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क्यों पनीरसेल्वम ही जयललिता के असली वारिस हैं

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 10 फरवरी, 2017 06:12 PM
  • 10 फरवरी, 2017 06:12 PM
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पनीरसेल्वम ने दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए भी रामायण के भरत सामान कभी किसी तरह का कोई लोभ नहीं दिखाया. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पनीरसेल्वम कभी भी उस कुर्सी पर नहीं बैठे जिस पर जयललिता बैठा करती थीं.

तमिलनाडु की राजनीति में घमासान मचा है. आम तौर पर बेहद शांत दिखने वाले ओ पन्नीरसेल्वम के बगावती तेवर ने शशिकला के मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब पर ग्रहण लगा दिया है. सियासी उठापटक के बीच गुरुवार को शशिकला तमिलनाडु के राज्यपाल विद्यासागर राव से मिलने पहुंचीं. शशिकला ने 130 विधायकों का समर्थन होने का हवाला देते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया. उधर, एआईएडीएमके के धूर विरोधी डीएमके ने कहा है कि अगर बहुमत साबित करने की जरूरत पड़ी तो वह पन्नीरसेल्वम का समर्थन करेंगी. अब गेंद राजभवन के पाले में है जो तमिलनाडु की राजनीतिक भविष्य तय करेगी.

भले ही आकंड़े शशिकला के पक्ष में दिखते हों, मगर जिस प्रकार का जनसमर्थन पनीरसेल्वम को मिल रहा है वो शशिकला की मुश्किलें बढ़ाता ही दिख रहा है. पनीरसेल्वम को न केवल आम लोगों का समर्थन मिल रहा है बल्कि साउथ के कई सुपरस्टार्स भी खुल कर पनीरसेल्वम के समर्थन में आ गए हैं. पनीरसेल्वम को मिल रहे समर्थन के पीछे उनकी छवि रही है जहां हमेशा ही उन्हें सुर्खियों से दूर रहने वाले शख्स के रूप में देखा जाता रहा है. अपने कार्यकाल के दौरान जयललिता जिसे सबसे ज्यादा विश्वासपात्र मानती थी वो पनीरसेल्वम ही थे. यही कारण था कि जब जब जयललिता को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी तो उन्होंने पनीरसेल्वम को ही मुख्यमंत्री बनाया. पनीरसेल्वम सबसे पहले 21 सितंबर 2001 से लेकर 1 मार्च 2002 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे. फिर जयललिता के जेल जाने की सूरत में भी उन्होंने 29 सितंबर 2014 से लेकर 23 मार्च 2015 तक सत्ता संभाली.

दूसरी तरफ शशिकला नटराजन भी जयललिता की खास रही हैं. हालांकि जया ने अपने जीते जी शशिकला...

तमिलनाडु की राजनीति में घमासान मचा है. आम तौर पर बेहद शांत दिखने वाले ओ पन्नीरसेल्वम के बगावती तेवर ने शशिकला के मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब पर ग्रहण लगा दिया है. सियासी उठापटक के बीच गुरुवार को शशिकला तमिलनाडु के राज्यपाल विद्यासागर राव से मिलने पहुंचीं. शशिकला ने 130 विधायकों का समर्थन होने का हवाला देते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया. उधर, एआईएडीएमके के धूर विरोधी डीएमके ने कहा है कि अगर बहुमत साबित करने की जरूरत पड़ी तो वह पन्नीरसेल्वम का समर्थन करेंगी. अब गेंद राजभवन के पाले में है जो तमिलनाडु की राजनीतिक भविष्य तय करेगी.

