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सम्मेद शिखर जी विवाद: समाधान कहीं बड़े खतरे की आहट तो नहीं है?

    • prakash kumar jain
    • Updated: 08 जनवरी, 2023 08:44 PM
  • 08 जनवरी, 2023 08:44 PM
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अप्रत्याशित और अनचाही टकराव की स्थिति निर्मित कर दी गई हैं. वजहें क्या है ? क़यास ही हैं. परंतु तय है फर्जी आवाजों के पीछे विशुद्ध राजनीति है ! क्या शांतिप्रिय, धर्मभीरु और फसादों से दूर रहनेवाले जैन अब भयमुक्त होकर तीर्थयात्रा कर भी पाएंगे?

लगातार जारी विरोध के बाद अंततः केंद्र सरकार ने झारखंड में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी, वहीं झारखंड सरकार को इसकी शुचिता अक्षुण्ण रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश भी दे दिए. और आनन फानन में भिन्न जैन समूहों के प्रतिनिधियों ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद ज्ञापित कर दिया और कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनके सबसे पवित्र तीर्थ स्थल की पवित्रता बनी रहेगी. उधर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन सोरेन केंद्र सरकार द्वारा श्रेय लेने और जैन समुदायों द्वारा सिर्फ मोदी सरकार को श्रेय देने की होड़ पर कैसे चुप रह सकते थे? सोरेन ने तुरंत खुलासा किया कि यह निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखने के बाद आया है.

सम्मेद शिखरजो को लेकर जो फैसला सरकार ने लिया है उससे जैन समुदाय में ख़ुशी की लहार है

इस पत्र में जैन समुदाय के सबसे पवित्र स्थलों में से एक पारसनाथ पहाड़ी में पर्यटन को बढ़ावा देने के किसी भी कदम का समुदाय के सदस्यों द्वारा देशभर में विरोध किये जाने के मद्देनजर केंद्र से तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की 2019 की पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों से संबंधित अधिसूचना पर ‘उचित निर्णय’ लेने का आग्रह किया गया था.

निःसंदेह जैन समूहों में व्यवहारिक कौशल का अभाव दिखा, उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री के सहयोग की भी अपेक्षा रखनी चाहिए थी और इसलिए झारखंड सरकार के पत्राचार के आलोक में हेमन सोरेन की मंशा की भी सराहना करनी चाहिए थी. फिर बीते 2 जनवरी को हेमंत सोरेन सरकार ने जैन समुदाय को क्षेत्र की पवित्रता बनाए रखने का आश्वासन भी दिया था और कहा था कि वह इस...

लगातार जारी विरोध के बाद अंततः केंद्र सरकार ने झारखंड में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी, वहीं झारखंड सरकार को इसकी शुचिता अक्षुण्ण रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश भी दे दिए. और आनन फानन में भिन्न जैन समूहों के प्रतिनिधियों ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद ज्ञापित कर दिया और कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनके सबसे पवित्र तीर्थ स्थल की पवित्रता बनी रहेगी. उधर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन सोरेन केंद्र सरकार द्वारा श्रेय लेने और जैन समुदायों द्वारा सिर्फ मोदी सरकार को श्रेय देने की होड़ पर कैसे चुप रह सकते थे? सोरेन ने तुरंत खुलासा किया कि यह निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखने के बाद आया है.

सम्मेद शिखरजो को लेकर जो फैसला सरकार ने लिया है उससे जैन समुदाय में ख़ुशी की लहार है

इस पत्र में जैन समुदाय के सबसे पवित्र स्थलों में से एक पारसनाथ पहाड़ी में पर्यटन को बढ़ावा देने के किसी भी कदम का समुदाय के सदस्यों द्वारा देशभर में विरोध किये जाने के मद्देनजर केंद्र से तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की 2019 की पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों से संबंधित अधिसूचना पर ‘उचित निर्णय’ लेने का आग्रह किया गया था.

निःसंदेह जैन समूहों में व्यवहारिक कौशल का अभाव दिखा, उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री के सहयोग की भी अपेक्षा रखनी चाहिए थी और इसलिए झारखंड सरकार के पत्राचार के आलोक में हेमन सोरेन की मंशा की भी सराहना करनी चाहिए थी. फिर बीते 2 जनवरी को हेमंत सोरेन सरकार ने जैन समुदाय को क्षेत्र की पवित्रता बनाए रखने का आश्वासन भी दिया था और कहा था कि वह इस जगह को पर्यटन स्थल में बदलने के 2019 के प्रस्ताव को रद्द करने पर विचार कर रही है.

और अब वो हो रहा है जिसकी कल्पना भी शायद किसी को नहीं हुई होगी. आदिवासी भी मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने इस इलाके पर अपना दावा जताया है तथा इसे जैनियों से मुक्त कराने की मांग की है. संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांग पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है.

अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा करते हुए कहा,'अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा. चाहते हैं कि सरकार दस्तावेजीकरण के आधार पर कदम उठाए. 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है. जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था. हम हर साल वैशाख में पूर्णिमा पर तीन दिनों के लिए यहां धार्मिक शिकार के लिए इकट्ठा होते हैं.'

सनद रहे प्रकृति पूजक समझे जाने वाले संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है. हमारी महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी इसी समुदाय की हैं और कहा जाता है वे संथाल परिषद की संरक्षक भी हैं. लगे हाथों किसी अन्य आदिवासी संगठन ने भी हो हल्ला मचाया है कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है.

पारसनाथ मारंग गुरू बचाओ के तहत आंदोलन का ऐलान कर दिया गया है और कहा जा रहा है कि 'अगर 9 व 10 जनवरी तक झारखंडियों के पक्ष में वार्ता नहीं हुई तो 15 जनवरी को पारसनाथ को घेर लिया जाएगा. हर हाल में 15 जनवरी को मकर- संक्रांति मेला यहीं लगेगा. लाखों लोग यहां आएंगे. जो भी उसे रोकने का कोशिश करेगा, इस अहिंसा की भूमि में उसे बख्शा नहीं जाएगा

17 जनवरी को पांच प्रदेशों के 50 जिलों में धरना प्रदर्शन की तैयारी है. आंदोलन के तहत भारत बंद का ऐलान होगा.' कुल मिलाकर एकाएक ही अप्रत्याशित अनकही और अनचाही टकराव की स्थिति निर्मित कर दी गई हैं. वजहें क्या हो सकती है?

क़यास ही लगाए जा सकते हैं. परंतु एक बात तो तय है फर्जी आवाजों के पीछे विशुद्ध राजनीति है. और सवाल बड़ा है क्या अब शांतप्रिय धर्मभीरु और फसादों से दूरी रखने वाला जैन समुदाय अब पहले की तरह भयमुक्त होकर सम्मेद शिखर जी की तीर्थयात्रा भी कर पायेगा? 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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