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मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस से बड़ी चुनौती बन गए नेता-अभिनेता!

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 20 जून, 2019 07:50 PM
  • 20 जून, 2019 07:50 PM
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मुजफ्फरपुर में एक ओर एंसेफेलाइटिस (Acute Encephalitis Syndrome) से बच्चों की जान जा रही है, वहीं दूसरी ओर, नेता-अभिनेता एंसेफेलाइटिस से भी बड़ी चुनौती के रूप में अस्पताल में आ धमके. उनकी वजह से अस्पताल में व्यवस्था बेहद खराब हो गई थी.

इन दिनों बिहार दो बड़ी त्रासदियों से गुजर रहा है. एक तो है एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (Acute Encephalitis Syndrome), जो बच्चों की जान ले रहा है और दूसरी त्रासदी है लू, जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक किसी को नहीं बख्श रही. अस्पतालों की हालत ये है कि वहां दिन रात मरीजों का तांता लगा रह रहा है, बेड कम पड़ गए हैं. एक-एक बेड पर 2-3 बच्चों या मरीजों को एडजस्ट किया जा रहा है. पिछले कुछ दिनों में एईएस ने करीब 150 बच्चों की जान ले ली है. जैसे-जैसे मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए लोगों का गुस्सा भी बढ़ रहा है. शुरुआत में कई दिनों तक राज्य सरकार ने कोई खबर नहीं ली तो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ और अब सरकार ने ऐसी खबर लेना शुरू किया है कि मरीज ही परेशान हो गए हैं.

पहले तो सुनने में आ रहा था कि मुख्यमंत्री बिहार में गर्मी का हवाई सर्वे करने वाले हैं. लेकिन जब उनकी आलोचना हुई तो उनके एक मंत्री ने सफाई दी कि वह हवाई मार्ग से जाएंगे, सर्वे हवाई नहीं होगा. खैर, यहां तक तो ठीक था, लेकिन असली दिक्कत की बात तो तब शुरू हुई, जब नेता-अभिनेताओं ने मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) का दौरा करना शुरू किया. दरअसल, जब इस मामले ने तूल पकड़ लिया और मीडिया ने इसे टीवी पर दिखाना शुरू कर दिया, तो नेताओं को अपनी राजनीतिक चमकाने का एक जरिया मिल गया. बस फिर क्या था, वो सभी पहुंचने लगे अस्पताल अपनी वाहवाही करवाने.

खेसारी लाल यादव और शरद यादव की वजह से अस्पताल में व्यवस्था बेहद खराब हो गई थी.

10 गाड़ियों के काफिले संग आए शरद यादव

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो मुजफ्फरनगर का दौरा कर के चले गए, लेकिन बाकी पार्टियों को भी अपनी राजनीति चमकानी थी. नीतीश कुमार के बाद अस्पताल पहुंचे लोकतांत्रिक जनता...

इन दिनों बिहार दो बड़ी त्रासदियों से गुजर रहा है. एक तो है एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (Acute Encephalitis Syndrome), जो बच्चों की जान ले रहा है और दूसरी त्रासदी है लू, जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक किसी को नहीं बख्श रही. अस्पतालों की हालत ये है कि वहां दिन रात मरीजों का तांता लगा रह रहा है, बेड कम पड़ गए हैं. एक-एक बेड पर 2-3 बच्चों या मरीजों को एडजस्ट किया जा रहा है. पिछले कुछ दिनों में एईएस ने करीब 150 बच्चों की जान ले ली है. जैसे-जैसे मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए लोगों का गुस्सा भी बढ़ रहा है. शुरुआत में कई दिनों तक राज्य सरकार ने कोई खबर नहीं ली तो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ और अब सरकार ने ऐसी खबर लेना शुरू किया है कि मरीज ही परेशान हो गए हैं.

पहले तो सुनने में आ रहा था कि मुख्यमंत्री बिहार में गर्मी का हवाई सर्वे करने वाले हैं. लेकिन जब उनकी आलोचना हुई तो उनके एक मंत्री ने सफाई दी कि वह हवाई मार्ग से जाएंगे, सर्वे हवाई नहीं होगा. खैर, यहां तक तो ठीक था, लेकिन असली दिक्कत की बात तो तब शुरू हुई, जब नेता-अभिनेताओं ने मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) का दौरा करना शुरू किया. दरअसल, जब इस मामले ने तूल पकड़ लिया और मीडिया ने इसे टीवी पर दिखाना शुरू कर दिया, तो नेताओं को अपनी राजनीतिक चमकाने का एक जरिया मिल गया. बस फिर क्या था, वो सभी पहुंचने लगे अस्पताल अपनी वाहवाही करवाने.

