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सेल्वी - सेल्वम स्‍टोरी की स्क्रिप्ट पहले से लिखी लग रही है...

    • रीमा पाराशर
    • Updated: 15 फरवरी, 2017 01:37 PM
  • 15 फरवरी, 2017 01:37 PM
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जयललिता की राजनीतिक विरासत के लिए चल रहे सत्ता संघर्ष की इस कहानी में लगातार नाटकीय मोड़ आ रहे हैं. तो जनाब, फिल्म है तो स्क्रिप्ट भी होगी और डायरेक्टर भी. मगर इस फिल्म का डायरेक्टर कोई है या नहीं यह भी एक राज है. जो पर्दे के पीछे है.

सिने स्टार से सियासत का सितारा बनी जे.जयललिता के दुनिया से जाने के बाद भी यही कहा जा रहा है कि पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त..! क्योंकि किसी फिल्म की तरह ही जयललिता की राजनीतिक विरासत के लिए चल रहे सत्ता संघर्ष की इस कहानी में भी लगातार नाटकीय मोड़ आ रहे हैं. तो जनाब, फिल्म है तो स्क्रिप्ट भी होगी और डायरेक्टर भी. मगर इस फिल्म का डायरेक्टर कोई है या नहीं यह भी एक राज है. जो पर्दे के पीछे है.

यूं तो दिल्ली और चेन्नई के बीच दूरी दो हजार किमी से ज्याद की है. मगर बीते कुछ महीनों के दौरान देश के दक्षिणी सूबे की सियासत में हुई राजनीतिक महाभारत की कथा को लेकर यह चर्चा चल रही है कि इसकी कहानी पहले से लिखी-सुनी लग रही है. कुछ ऐसा जिसे देखकर फ्रेंच मुहावरे देजा वू कहा जा सके यानी यह तो पहले ही देखा-सुना जा चुका है.

मगर क्या ये एहसास-ए-देजा-वू केवल एक आभास है या इसका कोई आधार भी है? इस सवाल को लेकर अनेक धारणाएं हैं. सितंबर 2017 में जब अचानक तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के बीमार होने की खबर आई तो किसी ने सोचा नहीं था कि इस कहानी में इतनी तेजी से नाटकीय मोड़ आएंगे. रहस्य और षडयंत्र कथाएं गहराती जाएंगी. मगर कुछ ही दिनों में चेन्नई से छनती हवाओं के साथ यह खबर दिल्ली आने लगी कि सूदूर तमिलनाडु में सबकुछ ठीक नहीं. पुरुचेतलैवी की साड़ी से लंबा पर्दा उनकी सेहत और इलाज से जुड़ी खबरों पर डाला जा रहा है. लेकिन एक रहस्यमयी नेता के निजी जीवन और स्वास्थ्य को लेकर उठने वाले हर सवाल पर 'सबकुछ ठीक है', के साथ पूर्णविराम लगाने की जल्दी को भी सहज मान लिया गया.

हालांकि तीन महीनों की बीमारी और सेल्वी जयललिता के इलाज पर बरती जा रही चुप्पी को लेकर शंकाओं के सवाल चेन्नई से दिल्ली तक उस वक्त भी गाहे-बगाहे टकरा जाते थे. वहीं इन सवालों के जवाब में केंद्र सरकार के भी कई...

सिने स्टार से सियासत का सितारा बनी जे.जयललिता के दुनिया से जाने के बाद भी यही कहा जा रहा है कि पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त..! क्योंकि किसी फिल्म की तरह ही जयललिता की राजनीतिक विरासत के लिए चल रहे सत्ता संघर्ष की इस कहानी में भी लगातार नाटकीय मोड़ आ रहे हैं. तो जनाब, फिल्म है तो स्क्रिप्ट भी होगी और डायरेक्टर भी. मगर इस फिल्म का डायरेक्टर कोई है या नहीं यह भी एक राज है. जो पर्दे के पीछे है.

यूं तो दिल्ली और चेन्नई के बीच दूरी दो हजार किमी से ज्याद की है. मगर बीते कुछ महीनों के दौरान देश के दक्षिणी सूबे की सियासत में हुई राजनीतिक महाभारत की कथा को लेकर यह चर्चा चल रही है कि इसकी कहानी पहले से लिखी-सुनी लग रही है. कुछ ऐसा जिसे देखकर फ्रेंच मुहावरे देजा वू कहा जा सके यानी यह तो पहले ही देखा-सुना जा चुका है.

मगर क्या ये एहसास-ए-देजा-वू केवल एक आभास है या इसका कोई आधार भी है? इस सवाल को लेकर अनेक धारणाएं हैं. सितंबर 2017 में जब अचानक तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के बीमार होने की खबर आई तो किसी ने सोचा नहीं था कि इस कहानी में इतनी तेजी से नाटकीय मोड़ आएंगे. रहस्य और षडयंत्र कथाएं गहराती जाएंगी. मगर कुछ ही दिनों में चेन्नई से छनती हवाओं के साथ यह खबर दिल्ली आने लगी कि सूदूर तमिलनाडु में सबकुछ ठीक नहीं. पुरुचेतलैवी की साड़ी से लंबा पर्दा उनकी सेहत और इलाज से जुड़ी खबरों पर डाला जा रहा है. लेकिन एक रहस्यमयी नेता के निजी जीवन और स्वास्थ्य को लेकर उठने वाले हर सवाल पर 'सबकुछ ठीक है', के साथ पूर्णविराम लगाने की जल्दी को भी सहज मान लिया गया.

