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शत्रुघ्न-शाहनवाज का तो टिकट कटा, गिरिराज को बीजेपी ने खामोश कर दिया

    • आईचौक
    • Updated: 23 मार्च, 2019 06:22 PM
  • 23 मार्च, 2019 06:22 PM
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शत्रुघ्न सिन्हा सवाल उठाकर, तो शाहनवाज हुसैन बीजेपी का टीवी बहसों में बचाव करने के बावजूद टिकट से हाथ धो बैठे हैं. गिरिराज सिंह की ख्वाहिश भी अधूरी रही जिन्हें बीजेपी ने नवादा से बेगूसराय भेज दिया है.

बिहार में चुनावी बयार तेजी से बहने लगी है. महागठबंधन के बाद एनडीए ने भी संसदीय सीटों से परदा हटा दिया है. ज्यादातर वही बातें औपचारिक तौर पर सामने आयी हैं - जो सूत्रों के हवाले से मीडिया की सुर्खियों में पिछले कुछ दिनों से बनी हुई थीं.

जब बीजेपी की पहली लिस्ट जारी हुई तब बताया गया कि 17 उम्मीदवारों की सूची बिहार यूनिट को फॉरवर्ड कर दी गयी है जिसकी वजह पार्टी में असंतोष और विवाद माना गया - लेकिन आखिरी सूची देख कर तो यही लगता है कि नेतृत्व ने किसी भी केस में सहानुभूति के साथ विचार नहीं किया है. बिहार एनडीए की ओर से 40 में से 39 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी गयी है जिसमें बीजेपी और जेडीयू के 17-17 और लोक जनशक्ति पार्टी की छह सीटें हैं - एलजेपी ने एक सीट खगड़िया पर नाम फाइनल नहीं किया है.

बीजेपी से शत्रुघ्न सिन्हा का पत्ता साफ

बीजेपी नेतृत्व पर अरसे से सवालों की बौछार करते रहने वाले शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा को पार्टी ने आखिरकार खामोश कर ही दिया - और उनके हिस्से की बहार केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को तोहफे में दे दिया है.

पहली बार चुनाव मैदान में कूदने जा रहे रविशंकर प्रसाद को बीजेपी ने पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया है. अभी तक रविशंकर प्रसाद राज्य सभा के रास्ते संसद पहुंचते रहे - और मोदी सरकार से पहले वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं.

शत्रुघ्न सिन्हा की तरह ही कीर्ति आजाद का मामला भी फंस गया है. बिहारी बाबू की तरह कीर्ति आजाद भी बहुत दिनों तक बीजेपी नेतृत्व खास कर अरुण जेटली को टारगेट करते रहे और कुच वक्त पहले कांग्रेस में शामिल हो गये थे. शत्रुघ्न सिन्हा के भी कीर्ति आजाज की राह चलने की चर्चा है. हाल में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की स्थिति में शत्रुघ्न सिन्हा को सातवीं सीट पर साझा उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा रही. हालांकि, शत्रुघ्न सिन्हा ने कह दिया था कि वो चुनाव लड़ेंगे तो बिहार से ही. पहले तो नहीं लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा जब ममता बनर्जी की कोलकाता रैली में शामिल...

बिहार में चुनावी बयार तेजी से बहने लगी है. महागठबंधन के बाद एनडीए ने भी संसदीय सीटों से परदा हटा दिया है. ज्यादातर वही बातें औपचारिक तौर पर सामने आयी हैं - जो सूत्रों के हवाले से मीडिया की सुर्खियों में पिछले कुछ दिनों से बनी हुई थीं.

जब बीजेपी की पहली लिस्ट जारी हुई तब बताया गया कि 17 उम्मीदवारों की सूची बिहार यूनिट को फॉरवर्ड कर दी गयी है जिसकी वजह पार्टी में असंतोष और विवाद माना गया - लेकिन आखिरी सूची देख कर तो यही लगता है कि नेतृत्व ने किसी भी केस में सहानुभूति के साथ विचार नहीं किया है. बिहार एनडीए की ओर से 40 में से 39 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी गयी है जिसमें बीजेपी और जेडीयू के 17-17 और लोक जनशक्ति पार्टी की छह सीटें हैं - एलजेपी ने एक सीट खगड़िया पर नाम फाइनल नहीं किया है.

बीजेपी से शत्रुघ्न सिन्हा का पत्ता साफ

बीजेपी नेतृत्व पर अरसे से सवालों की बौछार करते रहने वाले शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा को पार्टी ने आखिरकार खामोश कर ही दिया - और उनके हिस्से की बहार केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को तोहफे में दे दिया है.

