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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी: सरदार पटेल का मान या मोदी का प्रमोशन?

    • खुशदीप सहगल
    • Updated: 31 अक्टूबर, 2018 07:27 PM
  • 31 अक्टूबर, 2018 07:27 PM
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आप और हम जैसे टैक्सपेयर्स के 3000 करोड़ रुपए सरदार पटेल की भव्य मूर्ति बनाने पर खर्च किए गए. इससे आखिर क्षेत्र के किसानों और आदिवासी समुदाय को क्या लाभ हुआ?

‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के लोकार्पण से जुड़े इवेंट की गहमागहमी से अलग हटकर बात की जाए तो 31 अक्टूबर देश की दो शख्सियतों को याद करने का दिन है. एक लौह पुरुष तो दूसरी लौह महिला. आज़ाद भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की बुधवार को 143वीं जयंती हैं. वहीं देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 34वीं पुण्यतिथि भी है. लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के अनावरण की वजह से इस 31 अक्टूबर को सारा फोकस सरदार पटेल पर है.

आख़िर मोदी को सरदार पटेल से इतना लगाव क्यों?  

दोनों का ताल्लुक गुजरात से होना ज्यादा मायने नहीं रखता. वजह कुछ और है. देश का ओरिजनल लौह-पुरुष सरदार पटेल को ही माना जाता है. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद बीजेपी की ओर से लालकृष्ण आडवाणी के नाम से पहले भी लौह-पुरुष जोड़ा जाने लगा. इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने. शुरुआती एक-दो वर्ष गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगों के बाद बनी स्थिति की वजह से काफी उथल-पुथल वाले रहे.

31 अक्टूबर को सारा फोकस सरदार पटेल पर 

2003 तक राजनीतिक स्थिरता और प्रशासन पर पकड़ मजबूत होने के बाद मोदी ने जोरशोर से पटेल का नाम लेना शुरू किया. दरअसल मोदी खुद की छवि ऐसे मज़बूत नेता के तौर पर पेश करना चाहते थे जो कि कुशल प्रशासक होने के साथ कठोर फैसले लेना जानता है. इसके लिए उन्होंने सरदार पटेल को अपने आदर्श के तौर पर पेश करना शुरू किया. मोदी जानते थे कि पटेल का नाम गुजरात के जन-जन के मन में बसा हुआ है. 2004 में इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को आम चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. 2005 के बाद मोदी ने केंद्र की यूपीए सरकार पर गुजरात के साथ सौतेला...

‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के लोकार्पण से जुड़े इवेंट की गहमागहमी से अलग हटकर बात की जाए तो 31 अक्टूबर देश की दो शख्सियतों को याद करने का दिन है. एक लौह पुरुष तो दूसरी लौह महिला. आज़ाद भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की बुधवार को 143वीं जयंती हैं. वहीं देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 34वीं पुण्यतिथि भी है. लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के अनावरण की वजह से इस 31 अक्टूबर को सारा फोकस सरदार पटेल पर है.

आख़िर मोदी को सरदार पटेल से इतना लगाव क्यों?  

दोनों का ताल्लुक गुजरात से होना ज्यादा मायने नहीं रखता. वजह कुछ और है. देश का ओरिजनल लौह-पुरुष सरदार पटेल को ही माना जाता है. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद बीजेपी की ओर से लालकृष्ण आडवाणी के नाम से पहले भी लौह-पुरुष जोड़ा जाने लगा. इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने. शुरुआती एक-दो वर्ष गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगों के बाद बनी स्थिति की वजह से काफी उथल-पुथल वाले रहे.

31 अक्टूबर को सारा फोकस सरदार पटेल पर 

2003 तक राजनीतिक स्थिरता और प्रशासन पर पकड़ मजबूत होने के बाद मोदी ने जोरशोर से पटेल का नाम लेना शुरू किया. दरअसल मोदी खुद की छवि ऐसे मज़बूत नेता के तौर पर पेश करना चाहते थे जो कि कुशल प्रशासक होने के साथ कठोर फैसले लेना जानता है. इसके लिए उन्होंने सरदार पटेल को अपने आदर्श के तौर पर पेश करना शुरू किया. मोदी जानते थे कि पटेल का नाम गुजरात के जन-जन के मन में बसा हुआ है. 2004 में इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को आम चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. 2005 के बाद मोदी ने केंद्र की यूपीए सरकार पर गुजरात के साथ सौतेला बर्ताव करने का आरोप लगाना शुरू किया. साथ ही ये कहना भी शुरू किया कि सरदार पटेल के साथ भी नेहरू परिवार की ओर से हमेशा अन्याय किया गया.

क्या ये रणनीति थी पटेल की लौह-पुरूष वाली विरासत पर अपना दावा ठोकने की?

आख़िर मोदी क्यों कह रहे थे ये सब?  

क्या ये रणनीति थी पटेल की लौह-पुरूष वाली विरासत पर अपना दावा ठोकने की? 2009 का आम चुनाव बेशक बीजेपी ने आडवाणी को आगे रख कर लड़ा लेकिन पार्टी की हार ने मोदी को ये जताने का मौका दे दिया कि केंद्र की राजनीति के लिए बीजेपी को आडवाणी की नहीं बल्कि सरदार पटेल सरीखे लौह-पुरुष की ज़रूरत है, जिसके सांचे में सिर्फ वो ही फिट बैठते हैं. मोदी की कोशिश ये भी रही है कि आने वाली पीढ़ी उन्हें पटेल की तरह ही मजबूत नेता के तौर पर याद करे.

सरदार पटेल मुसलमानों को हिन्दुओं की तरह ही देश का एकसमान नागरिक मानते थे. सरदार पटेल धार्मिक आधार पर देश का विभाजन भी नहीं चाहते थे. यानी वो कभी हिन्दू राष्ट्र बनाने के पक्ष में नहीं थे. सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद कुछ जगह जश्न मनाने की ख़बरें मिलने के बाद गृह मंत्री के नाते आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया.

सरदार पटेल की मूर्ति से किसे फायदा?

टैक्स पेयर्स के 3000 करोड़ रुपए सरदार पटेल की भव्य मूर्ति बनाने पर खर्च किए गए. इससे आखिर क्षेत्र के किसानों और आदिवासी समुदाय को क्या लाभ हुआ? दक्षिणी गुजरात के नर्मदा ज़िले में इस मूर्ति के आसपास रहने वाले लोग मानते हैं कि 3000 करोड़ रुपए अगर ज़रूरतमंदों पर लगाए जाते, तो उनके हालात काफी बेहतर हो सकते थे. हालत ये है कि नर्मदा नदी के किनारे रह रहे किसान ही अपने खेतों में पानी की बूंद बूंद के लिए तरस रहे हैं.

गुजरात और केंद्र सरकार के दावे हैं कि मूर्ति से पर्यटन की अपार संभावनाएं होंगी और नर्मदा ज़िले की आर्थिक स्थिति सुधरेगी. रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय लोगों की माली हालत मजबूत होगी. जहां तक पर्यटन की संभावनाओं का सवाल है तो विदेश से आने वाले सैलानी सबसे पहले ये देखते हैं कि किस देश में सुरक्षा का माहौल कैसा है? क्या उन्हें इस संबंध में पूरी तरह आश्वस्त करने के लिए कदम उठाना ज़रूरी नहीं है? 3000 करोड़ रुपए खर्च कर नया पयर्टन स्थल विकसित करने की जगह क्या देश में पहले से ही मौजूद एक से बढ़ कर नैसर्गिक पर्यटन स्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता नहीं हैं, जिससे वहां ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी सैलानियों को आकर्षित किया जा सके?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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