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राष्ट्रपति चुनाव में 'आप' को किसी ने नहीं पूछा... मगर क्यों?

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 24 जून, 2017 06:56 PM
  • 24 जून, 2017 06:56 PM
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आम आदमी पार्टी को न कांग्रेस ने पूछा और न ही बीजेपी ने. बेचारे आम आदमी पार्टी के नेताओं को प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी की हमे किसी ने न्योता नहीं दिया.

देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर लगातार गरमा गर्मी चल रही है. NDA ने रामनाथ कोविंद को अपना उमीदवार चुना है तो वही PA ने मीरा कुमार को. नितीश कुमार ने भाजपा का साथ चुना है. मगर लालू ने कांग्रेस का. मगर इन सब के बीच आम आदमी पार्टी को न कांग्रेस ने पूछा और न ही बीजेपी ने. बेचारे आम आदमी पार्टी के नेताओं को प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी की हमे किसी ने न्योता नहीं दिया. आप नेता संजय सिंह का कहना है की -'राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में NDA ने राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू और अरुण जेटली को अलग-अलग राजनीतिक दलों से बात करने की जिम्मेदारी दी थी. इस कमिटी ने कांग्रेस, CPI, CPM, BSP और शिवसेना जैसे दलों से बातचीत की, लेकिन बीजेपी ने आम आदमी पार्टी से संपर्क करना जरूरी नहीं समझा.'

आम आदमी पार्टी का मानना है कि अगर राजनीतिक दलों से इस तरह दूरी बनाई जाएगी तो राष्ट्रपति चुनाव के लिए PA या NDA को समर्थन मिलना एक मुश्किल काम होगा. संजय सिंह ने कहा- 'कांग्रेस नेता आनंद शर्मा कहते हैं आम आदमी पार्टी की कोई औकात नहीं है. लोकतंत्र में आज कांग्रेस की ऐसी हालत इसलिए है क्योंकि उनको आम आदमी की ताकत पता नहीं है. इस तरह के बयान से कांग्रेस का अहंकार झलकता है.'

मगर आम आदमी पार्टी के नेता कभी इस बात पर विचार करेंगे की आखिर क्यों कोई दाल उनसे हाथ नहीं मिलाना चाहता? इसका कारण है हमेशा कांग्रेस - बीजेपी को चोर बोलना. प्रधानमंत्री मोदी को पागल कहना. सुबह शाम प्रधानमंत्री को पानी पी पी कर कोसने वाले केजरीवाल को आज कोई नहीं पूछ रहा.

हालांकि, देखा जाये तो बीजेपी - कांग्रेस सही भी कर रहे है. अगर कोई दिनभर आपको चोर कहे तो सही है फिर आप इन चोरों के साथ आने के लिए इतना तिलमिला क्यों रहे हो? आप तो ईमानदार हो जाने दो इन चोरों को. वैसे भी ईमानदार लोग चोरों के साथ नहीं बैठा करते.

मगर आम आदमी...

देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर लगातार गरमा गर्मी चल रही है. NDA ने रामनाथ कोविंद को अपना उमीदवार चुना है तो वही PA ने मीरा कुमार को. नितीश कुमार ने भाजपा का साथ चुना है. मगर लालू ने कांग्रेस का. मगर इन सब के बीच आम आदमी पार्टी को न कांग्रेस ने पूछा और न ही बीजेपी ने. बेचारे आम आदमी पार्टी के नेताओं को प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी की हमे किसी ने न्योता नहीं दिया. आप नेता संजय सिंह का कहना है की -'राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में NDA ने राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू और अरुण जेटली को अलग-अलग राजनीतिक दलों से बात करने की जिम्मेदारी दी थी. इस कमिटी ने कांग्रेस, CPI, CPM, BSP और शिवसेना जैसे दलों से बातचीत की, लेकिन बीजेपी ने आम आदमी पार्टी से संपर्क करना जरूरी नहीं समझा.'

आम आदमी पार्टी का मानना है कि अगर राजनीतिक दलों से इस तरह दूरी बनाई जाएगी तो राष्ट्रपति चुनाव के लिए PA या NDA को समर्थन मिलना एक मुश्किल काम होगा. संजय सिंह ने कहा- 'कांग्रेस नेता आनंद शर्मा कहते हैं आम आदमी पार्टी की कोई औकात नहीं है. लोकतंत्र में आज कांग्रेस की ऐसी हालत इसलिए है क्योंकि उनको आम आदमी की ताकत पता नहीं है. इस तरह के बयान से कांग्रेस का अहंकार झलकता है.'

मगर आम आदमी पार्टी के नेता कभी इस बात पर विचार करेंगे की आखिर क्यों कोई दाल उनसे हाथ नहीं मिलाना चाहता? इसका कारण है हमेशा कांग्रेस - बीजेपी को चोर बोलना. प्रधानमंत्री मोदी को पागल कहना. सुबह शाम प्रधानमंत्री को पानी पी पी कर कोसने वाले केजरीवाल को आज कोई नहीं पूछ रहा.

हालांकि, देखा जाये तो बीजेपी - कांग्रेस सही भी कर रहे है. अगर कोई दिनभर आपको चोर कहे तो सही है फिर आप इन चोरों के साथ आने के लिए इतना तिलमिला क्यों रहे हो? आप तो ईमानदार हो जाने दो इन चोरों को. वैसे भी ईमानदार लोग चोरों के साथ नहीं बैठा करते.

मगर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रपति चुनाव में वोट कितने है? क्या कोई मायने भी हैं?

आम आदमी पार्टी के दिल्ली में 65 विधायक हैं और पंजाब विधानसभा में कुल 22 विधायक हैं. कुल विधायकों की बात की जाये तो 87 विधायक हैं. लोकसभा में आम आदमी के चार सांसद हैं. पार्टी के विधायकों और सांसदों के वोट का मूल्य 9,038 है. यह इलेक्टोरल कॉलेज के कुल वोट का 0.82 फीसदी है. यानि की कोई खास फर्क नहीं पड़ता की आप आदमी पार्टी के साथ आने से.

वहीं कांग्रेस - बीजेपी को आम आदमी पार्टी के विधयक और सांसद पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं है. क्योंकी चार में से दो सांसद तो बागी हैं. वहीं कौन विधायक किसे वोट दे इस बात की भी कोई गारंटी नहीं.  इन्हीं सब चीज़ों के चलते आप आदमी पार्टी से न बीजेपी हाथ मिलाना चाहती है और न ही कांग्रेस. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति के पास के पूरा अधिकार होता है की वो दिल्ली सरकार को बर्खास्त कर सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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