भले ही आकंड़े शशिकला के पक्ष में दिखते हों, मगर जिस प्रकार का जनसमर्थन पनीरसेल्वम को मिल रहा है वो शशिकला की मुश्किलें बढ़ाता ही दिख रहा है. पनीरसेल्वम को न केवल आम लोगों का समर्थन मिल रहा है बल्कि साउथ के कई सुपरस्टार्स भी खुल कर पनीरसेल्वम के समर्थन में आ गए हैं. पनीरसेल्वम को मिल रहे समर्थन के पीछे उनकी छवि रही है जहां हमेशा ही उन्हें सुर्खियों से दूर रहने वाले शख्स के रूप में देखा जाता रहा है. अपने कार्यकाल के दौरान जयललिता जिसे सबसे ज्यादा विश्वासपात्र मानती थी वो पनीरसेल्वम ही थे. यही कारण था कि जब जब जयललिता को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी तो उन्होंने पनीरसेल्वम को ही मुख्यमंत्री बनाया. पनीरसेल्वम सबसे पहले 21 सितंबर 2001 से लेकर 1 मार्च 2002 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे. फिर जयललिता के जेल जाने की सूरत में भी उन्होंने 29 सितंबर 2014 से लेकर 23 मार्च 2015 तक सत्ता संभाली.

दूसरी तरफ शशिकला नटराजन भी जयललिता की खास रही हैं. हालांकि जया ने अपने जीते जी शशिकला को सक्रिय राजनीति से दूर ही रखा, साथ ही जया ने कभी भी उन्हें पार्टी में भी कोई जिम्मेदारी नहीं दी थी. हालांकि ज्यादा समय जया और शशिकला के रिश्ते बेहतर ही रहे मगर बीच बीच में उनके रिश्तों में कुछ खटास भी आई. साल 2011 में जयललिता ने शशिकला को इस संदेह पर अपने घर से निकाल दिया था कि उनके रिश्तेदार पार्टी की बागडोर अपने हाथों में लेने की साज़िश रच रहे थे. हालांकि एक साल बाद ही दोनों के रिश्ते फिर से सामान्य हो गए थे.

एक चीज जो पनीरसेल्वम को शशिकला के मुकाबले काफी आगे रखती है वो है पनीरसेल्वम का महत्वाकांक्षि न होना, पनीरसेल्वम ने दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए भी रामायण के भरत सामान कभी किसी तरह का कोई लोभ नहीं दिखाया. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पनीरसेल्वम कभी भी उस कुर्सी पर नहीं बैठे जिस पर जयललिता बैठा करती थीं.

दूसरी तरफ शशिकला ने जयललिता के रसूख का भरपूर फायदा उठाया, भले ही वो किसी पद पर नहीं रही मगर जयललिता के जायदाद पर उन्होंने कब्जा जमा लिया. शशिकला पहले अकेले ही जयललिता के साथ रहने उनके पोएस गार्डन घर में चली गईं. मगर जल्द ही उन्होंने अपनी बहन, बहनोई और बच्चे भी वहां रहने बुला लिया. बाद में शशिकला के एक भतीजे को भी जयललिता ने गोद ले लिया. अपने इसी गोद लिए बेटे की आलीशान शादी ने उन्हें मीडिया और आयकर विभाग के शक के दायरे में ला खड़ा किया. जयललिता के स्वास्थ्य खराब होने की स्तिथि में शशिकला पर आरोप लगते रहे कि वो जयललिता को सीमित जानकारी मुहैया कराती थी. जयललिता की मौत के दो महीने के भीतर ही शशिकला पार्टी चीफ बनने के साथ ही मुख्यमंत्री बनने के भी काफी करीब हैं. शशिकला ने जिस तेजी से बागडोर अपने हाथ में लेना चाह रही हैं वो उनकी महत्वाकांक्षा ही दिखाता है.

पनीरसेल्वम ने बगावत कर खुद का राजनीतिक कद काफी ऊंचा कर लिया है, जबकि शशिकला की जल्दबाजी आम लोगों के गले नहीं उतर रही है, यही वजह है कि पनीरसेल्वम को लोग मुख्यमंत्री के साथ ही जयललिता के भी असली वारिस के रूप में भी देख रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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