पहली बार चुनाव मैदान में कूदने जा रहे रविशंकर प्रसाद को बीजेपी ने पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया है. अभी तक रविशंकर प्रसाद राज्य सभा के रास्ते संसद पहुंचते रहे - और मोदी सरकार से पहले वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं.

शत्रुघ्न सिन्हा की तरह ही कीर्ति आजाद का मामला भी फंस गया है. बिहारी बाबू की तरह कीर्ति आजाद भी बहुत दिनों तक बीजेपी नेतृत्व खास कर अरुण जेटली को टारगेट करते रहे और कुच वक्त पहले कांग्रेस में शामिल हो गये थे. शत्रुघ्न सिन्हा के भी कीर्ति आजाज की राह चलने की चर्चा है. हाल में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की स्थिति में शत्रुघ्न सिन्हा को सातवीं सीट पर साझा उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा रही. हालांकि, शत्रुघ्न सिन्हा ने कह दिया था कि वो चुनाव लड़ेंगे तो बिहार से ही. पहले तो नहीं लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा जब ममता बनर्जी की कोलकाता रैली में शामिल हुए तो बीजेपी की ओर से सख्त संदेश दिये गये थे. वैसे हाल फिलहाल कुछ मुद्दों पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में भी बयान देते रहे - लेकिन बिहार बीजेपी के नेताओं ने कह दिया था कि अब कुछ नहीं होने वाला.

रविशंकर प्रसाद पहली बार चुनाव मैदान में...

कीर्ति आजाद दरभंगा से चुनाव लड़ते हैं. महागठबंधन में दरभंगा सीट वीआईपी यानी विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से में चली गयी है - हालांकि, कांग्रेस अभी उस सीट पर दावेदारी जता रही है - हो सकता है जम्मू कश्मीर की तरह फ्रेंडली मैच पर विचार विमर्श हो रहा हो - लेकिन फारूक अब्दुल्ला की तरह तेजस्वी यादव राजी होंगे ऐसा तो नहीं लगता.

कीर्ति आजाद का हाल कुछ कुछ बीजेपी के शाहनवाज हु्सैन जैसा हो गया है - जिन्हें गठबंधन की राजनीति के चलते भागलपुर सीट से हाथ धोना पड़ा है.

शाहनवाज की किस्मत में अभी सिर्फ इंतजार है

शाहनवाज हुसैन 2014 की मोदी लहर में भी भागलपुर से चुनाव हार गये थे. हार का अंतर दस हजार से भी कम ही रहा लेकिन इस बार उन्हें अपनी संसदीय सीट से टिकट नहीं मिला है. टिकट न मिल पाने की वजह हार नहीं ब्लकि भागलपुर सीट जेडीयू के हिस्से में जाना बताया जा रहा है.

मुश्किल ये है कि शाहनवाज हुसैन गठबंधन के चलते सीट छोड़ने जाने की बात कैसे हजम करें? ऐसे देखा जाये तो नवादा सीट भी लोक जनशक्ति पार्टी के खाते में चली गयी, लेकिन गिरिराज सिंह को बेगूसराय शिफ्ट कर दिया गया. क्या शाहनवाज के साथ भी गिरिराज सिंह जैसा प्रयोग नहीं हो सकता था? फिर तो शाहनवाज को हार की ही कीमत चुकानी पड़ी है, ये लगता है.

देखा जाय तो शाहनवाज हुसैन प्रवक्ता के रूप में बीजेपी का बचाव करने में संबित पात्रा से किसी भी तरीके से कम नहीं नजर आते. संबित पात्रा को बीजेपी ने ओडिशा की पुरी सीट से उम्मीदवार बनाया है. रविशंकर प्रसाद की तरह शाहनवाज हुसैन भी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. शाहनवाज हुसैन भागलपुर से 2006 में उपचुनाव और 2009 का आम चुनाव जीते थे.

टिकट कटने वालों की लिस्ट में तो श्रेष्ठ सांसद का सम्मान पाने वाले हुकुमदेव नारायण यादव भी शामिल हैं लेकिन उनके बेटे अशोक कुमार यादव को उम्मीदवार बनाकर भरपाई की गयी है. मधुबनी सीट से वो चुनाव लड़ेंगे. हुकुमदेव नारायण यादव का नाम बीजेपी के 75 पार वाले नेताओं में शुमार है. बीजेपी का टिकट पाने वाले तीन मंत्रियों में केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह को पूर्वी चंपारण से प्रत्याशी घोषित किया गया है. दो अन्य मंत्री रविशंकर प्रसाद और गिरिराज सिंह हैं. 2014 में लालू प्रसाद को छोड़ कर बीजेपी में आये रामकृपाल यादव की पाटलिपुत्र और अश्वनी चौबे की बक्सर की सीटें बरकरार हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाकर बीजेपी प्रवक्ता बनाये गये राजीव प्रताप रूडी और बिहार चुनाव के वक्त कई सवाल खड़े करने वाले आरके सिंह भी टिकट पाने में कामयाब हुए हैं. बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय भी उजियारपुर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

गिरिराज सिंह गुर्राते रहे और...

