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इस तरह तो हर स्थिति में भाजपा ही यूपी चुनाव जीतेगी!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 10 जुलाई, 2021 05:36 PM
  • 10 जुलाई, 2021 05:36 PM
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भाजपा से लड़ने के लिए तैयार बैठे सभी दल फिलहाल आपस मे ही लड़ रहे हैं. चुनावी लड़ाई की तैयारी में ये दल एक दूसरे पर भाजपा की 'बी टीम' होने जैसा एक कॉमन बाण चला रहे हैं. लेकिन इससे अंत में फायदा किसको होने वाला है?

गैर भाजपाई दलों में एक दूसरे पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाने का चलन पुराना है, लेकिन अब ये रिवाज और भी तेजी से बढ़ता जा रहा है. ऐसी तोहमतों को सच मान लें तो भाजपा अजेय है. न इसे कोई हरा सकता है, न कभी ये हारी थी और ना ही कहीं हारी है. बी टीम के आरोप सच मान लें तो ये कहा जा सकता है कि कोई भी दल जीते तो मान लीजिए कि भाजपा ही जीती है. क्योंकि जहां भाजपा नहीं जीती वहां बी टीम तो जीतती ही हैं. अपवाद को छोड़ दीजिए तो देश के ज्यादातर ग़ैर भाजपाई दल ऐसे हैं जिनपर बीजेपी की दूसरी कॉपी या मिलीभगत वाला दल जैसे जुमले कसे जाते हैं. ख़ासकर उत्तर भारत में ग़ैर भाजपाई पार्टियां एक दूसरे पर इस तरह के तंज़ कसती है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और खासकर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीनन ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम पर तो खासकर भाजपा की बी टीम होने के इल्जाम तो ख़ूब लगते हैं. इन दिनों यूपी मे तैयार हो रही चुनावी जमीन पर एआईएमआईएम और आप जैसे बाहरी दल भी डेरा जमाने लगे हैं. खुद को बड़ा वाला धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल यूपी की सत्ता पर खूब काबिज हो चुके हैं.

तमाम कारण हैं जो पुष्टि कर दे रहे हैं कि 22 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में फायदा भाजपा को ही होगा

भाजपा से लड़ने के लिए तैयार बैठे ये सभी दल फिलहाल आपस मे ही लड़ रहे हैं. चुनावी लड़ाई की तैयारी में ये दल एक दूसरे पर "बी टीम" जैसा एक कॉमन बाण चला रहे हैं. भाजपा विरोधियों, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लोगोंऔर खासकर मुस्लिम समाज का एकमुश्त वोट हासिल करने के लिए एक दूसरे पर इस प्रकार का आरोप लगाया जा रहा हैं. तीन दशक पहले मुस्लिम समाज कांग्रेस को भाजपा जैसा कहने लगा था. और इस तरह इस तरह के आरोपों का...

गैर भाजपाई दलों में एक दूसरे पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाने का चलन पुराना है, लेकिन अब ये रिवाज और भी तेजी से बढ़ता जा रहा है. ऐसी तोहमतों को सच मान लें तो भाजपा अजेय है. न इसे कोई हरा सकता है, न कभी ये हारी थी और ना ही कहीं हारी है. बी टीम के आरोप सच मान लें तो ये कहा जा सकता है कि कोई भी दल जीते तो मान लीजिए कि भाजपा ही जीती है. क्योंकि जहां भाजपा नहीं जीती वहां बी टीम तो जीतती ही हैं. अपवाद को छोड़ दीजिए तो देश के ज्यादातर ग़ैर भाजपाई दल ऐसे हैं जिनपर बीजेपी की दूसरी कॉपी या मिलीभगत वाला दल जैसे जुमले कसे जाते हैं. ख़ासकर उत्तर भारत में ग़ैर भाजपाई पार्टियां एक दूसरे पर इस तरह के तंज़ कसती है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और खासकर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीनन ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम पर तो खासकर भाजपा की बी टीम होने के इल्जाम तो ख़ूब लगते हैं. इन दिनों यूपी मे तैयार हो रही चुनावी जमीन पर एआईएमआईएम और आप जैसे बाहरी दल भी डेरा जमाने लगे हैं. खुद को बड़ा वाला धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल यूपी की सत्ता पर खूब काबिज हो चुके हैं.