हालांकि तीन महीनों की बीमारी और सेल्वी जयललिता के इलाज पर बरती जा रही चुप्पी को लेकर शंकाओं के सवाल चेन्नई से दिल्ली तक उस वक्त भी गाहे-बगाहे टकरा जाते थे. वहीं इन सवालों के जवाब में केंद्र सरकार के भी कई नेताओं का बड़े अधिकार के साथ आश्वस्ति भरा जवाब दे रहे थे. यहां तक कहा जाता था कि-मैंने तो अभी उन डॉक्टरों से बात की है जो अम्मा का इलाज कर रहे हैं. सब कुछ ठीक है. मगर क्या सबकुछ वाकई ठीक था? शायद नहीं.

जिस अपोलो अस्पताल में जयललिता ने आखिरी सांस ली उसके ड्यूटी डॉक्टर रामसीथा ने दावा किया है कि दरअसल सितंबर 2016 में जब उन्हें भर्ती कराया गया तभी उनकी मौत हो चुकी थी. यह अभी केवल एक दावा है जिसे राजनीतिक रंगत में रंगा आरोप भी कहा जा सकता है. मगर, चेन्नई से लेकर दिल्ली तक एक बड़ा तबका मानता है कि इस कथन में दम है. इतना ही नहीं इस धारणा को भी लगातार हवा मिल रही है कि अम्मा ही मौत समान्य हालात में नहीं हुई. इन सवालों को लेकर आशंकाएं शायद अदालत के मन में भी रही होंगी तभी तो मद्रास हाइकोर्ट ने 30 दिसंबर को दिए केंद्र व राज्य सरकार को दिए नोटिस में पूछा था कि क्यों ना जयललिता का शव जांच के लिए बाहर निकालने के आदेश दिए जाएं. सवाल मौत के हालात पर उठे तो कर्नाटक की अय्यर ब्राह्णण घर में जन्मी जयललिता को दफनाए जाने पर भी.

जयललिता की मौत के रहस्य से लेकर सवाल उनके राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर उठते रहे. साथ ही कुछ त्योरिंयां इस पूरे मामले में केंद्र सरकार की अति संवेदनशीलता को लेकर भी टेढ़ी होती रहीं. मसलन, अतिरिक्त संवेदनशीलता का ही नमूना था कि संसद के शीतकालीन सत्र की बैठक जयललिता के निधन पर एक दिन के लिए रद्द की गई. उस शिवसेना जैसे एनडीए के साथियों के भी सवाल थे कि ऐसा आदर बाला साहब ठाकरे के लिए क्यों नहीं दिखाया गया? एनडीए से बाहर रहने वाली और कभी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को टंगड़ी मार कर गिराने वाली जयललिता के लिए यह खास तवज्जो क्यों बख्शी गई? हालांकि इन सवालों को दरकिनार कर प्रधानमंत्री समेत बीजेपी के आला नेता जयललिता को अंतिम विदाई देने के लिए चेन्नई पहुंचे थे.

बहरहाल, जयललिता के बाद ही यह अटकलें तेज हो चली थी कि अब सेल्वी शशिकला और पन्नीर सेल्वम के बीच सत्ता की रस्साकशी बढ़ेगी. दिल्ली के सत्ता गलियारों में पन्नीर सेल्वम सहानुभूति और सहायता पात्र के तौर पर उभरने लगा था. जयललिता की मौत के एक महीने के भीतर पार्टी की कमान शशिकला के हाथ में थी जो अन्ना द्रमुक की महासचिव बन चुकी थीं. जनवरी में जलीकट्टू मामले पर सु्प्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिल भावनाओं पर मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम को केंद्र सरकार से सहानुभूति मिली जिसने उनके हाथ मजबूत ही किए. बाद में अदालत ने भी जलीकट्टू की इजाजत दे दी.

मगर, सत्ता में सेल्वम की मजबूती भला शशिकला को कैसे भाती? पार्टी के धन संसाधनों से लेकर मानव संसाधनों का नियंत्रण हाथ में ले चुकी सेल्वी शशिकला की चिंता सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आय से अधिक संपत्ति के उस केस को लेकर भी लाजिमी थी जिसमें जयललिता के जाने के बाद वो अकेली बची थी. लिहाजा पार्टी प्रमुख के साथ ससिकला के मुख्यमंत्री बनने की तैयारी हो गई. पन्नीर सेल्वम ने पार्टी आज्ञा मानते हुए इस्तीफा भी दे दिया. मगर इस बीच ही चिड़िया से बाज को लड़ाने की तैयारी भी हो गई थी. कार्यवाहक मुख्यमंत्री को भी इसके संकेत मिल चुके थे.

शशिकला मुख्यमंत्री पद का दावा करने को बेताब थी मगर राज्यपाल अपने पूर्व निर्धारित यात्रा कार्यक्रमों के कारण व्यस्त थे. इस बीच कानूनी पहलुओं और तांसी भूमि कांड समेत शशिकला के खिलाफ पुराने मामलों का अध्ययन भी केंद्र के कई नेताओं ने कर लिया. वैसे यह सहज भी है. आखिर केंद्र पूरे देश के घटनाक्रमों के लिए जिम्मेदार है और सूबों के संवेदनशील मामलों पर अध्ययन भी जरूरी है. इस उहापोह के बीच कार्यवाहक मुख्यमंत्री सेल्वम के आस-पास सहानुभूति और समर्थन जुटने लगा तो ससिकला की बेचैनी बढ़ती गई. आखिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को तोड़ दिया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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