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सीलबंद लिफाफे से भी शायद ही खुल पाएं राफेल के राज

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 31 अक्टूबर, 2018 02:52 PM
  • 31 अक्टूबर, 2018 02:49 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से राफेल डील से जुड़ी जानकारियां मांगी हैं. सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है आखिर इन एयरक्राफ्ट को खरीदने की कितनी कीमत तय हुई है.

राफेल डील को लेकर काफी समय से भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे से भिड़ रही हैं. यहां तक कि दोनों ने वीडियो तक निकाल कर एक दूसरे पर आरोप लगाए. कांग्रेस लगातार ये आरोप लगा रही है कि राफेल डील में मोदी सरकार ने बड़ा घोटाला किया है और अनिल अंबानी को इस डील से फायदा पहुंचाने की कोशिश की है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से राफेल डील से जुड़ी जानकारियां मांगी हैं. सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है आखिर इन एयरक्राफ्ट को खरीदने की कितनी कीमत तय हुई है और अनिल अंबानी की कंपनी को किस आधार पर चुना गया. इस मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होनी है. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खास बातें:

सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है आखिर इन एयरक्राफ्ट को खरीदने की कितनी कीमत तय हुई है.

- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के साथ-साथ जस्टिस यूयू ललित और केएम जोसेफ की बेंच ने राफेल में हुई अनियमितताओं पर दायर याचिका पर सुनवाई की.

- कोर्ट ने सरकार से कहा है कि राफेल से जुड़ी जो जानकारियां सार्वजनिक की जा सकती हैं, उन्हें जनता और विभिन्न पार्टियों के साथ शेयर करें.

- राफेल की कीमत और उसके फायदों के बारे में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है. यह भी पूछा गया है कि उन्होंने Dassault के इंडियन ऑफसेट पार्टनर के तौर पर अनिल अंबानी की डिफेंस फर्म को क्यों चुना. यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में देने के निर्देश दिए गए हैं.

- सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार को राफेल डील पर जानकारी मुहैया कराने के लिए 10 दिनों का समय दिया गया है.

- हालांकि, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने राफेल की कीमत बताने के सुप्रीम...

राफेल डील को लेकर काफी समय से भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे से भिड़ रही हैं. यहां तक कि दोनों ने वीडियो तक निकाल कर एक दूसरे पर आरोप लगाए. कांग्रेस लगातार ये आरोप लगा रही है कि राफेल डील में मोदी सरकार ने बड़ा घोटाला किया है और अनिल अंबानी को इस डील से फायदा पहुंचाने की कोशिश की है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से राफेल डील से जुड़ी जानकारियां मांगी हैं. सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है आखिर इन एयरक्राफ्ट को खरीदने की कितनी कीमत तय हुई है और अनिल अंबानी की कंपनी को किस आधार पर चुना गया. इस मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होनी है. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खास बातें:

सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है आखिर इन एयरक्राफ्ट को खरीदने की कितनी कीमत तय हुई है.

- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के साथ-साथ जस्टिस यूयू ललित और केएम जोसेफ की बेंच ने राफेल में हुई अनियमितताओं पर दायर याचिका पर सुनवाई की.

- कोर्ट ने सरकार से कहा है कि राफेल से जुड़ी जो जानकारियां सार्वजनिक की जा सकती हैं, उन्हें जनता और विभिन्न पार्टियों के साथ शेयर करें.

- राफेल की कीमत और उसके फायदों के बारे में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है. यह भी पूछा गया है कि उन्होंने Dassault के इंडियन ऑफसेट पार्टनर के तौर पर अनिल अंबानी की डिफेंस फर्म को क्यों चुना. यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में देने के निर्देश दिए गए हैं.

- सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार को राफेल डील पर जानकारी मुहैया कराने के लिए 10 दिनों का समय दिया गया है.

- हालांकि, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने राफेल की कीमत बताने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विरोध जताते हुए कहा कि ये बातें ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत आती हैं. इस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि यदि सरकार इस डील की कीमत नहीं बताना चाहती है तो उसका कारण बताते हुए एक शपथ पत्र कोर्ट में दायर करे. सुप्रीम कोर्ट उस पर विचार करेगा.

- याचिकाकर्ताओं में से एक प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए. इस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि अभी उसके लिए इंतजार किया जा सकता है. पहले उन्हें (सीबीआई को) अपना घर (विभाग) तो संभाल लेने दीजिए. पहले राफेल डील की जानकारियों पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा.

