरे का जवाब बड़े ही सख्त लहजे में आया - 'करके देखो ना. मैं भविष्यवाणी कैसे करूंगा? आप करके देखो. जोड़-तोड़ करके देखो.'

बीजेपी की तरफ से सीधे सीधे बयान पर किसी बड़े नेता का रिएक्शन तो नहीं आया, लेकिन जब भी ये सवाल पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने आया, पुरानी टिप्पणी ही दोहराते रहे - बीजेपी को कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, तीन पहियों वाली सरकार अपनेआप ही गिर जाएगी. दरअसल, उद्धव ठाकरे तीन पहियों की बात बीजेपी के उसी तंज पर कर रहे थे. देखा जाये तो बीजेपी ने महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार गिराने के लिए ऐसा वैसा कोई प्रयास नहीं किया - हां, एनडीए सहयोगी जेडीयू के साथ मिल कर राजनीतिक चालें ऐसी जरूर चली कि अचानक एक मोड़ पर उद्धव ठाकरे सरकार को शह मिल गया है.

लगता है सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) केस की गंभीरता को न तो उद्धव ठाकरे समझ पाये और न ही उनके गठबंधन साथी ही, घटनाक्रम ऐसे होते गये कि...

अभी जुलाई में ही उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ने एक इंटरव्यू दिया था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का ये इंटरव्यू शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित हुआ था. इंटरव्यू में सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत के सवालों का जवाब सामना के पूर्व संपादक उद्धव ठाकरे ने दिये थे. फिलहाल सामना की संपादक उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे हैं.

उद्धव ठाकरे का ये इंटरव्यू उस वक्त प्रकाशित हुआ जब राजस्थान में राजनीतिक उठापटक चरम पर रहा. उद्धव ठाकरे के बोलने का लहजा भी माहौल के मुताबिक और बीजेपी को ललकारने वाला ही रहा.

एक सवाल के जवाब में उद्धव ठाकरे बोल पड़े - 'जिस किसी को मेरी सरकार गिरानी है वो गिराये, मैं अभी देखता हूं... इंतजार किसका है? अब सरकार गिराओ, सरकार तीन पहियों वाली है, लेकिन वह गरीबों का वाहन है... मगर स्टीयरिंग मेरे ही हाथ में है... बुलेट ट्रेन या रिक्शा में चुनाव करना पड़ा तो मैं रिक्शा ही चुनूंगा.'

सवाल ये भी पूछा गया कि महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस सफल होगा या नहीं?

उद्धव ठाकरे का जवाब बड़े ही सख्त लहजे में आया - 'करके देखो ना. मैं भविष्यवाणी कैसे करूंगा? आप करके देखो. जोड़-तोड़ करके देखो.'

बीजेपी की तरफ से सीधे सीधे बयान पर किसी बड़े नेता का रिएक्शन तो नहीं आया, लेकिन जब भी ये सवाल पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने आया, पुरानी टिप्पणी ही दोहराते रहे - बीजेपी को कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, तीन पहियों वाली सरकार अपनेआप ही गिर जाएगी. दरअसल, उद्धव ठाकरे तीन पहियों की बात बीजेपी के उसी तंज पर कर रहे थे. देखा जाये तो बीजेपी ने महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार गिराने के लिए ऐसा वैसा कोई प्रयास नहीं किया - हां, एनडीए सहयोगी जेडीयू के साथ मिल कर राजनीतिक चालें ऐसी जरूर चली कि अचानक एक मोड़ पर उद्धव ठाकरे सरकार को शह मिल गया है.

लगता है सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) केस की गंभीरता को न तो उद्धव ठाकरे समझ पाये और न ही उनके गठबंधन साथी ही, घटनाक्रम ऐसे होते गये कि लगता है जैसे सीबीआई जांच (CBI Probe) के आदेश के बाद सरकार पर ही बन आयी हो - उद्धव सरकार के सामने कोई संवैधानिक संकट तो नहीं खड़ा है, लेकिन परिस्थितियां गंभीर जरूर हो चली हैं जिसकी कीमत सरकार को चुकानी पड़ सकती है.

उद्धव ठाकरे से चूक तो हुई है

सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र और बिहार दोनों ही राज्यों में पुलिस के आला अफसरों को एक्टिव देखा गया - बिहार में जहां डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय मैदान में उतर कर मीडिया में बयान दे रहे थे, मुंबई में मुख्यमंत्री को अपडेट दे रहे थे. बिहार के पुलिस अफसर जहां जश्न के माहौल में आक्रामक हुए जा रहे थे, मुंबई में रिएक्शन देने में भी शब्दों को तोल-मोल कर खर्च करते देखे गये.

पहले भी सीबीआई जांच के अदालती आदेश आते रहे हैं, लेकिन किसी भी राज्य सरकार में इस कदर बेचैनी शायद ही कभी देखने को मिली है. राजस्थान में राजनीतिक उठापटक के वक्त जब लगा था कि पुरानी जांचों का दायरा बढ़ा कर अशोक गहलोत सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है तो राज्य सरकार की तरफ से एक सर्कुलर भी लाया गया. महाराष्ट्र में तो ऐसा करने की गुंजाइश इसलिए भी नहीं बनती क्योंकि आदेश सीधे सुप्रीम कोर्ट से आया.

सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच के बाद घिरती जा रही है उद्धव ठाकरे सरकार

लगता है उद्धव ठाकरे और उनके करीबी रणनीतिकारों को अंदाजा ही नहीं लगा होगा कि बिहार सरकार की सीबीआई जांच की सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिल भी सकती है. लगता है उद्धव ठाकरे के कानूनी सलाहकारों ने इस बात का अंदाजा लगाने में परिस्थितियों को समझने की भूल कर डाली.

एनसीपी नेता शरद पवार ने ये जरूर कहा था कि मुंबई पुलिस को वो 50 साल से जानते हैं और वो जांच में पूरी तरह सक्षम है, लेकिन सीबीआई जांच से उनको कोई एतराज नहीं है. हालांकि, जब पार्थ पवार ने ये डिमांड रखी तो शरद पवार ने उनको अपरिपक्व बता डाला - और परिवार में भी कलह का माहौल पैदा हो गया. सीबीआई जांच के आदेश के बाद भी शरद पवार की प्रतिक्रिया नपी-तुली लगती है. कहते हैं महाराष्ट्र सरकार को सहयोग करना चाहिये.

सुशांत सिंह केस की सीबीआई जांच का आदेश उद्धव ठाकरे सरकार के लिए बड़ा झटका तो वैसे भी रहा, साथ ही साथ, एक रणनीतिक शिकस्त भी देखने को मिली है. यहां तक कि मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती ने भी सीबीआई जांच की मांग कर डाली थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार से जुड़े लोग गलती से भी ऐसा कोई बयान नहीं दिया. अगर किसी ने एक बार भी सीबीआई जांच की यूं भी मांग उठायी होती तो उद्धव ठाकरे और उनकी टीम के पास राजनीतिक बचाव का रास्ता भी होता - और रिएक्शन भी आक्रामक तरीके से दिया जाना संभव होता.

सुशांत सिंह राजपूत केस को राजनीतिक तौर पर डील करने में उद्धव ठाकरे सरकार से ये बहुत बड़ी चूक हुई है. सच्चाई जो भी हो जांच से तो सामने आने की उम्मीद की ही जानी चाहिये, हालांकि, शरद पवार का करना है कि इस केस का हाल भी कहीं नरेंद्र दाभोलकर कैसे जैसा तो नहीं होने वाला है?

इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में गठबंधन के नेता मान कर चल रहे हैं कि आदित्य ठाकरे को टारगेट किया जाना और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी होने से पहले बिहार सरकार की सिफारिश पर केंद्र सरकार का सीबीआई जांच की मंजूरी देना - राजनीति से प्रेरित है. ऐसे नेताओं के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि ये नेता मानते हैं कि बीजेपी का रवैया मातोश्री यानी ठाकरे परिवार के प्रति आक्रामक हुआ है.

रिपोर्ट के अनुसार, गठबंधन के नेताओं की एक राय हैं कि मुख्‍यमंत्री उद्धव और गठबंधन सरकार को आने वाले समय में सीबीआई पूछताछ के लिए आदित्‍य ठाकरे को बुलाये जाने को लेकर भी तैयार रहना चाहिये - और तब बीजेपी ज्यादा हमलावर होकर इस्तीफे तक की मांग कर सकती है.

चूक की कीमत क्या हो सकती है?

सुशांत सिंह केस की सीबीआई जांच का विरोध और बिहार पुलिस के अफसर को क्वारंटीन करने की घटना को लेकर एकबारगी लगा था कि ये दो विरोधी दलों की सरकारों का आपसी टकराव है. महाराष्ट्र सरकार को ये कतई मंजूर नहीं था कि बिहार पुलिस उसकी जांच में दखल दे, लेकिन बात बस इतनी ही नहीं थी.

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि कैसे शिवसेना के एक मंत्री ने बीजेपी के सीबीआई जांच की जिद को नरम करने के लिए महाराष्ट्र से आने वाले एक केंद्रीय मंत्री से संपर्क किया था, लेकिन प्रयास नाकाम रहा.

अब तो ऐसा लग रहा है कि उद्धव ठाकरे अपनी एक चूक के कारण इस कदर घिरते जा रहे हैं कि सरकार बचाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी वाला गठबंधन छोड़ कर एनडीए में घर वापसी के अलावा कोई और चारा भी नहीं बचा है. करीब करीब वैसे ही जैसे नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ कर एनडीए ज्वाइन कर लिया और कुर्सी पर बने रहे. फर्क ये है कि नीतीश कुमार को ऐसा लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव के घिरने के चलते करना पड़ा था - और उद्धव ठाकरे को अपने बेटे आदित्य ठाकरे के चलते.

बात बस इतनी ही नहीं है. अब निकली है तो दूर तलक जारी हुई भी लगती है. जिस तरीके से सुशांत सिंह केस को लेकर ठाकरे परिवार और आदित्य ठाकरे पर उंगली उठ रही है, ये तो तय है कि वे जांच के दायरे में तो आ ही रहे हैं - और ये ऐसी परिस्थिति है जिसका शिकार हर वो मुख्यमंत्री रहा है जो केंद्र की सत्ता का विरोधी पक्ष हो और बात बात पर तकरार होती आयी हो. मायावती और मुलायम सिंह यादव इसके प्रत्यक्ष उदाहरण के तौर पर देखे जाते रहे हैं - केंद्र में सत्ता पर कब्जा चाहे यूपीए का रहा हो या फिर एनडीए का, ऐसे नेताओं की मुसीबत कभी कम नहीं हुई है. मुश्किल तो ये है कि अब उद्धव ठाकरे भी उसी कतार में खड़े नजर आ रहे हैं!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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