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महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना की घेराबंदी

    • साहिल जोशी
    • Updated: 23 जुलाई, 2019 05:24 PM
  • 23 जुलाई, 2019 05:24 PM
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शिवसेना जिसने कभी मुंबई पर कब्जा किया हुआ था, वो अब अपने गठबंधन सहयोगी भाजपा की दया पर जिंदा है. क्या शिवसेना भाजपा के बढ़ते प्रभाव से उबर सकती है या फिर इसके गठबंधन का साथी इसे पूरी तरह से हाशिए पर छोड़ देगा?

19 जून को मुंबई में शिवसेना के 53वें स्थापना दिवस समारोह में 1966 में बाल ठाकरे द्वारा पार्टी के गठन का उल्लेख किया गया था. सायन में षण्मुखानंद सभागार, वो स्थान था जहां बाल ठाकरे ने 2012 में अपनी मृत्यु तक स्थापना दिवस समारोह के तेज तर्रार भाषणों को संबोधित किया था. और इसी लिए ये पार्टी के लिए पवित्र भूमि बनी हुई है.

19 जून को भरे सभागार में शिवसेना के नेता, विधायक, पार्षद और कार्यकर्ताओं ने उम्मीद की कि मुख्य अतिथि और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मराठी मानुस के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए बनाई गई पार्टी के गौरव को याद करेंगे. लेकिन उन सभी को धक्का लगा. क्योंकि फडणवीस ने इसके बजाय ये याद दिलाया कि भाजपा और शिवसेना ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लक्ष्य के लिए गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा था. दर्शक दीर्घा में बैठे शिवसैनिक मन ही मन सोच रहे थे कि क्या ये शिवसेना का स्थापना दिवस समारोह था या भाजपा-शिव सेना गठबंधन का स्थापना दिवस.

शिवसेना किला धीरे-धीरे ढह रहा है

इस समारोह में शिव सैनिकों ने फड़नवीस के हर कदम को पढ़ना शुरू किया. मुख्यमंत्री ने बाल ठाकरे और उनके पिता प्रबोधनकर ठाकरे की तस्वीरों पर फूलमाला अर्पित की जो आमतौर पर शिवसेना प्रमुख ही किया करते हैं. ये शहर में शिवसेना के कम होते रुतबे की तरफ विनम्रता से इशारा कर रहा था, वो रुतबा जिसे इस शहर के अभेद्य किले के रूप में माना जाता था. 1995 में भाजपा के साथ पहली बार सत्ता पर काबिज होने के बाद शिवसेना ने शहर का नाम बॉम्बे से बदलकर मुंबई कर दिया था. मध्य मुंबई के दादर में पार्टी मुख्यालय कांच से बनी एक पांच मंजिला इमारत है, जिसमें किले जैसी दीवारें बनाई गई हैं जिससे पहाड़ी पर बने किलों को याद किया जाए जहां से मराठा राजा शिवाजी ने अपनी लड़ाइयां लड़ी थीं.

19 जून को मुंबई में शिवसेना के 53वें स्थापना दिवस समारोह में 1966 में बाल ठाकरे द्वारा पार्टी के गठन का उल्लेख किया गया था. सायन में षण्मुखानंद सभागार, वो स्थान था जहां बाल ठाकरे ने 2012 में अपनी मृत्यु तक स्थापना दिवस समारोह के तेज तर्रार भाषणों को संबोधित किया था. और इसी लिए ये पार्टी के लिए पवित्र भूमि बनी हुई है.

19 जून को भरे सभागार में शिवसेना के नेता, विधायक, पार्षद और कार्यकर्ताओं ने उम्मीद की कि मुख्य अतिथि और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मराठी मानुस के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए बनाई गई पार्टी के गौरव को याद करेंगे. लेकिन उन सभी को धक्का लगा. क्योंकि फडणवीस ने इसके बजाय ये याद दिलाया कि भाजपा और शिवसेना ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लक्ष्य के लिए गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा था. दर्शक दीर्घा में बैठे शिवसैनिक मन ही मन सोच रहे थे कि क्या ये शिवसेना का स्थापना दिवस समारोह था या भाजपा-शिव सेना गठबंधन का स्थापना दिवस.

शिवसेना किला धीरे-धीरे ढह रहा है

इस समारोह में शिव सैनिकों ने फड़नवीस के हर कदम को पढ़ना शुरू किया. मुख्यमंत्री ने बाल ठाकरे और उनके पिता प्रबोधनकर ठाकरे की तस्वीरों पर फूलमाला अर्पित की जो आमतौर पर शिवसेना प्रमुख ही किया करते हैं. ये शहर में शिवसेना के कम होते रुतबे की तरफ विनम्रता से इशारा कर रहा था, वो रुतबा जिसे इस शहर के अभेद्य किले के रूप में माना जाता था. 1995 में भाजपा के साथ पहली बार सत्ता पर काबिज होने के बाद शिवसेना ने शहर का नाम बॉम्बे से बदलकर मुंबई कर दिया था. मध्य मुंबई के दादर में पार्टी मुख्यालय कांच से बनी एक पांच मंजिला इमारत है, जिसमें किले जैसी दीवारें बनाई गई हैं जिससे पहाड़ी पर बने किलों को याद किया जाए जहां से मराठा राजा शिवाजी ने अपनी लड़ाइयां लड़ी थीं.

लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के एक महीने के भीतर ही ये स्थापना दिवस आ गया. शिवसेना भी 18 लोकसभा सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रही, लेकिन कोई भी राजनेता पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की सफलता का श्रेय लेने को तैयार नहीं है. इस आयोजन के तुरंत बाद, उद्धव ने भाजपा के साथ 1984 से अपने गठबंधन को दिल का रिश्ता कहा.

2014 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन में कुछ खटास सी आ गई थी जब भाजपा ने अक्टूबर 2014 के विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ा था. भाजपा के चुनाव में 288 सीटों में से 123 मिलीं जबकि शिवसेना के 63. नागपुर से भाजपा के विधायक फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया. ये पद आमतौर पर वरिष्ठ गठबंधन के लिए आरक्षित होता है. 1972 में वसंतराव नाइक के बाद पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वो महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री बनने से सिर्फ चार महीने ही दूर हैं.

शिवसेना ने 227-वार्ड बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) पर 1997 से लगातार राज किया है. ये दुनिया के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है. यहां भी, 2017 के नगरपालिका चुनावों में भाजपा को बढ़त मिली थी. भाजपा 31 वार्डों से बढ़कर 82 तक पहुंच गई थी जो शिवसेना के 84 में से दो ही कम था. लेकिन यह राज्य विधानसभा है जहां उद्धव अब अपनी पार्टी को तेजी से हारते हुए पाते हैं. पार्टी ने मुंबई में 14 सीटें जीतीं जबकि 2014 में भाजपा ने 15 सीटें जीती थीं.

नेताओं की अगली पीढ़ी तैयार करने में उद्धव विफल

मुंबई के पश्चिमी उपनगर जो शिवसेना का पारंपरिक गढ़ रहे हैं, वहां शिवसेना अपने बूढ़े बुजुर्गों की रिप्लेसमेंट खोजने के लिए संघर्ष कर रही है. नेताओं की अगली पीढ़ी तैयार करने में उद्धव की विफलता को इसके प्राथमिक कारण के रूप में देखा जाता है. 2018 में जब वरिष्ठ नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री दीपक सावंत विधान परिषद से रिटायर हुए, तो शिवसेना उनकी जगह पर किसी को खोजने के लिए संघर्ष करती रही. अंत में उन्हें 80 साल के बुजु्र्ग विलास पोटनीस को चुनना पड़ा. दहिसर में उद्धव ने शिवसेना के पूर्व विधायक विनोद घोषालकर को बर्खास्त नहीं किया, जिन्होंने कथित रूप से लड़ाई में घी डालने का काम किया था, क्योंकि उनकी पार्टी कुशल नेतृत्व की कमी से जूझ रही थी.

मुंबई में अधीनस्थ भूमिका स्वीकार करने के लिए शिवसेना नेताओं ने इस्तीफा दे दिया. पार्टी के दिग्गज और उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने 2014 में अपनी गोरेगांव सीट भाजपा के विद्या ठाकुर के हाथों गंवा दी थी. यह वो सीट थी जिसपर सैनिक नंदकुमार काले ने 1995 और 1999 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी. वर्तमान में शिवसेना वहां नेतृत्वविहीन है. अगर अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वहां कोई उम्मीदवार नहीं उतारता तो 1991 के बाद ऐसा पहली बार होगा.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिवसेना मुंबई में केवल मजबूत स्थानीय नेताओं की बदौलत जिंदा है. मिसाल के तौर पर मध्य मुंबई को अछूता छोड़ दिया गया क्योंकि शिवसेना के नेता अजय चौधरी, सदा सरवनकर और सुनील शिंदे ने अन्य दलों को वहां बढ़ने नहीं दिया है. लेकिन ऐसे उदाहरण कम ही हैं. आने वाले विधानसभा चुनाव में, शिवसेना भाजपा के माध्यम से इसे संभालने की कोशिश करेगी. 2014 में उसके 14 विधायकों में से पांच ने 5,000 से कम वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. चौधरी, शिंदे, रवींद्र वाइकर, सुनील प्रभु और सुनील राउत जैसे उम्मीदवारों ने अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के बल पर ही जीत हासिल की थी.

उद्धव ने शिवसेना के कार्यकर्ताओं को मुंबई में वार्ड स्तर पर पार्टी का विस्तार करने के लिए कहा है. वह चाहते हैं कि वो स्वास्थ्य, पानी और शिक्षा के मुद्दों पर काम करें. सवाल यह है कि क्या कार्यकर्ता उनके सपने को पूरा करने के लिए प्रेरित भी हैं? क्या शिवसेना भाजपा के बढ़ते प्रभाव से उबर सकती है या फिर इसके गठबंधन का साथी इसे पूरी तरह से हाशिए पर छोड़ देगा? विधानसभा चुनाव ऐसे कई सवालों पर प्रकाश डालेंगे.

सेना की ताकत

लोकसभा में सदस्य: 18

राज्यसभा में सदस्य: 3

महाराष्ट्र विधानसभा में सदस्य: 63

महाराष्ट्र विधान परिषद में सदस्य: 11

महाराष्ट्र नगर निगम में: 03

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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