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के साथ बीजेपी नेतृत्व ने किसी तरह की सहानुभूति नहीं बरती है. उनकी मर्जी के खिलाफ बेगूसराय से ही टिकट दिया गया है. 2014 से पहले से ही नरेंद्र मोदी के पक्ष में माहौल बनाने में आगे रहे गिरिराज सिंह नवादा से लोक सभा पहुंचे थे - और इस बार भी उनकी यही ख्वाहिश रही जो अधूरी रही.

2014 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय से बीजेपी के भोला सिंह ने आरजेडी के तनवीर हसन को पचास हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. भोला सिंह को 4.28 लाख और तनवीर हसन को 3.70 लाख वोट मिले थे. इस सीट पर सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को भी 1.92 लाख वोट हासिल हुए थे.

नवादा से गिरिराज सिंह को बेगूसराय शिफ्ट करने की पहली वजह तो गठबंधन की राजनीति है लेकिन दूसरी वजह सीपीआई की ओर से कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी है. महागठबंधन में जगह न मिलने के बाद सीपीआई ने साफ कर दिया कि बेगूसराय से कन्हैया कुमार ही पार्टी के उम्मीदवार होंगे. वाम दलों में महागठबंधन में सिर्फ एक सीट सीपीआई-एमएल को मिली है लेकिन अभी सीट नहीं तय है. महागठबंधन में आरजेडी के पास 20 सीटें हैं लेकिन सिर्फ 17 सीटों पर ही वो अपने उम्मीदवार उतार पाएगी. तीन सीटों पर साझेदारी के तहत दो सीटों पर शरद यादव और उनके एक साथी और तीसरी सीट पर सीपीआई-एमएल का उम्मीदवार खड़ा होगा.

कन्हैया कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच बीते कुछ समय में नजदीकियां महसूस की जा रही थीं. पटना में एक कार्यक्रम में तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार को लेकर कहा था, 'जो भी भाजपा के खिलाफ बोलता है, उस पर मुकदमा होता है. हमारे लोगों के साथ ऐसा ही हो रहा है.'

जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ चूंकि देशद्रोह का मामला चल रहा है इसलिए बीजेपी को गिरिराज सिंह फिट कैंडिडेट लगे होंगे. वैसे भी अक्सर वो लोगों को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते रहते हैं.

तेजस्वी यादव भी कन्हैया कुमार को लेकर इसीलिए परहेज करते लगते हैं. लगता है तेजस्वी इस बात से डर रहे होंगे की कन्हैया के साथ जाने पर बीजेपी कहीं अलग से मुद्दा न बना दे. वैसे महागठबंधन की ओर से कुछ सीटों के उम्मीदवारों के बारे में बताया गया है. मसलन, शरद यादव मधेपुरा से लड़ेंगे और जीतनराम मांझी गया है. बेगूसराय को लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है.  

बेगूसराय में बीजेपी द्वारा गिरिराज सिंह और सीपीआई द्वारा कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी तय कर दिये जाने के बाद महागठबंधन अपने प्रत्याशी सोच समझ कर उतार सकता है और आरजेडी नेता तनवीर हसन के पास फिर से मौका है. पिछली बार चूक गये तनवीर हसन इस बार दो भूमिहार नेताओं की लड़ाई का फायदा उठा सकते हैं - लेकिन अभी इस बारे में औपचारिक तौर पर कुछ बताया नहीं गया है.

2014 में बीजेपी और जेडीयू अलग अलग चुनाव लड़े थे. बीजेपी ने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 22 जीतने में कामयाब रहे. बीजेपी की सहयोगी एलजेपी को सात में से छह सीटों पर जीत मिली थी. तब उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा भी एनडीए में थी जिसने अपनी तीनों सीटें जीती थीं. उपेंद्र कुशवाहा इस बार महागठबंधन में चले गये हैं और पांच सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले चुनाव में जेडीयू के 38 उम्मीदवारों में से सिर्फ दो ही जीत पाये थे - लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से 17 सीटें झटक ली है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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