खेसारी लाल यादव और शरद यादव की वजह से अस्पताल में व्यवस्था बेहद खराब हो गई थी.

10 गाड़ियों के काफिले संग आए शरद यादव

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो मुजफ्फरनगर का दौरा कर के चले गए, लेकिन बाकी पार्टियों को भी अपनी राजनीति चमकानी थी. नीतीश कुमार के बाद अस्पताल पहुंचे लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव. उनके साथ थे विकासशील पार्टी के अध्यक्ष मुकेश साहनी. दिक्कत ये नहीं कि वह मरीजों को देखने पहुंचे, बल्कि दिक्कत इस बात की है कि वह 10 गाड़ियों के काफिले संग अस्पताल में जा घुसे. साथ में 3 एस्कॉर्ट की गाड़ियां भी थीं, जिसमें एसडीएम और डीएसपी साहब बैठे थे. इन 13 बड़ी-बड़ी गाड़ियों की वजह से अस्पताल में जाम की स्थिति बन गई. आपको बता दें कि नेताओं की आवाजाही से परेशानी के चलते अस्पताल प्रशासन बार-बार नेताओं से अपील कर रहा है कि वह अस्पताल ना आएं, लेकिन अब मुजफ्फरपुर का एसकेएमसीएच अस्पताल सिर्फ पर्यटन स्थल जैसा बन चुका है, जहां सभी नेता-अभिनेता घूमने चले आ रहे हैं.

टैंपो में फंसा रहा मरीज

जब बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले के साथ शरद यादव अस्पताल में पहुंचे थे, उस समय उनके काफिले के पीछ एक टैंपो जाम की वजह से फंस गया था. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि उस टैंपो में एक मरीज था, जिसका एक्सिडेंट हुआ था. इन काफिलों से कितनी परेशानी होती है, इसका एक नजारा मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में देखने को मिला. खेसारी लाल की वजह से भी कई लोगों को अस्पताल के अंदर तक पहुंचने में दिक्कतें उठानी पड़ीं.

खेसारी लाल यादव आए तो हालात बेकाबू हो गए

शरद यादव तो अपने साथ गाड़ियों का काफिला लाए थे, लेकिन उनके बाद आए खेसारी लाल ने तो अस्पताल के अंदर किसी के पैर तक रखने की जगह नहीं छोड़ी. भोजपुरी सिंगर और एक्टर खेसारी लाल यादव लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करते हुए दिख चुके हैं. वह भी अस्पताल में मरीजों के देखने के नाम पर पहुंचे, लेकिन उनके पहुंचते ही अस्पताल में हजारों की संख्या में उनके फैंस आ धमके. देखते ही देखते अफरा-तफरी मच गई.

लोग मोबाइल से खेसाली लाल की तस्वीरें खींचने लगे, वीडियो बनाने लगे. हर कोई इसी जुगत में लगा था कि कैसे खेसारी लाल की एक झलक मिल जाए. हालांकि, हालात बेकाबू होते देख खेसारी लाल जल्दी से वहां से निकल गए. जाते-जाते उन्होंने कहा कि वह यहां सिर्फ मरीजों का दुख बांटने आए थे, लेकिन उनका एक स्टारडम है तो लोगों में उनके लिए एक दीवानगी हैं, ऐसे लोगों को वह रोक नहीं सकते. अस्पताल उस समय किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं लग रहा था, क्योंकि ढेर सारे लोग वहां पहुंचे थे और खेसारी लाल के साथ सेल्फी लेना चाह रहे थे.

एक ओर एंसेफेलाइटिस से बच्चों की जान जा रही है, वहीं दूसरी ओर, नेता-अभिनेता एंसेफेलाइटिस से भी बड़ी बीमारी के रूप में अस्पताल में आ धमके. उनकी वजह से अस्पताल में व्यवस्था इतनी खराब हो गई थी कि अगर उस दौरान कोई इमरजेंसी केस आ जाता तो उसे अंदर ले जाने में भी मशक्कत करनी पड़ती. इन नेताओं और अभिनेताओं को ये समझना चाहिए कि ऐसी स्थिति से जूझने में अगर मदद करनी ही है, तो व्यवस्था को और अच्छा करने में मदद करें, वित्तीय रूप से गरीबों की मदद करें, ना कि वहां जाकर व्यवस्था ही बिगाड़ दें. अस्पताल प्रशासन इसी परेशानी की वजह से पहले से ही अपील कर रहा है कि नेता-अभिनेता अस्पताल में ना आएं. लेकिन जहां मीडिया के कैमरे पहुंचते हैं, वहां अपनी राजनीति चमकाने के लिए नेता-अभिनेता खुद-ब-खुद दौड़े चले आते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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