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सबसे बड़ा सवाल, कहां हैं केजरीवाल ?

    • कुमार शक्ति शेखर
    • Updated: 06 जुलाई, 2017 04:16 PM
  • 06 जुलाई, 2017 04:16 PM
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इन दिनों तो केजरीवाल किसी टीवी चैनल पर बाइट देते भी नहीं दिख रहे हैं. यहां तक की उनके टीवी और रेडियो चैनलों पर चलने वाले सारे विज्ञापन भी कहीं गायब हो गए हैं. आखिर इतना सन्नाटा क्यों है भाई?

देश और विदेश के व्यस्त राजनीतिक गतिविधियों के बीच एक इंसान की कमी दिखाई दे रही है. वो हैं आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. केजरीवाल जी ऐसे इंसान हैं जो सभी प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों पर टिप्पणी करने में पीछे नहीं रहते और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर हमला करने का एक मौका कभी चूकते हैं. ऐसे में अभी की गहमागहमी में उनकी अनुपस्थिति उल्लेखनीय है.

इन दिनों तो केजरीवाल किसी टीवी चैनल पर बाइट देते भी नहीं दिख रहे हैं. यहां तक की उनके टीवी और रेडियो चैनलों पर चलने वाले सारे विज्ञापन भी कहीं गायब हो गए हैं.

पिछले एक महीने में कम से कम तीन बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं. पहला- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों की घोषणा, दूसरा- गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) के रूप में देश में ऐतिहासिक आर्थिक सुधार लागू हुए और तीसरा- आजादी के लगभग 70 सालों में पीएम नरेन्द्र मोदी इजरायल जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने.

लेकिन इन सभी घटनाओं के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री शांत बैठे हैं. मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर उनकी तरफ से कोई हलचल नहीं दिखाई दे रही है. जबकि इसके पहले केजरीवाल किसी भी मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और भाजपा की आलोचना करने में सबसे आगे रहते थे.

इन तीनों हालिया घटनाक्रमों पर प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल के करीबी सूत्रों का कहना है कि इजरायल के मुद्दे पर केजरीवाल का कोई स्टैंड नहीं है. जीएसटी मामले पर कहा गया कि 2 जुलाई को केजरीवाल ने एक हैंगआउट में हिस्सा लिया था और ईद के एक दिन पहले भीड़ द्वारा जुनैद की हत्या गोमांस के लिए किए जाने का आरोप लगाया था. साथ ही कुछ ट्विट्स को 'रिट्वीट' भी किया था. राष्ट्रपति चुनाव के बारे में उन्होंने कहा कि पार्टी ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिया है कि वो भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं करेंगे.

देश और विदेश के व्यस्त राजनीतिक गतिविधियों के बीच एक इंसान की कमी दिखाई दे रही है. वो हैं आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. केजरीवाल जी ऐसे इंसान हैं जो सभी प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों पर टिप्पणी करने में पीछे नहीं रहते और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर हमला करने का एक मौका कभी चूकते हैं. ऐसे में अभी की गहमागहमी में उनकी अनुपस्थिति उल्लेखनीय है.

इन दिनों तो केजरीवाल किसी टीवी चैनल पर बाइट देते भी नहीं दिख रहे हैं. यहां तक की उनके टीवी और रेडियो चैनलों पर चलने वाले सारे विज्ञापन भी कहीं गायब हो गए हैं.

पिछले एक महीने में कम से कम तीन बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं. पहला- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों की घोषणा, दूसरा- गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) के रूप में देश में ऐतिहासिक आर्थिक सुधार लागू हुए और तीसरा- आजादी के लगभग 70 सालों में पीएम नरेन्द्र मोदी इजरायल जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने.

लेकिन इन सभी घटनाओं के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री शांत बैठे हैं. मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर उनकी तरफ से कोई हलचल नहीं दिखाई दे रही है. जबकि इसके पहले केजरीवाल किसी भी मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और भाजपा की आलोचना करने में सबसे आगे रहते थे.

