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क्या कांग्रेस संविधान बचाओ अभियान के सहारे दलितों को अपने पाले में वापस ला पाएगी?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 23 अप्रिल, 2018 04:42 PM
  • 23 अप्रिल, 2018 04:42 PM
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कांग्रेस पार्टी को शायद लग रहा है कि दलितों की आवाज़ को उठा कर ही वह अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन हासिल कर सकती है. मकसद साफ़ है - 2019 लोकसभा चुनाव में दलितों को कांग्रेस के पाले में लाने की कोशिश.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दलित सम्मेलन के जरिए "संविधान बचाओ अभियान" की शुरुआत दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से की है जिसे पूरे देश भर में अगले एक साल तक चलाया जाएगा. इसके द्वारा सभी कांग्रेसियों को अपने - अपने क्षेत्र में जाकर ये संदेश पहुंचाना है कि कांग्रेस ही उसके हक़ के लिए लड़ती है. इस सम्मेलन के जरिए भाजपा को दलित विरोधी बता कर दलितों को अपने पक्ष में लाना है जो कभी कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करती थी. वैसे भी जब से सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव का फैसला दिया है तब से देश भर के दलित समाज भाजपा सरकार से नाराज चल रहा है. समाज ने इसी महीने के 2 तारीख को देश-व्यापी बंद कर अपना मंशा भी साफ़ कर दी थी.

कांग्रेस पार्टी को शायद लग रहा है कि दलितों की आवाज़ को उठा कर ही वह अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन हासिल कर सकती है. मकसद साफ़ है - 2019 लोकसभा चुनाव में दलितों को कांग्रेस के पाले में लाने की कोशिश.

इससे पहले कांग्रेस 9 अप्रैल को दलितों के मुद्दों को लेकर देश भर में सांकेतिक उपवास भी रखा था और अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को दलित विरोधी बताया था. बकौल राहुल गांधी " पूरा देश जानता है कि प्रधानमंत्री मोदी दलित विरोधी हैं. यह छुपा नहीं है. बीजेपी दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का दमन करने की विचारधारा का अनुसरण करती है. हम उसके खिलाफ खड़े होंगे और साल 2019 के आम चुनाव में उसे पराजित करेंगे."

जब से भाजपा की सरकार केंद्र में आयी है तब से दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2014 से 2016 तक दलितों के खिलाफ 119872 मामले दर्ज़ हुए थे वहीं कांग्रेस के तीन सालों 2011-2013 के बीच दलितों के खिलाफ 106782 मामले दर्ज़ हुए थे. इस तरह कांग्रेस को भाजपा के विरुद्ध यह एक हथियार भी मिल गया है जिसे...

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दलित सम्मेलन के जरिए "संविधान बचाओ अभियान" की शुरुआत दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से की है जिसे पूरे देश भर में अगले एक साल तक चलाया जाएगा. इसके द्वारा सभी कांग्रेसियों को अपने - अपने क्षेत्र में जाकर ये संदेश पहुंचाना है कि कांग्रेस ही उसके हक़ के लिए लड़ती है. इस सम्मेलन के जरिए भाजपा को दलित विरोधी बता कर दलितों को अपने पक्ष में लाना है जो कभी कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करती थी. वैसे भी जब से सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव का फैसला दिया है तब से देश भर के दलित समाज भाजपा सरकार से नाराज चल रहा है. समाज ने इसी महीने के 2 तारीख को देश-व्यापी बंद कर अपना मंशा भी साफ़ कर दी थी.

कांग्रेस पार्टी को शायद लग रहा है कि दलितों की आवाज़ को उठा कर ही वह अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन हासिल कर सकती है. मकसद साफ़ है - 2019 लोकसभा चुनाव में दलितों को कांग्रेस के पाले में लाने की कोशिश.

इससे पहले कांग्रेस 9 अप्रैल को दलितों के मुद्दों को लेकर देश भर में सांकेतिक उपवास भी रखा था और अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को दलित विरोधी बताया था. बकौल राहुल गांधी " पूरा देश जानता है कि प्रधानमंत्री मोदी दलित विरोधी हैं. यह छुपा नहीं है. बीजेपी दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का दमन करने की विचारधारा का अनुसरण करती है. हम उसके खिलाफ खड़े होंगे और साल 2019 के आम चुनाव में उसे पराजित करेंगे."

जब से भाजपा की सरकार केंद्र में आयी है तब से दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2014 से 2016 तक दलितों के खिलाफ 119872 मामले दर्ज़ हुए थे वहीं कांग्रेस के तीन सालों 2011-2013 के बीच दलितों के खिलाफ 106782 मामले दर्ज़ हुए थे. इस तरह कांग्रेस को भाजपा के विरुद्ध यह एक हथियार भी मिल गया है जिसे वो आने वाले दिनों में भुनाना चाहती है.

पिछले कुछ सालों में कांग्रेस अपना पारंपरिक दलित वोट खोया है. देश भर में दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 17 फीसदी है. अनुसूचित जातियों के लिए लोकसभा में 84 सीटें आरक्षित हैं जिसमें से 2014 के चुनावों में भाजपा ने 40 सीटें जीत लीं थीं तथा कांग्रेस के खाते में मात्र 2 सीटें आयी थी. वहीं भाजपा दलित वोटों को बरकरार रखना चाहती है. तभी तो अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर दिल्ली स्थित डॉ.अंबेडकर नेशनल मेमोरियल का उद्धाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर बाबा साहब अंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाया था.

पहले दलित मुद्दों को लेकर 9 अप्रैल को उपवास, फिर 13 अप्रैल को इंडिया गेट पर कैंडल मार्च, अब "संविधान बचाओ" अभियान और फिर कांग्रेस पार्टी 29 अप्रैल को दिल्ली के रामलीला मैदान में मोदी सरकार की कथित जन विरोधी नीतियों को उजागर करने के लिए एक बड़ी रैली भी करने जा रही है. इन सबसे साफ़ ज़ाहिर है कि कांग्रेस 2019 के चुनाव मोड में आ गई है.

इस "संविधान बचाओ" अभियान के द्वारा कांग्रेस दलितों के विश्वास को अपने पक्ष में वापस लाने में सफल हो पाएगी या नहीं इसका उत्तर तो समय आने पर ही मिलेगा फिलहाल कांग्रेस का कोशिश जारी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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