तमाम कारण हैं जो पुष्टि कर दे रहे हैं कि 22 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में फायदा भाजपा को ही होगा

भाजपा से लड़ने के लिए तैयार बैठे ये सभी दल फिलहाल आपस मे ही लड़ रहे हैं. चुनावी लड़ाई की तैयारी में ये दल एक दूसरे पर "बी टीम" जैसा एक कॉमन बाण चला रहे हैं. भाजपा विरोधियों, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लोगोंऔर खासकर मुस्लिम समाज का एकमुश्त वोट हासिल करने के लिए एक दूसरे पर इस प्रकार का आरोप लगाया जा रहा हैं. तीन दशक पहले मुस्लिम समाज कांग्रेस को भाजपा जैसा कहने लगा था. और इस तरह इस तरह के आरोपों का सिलसिला शुरू हुआ था.

जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1989 में अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाकर भूमि पूजन करवाया था तब से मुस्लिम समाज ने उससे दूरी बनाना शुरू कर दी थी. और तत्कालीन सपा सुप्रीपों मुलायम स़िह यादव ने यूपी से कांग्रेस को सत्ता के वनवास में डालकर यहां समाजवादी पार्टी की जड़े जमाईं और कई बार सत्ता हासिल की. तब से आजतक तीन दशक से अधिक समय से कांग्रेष यूपी की सत्ता से बेदखल है.

इसी तरह जब से बसपा सुप्रीमों द्वारा भाजपा के साथ सरकार बनाई तब से बसपा को भी भाजपा की बी टीम के ताने पड़ने लगे. अखिलेश यादव सरकार में मुजफ्फरनगर में साम्प्रदायिक दंगों, संसद में मुलायम सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी विजय की कामना, आजम खान को जेल की सख्त सजा से मुक्त कराने के लिए सपा द्वारा कोई बड़ा आंदोलन न करने जैसे बिन्दुओं को लेकर मुस्लिम समाज के कुछ लोग और गैर भाजपाई दल समाजवादी पार्टी को बीजेपी की बी टीम कहते हैं.

इसी तरह कई अन्य दलीलों के अलावा दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगों के बाद आम आदमी पार्टी को भी बी टीम से नवाजा जाता है. असदुद्दीन ओवेसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम पर खासकर ये आरोप लगता है कि अलग अलग राज्यों में भाजपा से मुकाबला करने वाले धर्मनिरपेक्ष दलों के वोट काटने के लिए वोट कटवा की भूमिका निभाकर एआईएमआईएम भाजपा की मददगार है.

भारत के तमाम राजनीतिक दलों में भाजपा एक ऐसी राष्ट्रीय दल है जिसके ख़िलाफ अलग-अलग राज्यों में करीब दर्जनभर स्थापित विरोधी दल है.कांग्रेस के लिए किसी भी क्षेत्रीय दल का प्री पोल या पोस्ट पोल गठबंधन मुश्किल नहीं. लेकिन अपवाद को छोड़ दीजिए तो भाजपा के साथ अधिकांश दलों को आने में परहेज़ रहता है. क्योंकि ज्यादातर दल ख़ुद को धर्मनिरपेक्ष और भाजपा को हिन्दुत्ववादी पार्टी कहते हैं.

भारतीय राजनीति के सभी दलों का आधार उनकी विचारधारा होती है. भाजपा की विचारधारा औरों से मुख़तलिफ़ (भिन्न) है. जबकि तमाम राजनीतिक दलों की विचारधारा लगभग मिलती जुलती है. जिसमें धर्मनिरपेक्षता कॉमन है. इसलिए अक्सर चुनावों में भाजपा वर्सेज ऑल जैसी लड़ाई देखने को मिलती है. लेकिन भाजपा से लड़ने वालों को भाजपा से पहले आपस मे लड़ना पड़ता है.

और गैर भाजपाई दलों की लड़ाई में ये दल आपस में एक दूसरे को भाजपा की बी टीम कहकर भाजपा विरोधी वोटरों को अपने विश्वास मे लेने की कोशिश करते हैं. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में बारह मास चुनावी सरगर्मियां एक उत्सव जैसी होती हैं. चंद महीने भी ऐसे नहीं गुज़रते जब देश के किसी राज्य में कोई चुनाव नहीं होने वाला हो.

संभवतः पांच-सात महीने बाद तीन राज्यों के चुनाव की तारीख आनी है. किसी भी राज्य की चुनाव के लिए राजनीतिक दल 6 महीने से एक साल तक तैयारियां करते हैं. दो से तीन महीने रैलिया, सभाएं और किस्म-किस्म के विज्ञापन के माध्यम से चुनाव प्रचार चलता है. इन दिनों सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव का गुणा-भाग शुरू हो चुका है.

यहां भाजपा से लड़ने के बजाय सभी गैर भाजपा दल एक दूसरे को भाजपा की बी टीम कहकर खुद को भाजपा से लड़ने वाला सबसे मजबूत दल बता रहे हैं. 'भाजपा की बी टीम' चुनावी समर का दिलचस्प जुमला बन गया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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