इन तीनों हालिया घटनाक्रमों पर प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल के करीबी सूत्रों का कहना है कि इजरायल के मुद्दे पर केजरीवाल का कोई स्टैंड नहीं है. जीएसटी मामले पर कहा गया कि 2 जुलाई को केजरीवाल ने एक हैंगआउट में हिस्सा लिया था और ईद के एक दिन पहले भीड़ द्वारा जुनैद की हत्या गोमांस के लिए किए जाने का आरोप लगाया था. साथ ही कुछ ट्विट्स को 'रिट्वीट' भी किया था. राष्ट्रपति चुनाव के बारे में उन्होंने कहा कि पार्टी ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिया है कि वो भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं करेंगे.

तू छुपा है कहां, जनता खोजती यहां!

केजरीवाल की प्रतिक्रिया न आने पर सोशल मीडिया पर लोगों ने चुटकी थी...

लेकिन इसके पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री हर मुद्दे पर बड़ी ही साफगोई से अपनी बात रखते थे. 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर आतंकवादियों के खिलाफ किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के लिए जब सारा देश जश्न मना रहा था केजरीवाल उन कुछ विपक्षी नेताओं में से थे जिन्होंने सेना की इस कार्रवाई पर उंगली उठाई थी.

इसी तरफ जब 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने जब रात के 8 बजे नोटबंदी की घोषणा की तो सारे देश ने इस कदम का जोरशोर से स्वागत किया. लेकिन केजरीवाल ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर एक अभियान का नेतृत्व किया जिसमें नोटबंदी के फैसले को रद्द करने की मांग की गई थी. यहां तक की नोटबंदी के फैसले को वापस नहीं लेने पर जनता के साथ मिलकर 'विद्रोह' की भी धमकी दी थी.

लेकिन अब केजरीवाल ने खुद को दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर ही ध्यान केन्द्रित करने में लगा लिया है-

हालत ये है कि केजरीवाल अब शायद ही कोई ट्वीट कर रहे हैं. लगभग सभी अवसरों पर अब वो सिर्फ रिट्वीट ही कर रहे हैं. यहां पर ये जानना दिलचस्प है कि जिस ट्वीटर हैंडल का ट्वीट वो अधिकतर रिट्वीट करते हैं वो किसी गुमनाम व्यक्ति AAP Ka Mehta के नाम से है. इसका ट्विटर हैंडल- @DaaruBaazMehta है.

उसके कुछ ट्वीट का उदाहरण देखिए:

अब इस बात से तो सभी को आश्चर्य होगा कि आखिर केजरीवाल इतना शांत क्यों हो गए हैं. तो इसके पीछे सात कारण हो सकते हैं:

1. विधानसभा चुनावों में मिली हार

केजरीवाल को पूरा यकीन था कि पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनावों में जीत उन्हें ही मिलेगी. लेकिन पंजाब में मिली कम सीटें और गोवा में खाता न खोल पाना दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए करारा धक्का थी. इन दोनों ही राज्यों में केजरीवाल ने जिस तरह से अपना समय और संसाधन लगाया था उसके बाद उनकी प्रतिष्ठा दांव पर थी. लेकिन अपनी पार्टी की जड़ें दिल्ली से बाहर फैलाने और जमाने के मकसद से लड़े गए ये चुनाव उनके लिए हानिकारक साबित हुआ.

2. एमसीडी चुनावों में हार

दिल्ली का नगर निगम चुनाव आम आदमी पार्टी का पहला चुनाव था और यहां भी उन्हें बीजेपी के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा. पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों की तुलना में आम आदमी पार्टी के लिए ये हार किसी झटके से कम नहीं थी क्योंकि यहां पर उसी की सरकार है.

3. ईवीएम के मुद्दे पर हुई शर्मिंदगी

दो विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद केजरीवाल ने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया. साथ ही चुनाव आयोग (ईसी) पर बीजेपी के हाथों की कठपुतली बनने का भी आरोप लगाया. उन्होंने चुनाव आयोग से एक ईवीएम देने की मांग की और चैलेंज किया कि 72 घंटे में वो ये साबित कर देंगे कि ईवीएम के सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ की जा सकती है.