- सुप्रीम कोर्ट जिन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, उनमें प्रशांत भूषण के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने भी भारत और फ्रांस के बीच हुई राफेल जेट डील पर सवाल उठाते हुए याचिका दायर की है.

क्‍यों नाकाफी है सुप्रीम कोर्ट की डिमांड:

राफेल डील पर शंका जताती हुई याचिकाओं पर हालांकि सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही शुरुआती स्‍तर पर है. लेकिन जिस दिशा में उसने सरकार से सवाल-जवाब किया है, उससे कुछ हासिल होने की संभावना कम ही है. सरकार पहले ही ऑफिशियल्‍स सीक्रेट एक्‍ट का हवाला देकर डील की कीमत और अन्‍य जानकारियों को जगजाहिर करने में एतराज जता चुकी है. लेकिन, यदि वह इस डील के तथ्‍य जाहिर कर भी देती है, तो उसमें भ्रष्‍टाचार साबित करना निम्‍न कारणों से कठिन होगा:

1. विमान की महंगी खरीद- यूपीए और एनडीए के दौर में राफेल डील का स्‍वरूप अलग-अलग रहा है. पहले इस फाइटर प्‍लेन की एक बड़ी संख्‍या को भारत में ही बनाए जाने की बात थी, जो एनडीए के दौर में 'ready to fly' प्‍लेन खरीदने पर आकर टिक गई. सरकार की एक दलील यह भी है कि विमान की टेक्‍नोलॉजी में भारत की रणनीतिक जरूरतों के हिसाब से बदलावा किया गया है. यानी इस विमान को ज्‍यादा आक्रामक बनाया गया है. लिहाजा इसके लिए खर्च भी ज्‍यादा करना पड़ा है. यदि सरकार की ये दलील है, तो देश की रक्षा जरूरतों को भ्रष्‍टाचार के दायरे में सुप्रीम कोर्ट कैसे ले जा पाएगा.

2. अंबानी को ऑफसेट ऑर्डर- राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपने आरोपों को राफेल की महंगी खरीद से शिफ्ट करके अनिल अंबानी को दिए गए ऑफसेट ऑर्डर पर फोकस कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों की भी जिज्ञासा इसी पर है कि अंबानी को यह ऑर्डर कैसे मिला. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यही सवाल अब सरकार से पूछा है. लेकिन, जिस तरह के तथ्‍य अब तक सामने आए हैं, उससे ये अंदाजा लगाना आसान है कि कोर्ट को इसका सीधा जवाब नहीं मिलेगा. भारत सरकार पहले ही बता चुकी है कि Dassault और अनिल अंबानी की फर्म दो प्राइवेट पार्टनर के बीच का समझौता है. इसमें भारत सरकार का कोई दखल नहीं है. उधर, Dassault के सीईओ भी कुछ दिन पहले इन्‍हीं शब्‍दों को दोहराते हुए कह चुके हैं कि उन्‍होंने HAL और अनिल अंबानी की फर्म से इस समझौते के लिए बात की, और अंबानी की फर्म को ज्‍यादा योग्‍य पाया. अब जब सरकार दूर से ही पल्‍ला झाड़ चुकी है तो बाकी बातें सिर्फ ख्‍यालों से ही कही जा सकती हैं.

3. सीबीआई जांच की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की सीबीआई जांच की मांग को फिलहाल यह कहते हुए टाल दिया है कि बाद में देखेंगे. लेकिन सवाल ये उठता है कि सीबीआई के सामने जांच के बिंदु क्‍या होंगे. यह ढूंढना कि एक फाइटर प्‍लेन डील के लिए ऑफसेट पार्टनर HAL बेहतर होते या अनिल अंबानी? लेकिन, इसके लिए सीबीआई को रक्षा विशेषज्ञ की तरह काम करना होगा. यदि सीबीआई सिर्फ अंबानी को मिले ठेके में पैसों के लेन-देन तक सीमित रहती है तो उसे बहुत जमीन खोदनी होगी. भारत से लेकर फ्रांस तक. जो उसके कानूनी दायरे से बाहर है. क्‍योंकि पैसों के लेन-देन का कोई शुरुआती सबूत भी नहीं है. सिर्फ आरोप हैं.

इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद राफेल डील का मुद्दा सुलझता है या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल तो कांग्रेस खुद को सही बता रही है और भाजपा अपना दामन पाक साफ होने का दावा कर रही है. 10 दिन के अंदर केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी से पता चलेगा कि राफेल की असल कीमत क्या है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार राफेल की कीमत उजागर करती है या फिर उसे ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत होने का दावा करते हुए कीमत का खुलासा नहीं करेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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