चुनाव आयोग ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए न सिर्फ आमआदमी पार्टी बल्कि सारे राजनीतिक दलों को ईवीएम में धांधली की बात को साबित करने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन न सिर्फ आम आदमी पार्टी बल्कि सारे दलों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए. और फिर से केजरीवाल की छवि मटियामेट हो गई.

4. पार्टी के अंदर की उठा-पटक

आम चुनावों में हार के बाद से आम आदमी पार्टी के अंदर ही उठा-पटक शुरु हो गई. दिल्ली सरकार में पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने केजरीवाल के खिलाफ विद्रोह का झंडा तो बुलंद किया ही था साथ ही उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं और अनौपचारिकताओं के गंभीर आरोप भी लगाए.

इसी समय आप के सह-संस्थापक और केजरीवाल के विश्वासपात्र कुमार विश्वास भी अलग ही राग अलापने लगे थे. दोनों ही एक दूसरे के राजनीतिक हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि संघर्ष-विराम की एक कोशिश जरुर की गई है लेकिन ये कोई स्थायी हल नहीं.

5. मानहानि के मुकदमे

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के चार अन्य लोगों के खिलाफ मानहानि के मामलों ने उनकी छवि खराब की थी. हालांकि आम आदमी पार्टी के संयोजक ने अपने बचाव के लिए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी को नियुक्त किया है लेकिन वो बैकफुट पर ही नजर आ रहे हैं.

6. ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला

आप के तीन विधायकों द्वारा विद्रोह के अलावा आम आदमी पार्टी के 66 में से 20 विधायकों पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में निलंबन की तलवार लटक रही है. चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया है कि इस मामले में सुनवाई जारी रखी जाएगी. साथ ही इसने 20 विधायकों के अयोग्य घोषित किए जाने के संकते भी दिए हैं. अंतिम निर्णय जल्द ही आ सकता है. अगर ऐसा होता है, तो ये दिल्ली सरकार के लिए अभी तक का सबसे बड़ा झटका साबित होगा.

हो सकता है कि इस फैसले से दिल्ली सरकार शासन का नैतिक अधिकार भी खो दे और केजरीवाल को इस्तीफा देने और मध्यावधि चुनाव के आसार बन जाएं.

7. ईडी, सीबीआई मामले

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केजरीवाल और उनके सहयोगी सत्येंद्र जैन सहित आप नेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच कर रही है. ईडी ने आम आदमी पार्टी पर 2 करोड़ रूपये के दान को कथित रूप से छुपाने के खिलाफ मामला दायर किया है.

वापस दिल्ली की बात

केजरीवाल ने दो मौंको पर दिल्ली के लोगों से माफी मांगी है- 2014 में 49 दिन के शासन और 2014 के लोकसभा चुनावों में कई राज्यों में चुनाव लड़ने के मकसद से इस्तीफा देने के लिए. 14 फरवरी, 2015 को अपने दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करते हुए उन्होंने दिल्ली की जनता से वादा किया था कि अब वो कभी दिल्ली छोड़कर नहीं जाएंगे.

हालांकि पंजाब और गोवा में अपनी पार्टी की जमीन तैयार करने की कोशिश में एक बार फिर वो अपना वादा भूल गए. अब एक तरफ केजरीवाल ने दोनों राज्यों में हार का मुंह देखने के बाद कालिख तो पुतवाई ही, दूसरी तरफ दिल्ली ने एक बेहतर गवर्नेंस खो दिया. जब वो और उनके पार्टी के नेता दिल्ली के बाहर चुनाव प्रचार में व्यस्त थे तब दिल्ली में लोग मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बिमारियों से जूझ रहे थे.

केजरीवाल ने अपनी गलती को महसूस किया है. और लगता है कि अब फिर फिर वहीं पहुंच गए हैं, जहां से चले थे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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